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लोगों के मुद्दे और पार्टियों के और

मंदिर और आरक्षण के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश
फिर नए वादेः पलामू की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री रघुवर दास

झारखंड की राजधानी रांची के बीचो-बीच स्थित कांग्रेस भवन के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी। इस भीड़ को देख कर वहां कई वर्षों से चाय की दुकान लगानेवाला युवक रमेश अचानक बोल पड़ता है, “ई सब फालतुए का मेला लगा रहा है। इलेक्शन है, तो गांव में जाकर भोट मांगो ना। यहां काहे अपना समय खराब कर रहे हो। बोलते हैं कि विकास करेंगे, मंदिर बनाएंगे, लूट-खसोट बंद करेंगे और गांव की सरकार बनाएंगे। लगता है ई सब हम लोगों को बुड़बक समझता है। झारखंड का असली प्रॉब्लम किसी को पता नहीं है।” रमेश का यह गुस्सा सभी पार्टियों के प्रति है, क्योंकि उस जैसी झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता के सपने अब जवान हो चुके हैं। यह पहला चुनाव है, जिसमें झारखंड में जन्म लेने वाले मतदाता वोट करेंगे। 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए झारखंड में विधानसभा का यह चौथा चुनाव है, लेकिन इतने कम समय में ही राज्य ने राजनीति के तमाम पाठ पढ़ लिए हैं। इसने अब तक छह मुख्यमंत्री देखे। एक निर्दलीय को सीएम बनते और सबसे कद्दावर नेता माने जाने वाले मुख्यमंत्री को चुनाव हारते देखा।

पहले चरण के मतदान से पूर्व सन्नाटा-सा पसरा है। चाहे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह या झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की सभा हो या ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) सुप्रीमो सुदेश महतो की जनादेश यात्रा, झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) प्रमुख बाबूलाल मरांडी का कार्यक्रम हो या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव की बैठक, लोग आते तो हैं लेकिन ऐसा लगता नहीं कि वे नेताओं की बातों में आ रहे हैं। अमित शाह ने अपनी पहली चुनावी रैली में मंदिर का मुद्दा उठा दिया, लेकिन पलामू के लोग इससे प्रभावित हुए, ऐसा लगता नहीं है। पलामू प्रमंडल के लोगों को मंदिर से अधिक अपनी खेती की चिंता है। युवाओं को बढ़ती बेरोजगारी ने परेशान कर रखा है। भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए जी-जान से जुटे झामुमो के हेमंत सोरेन पांच साल से जारी कथित लूट-खसोट को मुद्दा बनाने में लगे हुए हैं, लेकिन झारखंड के लोग अब अपनी समस्याओं के समाधान के बारे में जानना चाहते हैं। आजसू के सुदेश महतो गांव की सरकार, तो बाबूलाल मरांडी विकास की बात कर रहे हैं। इन मुद्दों से घिरे झारखंड में एक ऐसा मुद्दा भी है, जिससे सभी दल उम्मीद लगाए हैं। यह मुद्दा है आरक्षण का। बिहार में इस मुद्दे ने पिछले चुनाव में बड़ा खेल किया था। यही कारण है कि झारखंड में भी राजनीतिक दलों ने इस जिन्न को बोतल से बाहर निकाल लिया है।

दरअसल, झारखंड में आरक्षण का मुद्दा आदिवासी अस्मिता और जल-जंगल-जमीन के शोर में दबा था। राज्य की 27 प्रतिशत जनजातीय आबादी को आरक्षण का लाभ बिना किसी विवाद के मिल रहा है। लेकिन अब बात पिछड़े वर्ग की है। लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे ने लोगों को बड़े पैमाने पर गोलबंद किया। उसी समय लगने लगा था कि विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा खूब चलेगा। आजसू प्रवक्ता डॉ. देवशरण भगत कहते हैं, “झारखंड में आज तक स्थानीय लोगों को सरकारी नौकरियों से वंचित रखा गया है। हम इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। यह वोट के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता के लिए है।” लेकिन दुमका के एक स्कूल शिक्षक सुमन सिंह का कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता के भंवरजाल से निकले प्रदेश में अब विकास का पहिया घूमना चाहिए।

अलग राज्य बनने के बाद से जिस समस्या ने झारखंड को सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह है नक्सलवाद और भ्रष्टाचार। पहली बार पांच साल तक सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री रघुवर दास भले नक्सलवाद की कमर तोड़ने का दावा करते हैं, लेकिन सच यही है कि झारखंड के जंगलों में पलाश और महुआ की सुगंध की जगह बारूद की गंध बरकरार है। कम से कम दर्जन भर जिलों में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार जंगल पार्टी (नक्सली संगठन) से समर्थन लेते हैं। चार पुलिसकर्मियों समेत आधा दर्जन लोगों की हत्या कर नक्सलियों ने अपनी मंशा साफ कर दी है। पुलिस महकमा उम्मीदवारों से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नहीं जाने का अनुरोध कर रहा है। भाजपा नेता दीपक प्रकाश कहते हैं, नक्सलियों का यह उत्पात बुझते दीये की धधकती लौ है, लेकिन लातेहार के किराना व्यवसायी शत्रुघ्न साहू के अनुसार, पुलिस आज भी जंगलों में जाने से डरती है। वहां नक्सलियों का राज चलता है। लोग आज भी अपनी समस्याएं लेकर उनके पास ही जाते हैं।

शत्रुघ्न की बात रांची से जमशेदपुर जाने वाले नेशनल हाइवे पर तमाड़ में भी सही दिखती है। तमाड़ ऐसी सीट है, जहां मुकाबला हत्या के साजिशकर्ता, उसी हत्या के आरोपी और हत्या के शिकार हुए व्यक्ति के पुत्र के बीच है। तमाड़ के विधायक हुआ करते थे रमेश सिंह मुंडा। वह मंत्री भी थे। नक्सलियों ने 9 जुलाई, 2008 को उनकी हत्या कर दी थी। इसकी साजिश रचने के आरोप में राज्य के एक पूर्व मंत्री राजा पीटर जेल में हैं। हत्या का आरोप दुर्दांत नक्सली कुंदन पाहन पर है। वह आत्मसमर्पण करने के बाद दो साल से जेल में है। रमेश सिंह मुंडा के पुत्र विकास सिंह मुंडा 2014 में पहली बार तमाड़ से विधायक बने। चुने तो वह आजसू के टिकट पर गए थे, लेकिन बाद में बागी हो गए। इस बार झामुमो के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं। उनका मुकाबला राजा पीटर और कुंदन पाहन से है। जिस नक्सली हिंसा का शिकार उनका परिवार बना, उसके बारे में उनकी पार्टी के अध्यक्ष शिबू सोरेन ही कहते हैं कि नक्सली कोई बाहरी नहीं, वे हमारे भाई हैं।

रांची महावीर मंडल के अध्यक्ष जय सिंह यादव कहते हैं, यह चुनाव झारखंड का भविष्य तय करेगा। राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस राज्य को अभी बहुत कुछ झेलना है। विकास, स्थानीय और बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाए जाएं तो बेहतर होगा। दूसरी तरफ वरीय अधिवक्ता विद्युत चौरसिया के अनुसार, लोग स्थानीय और विकास के मुद्दे पर ही वोट करेंगे। इन सबके बीच झामुमो और राजद के साथ तालमेल कर चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस घर का झगड़ा निबटाने में व्यस्त है। पार्टी प्रवक्ता शमशेर आलम कहते हैं, “कांग्रेस अपनी लीक पर चल रही है। हम भाजपा को हटाने के लिए कमर कस चुके हैं। जनता हमारे साथ है।” लेकिन रांची के भाजपा सांसद संजय सेठ का दावा है कि जनता रघुवर दास के पांच साल के कामकाज का पुरस्कार देगी। राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की झाविमो अपने दम पर सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पार्टी नेता राजीव रंजन मिश्र कहते हैं, “हमारे एजेंडे में आरक्षण तो है, लेकिन विकास सबसे ऊपर है। इस बार जनता हमारे साथ है।” दूसरी तरफ रांची के उप महापौर संजीव विजयवर्गीय का दावा है कि झारखंड में भाजपा दोबारा सत्ता में आएगी, क्योंकि रघुवर सरकार ने जनता को विकास का सपना दिखाया है।

बहरहाल, झारखंड के चुनावी परिदृश्य को रांची हाइकोर्ट के अधिवक्ता और चित्रगुप्त समाज के नेता विभूति सहाय बेहद सुलझे ढंग से परिभाषित करते हैं। वह कहते हैं, “यह चुनाव मुद्दों का नहीं, अस्तित्व का है। इसलिए यह सभी दलों के लिए चुनौतीपूर्ण है। नतीजों से साबित होगा कि झारखंड की आगे की राह कैसी होगी।”

 

-- बिहार में आरक्षण के मुद्दे ने पिछले चुनाव में बड़ा खेल किया था। यही कारण है कि झारखंड में भी राजनीतिक दलों ने इस जिन्न को बोतल से बाहर निकाल लिया है

-- जनता से रूबरूः (ऊपर) रांची में पार्टी का चुनाव घोषणापत्र जारी करते कांग्रेस नेता (नीचे) पार्टी नेताओं के साथ हेमंत सोरेन

-- फिर नए वादेः पलामू की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री रघुवर दास

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