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बॉलीवुड: जोड़ी जुदा क्यों!

अहं के टकराव या व्यावसायिक वजहों से टूटती मशहूर जोड़ियों का राज
युवा स्टार कार्तिक आर्यन और चर्चित फिल्मकार करण जौहर

बॉलीवुड के युवा स्टार कार्तिक आर्यन ने हाल में कोविड-19 से उबरने के बाद खुद को एक कीमती उपहार दे डाला। साढ़े चार करोड़ रुपये की लेम्बोर्गिनी उरस। हालांकि शायद वे इस बात से बेखबर थे कि उनके जश्न में खलल डालने के लिए एक बड़े विवाद का विस्फोट होने वाला है। फिल्म इंडस्ट्री में कई नवोदित और स्थापित अभिनेताओं के गॉडफादर के रूप में चर्चित फिल्मकार करण जौहर ने उन्हें अपनी आने वाली फिल्म दोस्ताना 2 से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। हालांकि कार्तिक इस फिल्म में नायक की भूमिका में थे और फिल्म के कुछ हिस्सों के शूटिंग भी हो चुकी थी। फिल्म से उनकी छुट्टी हो जाने से जौहर को भी अच्छा-खासा नुकसान होगा, लेकिन उन्होंने शायद इसकी परवाह नहीं की। जाहिर है, वे आर्यन से बेहद खफा होंगे।

आखिर क्यों? अभी तक दोनों ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है, पर अफवाहों का बाजार गरम है कि दोनों के बीच तीखी नोकझोंक हुई और जौहर ने यह कदम उठा लिया। कहा जाता है कि वे इस फिल्म के प्रति आर्यन के कथित गैर-पेशेवर रवैये से नाखुश थे। ऐसी भी चर्चा है कि जौहर ने अब इस 30 वर्षीय अभिनेता के साथ भविष्य में किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम करने से तौबा कर ली है। बगैर आर्यन का नाम लिए, एक संक्षिप्त बयान में जौहर के बैनर धर्मा प्रोडक्शंस ने बस इतना कहा कि पेशेवर परिस्थितियों के कारण एक गरिमापूर्ण मौन बनाए रखने का निर्णय लिया गया है। बयान में कहा गया, ‘‘हम कॉलिन डकुन्हा की निर्देशित दोस्ताना 2 को फिर से बनाएंगे। कृपया जल्द ही आधिकारिक घोषणा की प्रतीक्षा करें।’’

वे दिन और थे जब फिल्म निर्माता बाजार की ताकतों के सामने झुकते नहीं थे, आज मुनाफा ही हर फिल्मी रिश्ते की बुनियाद है

आर्यन के लिए यह भारी झटका हो सकता है, क्योंकि जौहर सबसे प्रभावी निर्माताओं में एक हैं, जिनका बॉलीवुड में भारी रसूख है। आर्यन ने अपनी तरफ से इस मामले में कोई भी स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझा है। इस बीच खबर है कि जौहर ने इस फिल्म में उनकी जगह अक्षय कुमार को लेने का मन बनाया है। यह फिल्म जौहर की 2008 में प्रदर्शित दोस्ताना का रीमेक है, जिसमें अभिषेक बच्चन, प्रियंका चोपड़ा और जॉन अब्राहम मुख्य भूमिकाओं में थे।

आज आर्यन के गणना भी ऐसे लोकप्रिय सितारे के रूप में होती है, जो अपने बूते किसी फिल्म को हिट कराने का माद्दा रखता है। पिछले एक दशक में उन्होंने धीरे-धीरे ही सही, अपना एक मुकाम बना लिया है। दरअसल 2011 में रिलीज हुई प्यार का पंचनामा की आश्चर्यजनक सफलता के बाद वे जवान दिलों की नई धड़कन बन गए। 2015 में उस फिल्म का सीक्वल भी हिट साबित हुआ। जब उनकी छोटे बजट की फिल्म सोनू के टीटू की स्वीटी (2018) ने बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ से अधिक का व्यवसाय किया, तो उनका शुमार वैसे अभिनेताओं में होने लगा जिनमें दर्शकों को थिएटर में खींचने का आकर्षण है। शायद यही वजह है कि जौहर जैसे बड़े निर्माताओं की पैनी नजर उन पर गई।

आज इंस्टाग्राम पर आर्यन के दो करोड़ से अधिक फॉलोअर हैं। जाहिर है, जौहर का अपनी फिल्म से उन्हें बाहर कर देना उनके प्रशंसकों को नागवार गुजरा। इसलिय जौहर को सोशल मीडिया पर उनके रंज और तंज का सामना करना पड़ा। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने आर्यन को अपनी फिल्म से इसलिए निकाला क्योंकि दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत की तरह वे भी बाहरी हैं और वे बॉलीवुड के किसी खानदान से ताल्लुक नहीं रखते हैं। जौहर को आड़े हाथों लेने का एक भी मौका न छोड़ने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत भी आर्यन के समर्थन में सामने आयीं। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘कार्तिक अपने दम पर आया है, अपने दम पर वह ऐसा करना जारी रखेगा, केवल पापा जो और उसके नेपो गैंग क्लब से अनुरोध है कि कृपया उसे अकेला छोड़ दें। सुशांत की तरह उसके पीछे न जाएं और उसे खुद को फांसी लगाने के लिए मजबूर न करें। उसे अकेला छोड़ दो तुम गिद्धों!’’

दरअसल, जौहर पर पिछले वर्ष उनके द्वारा बनाई गई सुशांत सिंह राजपूत-अभिनीत फिल्म, ड्राइव (2019) को थिएटर की बजाय सीधे ओटीटी मंच पर जानबूझकर कर प्रदर्शित करने का आरोप लगा था, ताकि अभिनेता के करिअर पर इसका प्रतिकूल असर हो। यह भी कहा गया कि उनके इस फैसले से सुशांत काफी निराश हुए थे। बाद में, 14 जून को अपने मुंबई के घर पर सुशांत के मृत पाए जाने के बाद महीनों तक जौहर को सोशल मीडिया पर बुरे तरीके से ट्रोल किया गया।

लेकिन क्या इस इंडस्ट्री में किसी अभिनेता और फिल्म निर्माता के बीच के लड़ाई इतनी निजी हो सकती है कि वे अपनी ही फिल्मों का नुकसान पहुंचाएं? पुरस्कार विजेता फिल्म लेखक विनोद अनुपम का कहना है कि इस तरह के मतभेदों का प्राथमिक कारण यह है कि बॉलीवुड भावनाओं पर नहीं चलता है। ‘‘फिल्म उद्योग में हर रिश्ते को नफा-नुकसान के तराजू पर तौला जाता है। सब कुछ बॉक्स ऑफिस के संदर्भ में ही मूल्यांकित होता है।’’

अनुपम कहते हैं कि सतही रूप से यह भले ही दिखाई दे सकता है कि भावनात्मक बंधन किसी फिल्म टीम को एक सूत्र में पिरोता है, लेकिन वास्तविकता बिल्कुल अलग है। अनुपम कहते हैं, ‘‘बेशक, अहं की लड़ाई कई बार होती है, लेकिन लोग अक्सर बगैर किसी ग्लानि या अपराधबोध से अपनी राहें जुदा कर लेते हैं। लेकिन उनका भविष्य में किसी भी समय पुनर्मिलन भी हो सकता है। इस तरह के व्यावसायिक माहौल में, किसी रिश्ते में कुछ भी निजी नहीं होता है। आखिरकार, व्यक्तिगत समीकरणों के लिए कोई भी फिल्म में 100-200 करोड़ रुपये का निवेश नहीं करता है।’’

अक्सर देखा गया है कि फिल्म इंडस्ट्री की यही हकीकत है। ऐसे मामलों में व्यावसायिक बाध्यताएं अक्सर व्यक्तिगत रंजिश पर भारी पड़ी हैं। नब्बे के दशक में, फिल्म निर्माता यश चोपड़ा और आमिर खान के बीच डर (1993) के निर्माण के दौरान मतभेद हुए, जिसके कारण आमिर ने फिल्म छोड़ने का फैसला किया और उनकी जगह शाहरुख खान को मिली। फिर भी, आमिर ने उसे अपने दिल पर नहीं लिया। उन्होंने यशराज फिल्म्स के लिए न सिर्फ फना (2006) में काम किया बल्कि उसी बैनर की धूम 3 (2013) और ठग्स ऑफ हिंदोस्तान (2018) में भी मुख्य भूमिकाएं निभाईं।

हालांकि, ऐसे उदाहरणों की भी कमी नहीं है, जब एक सफल अभिनेता और निर्देशक की जोड़ी रचनात्मक मतभेद या अहं के टकराव के कारण टूट गई। 2019 में 20 वर्षों के बाद सलमान खान और संजय लीला भंसाली के इंशा-अल्लाह में दोबारा काम करने की खबर से बॉलीवुड में खुशियों के लहर दौड़ गई। हिंदी सिनेमा के बेताज बादशाह कहे जाने वाले सलमान और प्रतिभाशाली फिल्मकार भंसाली ने इससे पूर्व हम दिल दे चुके सनम (1999) में साथ काम किया था जो सुपरहिट साबित हुई। उस फिल्म ने भंसाली को एक उत्कृष्ट निर्देशक के रूप में स्थापित किया और सलमान को नई सदी के महानायक के रूप में। दुर्भाग्यवश, कतिपय कारणों से इंशा-अल्लाह ठंडे बस्ते में डाल दी गई।

निर्देशक के रूप में भंसाली ने अपनी शुरुआत सलमान-अभिनीत खामोशी (1996) से की थी, लेकिन उनकी अगली फिल्म हम दिल दे चुके सनम ने ही दोनों के करिअर को नई उड़ान दी। लेकिन सांवरिया (2007) में सलमान की संक्षिप्त भूमिका को छोड़ दें तो दोनों ने फिर साथ काम नहीं किया। भंसाली जरूर सलमान और ऐश्वर्या राय के साथ बाजीराव मस्तानी बनाना चाहते थे लेकिन कथित ‘रचनात्मक मतभेद’ के कारण बात आगे नहीं बढ़ सकी। बाद में, भंसाली ने 2015 में रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण के साथ इस फिल्म को बनाया। 

इंशा-अल्लाह के बंद होने की वजह भंसाली और सलमान के अलावा कोई नहीं जानता, लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि सलमान अपनी पसंद की कुछ अभिनेत्रियों को फिल्म में चाहते थे, जो भंसाली को स्वीकार्य न था। यह भी कहा जाता है कि भंसाली सलमान से अन्य निर्माताओं की तुलना में ज्यादा डेट्स चाहते थे। वास्तविक कारण जो भी हो, इसने एक प्रतिभाशाली निर्देशक और एक सुपरस्टार के नए प्रोजेक्ट की संभावना को समाप्त कर दिया। फिल्म व्यापार विश्लेषक अतुल मोहन मानते हैं कि यह दुखद था। ‘‘दोनों भले ही आज अपने-अपने करिअर में ऐसी स्थिति में हैं जहां उन्हें एक-दूसरे की जरूरत नहीं, लेकिन यह फिल्म उद्योग और दर्शकों के लिए एक नुकसान है। इंशा-अल्लाह ने न केवल उनके प्रशंसकों, बल्कि फिल्म ट्रेड से जुड़े लोगों में जबरदस्त उत्साह पैदा किया था।’’ 

फिल्म ट्रेड पत्रिका कम्पलीट सिनेमा के संपादक मोहन का कहना है कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि उनके बीच मतभेद पैसे के मामले को लेकर या किसी अन्य कारण से हुए। वे कहते हैं,  ‘‘सलमान को अवश्य ही भंसाली की पटकथा पसंद आई होगी, वरना वे फिल्म साइन नहीं करते। जहां तक उनके पारिश्रमिक का सवाल है, यह तो फिल्म की घोषणा के पहले ही निश्चित हो जाता है।’’

बहरहाल, जिस इंडस्ट्री में व्यावसायिक नफा-नुकसान की अहमियत फिल्म बनाने के बाकी हर पहलू से ज्यादा है, किसी सफल टीम का टूटना कोई नई घटना नहीं है। अतीत में, देव आनंद और अमिताभ बच्चन से लेकर सनी देओल और अजय देवगन तक कई ऐसे अभिनेता रहे हैं जिन्होंने मतभेदों के कारण कई सफल निर्देशकों के साथ काम नहीं किया (बॉक्स)। हाल के वर्षों में, सोनू सूद ने मणिकर्णिका; झांसी की रानी (2019) फिल्म निर्माण के बीच में ही कंगना रनौत से विवाद के कारण छोड़ दी।

यह निश्चित रूप से उस दौर से अलग है जब व्यक्तिगत समीकरणों का इंडस्ट्री में बहुत महत्त्व था। राज कपूर, बी.आर. चोपड़ा, देव आनंद और कई अन्य बड़े फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों की सफलता या विफलता की परवाह किए बिना वर्षों तक एक ही टीम के साथ काम किया करते थे। विनोद अनुपम कहते हैं, ‘‘वे कुछ और दिन थे जब फिल्म निर्माता बाजार की ताकतों के सामने झुकते नहीं थे। राज कपूर या बिमल रॉय ने अपनी फिल्में बनाते समय व्यावसायिक पहलुओं के बारे में नहीं सोचा। उस समय रचनात्मकता सबसे महत्वपूर्ण थी लेकिन वह युग अब बीत गया है। आज, बॉलीवुड में नफा-नुकसान के आधार पर दोस्ती बनती या टूटती है।’’

अगर वाकई ऐसी बात है तो क्या भविष्य में करण जौहर-कार्तिक आर्यन के बीच फिर से सुलह हो सकती है और क्या वे पुन: एक नई फिल्म में साथ काम कर सकते हैं? क्यों नहीं? अगर मुनाफा ही हर फिल्मी रिश्ते की बुनियाद है तो इसे असंभव नहीं कहा जा सकता।

 

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