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शहरनामा/वड़ोदरा

रास गरबा वाला शहर
यादों में शहर

संस्कार नगरी

वड़ोदरा शहर की अपनी पहचान, अपनी ठसक है जो इस शहर की संस्कृति, कला, खान-पान और रहन-सहन में पूर्णरूपेण झलकती है। यह गुजरात की संस्कार नगरी है, जो शिक्षा, धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों के लिए अग्रणी है। तुलसी विवाह, रास गरबा, गणपति विसर्जन और ताजिया से वड़ोदरा का हृदय धड़कता है। नरसिंह मंदिर, यवतेश्वर महादेव, स्वामी नारायण मंदिर, इस्कॉन, अरविंदो आश्रम, वड़ोदरा वासियों का आध्यात्मिक पथ प्रशस्त कर रहे हैं। ये शहर बरगद के पेड़ों की बहुतायत होने से बड़ौदा कहलाता था पर आज वड़ोदरा के नाम से प्रसिद्ध है।

 रास गरबा का नगर

रास गरबा के लिए प्रसिद्ध वड़ोदरा का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। पिछले 31साल से आयोजित 'यूनाइटेड वे गरबा' सर्वोत्तम गरबा है, जिसमें एक साथ 25,000 लोग गरबा करते हैं। गरबा खिलैया युवक-युवतियां परंपरागत, रंग-बिरंगे सुंदर परिधानों में सज्जित होकर जब गरबा खेलते हैं तो ग्राउंड की शोभा देखते ही बनती है और 10,000 दर्शकगण गरबा देखने का आनंद उठाते हैं। गायन मंडली कृष्ण, राधा और गोपियों के वृतांत पर गरबा गीत गाकर माहौल कृष्णमय बना देती हैं। गरबा के मध्यांतर में करीब 35,000 लोग सस्वर मां अंबे की आरती गाकर गुजरात के अंबाजी और पावागढ़ शक्तिपीठों को गुंजायमान कर देते हैं। गरबा मैदान में पूरी नौ रातों तक करीब 35,000 लोगों की उपस्थिति होने के बावजूद कभी कोई अप्रिय प्रसंग नहीं हुआ।

 ऐतिहासिक विरासत

साधारण परिवार के बालक को गायकवाड़ वंश ने गोद लिया, जो महान शासक सयाजीराव गायकवाड़ के नाम से प्रख्यात हुआ। उन्होंने महिला शिक्षा को निःशुल्क किया और महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी की स्थापना की, जो वास्तुकला और फैकल्टी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स के लिए विश्वविख्यात है। शहर में लक्ष्मी विलास, मकरपुरा व नजरबाग तीन महल हैं। चांपानेर गेट, मांडवी गेट और गेंड़ी गेट स्थापत्य के ऐतिहासिक नमूने हैं। कमाटी बाग, सुरसागर लेक, कीर्ति मंदिर जैसे दर्शनीय स्थल भी हैं।

शालिग्राम-तुलसी विवाह की भूमि

देवउठनी एकादशी को तुलसी और भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के विवाह की परंपरा है और तुलसी विवाह की शोभा निराली होती है। नरसिंहजी मंदिर से विष्णु भगवान की बारात शाम को गाजे-बाजे के साथ निकलती है। दुल्हे विष्णु जी के दर्शनार्थ शहरवासी सड़क किनारे खड़े होते हैं। बारात शहर की परिक्रमा करते हुए मांडवी गेट और चांपानेर गेट से गुजरती हुई तुलसी वाड़ी पहुंचती है, जहां बारात का स्वागत-सत्कार किया जाता है। विष्णु जी और तुलसी का विवाह विधिवत संपन्न कराया जाता है और ब्रह्ममुहूर्त में विष्णु जी नारसिंह मंदिर वापस लौट जाते हैं।

एक महल है यादों का

लक्ष्मी विलास पैलेस से सुंदर यादें जुड़ी हैं। विशिष्ट अतिथियों के वहां आने पर उनको हम यह महल अवश्य दिखाते हैं। वड़ोदरा में मेरे उप- पुलिस आयुक्त रहने के दौरान राष्ट्रपति के. आर. नारायणन भी वहां पहुंचे थे। लक्ष्मी विलास पैलेस बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी साक्षी रही है। तबला वादक जाकिर हुसैन, बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया, संतूर वादक शिवकुमार शर्मा जैसे विश्वविख्यात कलाकारों ने वहां लोगों को मंत्रमुग्ध किया है। वड़ोदरा स्थित महात्मा गांधी नाट्य प्रेक्षागृह में मैंने न जाने कितने गुजराती नाटक देखे, जिनमें बा रिटायर थाय छै की याद ताजा है। वड़ोदरा का आधुनिक विस्तार अलकापुरी है, जहां सरकारी अधिकारियों के आवास, सर्किट हाउस, शापिंग मॉल और एक्सप्रेस, वैलकम जैसे होटल हैं। अलकापुरी में स्वादिष्ट कुल्फी की एक दुकान थी, जहां हम पैदल जाया करते थे। कमाटीबाग बहुत विशाल बाग है, जहां शहरवासी छुट्टी के दिन बच्चों के साथ पिकनिक का आनंद लेने जाते हैं।

झील के इस पार

सुरसागर लेक शहर के मध्य में मुख्य आकर्षण है, जिसमें 120 फुट ऊंची शिव की खड़ी हुई प्रतिमा स्थित है। यहां गणपति उत्सव भी बहुत श्रद्धा और भक्तिपूर्वक मनाया जाता है। प्रतिमाओं की लंबाई, थीम और पंडाल की सजावट को लेकर आयोजकों के बीच बड़ी स्पर्धा रहती है। 1995 से 2001 के अपने कार्यकाल दौरान के जब गणपति विसर्जन सुरसागर लेक में किया जाता था तो लेक के चारों तरफ क्रेनें लगी रहती थीं, जो रात भर गणपति प्रतिमाओं को उठा कर पानी में विसर्जित करती थीं। कितनी भी रात हो जाये पर समस्त प्रतिमाओं के विसर्जन के उपरांत ही हम घर वापस लौटते थे। सभी जुलूस मांडवी गेट से गुजरते थे तो तुलसी विवाह, गणपति और ताजिया के दौरान सभी पुलिसवालों की ड्यूटी मांडवी गेट पर रहा करती थी।

सेव उसल, तमतम, हांडवो का स्वाद

सेव उसल स्थानीय व्यंजन है, जो रगड़े के ऊपर आलू, गाजर, प्याज, चटनी डालकर बनता है और चटकारे लेकर खाया जाता है। तमतम भी खास व्यंजन है, जो चिवड़ा, बूंदी, सेव चना आदि 26 फरसाणों {नमकीन} के मिश्रण से बनता है और सिर्फ वड़ोदरा शहर में ही मिलता है। हांडवो, खमण, फाफड़ा, जलेबी यहां के प्रिय व्यंजन हैं और ये स्ट्रीट फूड के मुख्य आकर्षण हैं। वड़ोदरा जेल के कैदियों के बनाए दालवड़े भी शहरवासियों की खास पसंद हैं। बूमिया त्रिकमदास की दुकान के असली घी में बने बूंदी के लड्डू, मावे को भून कर बनाये गये दुलीराम के स्वादिष्ट पेड़े और जगदीश के चिवड़े की भी यहां भारी मांग रहती है।

मीरा रामनिवास

(अवकाशप्राप्त डीजीपी, साहित्यकार, खाकी मन की संवेदनाएं की संपादिका)

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