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रेणु जन्मशतीः जेपी आंदोलन का कर्णधार लेखक

केंद्र सरकार के सुध न लेने के बावजूद रेणु जन्मशताब्दी वर्ष पूरे देश में न सिर्फ ऐतिहासिक ढंग से मनाया गया, बल्कि उन पर कई पत्रिकाओं के अंक भी निकले
कई पत्रिकाओं ने रेणु को समर्पित अंक निकाले

लॉकडाउन में जब कोरोना काल में दुनिया ठहर-सी गई थी, तो हिंदी पट्टी के 500 से अधिक लेखकों ने हिंदी के अमर शब्द शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती वर्ष में लेख लिखकर नया इतिहास रच दिया। अब तक प्रेमचंद, निराला, अज्ञेय, मुक्तिबोध के जन्मशती वर्ष में ऐसा नहीं हुआ। गत 4 मार्च को रेणु की सौवीं जयंती पर 11 पत्रिकाओं के रेणु केंद्रित अंकों का लोकार्पण हुआ। आज तक हिंदी साहित्य में एक साथ इतनी पत्रिकाओं का लोकार्पण कभी नहीं हुआ। रेणु जन्मशती वर्ष में सौ से ज्यादा ऑनलाइन कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। जर्मन विश्वविद्यालयों द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार भी हुआ और अब अप्रैल माह में विश्व के कई देशों के विद्वानों द्वारा एक और अंतरराष्ट्रीय सेमीनार भी होने वाला है। इतना ही नहीं लिट्रेरिया संस्था ने रेणु की कहानी ‘संवदिया’ पर एक शॉर्ट फिल्म भी बनाई और उसे रेणु के गांव औराही हिंगना (रेणु ग्राम) में रिलीज भी किया। इसके अलावा रेणु और उनकी पत्नी लतिका के जीवन पर ‘ठुमरी की आवाज’ नामक एक व्हाट्सऐप नाटक भी तैयार किया गया। रेणु की कहानियों पर तीन नाटक भी मंचित हुए जिनमें, ‘रसप्रिया’, ‘पहलवान की ढोलक’ और ‘तीसरी कसम’ भी शामिल है। प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने अपने गांव में रेणु पर एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें, 50 से अधिक लेखकों ने भाग लिया और रेणु साहित्य पर विचार-विमर्श किया।

यह सब तब हुआ जब लोगों की जिंदगी कोरोना के खौफ से अटकी हुई थी। यह इस बात का प्रमाण है कि रेणु की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और वह जनता के लेखक के लेखक के रूप में समादृत होते जा रहे हैं। रेणु अपनी जन्मशती में प्रेमचंद के बाद देश के दूसरे अंतरराष्ट्रीय स्तर के कथाकार के रूप में उभरे हैं और उनका नए सिरे से मूल्यांकन भी हुआ है।

रेणु पर केंद्रित ग्यारह पत्रिकाओं संवेद, बनास जन, लमही, मुक्ताचंल, प्रयाग पथ, माटी, जनपथ, सृजनलोक, सृजन सरोकार, पाखी, नवनीत शामिल हैं। इनका लोकार्पण गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में किया गया। इस अवसर पर रेणु पर दो पुस्तकों रेणु के उपन्यास (संपादक राकेश रेणु) और रेणु प्रसंग (संपादक प्रज्ञा तिवारी) का भी लोकार्पण किया गया। रेणु जन्मशती वर्ष में करीब दस पुस्तकें प्रकाशित हुईं। इन किताबों में करीब 150 लेख प्रकाशित हुए और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगभग चार सौ लेख छपे। इस तरह 500 से अधिक लेखकों ने लिखकर अपने प्रिय लेखक को याद किया। यह अविस्मरणीय घटना है।

इस ग्यारह पत्रिकाओं में करीब तीन सौ लेख रेणु के साहित्य पर प्रकाशित हुए हैं। संवेद के संपादक किशन कालजयी ने रेणु पर 106 लेखकों से लेख लिखवाकर इसे छापा, जो नया कीर्तिमान है। करीब 570 पेज की इस पत्रिका में रेणु की समस्त 63 कहानियों पर स्वतंत्र लेख हैं। हिंदी साहित्य में पहली बार किसी लेखक की इतनी कहानियों पर स्वतंत्र लेख किसी पत्रिका में आए। आज तक किसी लेखक की समस्त कहानियों पर इस तरह के स्वतंत्र लेख नहीं आए हैं।

इन सारी पत्रिकाओं में रेणु के सभी उपन्यासों पर भी लेख छपे हैं। इसी तरह रेणु के मैला आंचल और परती परिकथा पर ही अधिक विमर्श हुआ था लेकिन जन्मशती वर्ष में जुलूस, दीर्घतपा, पलटूबाबू रोड उपन्यास पर भी पर्याप्त चर्चा हुई। इन पत्रिकाओं में रेणु के रिर्पोताज, कविकर्म, पत्र, नाटक, हास्य व्यंग, स्केच पर भी कई लेख छपे। देखा जाए, तो इस तरह पहली बार रेणु का सम्यक मूल्यांकन किया गया।

जन्मशती वर्ष में रविभूषण, शंभु गुप्त, प्रेम कुमार मणि, अरुण होता, वीरेंद्र यादव, रोहिणी अग्रवाल, नरेश सक्सेना, विजय बहादुर सिंह, आलोक धन्वा, मृदुला गर्ग, नमिता सिंह, मैत्रेयी पुष्पा, विष्णु नागर, हरीश त्रिवेदी, अरविंद कुमार, हितेंद्र पटेल, गोपेश्वर सिंह, आशीष त्रिपाटी ने विचारोत्तेजक लेख लिखे। ज्ञानरंजन और अशोक वाजपेयी तथा सतीश आनंद और गीता पुष्प शॉ ने आत्मीय संस्मरण लिखे तो धनजंय वर्मा तथा मधुकर गंगाधर ने रेणु साहित्य पर बेबाक इंटरव्यू भी दिए।

रेणु के साहित्य में अब तक किसान-मजदूर तथा लोक की चेतना को रेखांकित किया जाता रहा और उनकी भाषा तथा शिल्प पर अधिक चर्चा होती रही है। अज्ञेय और निर्मल वर्मा रेणु पर इसलिए रीझते थे। लेकिन जन्मशती वर्ष में रेणु के साहित्य में जाति विमर्श, आदिवासी विमर्श तथा स्त्री विमर्श को भी रेखांकित किया गया। इसके साथ समावेशी विकास तथा सामाजिक असमानता एवं अन्याय तथा दमन के विरोध की आवाज के रुप में रेणु को चिन्हित किया गया। रेणु का साहित्य आजादी से मोहभंग के अलावा राजनैतिक दलों से भी मोहभंग की कथा है। जन्मशती वर्ष में रेणु के साहित्य में नई पीढ़ी ने भी दिलचस्पी ली। यही कारण है कि कई युवा आलोचकों तथा शोधार्थियों ने भी रेणु पर कई लेख लिखे। रेणु की जन्मशती ऐसे समय में मनाई गई जब, देश में किसान आंदोलन के सौ से भी अधिक दिन हो गए और जनता द्वारा निर्वाचित सरकार मौन लगाए बैठी है। उस पर कोई असर नहीं हो रहा है। रेणु ने मैला आंचल में सत्ता के इस चरित्र को उजागर पहले ही कर दिया था। रेणु जेपी आंदोलन के कर्णधार थे। आज केंद्र में बनी सरकार खुद को उसी आंदोलन से निकली बताती है लेकिन चार मार्च को केंद्र सरकार ने रेणु की कोई सुध नहीं ली, बल्कि पीएम रूट के खौफ से परेशान होकर लेखकों को जन्मशती समारोह बीच में स्थगित करना पड़ा। यह देश का दुर्भाग्य है। जब तक समाज में असमानता, गरीबी, शोषण, असंवेदनशीलता रहेगी, रेणु हमेशा याद आएंगे।

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