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आवरण कथा/ बाहरी फिल्मी आमदः चर्चित दक्षिण कोरियाई फिल्में

कोरियाई फिल्मों ने भारत के मनोरंजन जगत में भी जमाया कब्जा
चर्चित दक्षिण कोरियाई फिल्म पेरासाइट

द एज ऑफ शैडोज (2016)

140 मिनट लंबी यह एक्शन-थ्रिलर 1920 में दक्षिण कोरिया पर जापानी कब्जे वाले दिनों में ले जाती है। किम जी-वून निर्देशित इस फिल्म में कोरियाई लड़ाके जापानी हुकूमत को तबाह करने के लिए चीन से गुपचुप हथियारों का आयात करते हैं। फिल्म कोरिया और जापान की साझेदारी से बनी है और देश के इतिहास को जबरदस्त एक्शन के रूप में पेश करती है।

बर्निंग (2018)

फिल्म के नाम से पता लगाना मुश्किल है कि कहानी क्या है लेकिन जो लोग जापानी लेखक हारूकी मुराकामी से वाकिफ हैं, उनके लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि फिल्म उनकी एक लघुकथा बार्न बर्निंग पर आधारित है। उपन्यासकार बनने की ख्वाहिश रखने वाले ली जौंग-सु के बचपन की दोस्त शिन हाए-मी अफ्रीका की यात्रा पर जाती है। हाए-मी के साथ लौटता है रहस्मयी किरदार-बेन जिसकी वजह से जौंग-सु की जिंदगी में उथल-पुथल आती है।

होटल बाय द रिवर (2018)

हॉन्ग सैंग-सू निर्देशित इस फिल्म में मुख्य किरदार यंग-वान एक होटल में मुफ्त में रहता है। उसे लगता है कि उसकी मौत करीब है। अंतिम विदा के लिए वह अपने दोनों बेटों को होटल बुलाता है। उसी होटल में प्रेमी से रिश्ता टूटने के बाद एक लड़की आती है। वान के बेटों और लड़की की एक दोस्त के होटल में आने के बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं। इसकी प्रस्तुति बहुत अच्छी है।

मिनारी (2020)

1980 के दशक में ले जाने वाली इस फिल्म की कहानी ऐसे कोरियाई परिवार की है जो कोरिया के गांव से अमेरिका के शहर पहुंच कर नई जिंदगी के सपने खोज रहा है। फिल्म के निर्देशक ली आइजैक-चंग के अपने जीवन से प्रेरित इस फिल्म में नए देश में नए सिरे से घर बसाने की सारी परेशानियां, चुनौतियां और उम्मीदें दिखाई गई हैं। कहानी में दक्षिण-कोरिया के गांव से शहर पहुंची दादी की भूमिका इस नए अनुभव में नया रंग भरती है।

ट्रेन टु बुसान (2016)

यह एक जॉम्बी फिल्म है और इस तरह की फिल्में देखने के शौकीनों के लिए जबरदस्त विकल्प। एक पिता और उसकी बेटी बुसान जा रही एक ट्रेन में सवार हैं जहां अचानक जॉम्बी हमला हो जाता है। फिल्म के ज्यादातर हिस्से ट्रेन में ही शूट किए गए हैं। मारधाड़, जान बचाने की छटपटाहट और डर इसे एक बेहतरीन थ्रिलर बनाते हैं।

पैरासाइट (2019) 

सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर (2020) जीतने वाली यह पहली गैर-अंग्रेजी फिल्म है। इसके निर्देशक हैं बॉन्ग जून-हो। फिल्म की कहानी गरीब और अमीर परिवारों की जिंदगियों को केंद्र में रखती है। किम की-वू एक युवा है जो अपने मां-बाप और बहन के साथ एक बेसमेंट जैसी जगह में रहता है। किम की मां ट्रैक एंड फील्ड खिलाड़ी रही है और पिता बेरोजगार ड्राइवर है। बहन ग्राफिक कलाकार है लेकिन चारों के पास नौकरी नहीं है। एक मौका आता है, जहां से किम धोखाधड़ी के जरिये अपने परिवार की किस्मत बदलने का रास्ता निकाल लेता है। पाखंड और हिंसा दिखाते हुए फिल्म गरीबी-अमीरी के अंतर, सामाजिक असमानता और इंसानी इच्छाओं की प्रबलता जैसे कई विषयों को उठाती है।

द वेलिंग (2016)

ना होंग-जिन निर्देशित इस फिल्म में एक गांव की कहानी है, जहां एक अनजाने व्यक्ति के आने के साथ सिलसिलेवार ढंग से मौतें होने लगती हैं। गांववालों को उस व्यक्ति पर शक है। यह सामूहिक उत्तेजना तब डरावने माहौल में बदल जाती है जब गांव वाले एक-दूसरे की हत्या करने लगते हैं। हॉरर के मुरीदों को इसमें भूत-चुड़ैल और अलौकिक शक्तियों का भरपूर इस्तेमाल मिलेगा।

पोएट्री (2010)

अंत के करीब जिंदगी से मुलाकात इस कहानी का मूल आधार है। छियासठ साल की एक महिला मीजा को पता चलता है कि उसे अल्जाइमर है। मीजा अपने बेपरवाह नाती के साथ रहती है। ली चांग-दोंग की यह फिल्म एक अपराध के जरिये परिवार, रिश्तों और मौत के मसलों को सामने रखती है। जिंदगी की उलझनों में फंसी मीजा कविता लिखना सिखाने वाले एक कोर्स में दाखिला लेती है। फिल्म का अंत मीजा की उस कविता से होता है जो उसे एक माह के इस कोर्स के अंत में लिखनी थी।

ओकजा (2017)

बौंग जू-हून की इस फिल्म में पर्यावरण, पशु, पूंजीवादी छल और लालच समेत भावनाओं का अद्भुत समागम है। कहानी एक छोटी सी लड़की मीहा की है जिसका दोस्त ओकजा नाम का एक बड़ा सुअर है। मीहा और ओकजा की दोस्ती तब खतरे में पड़ जाती है जब मिरांडो कॉर्पोरेशन ओकजा को न्यूयॉर्क ले जाने का फैसला करता है। ओकजा को बचाने के लिए मीहा सोल शहर से न्यूयॉर्क तक का सफर तय करती है। फिल्म दिखाती है कि मिरांडो कॉर्प ओकजा के साथ कितनी क्रूरता बरतता है। फिल्म ऐसा असर पैदा करती है जिससे प्रभावित न होना मुमकिन नहीं।

द हैंडमेडेन (2016)

नामचीन निर्देशक पार्क चान-वूक की सायकॉलाजिकल-इरॉटिक थ्रिलर की पृष्ठभूमि में है 1930 के दक्षिण कोरिया में चल रहा जापानी साम्राज्यवाद का दौर। कहानी के केंद्र में है एक अमीर जापानी लड़की जिसे उत्तराधिकार में मिली अकूत संपत्ति को हथियाने के षडयंत्र में शामिल है उसकी अपनी नौकरानी। फिल्म का दिलचस्प पहलू है नौकरानी और मालकिन के बीच प्रेम-संबंध और धोखाधड़ी की परतें। चान-वूक की फिल्म अमीर-गरीब के वर्गभेद, अमीरों की घिनौनी दुनिया और अपराधों के एक लंबे सिलसिले को बुनकर एक जटिल कहानी कहती है।

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