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आवरण कथा/नजरिया : आम लोगों के पीएम मोदी

प्रधानमंत्री कोविड संकट से देश को बाहर निकालने के प्रति बेहद संजीदा हैं, जैसे वे हर संकट में रहते हैं
डॉ. विजय चौथाईवाले

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ऐसे समय 7 साल पूरे कर रही है, जब देश कोविड-19 महामारी का संकट झेल रहा है। चुनौतियों का सामना करना मोदी के लिए कुछ नया नहीं है, केवल उसका स्वरूप बदलता रहता है। 2014 में जब मोदी ने सत्ता संभाली, तो राजकाज नाकारापन, भ्रष्टाचार, गैर-जवाबदेही, दोहरे तथा परस्पर विरोधी सत्ता-केंद्र में उलझा हुआ था। इसलिए, मोदी सरकार का पहला काम लोगों में यह भरोसा कायम करना था कि सरकार बेहतर कामकाज कर सकती है।

लोगों के सशक्तीकरण के लिए पहली बड़ी योजना ‘जन धन योजना’ की ही मिसाल लेते हैं। प्रधानमंत्री ने इसके तहत साल भर में 10 करोड़ लोगों का जीरो बैलेंस खाता खोलने का लक्ष्य रखा। उसे असंभव माना गया था। लेकिन यह लक्ष्य सही नीति, नियमित निगरानी और प्रौद्योगिकी के उपयोग से हासिल कर लिया गया। पिछले सात वर्षों में शुरू की गई विभिन्न बड़ी योजनाओं के ब्योरे में गए बिना, उनमें खास पैटर्न देखा जा सकता है। पहली बात यह कि हर कार्यक्रम लाभार्थियों के जीवन में व्यावहारिक फर्क ले आया है। रसोई गैस सिलिंडर से लेकर, सबको साफ नल का पानी और बिजली मुहैया कराने की बात हो, या सौर या दूसरी स्वच्छ ऊर्जा के जरिए जलवायु परिवर्तन से लड़ाई के कार्यक्रम हों, मोदी सरकार ने देश के करोड़ों कमजोर लोगों का जीवन बदल दिया है।

सरकारी तंत्र में यह सब जानते हैं कि अच्छे इरादों के साथ बनाए गए कई कार्यक्रम बेहतर और मुकम्मल योजनाओं के अभाव में नतीजे नहीं दे पाते। मोदी इससे गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शुरुआती दिनों में वाकिफ हो गए थे। बारीकियों पर ध्यान देने वाला शख्स होने के नाते वे भावी अड़चनों को भी अंदाजा लगा लेते हैं। हर सरकारी कामकाज में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने पर जोर देने से पारदर्शिता आई है। प्रौद्योगिकी के उपयोग में भी मोदी का नजरिया एकदम अलग है कि उसका लाभ चंद अंग्रेजी जानने वालों तक सीमित न रहे। अब आधार कार्ड, और ओटीपी की मदद से शून्य से नौ तक अंक पढ़ने-लिखने वाला कोई भी डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल कर सकता है।

योजनाओं पर अमल का पैमाना भी अभूतपूर्व है। कई मामलों में तो पिछले सात वर्षों में हासिल की गई संख्या उससे पहले के साठ से अधिक वर्षों के कुल आकड़ों से भी ज्यादा है। पूर्वोत्तर में दशकों से अटकी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं पूरी हुई हैं। सड़क और पुलों के निर्माण की ऐसी रफ्तार पहले नहीं देखी गई।

इस तरह उन्होंने न केवल सरकार के कामकाज के तरीके में आमूलचूल बदलाव ला दिया है, बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की सोच भी बदल डाली है। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधन में शौचालय बनाने जैसी बात की कोई दूसरी मिसाल बताइए। मोदी सरकार ने ऐसे बुनियादी मुद्दों को छुआ है जिनसे हर दिन आम आदमी का सामना होता है, जिनके बारे में पहले किसी नेता ने बात करने की जहमत नहीं उठाई। स्कूलों में लड़कियों के शौचालय, सैनिटरी नैपकिन का उपयोग, मातृत्व लाभ में वृद्धि जैसे अनेक उदाहरण हैं। अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए खत्म करने का कदम भी भी न्याय और समानता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

 

सात वर्षों के कूटनीतिक प्रयासों का ही परिणाम है कि विश्व समुदाय हर चुनौती में भारत के साथ खड़ा है, ‘वैक्सीन मैत्री’ की आलोचना करने वाले इसे नहीं समझ रहे

 

वित्तीय सुधारों की सूची भी काफी लंबी है। डीबीटी, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड, आयकर विवाद अपील और जीएसटी से लेकर कृषि बिल तक उन्होंने व्यवस्था में एकरूपता और सामंजस्य लाने की कोशिश की है।

उनकी संवाद शैली भी अद्वितीय है। वे बिना किसी मध्यस्थ के सीधे लोगों से संवाद करते हैं। वे सोशल मीडिया के लाभ का अहसास अपने कई समकालीन नेताओं से बहुत पहले कर चुके थे। उन्होंने अपना फेसबुक अकाउंट 2009 में खोला। उनका ‘मन की बात’ कार्यक्रम, 2014 से रेडियो के माध्यम से गुमनाम नायकों को दुनिया के सामने ला रहा है।

पिछले सात वर्षों में, मोदी ने विदेश नीति पर खास जोर दिया है। जब उन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री का पद संभाला था, हमारी नीतियों में अनेक खामियां थीं। मसलन, भारत का कोई प्रधानमंत्री आखिरी बार 17 साल पहले नेपाल, 28 साल पहले श्रीलंका और 34 साल पहले यूएई गया था। डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने वोट बैंक के डर से कभी इजरायल का दौरा करने की हिम्मत नहीं जुटाई। उनकी सरकार ने पाकिस्तान को खुली छूट दे दी थी कि आतंकवाद और वार्ता एक साथ चल सकते हैं।

2014 के बाद अमेरिका में तीन राष्ट्रपति चुनकर आए। उसके बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल मित्र अमेरिका के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी को जारी रखा, बल्कि उसे मजबूत भी किया। वे इजरायल भी गए लेकिन अरब और अफ्रीकी देशों और पड़ोसियों के साथ साझेदारी के नए रास्ते भी खोले। अमेरिका, फ्रांस, इजरायल और रूस को शामिल करने से नवीनतम रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकियों में विविधता आई और रक्षा उत्पादन में एफडीआइ के महत्व को भी बढ़ावा मिला। वे क्वाड को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन सात वर्षों के कूटनीतिक प्रयासों का ही परिणाम है कि विश्व समुदाय हर चुनौती में भारत के साथ खड़ा है, चाहे आतंकवाद हो, डोकलाम, गलवान घाटी विवाद या फिर कोविड-19 का संकट। जो लोग ‘वैक्सीन मैत्री’ की आलोचना कर रहे हैं, वे इन भावनाओं को समझने में नाकाम हैं।

कोविड संकट में कुछ नेता अपने पुनर्वास के सपने देख रहे हैं। एक प्रमुख पश्चिमी अखबार ने एक पहली बार की सांसद के पास मोदी को हराने की चाबी होने की बात कही है। कई दूसरे अंतिम संस्कार की आग में टीआरपी की रोटी सेंक रहे हैं। लेकिन मोदी देश को इस संकट से बाहर निकालने के लिए उतने ही दृढ़ हैं, जितने वे हर दिन और किसी संकट के समय रहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि एक अरब से अधिक भारतीयों की सद्भावना और समर्थन के साथ वे इस चुनौती को भी पार कर लेंगे और विकास की राह पर चलते रहेंगे।

(लेखक पूर्व विशेष सचिव हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

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