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18 अगस्त 2025 · AUG 18 , 2025

साझी विरासत: स्मृति-चिन्हों पर क्रोध क्यों

हाल में बांग्लादेश में सत्यजित राय और रवि बाबू के पुश्तैनी घरों पर कट्टर तत्वों की गाज, समूचे उपमहाद्वीप में साझी विरासत के प्रति उपेक्षा-भाव, इतिहास पुनर्लेखन की कोशिश संस्कृति और लोकतंत्र के लिए खतरा
जर्जर हालात में सत्यजीत राय का घर

कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर, नजरूल इस्‍लाम और सत्‍यजित राय जैसी तमाम साहित्‍य शख्सियतों का नाम बंगाल के दोनों तरफ अपनी गरिमामय विरासत के लिए गर्व से लिया जाता रहा है। बांग्‍लादेश का राष्‍ट्रगीत भी रवि बाबू की ही देन है। लेकिन पिछले पखवाड़े जब बांग्लादेश के जेसोर जिले में महान फिल्मकार सत्यजीत राय के जर्जर हालत में हो गए पुश्‍तैनी घर को तोड़ने की अनुमति स्थानीय प्रशासन ने दी, तो सीमा के दोनों तरफ इसे लेकर नाराजगी के स्वर गूंजने लगे। इससे पहले इसी साल जून में वहां के सिराजगंज जिले के शहजादपुर में रवि बाबू के पुश्‍तैनी घर में मामूली से विवाद पर भारी तोड़फोड़ की गई। ये घटनाएं शेख हसीना के बाद बांग्‍लादेश में खास तरह की बढ़ती कट्टरता की ही मिसाल हैं। खैर, भारत के फौरन दखल और वहां अंतरिम सरकार की कार्रवाई से तोड़फोड़ रुक गई।

बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्‍तापलट के बाद कट्टरता बढ़ी है। बंगबंधु मुजीबुर्रहमान की तो हर निशानी को मिटाने पर कट्टर तत्‍व आमदा लगते हैं। फिल्‍मकार सत्‍यजित राय का जन्म तो कोलकाता में हुआ था, लेकिन अपने पुश्‍तैनी घर से उनकी संवेदनाएं जुड़ी थीं। उनके दादा बांग्‍ला साहित्‍यकार उपेंद्रकिशोर रायचौधरी की पत्रिका ‘संदेश’ और प्रसिद्ध बाल साहित्‍य ‘आबोल-ताबोल’ की रचना और कल्‍पना उसी घर में ही हुई थी, जिसे गिराए जाने की योजना थी। रवि बाबू के पुश्‍तैनी घर में तोड़फोड़ की वजह तो बेहद मामूली थी। घर अब एक संग्रहालय है, जिसमें एक व्यक्ति का संग्रहालय के कर्मचारियों से पार्किंग शुल्क को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि भीड़ ने घर में भारी तोड़फोड़ की और सभागार को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। उसके बाद संग्रहालय बंद कर दिया गया। अभी भी यहां लकड़ी की पुरानी अलमारियों में ठाकुर परिवार के पुराने दस्तावेज रखे हैं। लेकिन अब कोठी के भीतर लगी रवि बाबू की मूर्ति के पत्थर टूट गए हैं।

पाकिस्तान में पृथ्वीराज कपूर की हवेली

पाकिस्तान में पृथ्वीराज कपूर की हवेली 

लेकिन पिछले दशकों में ऐसी घटनाएं उपमहाद्वीप या कहिए बंटवारे के बाद बने देशों में बढ़ी हैं और उसका खामियाजा स्‍मारकों, ऐतिहासिक समृति-चिन्‍हों को भुगतना पड़ता है। पाकिस्तान के पेशावर में दिलीप कुमार की पुश्तैनी हवेली की खबर भी कुछ साल पहले बहुत चर्चा में आई थी। खबर बहुत ज्यादा फैल जाने से हवेली तो नहीं टूटी लेकिन इसे बचाने के भी कोई प्रयास नहीं किए गए। नतीजा यह हवेली एकदम जर्जर हो गई है। पाकिस्तान के पेशावर में ही ख्वानी बाजार में राज कपूर और पृथ्वीराज कपूर के घर की हालत भी जर्जर है। इतना जरूर है कि 2020 में उसे संरक्षित स्मारक घोषित किया गया, लेकिन मालिकाना विवाद और प्रशासनिक उदासीनता ने इन भवनों की स्मृतियों को उनके हवाले छोड़ दिया है।

सवाल उठता है कि इन ऐतिहासिक स्थलों की उपेक्षा को केवल प्रशासनिक लापरवाही मानें या इसका संबंध किसी और बात से है। विभाजन के बाद भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पिछले दशकों में बढ़ी कट्टरता में साझा स्मृतियों की उपेक्षा और कुछ मामलों में उसे मिटा डालने की पैरोकारी भी बढ़ी है। यह निश्चित रूप से न सिर्फ साझी विरासत के लिए खतरा है, बल्कि पूरे इलाके में लोकतंत्र के लिए भी खतरे हैं।

आज जब उपमहाद्वीप में सांस्कृतिक द्वेष बढ़ रहा है और इतिहास पुनर्लेखन की कोशिश तेज है, तब यह जरूरी हो जाता है कि हम अपनी साझी विरासत की रक्षा के लिए कोई ठोस क्षेत्रीय तंत्र बनाएं। क्या अच्छा हो, अगर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर एक ‘साझा विरासत ट्रस्ट’ बना लें, जो ऐतिहासिक स्‍मारकों का रखरखाव करे।

बांग्लादेश में रवि बाबू का संग्रहालय

बांग्लादेश में रवि बाबू का संग्रहालय

इसके अलावा, यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की मदद से इन भवनों को ‘ट्रांस-नेशनल वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स’ घोषित करा दिया जाए, जैसा यूरोपीय देशों ने युद्धकालीन स्मारकों के लिए किया है। यूरोप अपनी विरासत को लेकर बहुत ज्यादा सचेत रहता है। यहां लेखकों के घरों को किसी पवित्र स्थल से कम नहीं माना जाता। देश विदेश से लोग अपने प्रिय लेखकों के घर देखने आते हैं। वहां सरकार हर साल ऐसे भवनों के रखरखाव पर बहुत पैसा खर्च करती हैं। समय-समय पर उनकी मरम्मत कराई जाती है। इन भवनों को देख कर कोई नहीं कह सकता कि इसमें रहने वाले लेखक बरसों पहले इस दुनिया को छोड़ गए हैं। वहां मिटाने से ज्यादा बनाने पर जोर रहता है और यह दिखता भी है।

अगर हम उन्हें यूं ही मिटने देंगे, तो केवल अतीत ही नहीं बुझेगा, हमारा सांस्कृतिक भविष्य भी धुंधला हो जाएगा। यह सिर्फ एक धरोहर का अंत नहीं होगा, बल्कि हमारी ऐतिहासिक संवेदना की असफलता की कहानी होगी। यह कहानी अगर आज नहीं रोकी गई, तो कल कोई और दीवार ढहेगी, किसी और स्मृति की कब्र पर घास उगेगी।

साझा विरासत ट्रस्‍बने

दुनिया के कई हिस्सों में, खासकर यूरोप में, साझा इतिहास को साझा संरक्षण भी मिला है। जर्मनी, पोलैंड और फ्रांस जैसे देश ट्रांसनेशनल वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स के लिए संयुक्त प्रयास कर चुके हैं, जैसे विश्व युद्ध के स्मारक। वहां लोगों की सोच है कि विरासत किसी एक की नहीं होती, वह साझा होती है और इसलिए उसका संरक्षण भी मिलकर करना होता है। इसके लिए यह किया जा सकता है कि एक साझा विरासत ट्रस्ट बनाया जाए, जिसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर एक क्षेत्रीय ‘साझा विरासत ट्रस्ट’ बना लें। जो विभाजन से पहले की सांस्कृतिक-स्मृतियों के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाए। यह एक स्वायत्त संस्था हो, जिसे तीनों देशों की सांस्कृतिक मंत्रालयों का समर्थन मिले। 

 

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