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आरएसएसः नए बदलाव के मायने

मोदी के करीबी दत्तात्रेय होसबले नंबर 2 बने, राम माधव लौटे और अटल-आडवाणी दौर के नेता हुए पीछे
बेंगलूरू में प्रतिनिधि सभा की बैठक के दौरान मोहन भागवत और भैयाजी जोशी

जब 20 मार्च 2021 को बेंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में अहम फैसले लेने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने संगठन में नंबर 2 पद, सरकार्यवाह के लिए दत्तात्रेय होसबले के नाम का चयन किया, तो यह साफ हो गया कि आरएसएस पीढ़ीगत बदलाव की ओर है। संगठन में इस स्तर पर करीब 12 साल बाद बदलाव हुआ है। 2009 में सुरेश भैयाजी जोशी को सरकार्यवाह बनाया गया था। सरकार्यवाह का पद राजनैतिक शब्दावली में राष्ट्रीय महासचिव जैसा है, मगर आरएसए में वह किसी सीईओ जैसा होता है, जो संगठन की रोजाना की गतिविधियों के संबंध में फैसले लेता है। होसबले मूल रूप से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे हैं। सरकार्यवाह पद पर एबीवीपी से जुड़े व्यक्ति की नियुक्ति पहली बार हुई है। होसबले इससे पहले सह- सरकार्यवाह थे। उन्हें यह पद 2009 में मोहन भागवत के सरसंघचालक बनने पर मिला था।

सरकार्यवाह पद के लिए डॉ. कृष्ण गोपाल, डॉ. मनमोहन वैद्य और सी.आर. मुकुंद के नाम भी चर्चा में थे। खास तौर से 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद डॉ. कृष्ण गोपाल के नाम की काफी चर्चा थी, लेकिन मदन दास देवी की तरह उन्हें भी दूसरे नंबर का पद नहीं मिल पाया। उसकी एक बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व के साथ उनके वैसे संबंध नहीं हैं, जैसे दत्तात्रेय होसबले के हैं। होसबले से पहले सरकार्यवाह पद पर गिरिराज किशोर की नियुक्ति अहम रही थी। वे भी ऐसे व्यक्ति थे जो कि मूल संगठन आरएसएस से नहीं थे। वे विश्व हिंदू परिषद से जुड़े थे। तो, क्या भाजपा के मौजूदा शीर्ष नेतृत्व से मधुर संबंध आरएसएस में नए बदलाव की भी एक वजह है?

संघ की नई टीम में दो और अहम बदलाव हुए हैं। राम माधव की वापसी हुई है। उन्हें केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल का सदस्य बनाया गया है। 2019 में भाजपा से आरएसएस में लौटे रामलाल को संपर्क प्रमुख बनाया गया है। वे 13 साल तक भाजपा महासचिव रहने के बाद 2019 में आरएसएस में लौट आए थे। नई जिम्मेदारी से पहले वे सह संपर्क प्रमुख थे।

राम माधव भी संघ से 2014 में भाजपा में गए थे। कार्यकारिणी में वापसी और उनकी उम्र (56 वर्ष) को देखते हुए साफ है कि आने वाले समय में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। इससे पहले भाजपा में रहते वे जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में पार्टी की जिम्मेदारी उठा चुके हैं। उन्हें अमित शाह का करीबी माना जाता है। संघ से जुड़े एक सदस्य का कहना है, “काबिलियत के आधार पर उनकी वापसी हुई है। लेकिन संघ की अपनी कार्यशैली है। वे राजनीतिक दल से वापस आए हैं, तो उन्हें गैर-राजनीतिक बनने में समय लगेगा। कार्यकारिणी मंडल सदस्य के रूप में वे ऐसा ही करेंगे।”

इन बदलावों से साफ है कि संघ में अब नई पीढ़ी को जगह मिल रही है, जिसके लिए भाजपा सरकार के साथ सामंजस्य बिठाना आसान होगा। आरएसएस और भाजपा, दोनों में दूसरी पीढ़ी तैयार हो गई है। भाजपा में अब अमित शाह, जे.पी. नड्डा, योगी आदित्यनाथ, सुनील बंसल जैसे नेताओं की कतार है। ये सभी नेता अभी 48-60 की उम्र के हैं। इसी तरह संघ की नई टीम में जिन लोगों को अहम जिम्मेदारियां दी जा रही हैं, उनमें ज्यादातर 50-60 साल के हैं।

नए परिवर्तन इस बात के भी संकेत हैं कि भविष्य में होसबले, सरसंघचालक मोहन भागवत की जगह ले सकते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह उनकी उम्र है। वे अभी 64 साल के हैं, और 2024 में भागवत 74 के हो चुके होंगे। 2024 में ऐसे ही समीकरण भाजपा में भी होंगे। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 74 वर्ष के हो चुके होंगे। इस बदलाव पर संघ से जुड़े एक पदाधिकारी का कहना है, “संघ अब काफी बड़ा संगठन बन चुका है। ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति को अहम जिम्मेदारियां मिलना जरूरी है, जिसके पास संघ की सोच लागू करने के लिए पर्याप्त समय हो।”

दत्तात्रेय और मोदी का करीब 30 साल पुराना साथ है। संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि दत्तात्रेय ने ही 2014 में आरएसएस नेतृत्व को इस बात के लिए राजी किया कि संघ की शाखाएं चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार करेंगी। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में एबीवीपी के तत्कालीन महासचिव सुनील बंसल को अमित शाह के साथ चुनाव के लिए भेजा गया। एबीवीपी के एक वरिष्ठ सदस्य कहते हैं, “होसबले के अहम पद पर पहुंचने से उम्मीद है कि आने वाले समय में एबीवीपी के सदस्यों को संघ में बड़ी जिम्मेदारियां मिलेंगी। युवाओं को मौका मिलने से नई तरह की सोच जुड़ती है।” एक और अहम बात है कि इस समय संघ की सायंकालीन शाखाओं में युवाओं की उपस्थिति कम हो रही है। ऐसे में होसबले की नियुक्ति युवाओं को भी प्रेरित करेगी। वे कहते हैं, “होसबले युवाओं को मौका देने के लिए जाने जाते हैं। 2014 के चुनाव में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आगे करने में उनकी भूमिका अहम रही थी। खास तौर से जब लालकृष्ण आडवाणी ऐसा नहीं चाहते थे।”

आरएसएस से जुड़े एक व्यक्ति के अनुसार, सरकार और संगठन के बीच समन्वय का मतलब यह कतई नहीं कि संघ सरकार की सभी नीतियों का समर्थन करेगा। राष्ट्रहित में हम नीतियों की समीक्षा करते हैं और करते रहेंगे। मौजूदा कृषि कानूनों को ही देख लीजिए। भारतीय किसान संघ ने शुरू से इनमें संशोधन की बात कही थी। सरकार 2014 में जब भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून लाई थी तो उसका भी विरोध किया गया था। माना जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में ब्यूरोक्रेसी का दबदबा बढ़ा है। इस वजह से कई मामलों में आरएसएस के अनुषंगी संगठन भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच के लोगों की शिकायत रही है कि प्रमुख नीतियों पर उनसे पर्याप्त सलाह-मशविरा नहीं किया गया। दत्तात्रेय के आने बाद इस शिकायत में कमी आ सकती है।

आरएसएस पर पीएचडी और छह पुस्तकें लिखने वाले रतन शारदा नए परिवर्तन और आगे की चुनौतियों पर कहते हैं, “संघ लगातार नए प्रयोग करता रहा है। ऐसी जिम्मेदारियां अधिक से अधिक युवा और प्रौढ़ कार्यकर्ता ही संभालें, इसका प्रयत्न संघ में रहता है। संघ के 60 फीसदी स्वयंसेवक 40 वर्ष से कम उम्र के हैं। लगभग सभी प्रांत प्रचारक 40 वर्ष की आयु के आसपास हैं। दत्तात्रेय होसबले और उनकी नई टीम इसी कार्यपद्धति की देन हैं। दत्तात्रेय एबीवीपी में कई वर्ष कार्य करने के बाद संघ में लौटे थे। दोनों संगठनों में उन्होंने श्रेष्ठ काम किया। सरकार्यवाह पद पर उनकी नियुक्ति संगठन के लचीलेपन को भी दर्शाती है।”

संगठन में नई पीढ़ी की सोच भैयाजी जोशी और सुरेश सोनी की भूमिका में आए बदलाव में भी देखी जा सकती है। भैयाजी सरकार्यवाह थे, वे अब केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल में विशेष आमंत्रित सदस्य ‌होंगे। सुरेश सोनी मध्य प्रदेश क्षेत्र के प्रमुख थे, वे भी कार्यकारिणी मंडल में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। जाहिर है, ये दोनों अब उतने सक्रिय नहीं रहेंगे जितने अब तक रहा करते थे। भैयाजी जोशी और सुरेश सोनी, दोनों अटल-आडवाणी दौर के रहे हैं। इसी तरह राम दत्त और अरुण कुमार पांच सहसरकार्यवाह की सूची में शामिल हो गए हैं। रामदत्त अभी प्रचार प्रमुख थे। उनकी जगह सुनील आंबेकर अब प्रचार प्रमुख की जिम्मेदारी संभालेंगे।

दत्तात्रेय की नियुक्ति आरएसएस के गठन के 96वें वर्ष में हुई है। अगले तीन साल उनके लिए अहम हैं। 2025 में आरएसएस के 100 साल पूरे होने वाले हैं। 2024 में आम चुनाव हैं। होसबले कर्नाटक के हैं। तो, क्या वे दक्षिण भारत में कर्नाटक से आगे आरएसएस और भाजपा को विस्तार देने में भूमिका निभाएंगे? जाहिर है, संघ को ही नहीं, भाजपा नेतृत्व को भी यह उम्मीद हो सकती है और यह बदलाव की एक अहम वजह हो सकती है। दूसरी वजह यह भी हो सकती है कि सरकार जिस निजीकरण की ओर तेज कदम बढ़ा रही है, उसके साथ संघ में तालमेल बैठाने की भी जरूरत का एहसास हो। देखें, आगे क्या होता है।

आरएसएस

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