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शहरनामा: झांसी

झांसी की रानी यहां के लोगों की स्मृतियों में नहीं, संस्कृति और विरासत में जीवित हैं
यादों में शहर

वीरांगना की नगरी

झांसी के नाम से ही विद्रोह की छवि उभरती है। परकोटो और बड़े-बड़े दरवाजों से घिरी यह नगरी, अपने विद्रोह और वीरता की उस विरासत को आज भी समेटे खड़ी है। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई से मिली पहचान, चमक और ठसक आज तक यहां के लोगों की आंखों में दिखाई देती है। झांसी की रानी यहां के लोगों की स्मृतियों में नहीं, संस्कृति और विरासत में जीवित हैं। झांसी के किले में बने लक्ष्मीबाई पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की विशाल मूर्ति है। संग्रहालय को यहां के लोगों की नजर से देखें, तो उस ऐतिहासिक विद्रोह की बिगुल, घोड़ों की टापें, तलवारों की टकराहट, तोपों की गर्जना और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गूंजती आवाजें, जिनमें यहां के रणबांकुरों के हुंकारों के साथ वीरांगनाओं की गर्जनाओं की ध्वनि भी एक साथ सुनाई देंगी।

बुंदेलों की धरती

यहां ऊंचे और मजबूत किले की दीवारों को देखते ही बुंदेलखंड के उस साहस की कहानी सामने आती है, जिसने आजादी के पहले बिगुल के साथ कदमताल किया और विद्रोह को अपनी नस-नस में समेटा। यहां एक समय में इतिहास और विद्रोह की यह कहानी बुंदेलों, मराठों के साहस से बुनी गई थी। कभी यह इलाका चंदेलों के साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में बुंदेला राजाओं ने इसे अलग गति, दिशा और गरिमा दी। इस शहर के विद्रोह का अध्याय 18वीं सदी से शुरू होता है, जब मराठा सेनापति ने ओरछा के जालौन से आगे बढ़ते हुए इस जगह को अपने किले के रूप में चुना। इसकी भौगोलिक स्थिति इस चयन की सोची-समझी रणनीति थी और फिर वह घड़ी आई, जिसने इस किले को अमर कर दिया। आज भी दुनिया के इतिहास में वह साल 1857 के संग्राम के नाम से दर्ज है। इस संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई का नाम इस शहर के साथ हमेशा के लिए ऐसी इबारत बनकर जुड़ गया जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। जब अंग्रेजों ने झांसी छीनने की कोशिश की, तब रानी ने अपने अदम्य शौर्य और साहस से पूरी दुनिया को चकित कर दिया। यह शहर याद दिलाता है कि कैसे एक साहसिक निर्णय भविष्य की दशा और दिशा बदल सकता है। आज भी झांसी के किले को देख कर लगता है कि उसकी दीवारों से उनका वह साहसी वाक्य गूंज रहा है, जिसमें वह कहती हैं, ‘‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।’’

 लोककथाएं और गीत

कई मायनों में यह किस्सों-कहानियों और लोक गीतों का भी शहर है। यहां कई प्राचीन मंदिर और तालाब भी धरोहर हैं। लक्ष्मी तालाब के किनारे स्थित काली मंदिर से सुबह की आरती की जो गूंज उठती है, वह मात्र भक्ति नहीं बल्कि यहां की स्त्री शक्ति के अदम्य साहस का बार-बार आह्वान करती प्रतीत होती है। झांसी में बुंदेलखंड की स्थापत्य कला की खूबसूरती भी झलकती है। झांसी महोत्सव के दौरान शहर की गलियां लोकगीतों और नृत्यों से सज जाती हैं। चंदेरी की साड़ियों और खादी के कपड़ों की चमक के साथ ही बुंदेली गीतों की गूंज, इस शहर को आस्था और संस्कृति के रंगों से भर देती है।

अनोखी वास्तुकला

झांसी का किला बुंदेलखंड की वास्तुकला का खास नमूना है। इसकी कुछ खास बातें देश की अन्य ऐतिहासिक इमारतों से अलग खड़ी दिखाई देती हैं, चट्टानों पर बसे इस किले की ऊंची दीवारें और बुर्जों को सामरिक दृष्टि से बहुत सूझबूझ के साथ बनाया गया है। किले के भीतर रानी का महल, तोपखाना और युद्ध के समय उपयोग किए गए गुप्त मार्ग आज भी यहां आने वालों को राज्य के वैभव की झलक दिखाकर, विस्मय में डालते के लिए काफी है। यहां हर साल 19 नवंबर को रानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर विशेष आयोजन होते हैं। आज भी हजारों लोग उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने आते हैं। उस दिन इस शहर की गलियां सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि जीवंत क्रांति की स्मृति में बदल जाती हैं। हर नागरिक जयंती को यहां आना कर्तव्य समझता है।

व्यंजनों का शहर

यह विभिन्न स्वादों और व्यंजनों का भी शहर है। बुंदेली पकवान इसे और भी खास बनाते हैं। इस शहर की गलियां, सुबह-सुबह गरमा-गरम कचौरी और आलू की सब्जी की महक से भर जाती है। सर्दियों में यहां की मूंगफली और गजक का स्वाद सभी को खींच लाता है। उस समय गजक की मीठी खुशबू यहां के गंज और बड़ा बाजार में तैरने लगती है। यहां की बुंदेली थाली में भुना बैंगन, कढ़ी और मक्के की रोटी के साथ घी का स्वाद यहां आने वाले हर यात्री को अनोखे स्वाद से परिचित कराता है। मेले-ठेलों के समय खोये से बनी मिठाइयों की खूब बिक्री होती है। सुबह के समय दही जलेबी लोग बहुत मन से खाते हैं।

हर त्योहार की रौनक

नवरात्रि, दशहरा और दीपावली के समय इस शहर की रौनक देखने लायक होती है। झांसी महोत्सव बुंदेली लोककला और हस्तशिल्प को दुनिया के सामने लाता रहा है। उस दौरान नृत्य, नाटक और कवि सम्मेलनों की गूंज शहर को अतिरिक्त रौनक से भर देती है। दशहरे पर किले की छटा देखने लायक होती है। उस दिन किला हजारों दीपों की रोशनी से जगमगाता है, जैसे इतिहास और वर्तमान एक हो गए हों। यहां का रेलवे स्टेशन भी अपनी खास पहचान लिए हुए है। यहां से देश के हर कोने तक ट्रेनें जाती हैं। झांसी देश के व्यस्ततम स्टेशनों में एक है।

 अतीत और वर्तमान का संगम

इस तरह अतीत का गौरव और वर्तमान की तेज रफ्तार यहां एक साथ चलते दिखाई देते हैं। अब यह अच्छी बात है कि यह केवल इतिहास की नगरी नहीं, बल्कि एक आधुनिक और एक जीवंत शहर के रूप में भी हमारे सामने है। अपनी संस्कृति और आत्मा में बसी अपनी लोक संस्कृति की वजह से यह शहर सिर्फ एक और जगह, केवल एक शहर नहीं, बल्कि हमारी स्मृति का एक गौरवशाली अध्याय है। यह झांसी ही है, जहां अतीत की कहानियां हवा में तैरती हैं और वर्तमान की हलचलें उन्हें नया जीवन देती रहती हैं। नाम चाहे जो भी हो, इस शहर के भीतर वीरता, आस्था और संस्कृति का संगम हमेशा ही जीवित रहेगा।

विवेक मिश्र

(लेखक)

 

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