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नई संस्कृति में रुचि सोया

पांच महीने में कई शीर्ष अधिकारियों सहित 600 कर्मचारी कंपनी छोड़ चुके हैं
हरिद्वार में पतंजलि की दिव्य फार्मेसी, यहां आयुर्वेदिक दवाएं बनती हैं

खाद्य तेल बाजार की दिग्गज लेकिन संकटग्रस्त कंपनी रुचि सोया को खरीदकर पतंजलि आयुर्वेद ने पिछले छह महीनों में शेयर बाजार में भले ही धमाल मचा दिया हो, लेकिन कंपनी का कारोबारी परिचालन और वित्तीय प्रदर्शन की कसौटी ज्यादा कड़ी होने वाली है। शेयर बाजार में रिलिस्टिंग के बाद रुचि सोया के मूल्य में 500 गुना बढ़ोतरी से सभी की नजरें कंपनी पर टिक गई हैं। कंपनी का शेयर 3.28 रुपये के निचले स्तर से बढ़कर 29 जून को 1,535 रुपये की ऊंचाई को छू गया। दूसरी ओर, स्वामित्व बदलने के बाद इंदौर स्थित रुचि सोया के कामकाज में काफी बदलाव नजर आ रहा है। दिवालिया प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही कंपनी दिनेश साहरा के स्वामित्व और निराशाजनक कारोबारी माहौल से आगे के रास्ते पर चल निकली है।

तूफानी तेजी आने पर शेयर ट्रेडिंग में गड़बड़ी होने की निवेशकों और विश्लेषकों की आशंकाओं और मार्केट रेगुलेटर सेबी से जांच की मांग उठने लगी तो तेजी थम गई और लोअर सर्किट लगने लगा। पतंजलि ने छह महीने पहले 4,350 करोड़ रुपये में रुचि सोया को खरीदा था, अब इसकी वैल्यू 31,000 करोड़ रुपये के आसपास है। तेजी पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि 99.03 फीसदी शेयर प्रमोटर यानी पतंजलि ग्रुप के पास हैं, तो 0.97 फीसदी शेयर रखने वाले छोटे निवेशकों में इतनी ट्रेडिंग कौन लोग कर रहे हैं कि दाम इतने बढ़ गए। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के अनुसार कंपनी के 82,007 छोटे निवेशकों के पास महज 28.59 लाख शेयर हैं जबकि कंपनी के 29.29 करोड़ शेयर पतंजलि और उसकी सहायक कंपनियों के पास हैं। नियम कम से कम 25 फीसदी शेयर जनता के पास होने का है। लेकिन इसके लिए कंपनी के पास तीन साल का वक्त है। इसलिए मांग है कि रुचि सोया को टी कैटागरी में डाल देना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सौदे की डिलीवरी जरूरी है।

जब मात खा गए अडाणी

रुचि सोया को खरीदने का अवसर पतंजलि को तब मिला जब नीलामी में सबसे बड़ी बोली (करीब 6,000 करोड़ रुपये) लगाने वाली अडाणी विलमर  हितों के टकराव की शिकायत पर नीलामी प्रक्रिया से बाहर हो गई। यह शिकायत पतंजलि ने ही की थी। आखिर पतंजलि को 4,161 करोड़ रुपये की अपनी मूल बोली बढ़ाकर 4,350 करोड़ रुपये करनी पड़ी, जिसे कर्जदाता बैंकों ने पिछले साल अप्रैल में स्वीकार कर लिया।

मध्य प्रदेश में सोयाबीन फसल के विकास के साथ ही 1980 के दशक में शुरू रुचि सोया का विस्तार हुआ। न्यूट्रीला ब्रांड से सोयाबीन नट (नगेट) को घर-घर पहुंचाने के अलावा कंपनी ने सोयाबीन तेल, सोयामील निर्यात और दूसरे कई उत्पादों में विस्तार किया। कंपनी की मुश्किलें 2010 में शुरू हुईं जब शेयर ट्रेडिंग में गड़बड़ी के आरोप की जांच शुरू हुई। रुचि सोया खरीदने के बाद बाबा रामदेव ने घोषणा की कि पांच साल में कंपनी का कारोबार बढ़ाकर 50 हजार करोड़ रुपये करने का लक्ष्य है। नए स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद लॉन्च करने के अलावा पाम प्लांटेशन का विस्तार होगा।

इंदौर में उद्योग सूत्र बताते हैं कि कंपनी के परिचालन में पहला बदलाव तो यह नजर आया है कि अब इससे जुड़े कारोबारियों, सप्लायरों, कर्मचारियों और दूसरे पक्षों में कंपनी के प्रति विश्वास बढ़ा है। उद्योग संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) से जुड़े एक पदाधिकारी ने बताया कि नए प्रबंधन के अधीन कंपनी के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद बढ़ी है। सूत्रों के अनुसार अधिग्रहण के बाद से नए चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर आचार्य बालकृष्ण कंपनी की हर छोटी-बड़ी गतिविधि में दिलचस्पी ले रहे हैं। पतंजलि रुचि सोया के ब्रांडों को जारी रखेगी, जिनमें गोल्ड, महाकोश और न्यूट्रीला प्रमुख हैं।

नई संस्कृति की चुनौती

लेकिन रुचि सोया के नए प्रमोटर की नई संस्कृति की कुछ समस्याएं भी हैं। कंपनी के सप्लायर समय पर भुगतान न मिलने की शिकायत करने लगे हैं। कॉरपोरेट कल्चर की जगह योग संस्कृति का पहला झटका कंपनी के शीर्ष अधिकारियों को जनवरी में लगा जब पतंजलि के हरिद्वार मुख्यालय में उन्हें कंपनी की समीक्षा के लिए बुलाया गया, लेकिन वहां सिर्फ योग अभ्यास हुआ। कामकाज की नई संस्कृति के चलते पांच महीने में कई शीर्ष अधिकारियों सहित 600 कर्मचारी कंपनी छोड़ चुके हैं। बैंक भी पतंजलि के प्रस्ताव पर हिचकचा रहे थे। इन चुनौतियों के बीच आने वाले समय में पता चलेगा कि रामदेव सफल टेकओवर गुरु बन पाते हैं या नहीं।

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