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15 मई 2023 · MAY 15 , 2023

शहरनामा/जमुई

चौबीसवें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्मस्थली
यादों में शहर

भगवान महावीर की धरा

जमुई बिहार के दक्षिण-पूर्व में स्थित है, जिसे चौबीसवें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्मस्थली होने का गौरव हासिल है। ऋषभ देव से प्रारंभ होकर भगवान महावीर की भूमि जमुई, सदियों से जैन समुदाय के लिए आस्था और श्रद्धा का बड़ा केंद्र रही है। जिले के सिकंदरा और खैरा प्रखंड में स्थित क्षत्रिय कुंड की अत्यधिक महत्ता है। जैन धर्मावलंबियों की आस्था और श्रद्धा का स्थल होने के कारण यहां लगने वाले मेले को राजकीय मेले का दर्जा हासिल है। भगवान महावीर की पहचान क्षत्रिय कुंड के राजा सिद्धार्थ के पुत्र के रूप में है। माना जाता है कि भगवान महावीर के जन्म और दीक्षा की तीन कल्याणक भूमि, जमुई के सिकंदरा प्रखंड के अंतर्गत, क्षत्रिय कुंड के लछुआड़ नामक स्थल के दक्षिण पहाड़ी क्षेत्र में ही स्थित है।

मिनी शिमला

हिंदू धर्मावलंबियों के तीर्थ बैद्यनाथ धाम (झारखंड) की सीमाओं तक पसरे इस जिले की चौहद्दी में स्थित सिमुलतला ‘मिनी शिमला’ कहलाता है। यह कस्बाई भूमि स्वास्थ्यवर्द्धक आबोहवा वाले प्राकृतिक वातावरण के अलावा कई ऐतिहासिक धरोहरें भी संजोए हुए है। वैसे, पिछले करीब ढाई दशक से नक्सलवाद के कारण इसकी पहचान लाल गलियारे के रूप में भी रही है। सिमुलतला की स्वास्थ्यवर्द्धक आबोहवा और स्वच्छ प्राकृतिक जल उदर रोग पीड़ितों के लिए औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है। उदर रोग से पीड़ित स्वामी विवेकानंद भी स्वास्थ्य लाभ के लिए दो बार यहां पधारे थे। 1887 में ‘स्वास्तो कोठी’ में और 1889 में ‘मां हाउस’ में प्रवास करने और स्वास्थ्य लाभ लेने का जिक्र मिलता है। यहां के प्रवास से वे अत्यंत प्रभावित हुए और यहां की जलवायु को विश्व की सर्वोत्तम जलवायु कहा था। उनकी इच्छा थी कि सिमुलतला में विश्वव्यापी मठ बने पर कतिपय कारणों से उनका स्वप्न अधूरा रह गया। स्वामीजी का उक्त सपना साकार करने के लिए बेलूर मठ के प्रथम अध्यक्ष स्वामी ब्रह्मानंद महाराज ने 1916 में आनंदपुर श्रीरामकृष्ण मठ बनाया, जो सिमुलतला के प्रति स्वामी जी के विचारों की उत्कृष्टता का बखान करता है। आज वह मठ उचित रखरखाव के अभाव में संकट से जूझ रहा है।

प्रतिभाओं का गढ़

दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाले पहले शख्स बी.एन. सरकार, आर.एन. मुखर्जी सहित देश की नामचीन हस्तियों के यहां स्थित बंगले सिमुलतला के वैभव और विशिष्टता का एहसास कराते हैं। हाल के वर्षों में यह शिक्षा के हब के रूप में विकसित हुआ है। सिमुलतला आवासीय विद्यालय ने अपने होनहारों की प्रतिभा की बदौलत राष्ट्रीय स्तर पर अलग छाप छोड़ी है। प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएं, बिहार बोर्ड की परीक्षाओं में नए कीर्तिमान स्थापित करके हर वर्ष पिछले रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। यहां के होनहार मेडिकल, आइआइटी, एनडीए वगैरह में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं।

गिद्धौर रियासत

आजादी से पहले जमुई में गिद्धौर रियासत थी। चंदेल वंश के राजाओं ने छह शताब्दियों से अधिक पत्संदा (गिद्धौर) पर शासन किया। सुलभ प्रसंगों के अनुसार 1266 में सिंगरौली बाड़ी के चंदेल वंश के राजा के छोटे भाई वीर विक्रम सिंह ने इस रियासत की स्थापना की थी। मान्यता है कि झारखंड के देवघर स्थित ‘बाबाधाम’ नाम से प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ मंदिर का निर्माण भी चंदेल वंश के नौवें राजा पुराण सिंह ने कराया था। चंदेल वंश के राजा चंद्रचूड़ सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र प्रताप सिंह का लालन-पालन राजमाता गिरिराज कुमारी ने डेहरी नरेश महाराजा सर नरेंद्र साह के संरक्षण में किया था। 1938 में नाबालिग राजकुमार प्रताप सिंह के कारण गिद्धौर राज

‘कोर्ट ऑफ वार्ड्स’ के अधीन रहा। इस दौरान वंश परंपरा की रक्षा का दायित्व महारानी गिरिराज कुमारी ने निभाया। प्रताप सिंह के बालिग होने पर गिद्धौर रियासत के अंतिम काल में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें महाराजा की पदवी से नवाजा था और चंदेल वंश का अंतिम, सत्ताईसवां राजा घोषित किया था।

झाझा रेलनगरी

‘झाझा रेलनगरी’ की चर्चा के बगैर जमुई का अध्याय अधूरा है। हावड़ा-दिल्ली रेलखंड पर हावड़ा से करीब 365 किमी और पटना से करीब 175 किमी की दूरी पर स्थित झाझा अंग्रेजी हुकूमत काल से ही रेलवे का महत्वपूर्ण मुकाम रहा है। करीब सवा सौ साल पूर्व अस्तित्व में आए झाझा में रेलगाड़ियों में नब्बे के दशक तक, स्टीम इंजन के प्रचलन तक, यहां से गुजरने वाली तमाम अप-डाउन रेलगाड़ियों के इंजन और रेलवे स्टाफ की बदली हुआ करती थी। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की स्पेशल ट्रेन भी यहां रुकी थी और रेलकर्मियों की बदली हुई थी। झाझा रेल विभाग के अलावा, दशकों से बीड़ी निर्माण का भी बड़ा केंद्र रहा है। बीड़ी निर्माण का कार्य हर गांव में कुटीर उद्योग की तरह होता है। मजदूर यूनियनों के मुताबिक जिले के गरीब और मजदूर तबके के करीब पौने दो लाख लोग बीड़ी बनाने के काम से जुड़े हैं और दो जून की रोटी का जुगाड़ करते रहे हैं। यहां बनी बीड़ियां बिक्री के लिए कई प्रदेशों में जाती हैं।

संदीप कुमार सिंह

(युवा लेखक)

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