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महामारी में लिया महाखेल का रूप

ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म पर खिलाड़ी और दर्शक दोनों की संख्या कई गुना बढ़ी, कंपनियों का बिजनेस भी तीन से चार गुना बढ़ा
ईस्पोर्ट्स क्लब के वेलोरेंट कप के लिए 4,500 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया

खेल जगत के इन चंद बड़े आयोजनों पर गौर कीजिए। टोक्यो में 24 जुलाई से शुरू होने वाले दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन ओलंपिक खेल पहली बार एक साल के लिए टाले गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार विंबलडन रद्द किया गया। फुटबॉल के यूरो कप और कोपा अमेरिका टूर्नामेंट की तारीखें आगे बढ़ाई गईं। भारत में आइपीएल का आयोजन टालना पड़ा। इन सबके पीछे एक ही वजह है कोविड-19 महामारी। थोड़ा साहस दिखाते हुए दुनिया के शीर्ष टेनिस खिलाड़ी (पुरुष) नोवाक जोकोविच ने एड्रिया टूर का आयोजन कराया। एहतियात के बावजूद जोकोविच समेत कई खिलाड़ी और उनके परिवार कोरोना पॉजिटव हो गए। इसके बाद तो खेल प्रतियोगिताओं पर विराम ही लग गया। हाल के दिनों में स्थिति में कुछ सुधार के बाद क्रिकेट और फुटबॉल जैसे मैच खेले तो जा रहे हैं, पर खाली स्टेडियम में महामारी ने खिलाड़ियों और दर्शकों को भले मायूस किया हो, लेकिन एक खेल ऐसा भी है जिसे खेलने वाले लॉकडाउन में भी कई गुना बढ़ गए, और वह हैं- ईस्पोर्ट्स। इन्हें दिखाने वाले स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर दर्शकों की संख्या भी डेढ़ गुना से ज्यादा हो गई। ईस्पोर्ट्स टूर्नामेंट आयोजित करने वाली कंपनियों और गेमिंग ऐप बनाने वालों का बिजनेस तीन से चार गुना बढ़ गया। दुनिया भर में ईस्पोर्ट्स कोविड के पहले भी बढ़ रहा था, लेकिन इंडस्ट्री के लोगों का कहना है कि वैसे हम तीन साल में जहां पहुंचते, वहां तीन महीने में पहुंच गए।

वास्तविक खेलों के खिलाड़ियों को मैदान में उतरने का मौका नहीं मिला, तो वे भी आभासी मैदान में उतर आए और फुटबॉल, कार रेसिंग, बास्केटबॉल जैसे वर्चुअल गेम टूर्नामेंट में हिस्सा लेने लगे। ईस्पोर्ट्स टूर्नामेंट ट्विच, यूट्यूब गेमिंग, फेसबुक गेमिंग और मिक्सर जैसे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के साथ ईएसपीएन और फॉक्स स्पोर्ट्स जैसे टीवी चैनलों पर भी दिखाए जा रहे हैं। गेम स्ट्रीमिंग में सबसे बड़ा बाजार अमेजन के ट्विच का है और नीलसन के सुपरडाटा के अनुसार इसके दर्शकों की संख्या में 60 फीसदी बढ़ोतरी हुई।

भारत में भी ट्रेंड अलग नहीं है। जो लोग पहले से ईस्पोर्ट्स खेलते थे, वे ज्यादा खेलने लगे और जो नहीं खेलते थे, वे भी इसमें रुचि दिखाने लगे। देसी प्लेटफॉर्म लोको चलाने वाली पॉकेट एसेज के संस्थापक अनिरुद्ध पंडिता का इरादा अगस्त में स्ट्रीमिंग शुरू करने का था, लेकिन लोगों की बढ़ती रुचि देख पहले ही शुरू कर दिया। स्ट्रीमिंग करना मुश्किल होता है, इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि कम ही लोग आएंगे, लेकिन उम्मीद से 50 गुना ज्यादा लोग आए।

रिसर्च फर्मों के अनुसार, भारत में ऑनलाइन गेमिंग करने वालों की संख्या 30 करोड़ से ज्यादा है। हालांकि, ईस्पोर्ट्स और ऑनलाइन गेमिंग के बारे में लोगों को थोड़ा भ्रम भी है। ईस्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर लोकेश सूजी के अनुसार, ईस्पोर्ट्स, ऑनलाइन गेमिंग का एक हिस्सा है। तीन पत्ती, पोकर रमी, लूडो, फैंटेसी स्पोर्ट्स या कैजुअल वीडियो गेम खेलना ईस्पोर्ट्स नहीं है। ज्यादातर रिपोर्ट में इन सबको शामिल कर लिया जाता है, जिससे ईस्पोर्ट्स की वास्तविक तसवीर नहीं मिलती। वीडियो गेम की संगठित प्रतियोगिता ही ईस्पोर्ट्स है। सूजी के मुताबिक, भारत में इसे खेलने वालों की संख्या पांच करोड़ के आसपास है।

कोविड में ग्रोथ

ब्लिजक्रिग-एक्सपी की मार्केटिंग प्रमुख समीन अहमद के अनुसार, ईस्पोर्ट्स लाखों लोगों के लिए मनोरंजन का भी साधन बन गया है। पहले युवा ही इन्हें खेलते थे, लॉकडाउन के समय सभी उम्र और छोटे-बड़े हर शहर के लोग इन्हें खेलने लगे। वेराइजन और टेनसेंट जैसी बड़ी कंपनियों के प्लेटफॉर्म पर ट्रैफिक 75 फीसदी बढ़ गया। ट्रिनिटी गेमिंग इंडिया के संस्थापक और सीईओ अभिषेक अग्रवाल ने आउटलुक को बताया कि लॉकडाउन से पहले उनके प्लेटफॉर्म पर हर महीने 12-13 करोड़ व्यू होते थे, कोविड के दौरान यह 17-18 करोड़ तक पहुंच गया। रोजाना करीब पांच लाख एक्टिव गेमर वाले पेटीएम फर्स्ट गेम्स के सीओओ सुधांशु गुप्ता के अनुसार, उनका यूजर बेस 200 फीसदी बढ़ गया और गेम खेलने के औसत समय (एंगेजमेंट टाइम) में चार गुना बढ़ोतरी हुई। इन्हीं दिनों इसने एक चैंपियनशिप का आयोजन किया, जिसके लिए 11,000 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया। फाइनल राउंड के खेल की 1,800 घंटे लाइव स्ट्रीमिंग हुई, जिसे 70,000 से अधिक लोगों ने देखा।

वेलोरेंट कप का आयोजन करने वाले द ईस्पोर्ट्स क्लब के संस्थापक ईशान आर्य ने बताया कि पर्सनल कंप्यूटर (पीसी) पर खेले जाने के कारण हमें तीन-चार सौ लोगों के ही आने की उम्मीद थी, जबकि 4,500 खिलाड़ियों ने रजिस्ट्रेशन कराया। एक अन्य प्लेटफॉर्म ईवार गेम्स के संस्थापक पार्थ चड्डा ने बताया कि रोजाना गेम खेलने वालों की संख्या चार गुना बढ़ी और एंगेजमेंट टाइम दोगुना होकर करीब 50 मिनट हो गया है। ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते रुझान के और उदाहरण भी हैं। करीब 60 लाख यूजर वाले स्पोर्ट्स कम्युनिटी प्लेटफॉर्म रूटर के सीईओ और संस्थापक पीयूष कुमार ने बताया कि सेशन (यूजर कितनी बार ऐप खोलता है) की संख्या सात से बढ़कर 12 हो गई है। सक्रिय यूजर की संख्या अप्रैल से जून के दौरान दोगुनी हो गई। ईस्पोर्ट्स और दूसरे मोबाइल गेम टूर्नामेंट करवाने वाले प्लेटफॉर्म इंडियन गेमिंग लीग के सीईओ और संस्थापक यश परियानी के अनुसार, कोविड से पहले प्लेटफॉर्म पर 30 हजार गेमर होते थे, लॉकडाउन में इनकी संख्या 70 फीसदी बढ़ गई।

ईस्पोर्ट्स के साथ फैंटेसी गेम की लोकप्रियता भी काफी बढ़ी है। मायटीम11 के सीईओ विनीत गोदारा के अनुसार, उनके प्लेटफॉर्म पर यूजर की संख्या डेढ़ करोड़ से अधिक है। बढ़ते यूजर को देखते हुए कई गेम समय से पहले लांच किए गए। अप्रैल में ही नॉलेज-आधारित क्विज गेम मायटीम11 क्विज और मायटीम रमी लांच किया गया था। चार करोड़ रजिस्टर्ड यूजर वाले मोबाइल प्रीमियर लीग (एमपीएल) ने भी कई गेम लांच किए। विनजो गेम्स की सह-संस्थापक सौम्या सिंह राठौड़ ने बताया कि लॉकडाउन के समय 10 से ज्यादा गेम शुरू किए गए। परिचितों या रिश्तेदारों के साथ गेम खेलने का अलग फॉर्मेट है, जिसका इस्तेमाल लॉकडाउन के दौरान तीन गुना बढ़ गया। इसी तरह, रेडबुल ने रेडबुल फ्लिक नाम से सीएसःगो टूर्नामेंट का आयोजन कराया। 27 मई को आयोजित इसके सातवें क्वालिफायर में 1756 टीमों के 3512 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया।

वैसे तो 24 साल तक के युवा ही मोबाइल गेमिंग में ज्यादा हैं, लेकिन लॉकडाउन के समय बुजुर्गों ने भी इसे आजमाया। इसका उदाहरण ट्रिनिटी के अभिषेक देते हैं, “पहले मेरे पापा, चाचा और दूसरे रिश्तेदार महीने-दो महीने में मुलाकात करते थे। लॉकडाउन में वे रोजाना ऐप पर एक साथ लूडो खेलने लगे।” पॉकेट एसेज के अनिरुद्ध पंडिता के मुताबिक, 40 साल से अधिक उम्र के लोग या तो हाइपर कैजुअल गेम खेलते हैं या क्विज में हिस्सा लेते हैं। स्ट्रीमिंग युवा पीढ़ी ही ज्यादा करती है।

गेम खेलने वाले किन शहरों से हैं, यह पूछने पर अभिषेक बताते हैं, “महानगरों में लोगों के पास समय कम होता है, रोजाना सात-आठ घंटे गेम खेलने वाले टियर 2 और टियर 3 शहरों में ही हैं। टियर 1 शहरों में भी जो हैं, उनमें अधिकतर पहले छोटे शहरों में रहते थे।” रूटर के पीयूष के अनुसार, उनके ज्यादातर यूजर दिल्ली और मुंबई के हैं, लेकिन हाल में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे हिंदी प्रदेशों और दक्षिण में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से काफी लोग जुड़े हैं।

ईस्पोर्ट्स भारत के लिए नया नहीं है। यहां 2000 के दशक में वर्ल्ड साइबर गेम्स (डब्ल्यूसीजी) जैसी प्रतियोगिताएं होती थीं। तब एटीई और एनएसडी गेमिंग जैसी टीमें और प्रिंस जोहल और रुबेन परेरा जैसे खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाए थे। हाल में दो वर्षों के दौरान इसने जोर पकड़ा है। तीर्थ मेहता ने 2018 के जकार्ता एशियन गेम्स (प्रदर्शनी मैच) में हार्थस्टोन गेम में कांस्य पदक जीता था। उसी टूर्नामेंट में करन मंगनानी क्लैश रॉयल गेम में चौथे स्थान पर रहे थे। पिछले साल नवंबर में बेंगलूरू में ईस्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और सर्विसेज एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एसईपीसी) की तरफ से नेशंस कप आयोजित किया गया था। यह वाणिज्य मंत्रालय के तत्वावधान में हुआ था। ईस्पोर्ट्स को ओलंपिक में शामिल करने पर विचार के लिए इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ने एक दल बनाया है। चीन के हांगझू में 2022 में होने वाले एशियन गेम्स में ईस्पोर्ट्स को पूर्ण खेल के रूप में शामिल किया जाएगा।

पहले ईस्पोर्ट्स मुख्य रूप से पीसी गेम ही होते थे, लेकिन अब अनेक गेम मोबाइल पर खेले जाने लगे हैं। पुरस्कार राशि करोड़ों में पहुंच गई है। एथलीट न सिर्फ प्रतियोगिताएं जीतकर, बल्कि लाइव स्ट्रीमिंग से भी कमाई कर रहे हैं। लोकेश बताते हैं, “पहले मैं ईस्पोर्ट्स की बात करता था, तो लोग हंसते थे, लेकिन जब ओलंपिक काउंसिल ऑफ एशिया और इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ने इसे मान्यता दी, तो अब लोग पूछते हैं कि इसमें कैसे भाग लिया जा सकता है।” पिछले साल दक्षिण कोरिया में आयोजित लीग ऑफ लीजेंड्स चैंपियनशिप के फाइनल को 20 करोड़ लोगों ने लाइव देखा था।

फीफा (फीफा ईवर्ल्ड कप), एनबीए (एनबीए 2के लीग) और फॉर्मूला वन (एफ1 ईस्पोर्ट्स सीरीज) जैसे संगठनों ने अपने पारंपरिक टूर्नामेंट की तर्ज पर ईस्पोर्ट्स का आयोजन शुरू कर दिया है। पारंपरिक खेलों की तरह यहां भी स्टार होते हैं। इंडियन फेडरेशन ऑफ स्पोर्ट्स गेमिंग (अब फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स) और केपीएमजी की एक रिपोर्ट के अनुसार 72 फीसदी लोग मनोरंजन के लिए ऑनलाइन स्पोर्ट्स खेलते हैं। जो पारंपरिक खेलों में भाग नहीं ले पाते, उन्हें भी इसमें आनंद आता है। यह उनके लिए सपना पूरा होने जैसा है। गूगल-केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में भारत का ऑनलाइन गेमिंग बाजार 1.1 अरब डॉलर का होगा और देश में 62.8 करोड़ गेमर होंगे। अभी करीब 275 गेम डेवलपमेंट कंपनियां हैं और 10 वर्षों में इनकी संख्या 11 गुना बढ़ी है। भारत सबसे तेजी से उभरता बाजार है और यहां हर साल करीब 300 करोड़ गेमिंग ऐप डाउनलोड हो रहे हैं।

नए दर्शकों के आने से गेमिंग प्लेटफॉर्म भी नए तरीके सोचने लगे हैं। मसलन, पेटीएम फर्स्ट गेम्स ने दुनिया भर में लोकप्रिय ईस्पोर्ट्स टूर्नामेंट को भारत में लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ समझौता किया है। ईवार गेम्स ने आठ भारतीय भाषाओं में 30 से ज्यादा गेम उपलब्ध कराए हैं। इसने पबजी महायुद्ध नाम से टूर्नामेंट भी शुरू किया है। विनजो गेम्स पर 70 से ज्यादा गेम यूजर्स को दस भाषाओं में मिलते हैं। दर्शकों को जोड़े रखने के लिए एनबीए सोशल मीडिया पर खिलाड़ियों के साथ लाइव पार्टियों का आयोजन कर रहा है।

सचिन सागा क्रिकेट चैंपियनशिप समेत कई गेम लांच करने वाली कंपनी जेटसिंथेसिस के वाइस चेयरमैन और एमडी राजन नवानी ने बताया, “लॉकडाउन में एक रोचक बात यह देखने को मिली कि युवाओं की तुलना में अधिक उम्र के लोग ज्यादा समय तक गेम खेल रहे थे। शायद वर्क फ्रॉम होम के दौरान लोग गेम भी खेल रहे थे, जो ऑफिस में रहने के दौरान वे नहीं कर सकते थे। पहले दिन में 11 से चार बजे तक बहुत कम लोग गेम खेलते थे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उस समय भी काफी यूजर आए।” रूटर के पीयूष ने बताया कि हजारों लोग ऐसे हैं जो परिवार के साथ गेम खेल रहे हैं और उसकी स्ट्रीमिंग भी कर रहे हैं। यहां उनके हजारों फैन बन गए हैं।

ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते दौर में नए तरह के बिजनेस खड़े हो रहे हैं। मसलन, ट्रिनिटी गेमिंग टैलेंट मैनेजमेंट करती है। सीईओ अभिषेक के अनुसार, ईस्पोर्ट्स में भी मेंटर और कोच होते हैं। भारत में ज्यादा कोच नहीं हैं, इसलिए विदेशी कोच रखने पड़ते हैं। स्पोर्ट्स संगठन कमाई के नए तरीके अपना रहे हैं। जैसे, अलग कैमरा एंगल, कमेंट्री या आंकड़ों के साथ विश्लेषण के लिए अलग पैसे ले रहे हैं। फिक्की-ईवाई की रिपोर्ट के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ऐसे कैरेक्टर तैयार किए जा रहे हैं, जो खिलाड़ियों के खेल और उनके व्यवहार को देखते हुए खुद को मॉडिफाई करते रहते हैं। इससे खिलाड़ियों को आभासी दुनिया में भी वास्तविकता का एहसास होता है।

भविष्य कैसा

आने वाले दिनों में खिलाड़ियों और दर्शकों की संख्या निश्चित रूप से कम होगी, लेकिन यह भी तय है कि यह लॉकडाउन से पहले की तुलना में अधिक ही रहेगी। जेटसिंथेसिस के नवानी कहते हैं, “इसे नोटबंदी के उदाहरण से समझिए। जब नोटबंदी हुई तब डिजिटल ट्रांजेक्शन काफी बढ़ गया। बाद में इसमें गिरावट तो आई, फिर भी यह नोटबंदी से पहले की तुलना में दोगुने पर स्थिर हुआ।” अभिषेक के अनुसार, फीफा और एनबीए जैसा बाजार अभी भारत में नहीं बना है। पश्चिमी देशों के बाजार हमसे 10-15 साल आगे हैं। लेकिन सबसे युवा देश और सस्ता डाटा उपलब्ध होने के कारण भारत में ईस्पोर्ट्स ज्यादा तेजी से बढ़ने की संभावना है। पॉकेट एसेज के अनिरुद्ध के अनुसार, “फीफा जैसे गेम शो पश्चिम में लोकप्रिय हैं, जो अक्सर कंसोल पर खेले जाते हैं। इसलिए भारत में इनका चलन कम है। जैसे-जैसे स्मार्टफोन बेहतर होते जाएंगे, यहां भी इन खेलों की लोकप्रियता बढ़ेगी।” कंपनियां भी ज्यादातर खेलों के मोबाइल वर्जन लाने की कोशिश में हैं। भारत में बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए फैनाटिक और वाइटैलिटी जैसी दुनिया की मशहूर टीमें भारतीय प्लेटफॉर्म के साथ जुड़ने लगी हैं।

फिलहाल, भारत में ईस्पोर्ट्स या अन्य ऑनलाइन गेमिंग में कई परेशानियां हैं। बड़े शहरों को छोड़ दें, तो स्ट्रीमिंग के लिए जरूरी हाई स्पीड ब्रॉडबैंड का अभाव है। निवेश भी कम है। ईस्पोर्ट्स क्लब के ईशान कहते हैं, “अमेरिका, यूरोप और कोरिया में बड़े टूर्नामेंट हो रहे हैं, खिलाड़ियों को बड़े ब्रांड का सहयोग मिल रहा है। भारत में भी जब बड़े ब्रांड पैसा लगाएंगे, तभी ईस्पोर्ट्स तेजी से बढ़ेगा।”

पॉकेट एसेज के अनिरुद्ध इसकी तुलना क्रिकेट से करते हैं, “हम अभी उस जमाने में हैं जब सुनील गावस्कर खेला करते थे। सचिन, धोनी और विराट कोहली जैसे खिलाड़ी या तो छोटे हैं या अभी पैदा नहीं हुए। हालांकि ईस्पोर्ट्स में वह समय तीन-चार साल में ही आ जाएगा। जिस तरह क्रिकेट में छोटे शहरों से ही अच्छे खिलाड़ी निकल रहे हैं, उसी तरह ऑनलाइन गेमिंग में भी छोटे शहरों से बड़े टैलेंट निकलेंगे। लेकिन एक आशंका भी है। ट्रिनिटी के अभिषेक के अनुसार, भारत के गेमिंग बाजार में 95 फीसदी प्रभाव चीन का है। लोकप्रिय गेम में ज्यादातर में या तो चाइनीज कंपनियों ने निवेश किया है या उन्हें डेवलप किया है। अगर सरकार इन पर भी रोक लगाती है, तो बहुत से स्टार्टअप बंद हो जाएंगे। फिलहाल, सरकार ने जिन 59 चाइनीज ऐप पर प्रतिबंध लगाया है, भारत का सबसे लोकप्रिय गेम पबजी मोबाइल उससे बाहर है।

 

अंकित पंथ (रेडबुल एथलीट)

(वेनम)

उम्रः 31 वर्ष,

अनुभवः 12 साल,

मुख्य गेमः काउंटर स्ट्राइक,

यूट्यूब सब्सक्राइबरः 57,000

पहली बार पेंसिल खरीदने के नाम पर झूठ बोलकर मम्मी से गेम खेलने के पैसे लिए थे। इस तरह गेमिंग की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे अच्छा खेलने लगा, तो लोग मुझे चैलेंज करने लगे। कैफे मालिक को मुझ पर भरोसा था। वह कहता- तुम खेलो, हार गए तो पैसे मैं दूंगा। अक्सर मैं ही जीतता था। फिर एमेच्योर टीम बनाकर टूर्नामेंट खेलने लगा। जीते हुए पैसे घर ले जाने में डर लगता था। कई बार तो घरवालों के साथ टूर्नामेंट के आयोजकों की बात करवानी पड़ती थी कि जीतने के पैसे मिले हैं। कहीं पैसे मिलते थे, तो कहीं एसेसरीज। मैं वे चीजें सस्ते में बेच देता था, ताकि कंप्यूटर के लिए पैसे जमा कर सकूं। कोविड की वजह से लॉकडाउन के दौरान काफी लोग ऑनलाइन गेमिंग की तरफ आए हैं। मैं जिस प्लेटफॉर्म पर काउंटर स्ट्राइक खेलता हूं, वहां एक दिन एक साथ रिकॉर्ड दो करोड़ गेमर आ गए थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सभी प्लेटफॉर्म पर कुल मिलाकर कितने लोग होंगे। भारत में सबके पास मोबाइल है, इसलिए पबजी गेम ज्यादा चलता है। पीसी के लिए 50 हजार से लेकर तीन लाख तक खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन सिर्फ पीसी खरीदकर आप गेमर नहीं बन सकते। मैं प्रोफेशनल गेमर हूं और इसके लिए बहुत मेहनत चाहिए। आज भी रोजाना 10-11 घंटे खेलता हूं। अभी करोड़ों की इनामी राशि वाले टूर्नामेंट कम हैं। बड़े टूर्नामेंट की संख्या बढ़ेगी, तभी आप इसे करिअर बनाने की सोच सकते हैं। मेरे घरवाले भी इसे करिअर बनाने के खिलाफ थे। अब बड़ी कंपनियां स्पांसर कर रही हैं, तो उन्हें लगने लगा है कि इसे करिअर बनाया जा सकता है।

 

प्रतीक जोगिया

(अल्फा क्लैशर)

उम्रः 21 वर्ष

अनुभवः 5 साल

मुख्य गेमः पबजी मोबाइल (पहले क्लैश रॉयल)

यूट्यूब सब्सक्राइबरः 13.4 लाख

शुरू में गेमिंग को करिअर बनाने का इरादा नहीं था। धीरे-धीरे अच्छा खेलने लगा तो दोस्तों ने वीडियो बनाने की सलाह दी। इससे यूट्यूब की शुरुआत हुई। दो साल पहले लोगों में पबजी का क्रेज बढ़ा, तो लगा कि गेमिंग को करिअर बनाया जा सकता है। पहले घरवाले इसके खिलाफ थे। मैंने पुराने खिलाड़ियों की राय ली तो उन्होंने कहा कि तुम अच्छा खेल रहे हो, आगे जा सकते हो, घरवालों को समझाओ। लॉकडाउन के दौरान मेरे दर्शकों की संख्या 70-80 फीसदी बढ़ी है।

मेरी राय में अगर किसी की घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है, तो एक साथ पैसा न लगाएं। ऐसा न हो कि आपने लाखों रुपये खर्च कर दिए और फिर कोई कमाई न हो। तब निराशा होगी। मैंने भी धीरे-धीरे ही पैसा लगाया। शुरू में किसी टूर्नामेंट में पूरे हफ्ते रोजाना छह-सात घंटे खेलने के बाद दो-तीन हजार रुपये मिलते थे, वह भी जीते तो। माता-पिता शाबाशी तो देते थे, लेकिन जानते थे कि हफ्ते में दो-तीन हजार से कुछ नहीं होने वाला। पबजी आया तो पिता जी ने पीसी खरीदने में मदद की। स्ट्रीमिंग शुरू करने के छह-सात महीने बाद तक मुझे करीब 20 लोग ही देखते थे। तब काफी निराशा होती थी, पर धीरे-धीरे दर्शक बढ़े। सात-आठ महीने पहले हमारी टीम को दक्षिण कोरिया जाकर खेलने का ऑफर मिला था। हम गए और 10,000 डॉलर जीतकर आए। अब माता-पिता को भी भरोसा होने लगा है कि मैं गेमिंग को करिअर बना सकता हूं।

 

ज्यादातर रिपोर्ट में फैंटेसी गेम को भी ईस्पोर्ट्स में शामिल कर लिया जाता है, जिससे सही तसवीर नहीं मिलती। वीडियो गेम की संगठित प्रतियोगिता ही ईस्पोर्ट्स है। भारत में इसके करीब पांच करोड़ खिलाड़ी हैं- लोकेश सूजी, डायरेक्टर, ईस्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया

लॉकडाउन में एक रोचक बात देखने को मिली कि युवाओं की तुलना में अधिक उम्र के लोग ज्यादा गेम खेल रहे थे। शायद वर्क फ्रॉम होम के दौरान लोग गेम भी खेलते थे, जो वे ऑफिस में नहीं कर सकते थे- राजन नवानी, वाइस चेयरमैन और एमडी, जेटसिंथेसिस

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