तमिलनाडु के करूर में तमिलगा वेत्री कझगम पार्टी (टीवीके) की रैली में मची भगदड़ में 40 लोगों की मौत हो गई। भीड़ पार्टी के संस्थापक अभिनेता से नेता बने विजय को देखने के लिए बेकाबू हो गई, जिससे धक्कामुक्की भगदड़ में बदल गई। विजय तमिल सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता हैं और उन्होंने कुछ ही समय पहले तमिलगा वेत्री कझगम नाम से पार्टी बनाई है। 40 लोगों की मौत से विजय और उनकी पार्टी के लिए बड़ा राजनैतिक संकट तो पैदा हुआ ही है, उनकी साख और विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे हैं। इस हादसे से उनके नेतृत्व और भीड़ प्रबंधन पर सवाल उठ रहे हैं। भगदड़ के बाद से तमिलनाडु का राजनैतिक परिदृश्य भी हिला हुआ है। विपक्षी दल तुरंत विजय पर हमलावर हो गए और लापरवाही के आरोप लगने लगे।
टीवीके के लिए यह त्रासदी अस्तित्व के संकट में बदल गई है। आंदोलन शुरू करने के कुछ ही महीनों बाद, नवोदित पार्टी अब खुद को ऐसी तबाही से जूझते हुए पा रही है, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
भगदड़ में परिजन को खोने का गम
विजय का इतने बड़े हादसे के बाद चुप रहना भी उनके समर्थकों को बहुत अखरा। जमीनी स्तर पर लोगों में गहरा गुस्सा और दुख है। पीड़ितों के परिवार जवाब और मदद का इंतजार कर रहे हैं। विजय की सभा में शामिल होने के लिए लोगों को इकट्ठा करने वाले पार्टी कार्यकर्ता खुद सदमे में हैं। एकजुटता दिखाने के बजाय, वे खुद अपने नेता के कठोर रवैये से हतप्रभ थे। हादसे के बाद विजय अस्पताल में घायलों से मिलना तो दूर, मृतकों को भी बिना श्रद्धांजलि दिए चेन्नै रवाना हो गए। उनके इस फैसले से जिला स्तर के नेता और उनके प्रशंसक स्तब्ध थे। वे इस नाजुक क्षण में खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं।
विजय के विरोधियों ने इस प्रकरण को उनकी अनुभवहीनता और राजनैतिक सूझबूझ की कमी के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। टीवीके के लिए, यह त्रासदी अब सिर्फ दुख का क्षण नहीं है बल्कि तमिलनाडु के कठोर राजनैतिक जमीन में उनकी अस्तित्व की परीक्षा भी है। विजय और उनकी पार्टी इससे कैसे निपटती है, यह न केवल उनकी विश्वसनीयता, बल्कि राज्य की राजनीति में उनके भविष्य को भी तय करेगा।
वरिष्ठ पत्रकार प्रियन श्रीनिवासन कहते हैं, ‘‘यह उनके नेतृत्व की पहली और असली परीक्षा थी। विजय इसमें बुरी तरह विफल रहे।’’ अभिनेता से नेता बने विजय की तुलना मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से करते हुए प्रियन ने कहा कि जिस तेजी और निर्णय क्षमता के साथ स्टालिन घटनास्थल पर पहुंचे, यह काबिले तारीफ है। इस कदम के लिए प्रियन स्टालिन की प्रशंसा करते हैं। प्रियन कहते हैं, बावजूद इसके कि ‘‘राजनैतिक दल पहले ही आरोप-प्रत्यारोप के खेल में उतर चुके थे, स्टालिन वहां पहुंचे।’’
भगदड़ के बाद का भयावह नजारा
प्रियन आउटलुक से कहते हैं, ‘‘अन्नाद्रमुक और भाजपा भीड़ प्रबंधन में चूक का आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन मुख्य बात तो यही है कि राजनैतिक दोष चाहे किसी भी बात पर लगाया जाए लेकिन टीवीके के लिए यह दुर्घटना बड़ा झटका है। यह ऐसी आपदा है, जिसने उसकी विश्वसनीयता को हिलाकर रख दिया है। यह और भी बुरा है कि पार्टी इससे पहले कि खुद को ठीक से स्थापित कर पाती, वह इस हादसे में फंस कर रह गई है।’’
विजय और उनकी नई-नवेली पार्टी की विश्वसनीयता में आई गिरावट पीड़ितों के रिश्तेदारों और दोस्तों की प्रतिक्रियाओं में साफ झलकती है। इस घटना के खिलाफ मद्रास हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की जा चुकी है, जिसमें भगदड़ की जांच पूरी होने तक टीवीके की राजनैतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ता सेंथिल कन्नन तर्क देते हैं, ‘‘जीवन का अधिकार, इकट्ठा होने के अधिकार से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’’
विजय के प्रति उन लोगों में ज्यादा रोष है, जो करूर रैली में शामिल होने के लिए लंबी दूरी तय कर वहां पहुंचे थे। बेशक, कुछ लोग अपनी राजनैतिक रुचि के चलते वहां आए थे लेकिन कुछ ऐसे थे, जो सिर्फ अपने पसंदीदा अभिनेता की एक झलक पाने के लिए वहां खड़े थे। इरोड से आई सीता की बात जैसे भीड़ में मौजूद कई लोगों की भावनाओं की अभिव्यक्ति थी। वे कहती हैं, ‘‘हमें त्रासदी में धकेलने के बाद, वे खुद चेन्नै में अपने वातानुकूलित कमरे में सोने चले गए।’’
दो साल का ध्रुव विष्णु भगदड़ का सबसे कम उम्र का शिकार था। इस हादसे में दस नाबालिगों की जान चली गई। मृतकों में ज्यादातर 20-35 आयु वर्ग के युवक-युवतियां थे। इस त्रासदी ने न केवल कई परिवारों को दुख में धकेल दिया, बल्कि तमिलनाडु की पहले से ही तनावपूर्ण राजनैतिक संस्कृति में आंदोलन के जोखिमों पर बुनियादी सवाल भी खड़े कर दिए हैं।
केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी करूर का दौरा किया और भगदड़ क्षेत्र का दौरा किया
कई लोगों ने इस घटना की सीबीआइ जांच की मांग की है। उनका आरोप है कि घटना के पीछे कोई साजिश हो सकती है। पार्टी समन्वयक अरिवझगन ने घोषणा की है कि संगठन केंद्रीय जांच की मांग के लिए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा और करूर में सत्तारूढ़ पार्टी के पदाधिकारियों पर सीधे तौर पर अराजकता फैलाने का आरोप लगाएगा। इसके ठीक उलट, पुलिस ने टीवीके के कई शीर्ष नेताओं, महासचिव एन. आनंद, संयुक्त महासचिव निर्मल कुमार और करूर पश्चिम जिला सचिव वी.पी. मथियाझगन के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या समेत अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया है। पार्टी में नंबर दो माने जाने वाले आनंद के खिलाफ विशेष रूप से कड़ी जांच चल रही है। इस कारण टीवीके का संगठनात्मक ढांचा कानूनी और नैतिक दबाव में है।
अभिनेता से नेता बनने की बात पर प्रियन श्रीनिवासन कहते हैं, ‘‘प्रशंसकों को अपनी राजनैतिक पूंजी में बदलने में सचमुच कामयाब रहने वाले एकमात्र फिल्म स्टार एम.जी. रामचंद्रन ही थे।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘विजय ने अच्छी शुरुआत की थी। उन्होंने अन्नाद्रमुक की राजनैतिक लय हासिल करने के लिए संघर्ष किया और तमिलनाडु की राजनीति में उनके लिए अवसर भी था। मुझे नहीं लगता कि वे इससे पीछे हटेंगे, लेकिन उनका अगला कदम और भी महत्वपूर्ण होगा, जिस पर उनका भविष्य निर्भर करेगा।’’
जानकारों के मुताबिक, फरवरी 2024 में शुरू हुई टीवीके ने खुद को राज्य के राजनैतिक परिदृश्य में गंभीर दावेदार के रूप में स्थापित कर लिया था। विजय ने 13 सितंबर को अपना महत्वाकांक्षी राज्यव्यापी दौरा शुरू किया, जिसका लक्ष्य 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले 20 दिसंबर तक पूरा करना था। उनका यह लक्ष्य पूरा हो पाता, उससे पहले ही 27 सितंबर की भगदड़ ने विजय की मंशा पर पानी फेर दिया। इस त्रासदी ने न केवल जनता के विश्वास को हिला दिया, बल्कि विजय के सावधानीपूर्वक तैयार किए गए राजनैतिक पदार्पण पर भी काली छाया डाल दी। शायद कोशिश द्रमुक के वोटों में कुछ सेंध लगाने और विपक्ष में छिटके वोटों को एकजुट करने की थी, लेकिन अब हालात कठिन हो गए हैं।