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संघ के तुक्के में फंसे तीरंदाज

भारतीय तीरंदाजी संघ दोफाड़, वर्ल्ड आर्चरी फेडरेशन ने किया डि-लिस्ट, प्रतिभावान तीरंदाज विश्व प्रतिस्पर्धाओं में मुकाबले से वंचित
प्रदर्शन पर असरः तीरंदाजी संघ में लगातार विवादों से खिलाड़ियों का प्रदर्शन भी हो रहा प्रभावित

यह महज इत्तेफाक नहीं है कि जिस दिन भारतीय तीरंदाजी टीम वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीत कर देश लौटी, उसी दिन वर्ल्ड आर्चरी फेडरेशन ने भारतीय तीरंदाजी संघ को अपने सदस्य देशों से डि-लिस्ट कर दिया। दरअसल, भारतीय तीरंदाजी संघ काफी अरसे से चुनाव और गुटबाजी को लेकर सुर्खियों में है। आलम यह है कि प्रशासनिक पदों पर कब्जे को लेकर दो धड़े हो गए हैं।

इधर, वर्ल्ड आर्चरी फेडरेशन से निलंबन के खतरों के बीच भारतीय तीरंदाजी संघ के दो गुटों ने 9 जून को दिल्ली और चंडीगढ़ में अलग-अलग चुनाव करवाए। इनमें पहले गुट में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को दिल्ली में अध्यक्ष चुना गया, तो बी.वी.पी. राव को चंडीगढ़ में अध्यक्ष चुना गया। सबसे बड़ी बात कि दोनों गुटों का दावा है कि उन्होंने चुनाव में संविधान और नेशनल स्पोर्ट्स कोड का पालन किया है। अब दोनों ही मामले से संबंधित रिपोर्ट दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल करेंगे, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट इसी महीने चुनाव की वैधानिकता को लेकर फैसला देगा। इसमें भी एक पेच यह है कि दिल्ली में हुए चुनाव में साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के सचिव ओंकार सिंह को बतौर आइओए पर्यवेक्षक भेजा गया, जबकि चंडीगढ़ में कोई नहीं गया। दिलचस्प यह भी है कि चुनावी प्रक्रिया को रिकॉर्ड करने के लिए वर्ल्ड आर्चरी का भी प्रतिनिधि था, लेकिन दोनों चुनाव में सरकार की तरफ से कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा गया। दिल्ली कैंप का कहना है कि उनके चुनाव में 23 राज्यों ने भाग लिया, जबकि चंडीगढ़ में सिर्फ आठ राज्यों ने भाग लिया। इस पर राव का कहना है कि संघ को बनाने के लिए उनके पास 33 फीसदी का पर्याप्त कोटा था। उन्होंने कहा कि विरोधी गुट ने हमारे कई लोगों को वोट नहीं देने या चंडीगढ़ नहीं आने के लिए हर तरह के हथकंडे का इस्तेमाल किया। इसके बावजूद हमने साफ-सुथरा चुनाव कराया। सरकार ने दोनों चुनावों के लिए अपना पर्यवेक्षक नहीं भेजा। इससे पता चलता है कि सरकार को मालूम है कि पूरी प्रक्रिया में कहीं-न-कहीं गड़बड़ी है। अब एक तरफ आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एएआइ) में विवाद जारी है, तो दूसरी तरफ इसका असर तीरंदाजों के प्रदर्शन और उनकी तैयारियों पर दिखने लगा है। पहले तो एएआइ की गफलत से अप्रैल में तीरंदाजी टीम वर्ल्डकप ग्रुप-1 में फ्लाइट बुक न हो पाने के कारण भाग नहीं ले पाई। फिर, 6-12 मई तक चीन के शंघाई में वर्ल्डकप स्टेज-2 में प्रदर्शन बेहद फीका रहा। अपने से कम रैंक वाली टीम बांग्लादेश से भी मुंह की खानी पड़ी। वह रिकर्व और कंपाउंड वर्ग में इंडिविजुअल तथा टीम इवेंट में मेडल राउंड के लिए भी जगह नहीं बना पाई। हैरानी यह कि तीरंदाजी टीम बिना हेड कोच वेद कुमार के प्रतियोगिता में उतरी। उनका पासपोर्ट रिन्यू नहीं हो सका और दूसरे कोच कैलाश को ऐन मौके पर हटा दिया गया। विडंबना देखिए कि पिछले दशक में प्रतिभावान तीरंदाजों की आमद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने की संभावना बढ़ी है। लेकिन, पिछले छह साल से एएआइ भंग होने के कारण इसका हाल बेहाल है। मामला पहले दिल्ली हाइकोर्ट पहुंचा और अदालत ने पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी को एएआइ का चुनाव कराने के लिए रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और कुरैशी के मार्गदर्शन में 22 दिसंबर 2018 को सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी बी.वी.पी. राव को एएआइ का अध्यक्ष चुना गया। इसके साथ ही एएआइ के 45 साल के इतिहास में 40 साल तक अध्यक्ष रहे भाजपा नेता विजय कुमार मल्होत्रा के युग का अंत हुआ। वे 1973 से 2012 तक इसके अध्यक्ष रहे थे। उन्हें 17 दिसंबर 2012 को पद छोड़ना पड़ा, जब खेल मंत्रालय ने भारतीय तीरंदाजी संघ की मान्यता रद्द कर दी।

कुरैशी की अगुआई में चुनाव हुए तो लगा कि अब संघ के चुनाव का विवाद हल हो चुका है, लेकिन 1 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एएआइ का चुनाव रद्द कर दिया और चार हफ्ते के भीतर भारतीय तीरंदाजी संघ का नया चुनाव कराने का आदेश दिया। इसके बाद राव ने इस्तीफा दे दिया। फिर 4 मई को सुनील शर्मा को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया। इसके बावजूद भारतीय तीरंदाजी संघ में विवादों का सिलसिला नहीं थमा और कार्यवाहक अध्यक्ष सुनील शर्मा ने 26 मई को चुनाव के लिए नोटिस जारी कर दिया। लेकिन तत्कालीन सचिव महा सिंह ने इस नोटिस को न सिर्फ अवैध, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करार दिया। शर्मा पूर्व अध्यक्ष वी.के. मल्होत्रा गुट के माने जाते हैं। हालांकि, सुनील शर्मा ने आउटलुक से कहा कि मैंने वही किया, जो नियम-कानून में लिखा है। आर्टिकल-17 के मुताबिक, नोटिस जारी अध्यक्ष ही कर सकता है, न कि सचिव।

खेल का तेल निकला

इन विवादों से तीरंदाजी को काफी नुकसान हो रहा है। यह बात सुनील शर्मा भी मानते हैं। उन्होंने बताया, “हम तो यही चाहते हैं कि विवाद जल्द खत्म हो। इस खींचतान से तीरंदाजी भी प्रभावित हो रही है। दिक्कत यह है कि किसी भी बात के लिए कोई-न-कोई कोर्ट में चला जाता है। ऐसे ही मामलों में फंसने से चीजें मुश्किल होती जा रही हैं।”

इसके विपरीत सचिव माया सिंह का आरोप है कि इन विवादों के पीछ मल्होत्रा हैं। जब राव अध्यक्ष चुने गए तो मल्होत्रा ने इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा के साथ मिलकर एएआइ को संस्पेंड करने की कोशिश की। 

इन तमाम घटनाक्रमों के बाद वर्ल्ड आर्चरी ने नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए एएआइ को अपने सदस्य देशों से डि-लिस्ट कर दिया, तो मुंडा और राव गुट इसके लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे। मुंडा की अगुआई वाले गुट सेक्रेटरी जनरल वीरेंद्र सचदेवा ने मौजूदा हालात के लिए राव को जिम्मेदार ठहराया। दूसरी तरफ राव ने आरोप लगाया कि इन तमाम विवादों के पीछे पूर्व एएआइ अध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा हैं। पिछले तीन साल से चुनावों को टालने की वजह से वर्ल्ड आर्चरी भी तंग आ चुका था। मौजूदा दो चुनावों के संकट के पीछे भी मल्होत्रा की योजना है, ताकि वह अपने करीबी वीरेंद्र सचदेवा को निर्विरोध सेक्रेटरी जनरल बनवा सकें।

अर्जुन मुंडा, अध्यक्ष, भारतीय तीरंदाजी संघ (पहला गुट)

मैं दूसरे पक्ष से अपील करता हूं कि तीरंदाजी की बेहतरी के लिए आपसी मतभेदों और राजनीति को दरकिनार कर खेल के विकास के लिए साथ मिलकर काम करें

 

बी.वी.पी. राव, अध्यक्ष, भारतीय तीरंदाजी संघ (दूसरा गुट)

हमने तीरंदाजी संघ का चुनाव साफ-सुथरे ढंग से कराया है। सरकार ने दोनों चुनावों के लिए अपना पर्यवेक्षक नहीं भेजा। इससे पता चलता है कि सरकार को मालूम है कि पूरी प्रक्रिया में कहीं-न-कहीं गड़बड़ी है

तोड़ निकाल पाएंगे अभिनव बिंद्रा

इन तमाम विवादों के बीच वर्ल्ड आर्चरी ने ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट और शूटर अभिनव बिंद्रा को एएआइ में चल रही गड़बड़ियों को दुरुस्त करने का जिम्मा सौंपा है। बर्ल्ड आर्चरी की तरफ से यह फैसला एएआइ को डि-लिस्ट करने के एक दिन बाद आया। बिंद्रा के अलावा आइओए सेक्रेटरी जनरल राजीव मेहता और खेल मंत्रालय का एक प्रतिनिधि चयन समिति में होंगे, जो राष्ट्रीय टीम में खिलाड़ियों के चयन के लिए तब तक काम करेंगे, जब तक कि नई एएआइ टीम अपना कार्यभार नहीं संभाल लेती।

एएआइ को नई टीम यानी गैर-विवादित अध्यक्ष का इंतजार तो पिछले छह साल से है, लेकिन आपसी गुटबाजी, अदालती प्रक्रिया, वर्ल्ड आर्चरी की दखल और सबसे बड़ी बात कि चंद पदाधिकारियों के स्वार्थ की वजह से यह इंतजार और लंबा हो गया है। इसका साफ असर भारतीय तीरंदाजों की तैयारियों और प्रतियोगिताओं के आयोजन पर दिखने लगा है।

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