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धोनी जैसा ‘कूल’ और जानदार दूसरा कहां

कई बार रणनीति पर चर्चा से मुझे उनके तेज क्रिकेटिंग दिमाग और दबाव झेलने की क्षमता का पता चला
धोनी के साथ सचिन

फुटबॉल में एक बात कही जाती है, ‘फर्स्ट टच।’ बारीक नजरों से देखें, तो इस बात से खिलाड़ी के दिमाग और सौष्ठव का पता चलता है। क्रिकेट में यह ‘पहली छाप’ बल्लेबाज या गेंदबाज के रूप में होती है। बेहतरीन रन अप, साइड आर्म एक्शन और क्रीज तथा सीम का इस्तेमाल आपको किसी भी तेज गेंदबाज के बारे में बहुत कुछ बता देता है। कुछ ऐसी ही खासियतें थीं, जिनसे मुझे एहसास हुआ कि एक दिन महेंद्र सिंह धोनी क्रिकेट के आइकॉन बनेंगे। गेंद और बल्ले के टकराने की आवाज बल्लेबाज के बारे में बहुत कुछ कहती है। धोनी को मैंने पहली बार 2004 में ढाका में, नेट पर बैटिंग करते हुए देखा था। जिस ताकत से वे गेंद पर प्रहार कर रहे थे, वह देखने लायक था। मैंने सौरभ गांगुली से कहा कि इसकी बाजुओं में जान है, और अगर यह इसी प्रचंडता के साथ गेंद पर प्रहार करना जारी रखे तो बहुत आगे जा सकता है। घरेलू क्रिकेट में ढेर सारे रन बनाने के बाद धोनी पहली बार भारत के लिए खेल रहे थे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मैच घरेलू मैच से बिल्कुल अलग होते हैं। बांग्लादेश में उन्होंने ज्यादा रन नहीं बनाए, लेकिन उनके शस्त्रागार के हथियारों ने उन्हें खास बना दिया था।

सात साल बाद मेरी बात सही साबित हुई। मौका था 2011 में वानखेड़े स्टेडियम में खेले जा रहे आइसीसी वर्ल्ड कप फाइनल का। धोनी ने छक्का मारकर उस मैच में भारत को जीत दिलाई थी। जिस निर्लिप्त भाव से वे दुनियाभर के गेंदबाजी आक्रमण को तहस-नहस करते थे, जीत दिलाने वाले उनके हेलीकॉप्टर शॉट में वही ‘झटका’ दिखा था। धोनी जिस तरह बल्ला घुमाते थे उससे गेंद पर काफी तेज प्रहार होता था और इसी ने उन्हें खास बना दिया था। जब किसी खिलाड़ी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 17,000 रन बनाए हों, तो हमें उसकी बल्लेबाजी की शैली का सम्मान करना चाहिए।

मुझे खुशी है कि मैंने धोनी को साथी खिलाड़ी और कप्तान के रूप में जाना। हर लीडर की तरह उनकी अपनी शैली और अलग नजरिया था। मैंने कई कप्तानों के अधीन खेला है- कृष्णमाचारी श्रीकांत, मोहम्मद अजहरुद्दीन, रवि शास्त्री, सौरव गांगुली, अनिल कुंबले और राहुल द्रविड़, लेकिन धोनी इन सबसे कूल हैं। करिअर में अलग-अलग भूमिकाएं निभाने वाले धोनी नपे-तुले, संतुलित और सकारात्मक विचारों वाले थे। स्लिप में उनके बगल में खड़े होकर मैंने कई बार रणनीति पर चर्चा की, जिससे उनके तेज क्रिकेटिंग दिमाग और दबाव झेलने की आश्चर्यजनक क्षमता का पता चला। जिस ठंडे दिमाग से वे कठिन परिस्थितियों का सामना करते थे, उससे उन्हें तार्किक रूप से सोचने में मदद मिलती थी। मैं अक्सर किसी साझेदारी को तोड़ने के लिए उनसे सलाह लेता था कि कैसी गेंद फेंकनी चाहिए।

एक क्रिकेटर के रूप में धोनी का विकास काफी तेजी से हुआ। सोच-विचार करने वाला आदमी हमेशा साथी खिलाड़ियों का भरोसा जीतता है। दो मिनट में गेम प्लान पर चर्चा करने की उनकी शैली से मैं काफी प्रभावित था। हर बार मैं उनसे पूछता, “क्या लगता है,” और उनके जवाब बड़े सामान्य होते थे। 2007 में दक्षिण अफ्रीका में टी-20 वर्ल्ड कप से पहले बीसीसीआइ के शीर्ष अधिकारियों ने मुझसे पूछा कि किसे कप्तान बनाया जाना चाहिए। मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं हुई कि धोनी को नेतृत्व की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। हर बेहतरीन लीडर की तरह धोनी को भी खुद पर भरोसा था। इसलिए उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ एक मैच के अंतिम ओवर में जोगिंदर शर्मा को गेंद पकड़ा दी और उनका वह दांव कामयाब रहा।

धोनी के साथ साझेदारी का मैंने हमेशा लुत्फ उठाया। टीम का सबसे वरिष्ठ खिलाड़ी होने के नाते मुझे बड़ी भूमिका निभानी पड़ती थी। हम जब भी मैदान पर होते, सब भारत के लिए खेलते थे। वरिष्ठता, धर्म, जाति या बैंक बैलेंस कोई मायने नहीं रखता था। हमारी पृष्ठभूमि का भी कोई मतलब नहीं था। मैंने धोनी के बारे में कई लेख पढ़े कि वे टियर 3 और टियर 4 शहरों के मध्य वर्ग की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं। अगर किसी के भी भीतर पैशन है और बेहतरीन प्रदर्शन करने की लालसा है तो वह जरूर चमकेगा, चाहे वह जिस क्षेत्र का हो। धोनी के साथ जुड़ाव मेरे लिए आसान था क्योंकि हम दोनों का लक्ष्य एक था। मैं भारतीय टीम का कप्तान नहीं बनना चाहता था, इसलिए भी हमारे बीच कभी किसी तरह का तनाव नहीं पनपा। टीम में मैं बड़े भाई की तरह था क्योंकि मैं 1989 से खेल रहा था। अनिल का करिअर 1993 में और सौरव और राहुल का 1996 में शुरू हुआ। मैं टीम को जोड़ कर रखता था और टीम खुश रहती थी। हमारे बीच का सौहार्द एक टॉनिक की तरह था।

ब्रांड सचिन की तरह ब्रांड धोनी भी रातों-रात नहीं बना। एक क्रिकेटर के रूप में हमने जो भी सफलता हासिल की, उसके पीछे यह सच्चाई थी कि हमने अपने खेल पर कड़ी मेहनत की और यह सुनिश्चित किया कि हमारे प्रदर्शन में निरंतरता बना रहे ताकि लोग हम पर भरोसा कर सकें। किसी भी क्रिकेटर के लिए सबसे बड़ा जुड़ाव उसका खेल होता है और उसके बाद उसके फैंस होते हैं। बाकी चीजें तो अपने आप हो जाती हैं। धोनी एक बेहतरीन उदाहरण हैं। हर वर्ग में उन्हें इसलिए पसंद किया जाता है क्योंकि वे एक स्थापित और निष्ठावान क्रिकेटर हैं। उनके बैटिंग क्रम, स्ट्राइक रेट और कप्तान के रूप में लिए गए फैसलों पर बहस हो सकती है, लेकिन यह किसी भी खिलाड़ी के जीवन का हिस्सा होता है। वह कभी दोषहीन नहीं होता।

धोनी के साथ अपने संबंधों को मैं हमेशा संजो कर रखूंगा। जीवन का एक बड़ा हिस्सा हमने साथ बिताया है और तब हमारे दिमाग में एक ही बात हुआ करती थी कि भारत के लिए अच्छा खेलना है। 2011 का विश्व कप मेरा छठा विश्व कप था और भारत में खेला जा रहा था। फाइनल मैच मेरे शहर मुंबई में हो रहा था। श्रीलंका के विरुद्ध फाइनल मैच जीतना मेरे क्रिकेट जीवन का सबसे बेहतरीन क्षण था। इसलिए धोनी मेरे लिए बहुत ही खास हैं।

रिटायरमेंट निहायत ही निजी फैसला होता है। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि आपके भीतर से आवाज आती है कि आपका समय अब खत्म हो गया है। 2013 में चैंपियंस लीग टी-20 में दिल्ली में मैं मुंबई इंडियंस के लिए खेल रहा था। एक दिन मैं प्रैक्टिस नहीं कर सका और जिम भी नहीं जा पाया। आम तौर पर मैं अवकाश के दिनों में भी प्रैक्टिस करता था, इसलिए यह अनुभव मेरे लिए असामान्य था। तभी मेरे भीतर एक विचित्र एहसास हुआ और लगा कि अब इस सफर को विराम देने की जरूरत है। अब जब धोनी ने अपने अंतरराष्ट्रीय करिअर को विराम दे दिया है, वे आइपीएल में अपने ‘हाथों का दम’ दिखाते रहेंगे।

(जैसा सौमित्र बोस को बताया)

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