Advertisement

जनादेश-2019/पूर्वी उत्तर प्रदेश: आसान नहीं पूर्वांचल की जंग

भाजपा को सपा-बसपा गठबंधन की कड़ी चुनौती, कांग्रेस भी रिंग के बाहर नहीं, विद्रोहियों से भितरघात का डर
मतदाताओं के द्वारः चुनाव प्रचार में वोट मांगते वीरेंद्र सिंह मस्त (बाएं) और अनुप्रिया पटेल

लोकसभा के लिए मतदान की तिथियां जैसे-जैसे नजदीक आ रही हैं, लगभग सभी राजनैतिक दलों में टिकट के  लिए असंतोष और विद्रोह की स्थिति उग्र होती जा रही है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक सांसद जीतकर संसद पहुंचे थे, लेकिन इस बार कड़ी चुनौती और टिकट कटने से मायूसी का आलम है। उधर, सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में भी कई लोगों के चेहरे पर सपने टूटने से उपजी हताशा और आक्रोश है, लेकिन उन्हें ‘गठबंधन की स्थिति में टिकट की संभावना विकट होनी ही है,’ इस सच का एहसास था इसलिए वहां विद्रोह वाली बात नहीं है। कांग्रेस में भी कुछ घोषित उम्मीदवारों को बदला गया है जबकि अन्य दलों से टूटकर आए, और कुछ भाजपाइयों को भी कांग्रेस ने टिकट दे दिया है। इसी तरह सपा ने भी अपने घोषित कुछ टिकटधारियों की आस्था की पैमाइश के बाद उन्हें बदल दिया है। पूर्वांचल में मतदान चौथे-पांचवें चक्र के बाद ही होंगे इसलिए टिकट की संभावनाएं अभी बनती-बिगड़ती रहेंगी और उठा-पटक भी बनी रहेगी।

पूर्वांचल में भाजपा ने अपने कई सांसदों के टिकट काट दिए हैं। इसमें सबसे अहम नाम भरत सिंह का है। भरत सिंह काशी हिंदू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महामंत्री और अध्यक्ष तो रहे ही, विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं। पूर्वांचल की राजनीति में अहम युवा नेताओं में एक और छात्र जीवन से आरएसएस के सदस्य भरत सिंह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजरेइनायत तो शुरू से ही नहीं थी (क्योंकि संघ के स्वयंसेवक रहे महेन्द्र नाथ पांडेय, छात्रसंघ के अध्यक्ष तथा महामंत्री रह चुके मनोज सिन्हा बीएचयू की इन दिनों सरकार और पार्टी में ज्यादा पूछ है) लेकिन वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नजरों में भी नहीं चढ़ सके। भरत सिंह का टिकट काट कर पार्टी ने भदोही-मिर्जापुर के मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त को दे दिया है। स्वदेशी आंदोलन से जुड़े मस्त किसान नेता के रूप में अपनी छवि बनाए हैं। संघ से ही जुड़े एक भाजपा नेता कहते हैं, “बलिया उनकी जन्मभूमि भले हो, कर्मभूमि नहीं रही है। ऐसे में वोट देने-दिलाने वाली जुझारू टीम यहां नहीं है। लिहाजा, जीत के प्रति आश्वस्त होने की बात नहीं कही जा सकती।”

उधर भरत सिंह का आरोप है, “मस्त के कारनामों की फेहरिस्त पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को हमने दे दी है। हमने पार्टी नेतृत्व से पूछा भी है कि आखिर मेरा टिकट क्यों काट दिया गया।” नेतृत्व को चिट्ठी लिखने के अतिरिक्त भरत सिंह ने बलिया भाजपा जिला कार्यालय पर अपने समर्थकों के साथ धरना भी दिया। फिलहाल वे मस्त का टिकट कटवाने के लिए भरपूर जोर लगा रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र नाथ पांडेय का कहना है कि पूरी स्थिति का जायजा ले रहा हूं। कहीं विद्रोह की स्थिति नहीं है। मामला सुलझ जायेगा।

भरत सिंह कहते हैं, “बलिया में पार्टी के हितों और जनता का चौकीदार हूं। किसी गलत आदमी को बलिया से चुनकर संसद की सीढ़ियों तक पहुंचने नहीं दूंगा। वे 2007 में बलिया के संसदीय उप चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। पिछला चुनाव भदोही से जीत गए लेकिन इस बार अपनी हार का अंदाजा है, इसलिए भदोही छोड़कर बलिया आ गए। मैं उन्हें यहां से जीतने नहीं दूंगा।”

बलिया के अलावा कुशीनगर के सांसद राजेश पांडेय का भी टिकट कट गया है। राजेश अपने टिकट के लिए लखनऊ में डेरा डाले हैं। उनकी जगह पर पूर्व विधायक विजय दुबे प्रत्याशी बनाए गए हैं। बांसगांव के भाजपा सांसद और फिर टिकट पाने के लिए लगभग आश्वस्त कमलेश पासवान के खिलाफ बरहज में जमकर विरोध हो रहा है। वहां के कुछ नौजवानों ने दो दिन पहले जमकर विरोध प्रदर्शन किया और नारे लगाए, ‘मोदी-योगी से बैर नहीं, कमलेश तुम्हारी खैर नहीं।’ पूर्वांचल की सबसे महत्वपूर्ण संसदीय सीटों में एक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गोरक्षनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा से जुड़ी गोरखपुर सीट सत्ताधारी भाजपा और विरोधी सपा-बसपा के लिए खास मायने रखती है। योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई इस सीट पर उप चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार से मोदी और योगी दोनों की बहुत भद्द पिटी थी। लेकिन मजेदार तथ्य यह है कि उस उपचुनाव में सपा-बसपा समर्थित सपा के विजेता प्रवीण निषाद अब पाला बदलकर भाजपा के कमलासन पर योगासन कर रहे हैं और उधर सपा के साइकिल सवार सर्वेसर्वा अखिलेश यादव ने बिना देर किए एक अन्य निषाद राम भुआल को पार्टी का उम्मीदवार बना दिया। सपा अध्यक्ष ने निषाद कार्ड चलकर कानपुर से रामकुमार निषाद को भी साइकिल थमा दी है। राम भुआल गोरखपुर संसदीय सीट के तहत कौड़ीराम से बसपा के टिकट पर दो बार विधायक रह चुके हैं।

पूर्वांचल की राजनीति में चर्चित अमरमणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री को महाराजगंज से कांग्रेस ने टिकट दे दिया था। लेकिन जल्दी ही भूल सुधारते हुए कांग्रेस ने पूर्व सांसद हर्षवर्धन सिंह की बेटी और टीवी पत्रकार सुप्रिया श्रीनेत को उम्मीदवार बना दिया है। उधर, संत कबीरनगर के भाजपा सांसद शरद त्रिपाठी और विधायक राकेश बघेल के बीच जिला स्तरीय बैठक में हुए जूतम-पैजार का मामला मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय तक पहुंच गया था। इसलिए सांसद त्रिपाठी को दोबारा टिकट पर शक है। इस संशय के चलते जिले की राजनीति में नए पेच उभर आए हैं। वैसे भी इस मंडल में कई संसदीय टिकट काट दिए गए हैं और नए प्रत्याशी लाइन में हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और स्थानीय छोटे दलों के बीच गठबंधन में सबसे चर्चित ओमप्रकाश राजभर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने के बावजूद विवादों के केंद्र में रहे। पिछले तीन वर्षों के कार्यकाल में राजभर और उनकी पार्टी ने अति पिछड़ों के आरक्षण और सत्ता में उनकी भागीदारी को लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष पर कई बार अनदेखी और वादाखिलाफी के आरोप लगाए। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पर भी राजनैतिक आरोप लगाए। इसीलिए भाजपा नेतृत्व ने उनके साथ सीटों के बंटवारे को लेकर अभी तक कोई निश्चित फैसला नहीं किया है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष के साथ हुए समझौते पर भाजपा की टालमटोल के निहितार्थ यह हैं कि पार्टी इस बार उनकी अहमियत को उतनी तवज्जो देने के मूड में नहीं है। यही नहीं, राजभर के साथ तालमेल बना कर चलने वाली निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के साथ समझौता कर उसे अपने गठबंधन में शामिल कर भजपा ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है। ओमप्रकाश राजभर को काफी समय तक लटकाए रखने के साथ भाजपा ने अब यह स्थिति ला दी है कि राजभर के लिए किसी साथी-सहयोगी (अन्य पिछड़े वर्ग) से सार्थक गठबंधन की गुंजाइश न बची रहे। भाजपा राजभर के संभावित सहयोगियों को उनकी शर्तों के साथ स्वीकार कर अपने गठबंधन में लाने की कोशिश कर रही है। पार्टी राजभर बिरादरी के अन्य नेताओं जैसे अनिल राजभर को बढ़ावा भी दे रही है।

ओमप्रकाश के पुत्र और उ.प्र. लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष अरविंद राजभर का कहना है कि हमने अभी प्रियंका गांधी से भी मुलाकात की है। कांग्रेस हमें आठ सीटें देने पर राजी है। दो-चार दिन हम अमित शाह के जवाब की राह देख रहे हैं, वरना नई रणनीति का ड्राफ्ट तैयार है। फिलहाल, चुनाव संग्राम में महारथी अपने-अपने दांव चल रहे हैं। बीएचयू में समाजशास्‍त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सोहन कहते हैं, “भाजपा के लिए यह चुनाव 2014 जैसा आसान नहीं। सपा-बसपा-रालोद की कठिन चुनौती के अलावा कांग्रेस इस बार हाशिए पर नहीं, जंग के मैदान में है।” यानी पूर्वांचल का मूड बदला हुआ है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement