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6 फरवरी 2023 · FEB 06 , 2023

शहरनामा/रेवाड़ी

रेवती के विवाह के बाद बलराम को दहेज में मिला था रेवा वाड़ी
यादों में शहर

राजा रेवत का नगर

पौराणिक मान्यता के अनुसार परम प्रतापी राजा रेवत अपनी पुत्री रेवती के लिए सुयोग्य वर की खोज में थे। पुरोहितों और ऋषियों ने उन्हें ब्रह्माजी से उपाय पूछने का सुझाव दिया। राजा रेवती के साथ ब्रह्मलोक पहुंचे। ब्रह्माजी ने बताया कि उनके वहां पहुंचने के दौरान सतयुग-त्रेता युग बीत चुके थे और पृथ्वीलोक वापस पहुंचने तक द्वापर का अंतिम समय होगा। इसलिए शेषनाग के अवतार श्रीकृष्ण के भाई बलराम से ही रेवती का विवाह हो सकता है। राजा रेवत ने पृथ्वी पर आकर नगर निर्माण किया। पुत्री को रेवा कहने के कारण नगर का नाम रेवा वाड़ी रखा। बलराम से रेवती के विवाहोपरांत दहेज स्वरूप रेवा वाड़ी दिया, जो कालांतर में रेवाड़ी हुआ।

हेमचंद्र विक्रमादित्य के तोप 

हिंदू सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के पिता पुरोहिताई के साथ व्यापार भी करते थे। वे अलवर के गांव मछेरी से आकर रेवाड़ी में बस गए थे। रेवाड़ी में हेमचंद्र ने हवेली बनाई, जिसकी पहली मंजिल पुर्तगाली शैली और बाकी राजपूताना और मुगल शैली का मिश्रण है। कुतुबपुर की यह हवेली सम्राट के गौरवशाली इतिहास की साक्षी है। हेमचंद्र ने मुगलों और अफगानों को हराने के लिए तोपों का निर्माण आरंभ किया। दिल्ली नजदीक होने से वहां से तोपें मंगवाना सुगम था। तोप निर्माण हेतु बड़ी मात्रा में पीतल मंगवाया जाने लगा। तोप निर्माण के बाद बचे पीतल से बर्तन बनने लगे। सम्राट की मृत्योपरांत तोप निर्माण बंद हुआ पर पीतल के बर्तनों ने विदेश तक छाप छोड़ी। बर्तन बनाने वाले ठठेरा जाति के लोग रेवाड़ी में बस गए, जो आज भी तोपचीवाड़ा में बहुतायत में हैं। बर्तन बाजार में सुनारों के लिए भी संभावनाएं थीं। इस प्रकार रेवाड़ी औद्योगिक क्षेत्र बनकर उभरा।

1857 के क्रांतिवीर

रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम ने चचेरे भाई गोपालदेव के साथ मिलकर 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजाया। तुलाराम ने मेवात और अहीरवाल के लोगों की सेना बनाकर दिल्ली पर धावा बोला और बंदी क्रांतिकारियों को बड़ी संख्या में छुड़ाया। पटौदी के मैदान में अंग्रेजों को फिर हराने के बाद उन्होंने नारनौल के नसीबपुर मैदान में अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतारा और उनकी सेना को धूल चटाई। युद्ध में घायल होकर मदद के लिए वे आज के पाकिस्तान होते हुए काबुल तक पहुंचे। उनका इरादा रूस के जार से अंग्रेजी सेना के खिलाफ मदद मांगना था, पर दुर्भाग्यवश राजा ने काबुल में अंतिम सांस ली।

सोलहराही सरोवर

रेवाड़ी की शान, महादेव शिव का घंटेश्वर मंदिर, विशाल घंटे के लिए जाना जाता है, जो मुख्य बाजार के बीचोबीच स्थित है। एक बार व्यापारियों ने इसमें स्थापित शिवलिंग को दूसरी जगह स्थापित करने का प्रयास किया। चालीस फुट खोदने पर भी शिवलिंग का अंत नहीं दिखा, तो उन्होंने मंदिर को भव्य रूप दिया। 1770 में राव राम सिंह ने रेवाड़ी में बड़े तालाब का निर्माण शुरू करवाया पर उसी समय मराठा सरदार महादजी शिंदे ने रेवाड़ी पर आक्रमण किया और राम सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। 1772 में राव तेज सिंह ने मनमोहक सौंदर्य वाले अद्भुत तालाब का पुनर्निर्माण करवाया, जो हनुमान तालाब, बड़ा तालाब या तेज तालाब के नाम से विख्यात है। प्राचीन हनुमान मंदिर तालाब के किनारे स्थित हरियाणा के प्रमुख मंदिरों में है। सोलहवीं शताब्दी में निर्मित, तालाब में सोलह रास्ते होने के कारण इसका नाम सोलहराही पड़ा, जो तेज सरोवर जितना सुंदर है। इसके घाट भी बड़ा तालाब की भांति बेहद सुंदर हैं। तालाब किनारे उसी कालखंड में निर्मित भूतेश्वर महादेव का मंदिर है।

गिनीज बुक वाली फेयरी क्वीन

दिल्ली से व्यापारिक हितों के लिए, रेवाड़ी में 1873 में देश के पहले व्यावसायिक रेलवे स्टेशन का निर्माण, तत्कालीन राजपूताना स्टेट रेलवे ने करवाया। रेवाड़ी 2010 तक विश्व का सबसे पुराना व्यवसायिक और एशिया का सबसे बड़ा मीटर गेज रेलवे जंक्शन बना रहा। रेवाड़ी स्थित लोको में देश के सबसे पुराने भाप और कोयले के इंजन हैं। ‘फेयरी क्वीन’ भी इनमें शामिल है जो सबसे पुराना, सबसे हल्का और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। यहां कई फिल्मों की शूटिंग हुई है। लोको शेड स्थित म्यूजियम में पर्यटकों के लिए 800 मीटर के ट्रेक पर टॉय ट्रेन चलाई जाती है।

पराक्रम से गौरवान्वित भूमि

दिल्ली गेट, कनौड गेट, भाड़ावास गेट नामक विख्यात गेट हैं। प्राचीन इतिहास के अलावा, स्वतंत्रता मिलने के बाद वीरों के पराक्रम और सर्वाधिक फौजी यहां से होने के गौरव के कारण रेवाड़ी वीर भूमि कहलाता है। 1962 के रेजांगला में, मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में यहां के वीरों ने वीरता दिखाई। उन्हीं के सम्मान में यहां रेजांगला स्मारक बना है। इस युद्ध में 1300 से अधिक चीनी सैनिकों को मारने के बाद 114 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। रेवाड़ी के गौरव, विश्व की प्रथम गौशाला का निर्माण, 1874 में राव युधिष्ठिर ने स्वामी दयानंद सरस्वती के सहयोग से करवाया था।

कहावत वाली रेवड़ी

1 नवंबर, 1989 को इसे गुड़गांव से अलग किया गया। यहां के धारूहेड़ा और बावल में लोगों को रोजगार मिला है। मुख्य भाषा हिंदी है पर आम बोलचाल में हरियाणवी और अहीरवाटी का प्रयोग होता है। यहां खांड या गुड़ में तिल मिलाकर रेवड़ी बनाई जाती है। यह यहां की प्रसिद्ध मिठाई है। दूर-दराज के लोग भी इसके स्वाद के मुरीद हैं। राहगीरों को मुफ्त रेवड़ी बांटी जाने से, ‘मुफ्त की रेवड़ी’ कहावत का जन्म यहीं हुआ।

लोकेश कौशिक

(गैंगस्टर और बेतालकी के लेखक)

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