Advertisement

शहरनामा/जमालपुर

कश्मीर की तरह खूबसूरत बिहार के एक छोटे से शहर की दास्तां
यादों में शहर

खूबसूरत पुर

गर फिरदौस बर रुए जमीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त...कहा होगा किसी ने कश्मीर के लिए, हम तो अपने शहर जमालपुर के लिए भी यही कहते। कुछ दिन यहां गुजार लें, तो यह अतिशयोक्ति न लगे। इसका नाम जमाल (खूबसूरत) पुर (शहर) यूं ही नहीं है। शहर के एक तरफ खड़गपुर की पहाड़ी से जुड़ा हराभरा काली पहाड़। पहाड़ की चोटी पर बने मां काली का पौराणिक और नवनिर्मित राधाकृष्ण मंदिर। पहाड़ के ठीक नीचे बड़ा-सा तालाब और बारिश के दिनों में पहाड़ से गिरता झरना। इसी पहाड़ी के एक कोने में जल का अजस्र स्रोत, जहां सदियों से पानी प्रवाहित हो रहा है। वहां से पानी लाना शहरवासियों का प्रिय शगल है।

परिचित-सा छोटा

छोटा-सा शहर, जिसकी आबादी लाख पार नहीं कर पाई। इतना घना कि हर चेहरा परिचित लगे ही नहीं, हो भी। स्कूल से भाग कर जब भी सिनेमा देखने गए, लौटने के पहले शिकायत घर पहुंची। आत्मीय इतना कि पांच साल का बच्चा भी नुक्कड़ की दुकान से जाकर बगैर पैसे दिए अपने मतलब का सामान ले आए। यह कहकर कि पैसे बाबू जी देंगे। आज भी जमालपुर के लोग आपको रिश्ते में ही बंधे दिखेंगे। यहां जो भी हैं चाचा, दादा, भैया हैं। शहर छठ और शिवरात्रि जैसे अवसरों पर पारंपरिक मेलों से जीवंत हो उठता है। अब कचरी, जलेबी के साथ चाउमिन और बर्गर भी मिलने लगे हैं। लेकिन मिट्टी, काठ और कपड़े के खिलौने इन मेलों के मूल स्वरूप को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं।

जाति, धर्म के किस्से बेगाने

बिहार में जमालपुर कुछ विलक्षण शहरों में गिना जा सकता है, जहां जाति और धर्म के किस्से आम तौर पर हाशिए पर हैं। इसका श्रेय 1863 में यहां स्थापित एशिया के सबसे पहले रेल कारखाने को दिया जा सकता है, जिसमें काम करने पूरे देश से लोग आए और खास मिश्रित संस्कृति पर जमालपुर विकसित हुआ। इतिहासकार मानते हैं कि जमालपुर का वजूद पहले भी रहा होगा, लेकिन आधुनिक शहर के रूप में जमालपुर की शुरुआत कारखाने के साथ ही हुई। ईस्ट कॉलोनी के रूप में रेलवे के अंग्रेज साहबों के लिए यूरोपीय मानक के साथ शहर बसाया गया। जिले के गजेटियर में दर्ज है, उस समय शहर में इतनी गाड़ियां थीं कि ट्रैफिक जाम हो जाया करता था। शहर को छोटी कलकत्ता कहे जाते हमने भी सुना है। रेलवे लाइन की दूसरी तरफ मजदूरों और छोटे बाबुओं के लिए रामपुर कॉलोनी, दौलतपुर कालोनी बसाई गई।

समांतर सिनेमा

कारखाने ने शहर को समृद्धि दी, तो संस्कार और संस्कृति भी। यहां स्कूल ही नहीं सिनेमाहाल से लेकर सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र तक रेलवे के स्थापित किए हैं। रेलवे सिनेमा तो अब बंद हो गया, लेकिन इसके स्पेशल क्लास में लगी बेंत से बुनी आराम कुर्सियों को भुलाना आसान नहीं। रेलवे सिनेमा में खास तौर पर बांग्ला फिल्में लगा करती थीं, जब बाकी दुनिया राजेश खन्ना और राजेंद्र कुमार में व्यस्त थी, जमालपुर सत्यजीत राय और ऋत्विक घटक को देख रहा था। शहर में एक और सिनेमा घर था अवंतिका, बंद वह भी हो गया। यह वह दौर था जब फिल्में रिलीज होने के साल भर बाद वहां लगा करती थीं। इन सिनेमाघरों की सबसे बड़ी खासियत लेडीज क्लास था, जिसकी टिकट दर सबसे कम रखी जाती थी, शायद 80 पैसे।

शिक्षा में बुलंद

शहर नौकरी करने वालों का रहा, जाहिर है पढ़ने की मजबूत परंपरा शहर को मिली। आश्चर्य नहीं कि देश में नोट्रडम एकेडमी की शुरुआत यहीं से हुई थी। रेलवे स्कूलों के अलावे शहर के हरेक कोने में हाइस्कूल थे, जिसमें बेहतर पढ़ाई होती थी। इनसे निकले कई बच्चों ने प्रशासन, रेलवे, उद्योग से लेकर साहित्य तक में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई। अब तो कई सारे पब्लिक स्कूल भी अस्तित्व में आ गए हैं। आंकड़ों के अनुसार आज भी जमालपुर को बिहार का सबसे पढ़ा-लिखा शहर माना जा सकता है। बिहार में साक्षरता की दर 70.9 फीसदी, राष्ट्रीय औसत 77.7 फीसदी है, जबकि जमालपुर में साक्षरता दर 87.38 फीसदी है।

अदद नेता की दरकार

हालांकि यह भी सच है कि राजनैतिक धौल-धप्पे के बीच जमालपुर की धुरी रेल कारखाने को हाशिए पर धकेलने की कोशिशें लगातार तेज होती जा रही हैं। इरिमी जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थान को बाहर ले जाने की बातें चल रही हैं। शहर में कामगार से ज्यादा रिटायर्ड लोगों की संख्या होती जा रही है। जाहिर है, शहर की रौनक इससे अछूती नहीं रह सकती। बीते बीसियों वर्षों से शहर बाट जोह रहा है कि कोई राजनैतिक नेतृत्व उसे मिले, जो उसका कारखाना, उसकी जीवन धुरी उसे उसी गरिमा के साथ वापस कर सके।

और भैरो की चाय

लेकिन शहर की बात भैरो जी की चाय के बगैर पूरी नहीं हो सकती। जमालपुर स्टेशन के बाहर भैरो जी की तीसरी पीढ़ी अब चाय की दुकान चला रही है। चाय पीने वालों की भी पीढ़ियां बदल गर्ईं, लेकिन कमाल कि 75 वर्ष से अधिक हो जाने के बाद भी चाय का वही स्वाद कायम है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement