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23 जनवरी 2023 · JAN 23 , 2023

शहरनामा/गाज़ीपुर

बनारस के मन-मिज़ाज से मेल खाते ‘लहुरी काशी’ की कहानी
यादों में शहर

लहुरी काशी

गंगा की गोद में बसा गाज़ीपुर, दुनियावी छल-छंदों, दुश्चिंताओं से अनजान, अबोध-मासूम बच्चे की निश्छल मुस्कान जैसा दिखता है। उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर बसे गाज़ीपुर का मन-मिज़ाज बनारस से इतना मेल खाता है कि इसे ‘लहुरी काशी’ नाम से भी जाना जाता है। बोली में भदेसपन गाज़ीपुर की खासियत है। इसका बनारस से सटा हिस्सा बनारसी, तो बिहार से लगने वाला क्षेत्र बिहारी लहजे में बतकुचन करता है। शहर से लगकर बहती गंगा की जलधार ऐसी लगती है मानो मां नजर लगने के भय से शिशु को अंचरा से ढंकने का जतन कर रही हो। महाराज गाधि की नगरी ‘गाधिपुर’, गाज़ीपुर कहलाने लगा। बाहरी व्यक्तियों द्वारा यहां का इतिहास बदलने की सनक, नाम बदलने से ज्यादा परवान न चढ़ सकी और इस मिट्टी का मिजाज जस-का-तस रहा। विष्णु के अवतार, परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि का आश्रम ‘जमदग्नि नगर’ गाज़ीपुर में था। यहां सैदपुर के ‘भीतरी’ नामक स्थान पर गुप्त वंश का स्तंभ लेख, इतिहास में ‘भीतरी का स्तंभ लेख’ नाम से प्रसिद्ध है। रेवतीपुर का सदियों पुराना देवी मंदिर और महाहर धाम इसे पुण्यभूमि बनाता है।

हर घर से सैनिक

जगत प्रसिद्ध मां कामाख्या, गांव के सिकरवार वंश की कुलदेवी हैं। इनका धाम शहर से पच्चीस किलोमीटर दूर है, यहां नवरात्र और सावन में भक्तों का मेला लगता है। प्रत्येक घर से एक व्यक्ति का सेना में होना इस गांव की खासियत है। मान्यता है कि मां कामाख्या सरहद पर यहां के जवानों की रक्षा करती हैं। बरसों पहले मंदिर के पश्चिमी भाग में रेत का विशाल टीला ‘सकराडीह’ था। पुरातात्विक महत्व वाले इस टीले की खुदाई हुई पर बाद में सरकार ने इसमें कोई रुचि नहीं ली। बगल में एक लाख से अधिक आबादी वाला एशिया का सबसे बड़ा गांव गहमर है। गाज़ीपुर के बलिदान की विश्वयुद्ध से कारगिल युद्ध तक अनगिनत गाथाएं हैं। यहां फसल काटने से ज्यादा लगन, देश के लिए शीश कटाने की होती है। स्वाधीनता आंदोलन में करइल क्षेत्र के अष्ट शहीद बलिदानी महापुरुषों पर हुए अंग्रेजी अत्याचारों के फलस्वरूप रक्त से लाल हुई गाज़ीपुर की धरती की रक्तिम कथा की स्मृति अमिट है। पाकिस्तान के पैटन टैंकों का घमंड चकनाचूर करने वाले परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद यहीं के थे। आज भी सुबह-सुबह सड़कों पर दौड़ लगाते युवाओं की भीड़ दिखती है।

अफीम बनाम गुलाबजल

गाज़ीपुर में एशिया की सबसे बड़ी अफीम फैक्ट्री है। दोपहर को मध्यांतर में तेज आवाज में बजता भोंपू चेताता है कि समय अंटागफील होने का नहीं है। गाज़ीपुर का गुलाब जल और केवड़ा विश्वप्रसिद्ध है। शहरी परफ्यूम के देहातों में पैर पसारने से पहले गाज़ीपुरी गुलाब जल बारातों की शोभा होता था। अफीम और गुलाब जल के मेल का अपना रंग है जिसे दोस्ती या दुश्मनी में लोग मर्यादापूर्वक निभाते हैं। अंग्रेजों के जमाने में यहां नौली और गहमर गांवों में भयंकर संग्राम हुआ था, तभी से ‘नौली नवे न गहमर टरै’ कहावत प्रसिद्ध हुई। अब इन्हीं दो गांवों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता होता है।

विरासत में कलम

मां सरस्वती की कृपा गाज़ीपुर पर सदैव रही है। हिंदी के प्रथम जासूसी उपन्यासकार गोपालराम गहमरी, भोजपुरी-हिंदी के यशस्वी साहित्यकार स्व. विवेकी राय, डॉ. राही मासूम रजा और भोजपुरी सिनेमा के जनक स्व. नाज़िर हुसैन की ये जन्मभूमि है। नाज़िर हुसैन ने पहली भोजपुरी फिल्म हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो बनाई थी। समय की रेत मुट्ठी से ऐसी फिसली कि न भोजपुरिया माटी की सुगंध वाला सिनेमा बचा और न फिर इस माटी ने नाज़िर हुसैन जैसा लाल जना।

अल्हड़ मिजाज

किसी गाज़ीपुरिये को पढ़ाया नहीं जा सकता। यहां सभी को दुनियावी चक्र उल्टा घुमाने में आनंद आता है। खुद को सबसे अलग दिखाने की जिद के चलते लोग धारा के विपरीत बहते हैं। सत्ता की धारा के विपरीत बहने का खमियाजा इसे पिछड़ेपन के रूप में चुकाना पड़ा। देश आजाद होने और चहुंओर कांग्रेस की लहर होने पर भी गाज़ीपुर ने ‘लाल सलाम’ का झंडा लहराया था। सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी सत्ता पक्ष के होने के बावजूद गाज़ीपुर की दुर्दशा पर संसद में फूट-फूटकर रोए थे। नेहरु जी ने उन्हें दुलार से डांटा था और उनके प्रयासों से पहली बार गाज़ीपुर में विकास की गंगा बही थी। गाज़ीपुर के लोगों ने अगले चुनाव में उन्हें ये कहकर हराया कि “अब आप आराम करो गांधीवादी जी! अपुन लोग अब कम्युनिस्ट बनेगा, हल्ला करेगा, नारा लगाएगा और दुनिया को किरांति का मतलब समझाएगा।” गाज़ीपुर के इसी मिजाज पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था, “जिस दिन गाज़ीपुर से हमारा सांसद जीतेगा, हम दिल्ली में सरकार बना लेंगे।” पंडितजी की भविष्यवाणी सच साबित हुई, यहां से अटलजी प्रधानमंत्री और मनोज सिन्हा सांसद बने। जमीनों का बंदोबस्त के लिए ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने यही धरती चुनी थी।

भोला साह की टिकरी मिठाई

गन्ने के लिए प्रसिद्ध गाज़ीपुर की चीनी मिलें बंद होने से लोग सब्जियां उगाने लगे। गाज़ीपुर अल्हड़ता, मनमौजीपन, निश्छलता और विचित्रताओं सहित गांव को मन में बसाए है। इसने कभी शहरी बनने की चेष्टा नहीं की। अब भी सवेरे दुकानों पर छनती धोई की इमरती, कुशवाहा मिष्ठान भंडार की लौकी की बर्फी, नारियल के लड्डू, परवल की मिठाई, बारा का चमचम, गहमर का रसगुल्ला-बर्फी और रेवतीपुर के भोला साह की टिकरी मिठाई, ब्रांडेड मिठाइयों पर भारी है।

कृपाशंकर मिश्र

(मधुबाला उपन्यास के लेखक)

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