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आवरण कथा/ऑनलाइन फ्रॉड: साइबर माफियागीरी

पुलिस और जांच एजेंसियों से हमेशा दो कदम आगे चलने वाले इन अपराधियों का जाल कई राज्यों में फैला, विदेश से भी हो रहे साइबर हमले
साइबर दुनिया के खतरे कई

झारखंड की राजधानी रांची से कोई 250 किलोमीटर दूर महान समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की कर्मभूमि जामताड़ा के करमाटांड की (कु)ख्याति पूरे देश में फैल रही है। मानो अरसे बाद जामताड़ा अपने नाम को सार्थक करने की ओर तेजी से कदम बढ़ा चुका है। आखिर संताली भाषा में ‘जाम’ सांप को और ‘ताड़’ घर को जो कहते हैं। यह डिजिटल डकैतों का गढ़ बनता गया है। करमाटांड और नारायणपुर ब्लॉक का शायद ही कोई घर साइबर अपराध में लिप्त नहीं होगा। बुजुर्ग, महिलाएं, युवा सब इस घरेलू उद्योग में लगे हुए हैं। यहां साइबर ठगों की तलाश में देश के हर राज्य की पुलिस आ चुकी है। जामताड़ा, संताल परगना डिवीजन का जिला है। अब साइबर सांपों का यह गढ़ पड़ोसी जिलों और दूसरे प्रदेशों तक फैल रहा है। पड़ोस में देवघर तो दूसरे राज्यों में भरतपुर, अलवर और मेवात नए केंद्र बनकर उभरे हैं। नेटफ्लिक्स पर वेब सीरीज जामताड़ा की टैग लाइन, ‘सबका नंबर आएगा’ खूब चर्चित रही। यह हकीकत भी है। देश में शायद ही कोई मोबाइल रखने वाला होगा जिससे साइबर ठगों ने संपर्क न किया हो। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की सांसद पत्नी परणीत कौर समेत कई सांसद, विधायक, अधिकारी, व्यापारी, किसान, आम लोग सब शिकार हुए। परणीत को ठगने वाले अताउल अंसारी को करमाटांड से ही पकड़ा गया। देवघर जिला के डीडीसी रहे संजय सिन्हा को भी केवाइसी अपडेट करने का झांसा देकर उनके दो बैंक खातों से 15 बार में 18.47 लाख रुपये निकाले गए।

जामताड़ा का दृश्य

ऑनलाइन ठगी पर बनी वेब सीरिज जामताड़ा का एक दृश्य

झारखंड हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन ने अदालत में कहा था कि मुझे भी ठगने की कोशिश की गई। उनके मुताबिक, फोन आया कि आपने मापतौल से खरीदारी की है, लकी ड्रॉ में टाटा सफारी निकली है। उन्होंने कहा कि गाड़ी नहीं चाहिए, तो ठग बैंक खाते की जानकारी मांगने लगे ताकि उसमें 12 लाख रुपये जमा किए जा सकें। एफआइआर की धमकी के बाद फोन आना बंद हुआ। बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चान भी अछूते नहीं रहे। उनका खाता हैक कर पांच लाख रुपये उड़ाने के मामले में बीते साले रामकुमार मंडल को दिल्ली पुलिस ने पकड़ा था। कौन बनेगा करोड़पति के एक एपिसोड में इस फ्रॉड की कहानी खुद बच्चन ने बताई थी।

रांची के पत्रकार ब्रजेश वर्मा बताते हैं कि 2015 में ही जामताड़ा में कई साइबर अपराधी अपने घरों को हाइटेक बना चुके थे। उनके दरवाजे भी रिमोट से खुलते थे। जामताड़ा में दो दशक से पत्रकारिता कर रहे एक अन्य पत्रकार ने बताया कि यहां के लोग काम करने दूसरे प्रदेशों में जाते हैं। वहां की भाषाएं सीखने के बाद ऑनलाइन ठगी में उसका इस्तेमाल करते हैं। पकड़े गए तो दो-चार साल जेल, फिर छूटकर उसी धंधे में लग गए। जमानत से लेकर अदालती कार्रवाई तक, सबमें उनका सरगना मदद करता है। शुरू में पुलिस ने भी इन अपराधियों को प्रश्रय दिया।

ठगी का पैसा आने लगा तो यहां के गांव-बाजार भी बदलने लगे। एक से एक नए मॉडल की चमचमाती गाड़ियां, क्या नहीं है चौथी-पांचवीं पास लोगों के घरों में। एक-एक व्यक्ति की महीने की कमाई लाखों में है। कहने को यहां के लोग बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) वाले हैं, लेकिन सब आलीशान मकान और लक्जरी गाड़ियों के मालिक हैं। उनके घरों की महिलाएं सोने के गहनों से लदी रहती हैं।

बताते हैं कि करीब एक दशक पहले करमाटांड के सिंदरजोरी गांव का सीताराम मंडल काम की तलाश में मुंबई और बेंगलूरू गया था। मोबाइल रीचार्ज की दुकान में काम सीखा और लौटकर फर्जी तरीके से लोगों का आधे पैसे में रीचार्ज करने लगा। खेल वहीं से शुरू हुआ। उसने और ट्रेनिंग ली और फोन से एटीएम नंबर, सीवीवी, ओटीपी मंगाकर पैसे निकालने लगा। यहां के चार-पांच सौ लोगों को वह ट्रेनिंग दे चुका है। एक बार पकड़ा भी गया, मगर जमानत के बाद फरार हो गया। तेलंगाना के एक रिटायर्ड अधिकारी पी. रायडू के खाते से नौ लाख रुपये उड़ाने के मामले में इसी अगस्त में जामताड़ा साइबर पुलिस और हैदराबाद पुलिस ने उसे सिंदरजोरी से गिरफ्तार किया।

जिलुआ, महटांड, मिरगा, सिकरपोसनी जैसे गांव साइबर अपराधियों के गढ़ हैं। तालाब किनारे, बांस के झुरमुट में चार-छह साइबर अपराधियों की टीम काम करती आसानी से दिख जाएगी। जनधन खाता शुरू हुआ तो ठगी की रफ्तार और तेज हो गई। ये लोगों से भाड़े पर खाता और एटीएम लेकर उन्हीं  में पैसे ट्रांसफर करने लगे। बदले में खाताधारक को दस-बीस प्रतिशत कमीशन देते थे। एटीएम से पैसे निकालने में परेशानी होने लगी तो यूपीआइ के जरिए सेंध लगाने लगे।

ठगी के नए ठिकाने

फ्रॉड कैसे कैसे

जामताड़ा में पुलिस की दबिश बढ़ी तो यहां के शातिर देश के दूसरे हिस्सों में पैर जमाने लगे। सबसे पहले वे पड़ोसी जिला देवघर पहुंचे, जो अब साइबर डकैतों का नया गढ़ बन गया है। वही देवघर जहां बाबा वैद्यनाथ को जलार्पण करने लोग आते हैं। सितंबर के पहले हफ्ते देवघर पुलिस ने एक ही दिन में 18 साइबर अपराधियों को पकड़ा। उनमें मधुपुर थाना क्षेत्र से पकड़े गए छह आरोपी सगे भाई थे। एसपी अश्विनी कुमार की चिंता इस बात को लेकर है कि साइबर फ्रॉड की घटनाएं जामताड़ा से ज्यादा देवघर में दर्ज हो रही हैं। यहां अब रोजाना किसी न किसी राज्य की पुलिस पहुंचती है। डीआइजी सुदर्शन मंडल के मुताबिक राज्‍य का 80 प्रतिशत साइबर फ्रॉड इन्हीं दो जिलों से हो रहा है।

जमशेदपुर व्यवहार न्यायालय ने आठ करोड़ रुपये की ठगी करने वाले पांच साइबर अपराधियों को 31 अगस्त को सजा सुनाई थी। उसी दिन दिल्ली  पुलिस की साइबर सेल ने जामताड़ा से संचालित साइबर ठग गिरोह के सरगना देवघर के अल्ताफ अंसारी और जामताड़ा के गुलाम अंसारी सहित 14 लोगों को गिरफ्तार किया। ‘ऑपरेशन प्रहार-2’ के तहत गाजियाबाद, जामताड़ा, देवघर, गिरिडीह और बिहार के जमुई में एक सप्ताह के अभियान के बाद यह कामयाबी मिली।

देवघर पुलिस ने हाल ही मधुपुर में बबलू दास नाम के शख्स को पकड़ा। उसके पास ऐसा सिम मिला, जिसके जरिए एक करोड़ रुपये की ठगी की जा चुकी थी। लातेहार में एक रेलकर्मी से बैंक अधिकारी बनकर ठगी की गई थी। कॉल ट्रेस करने पर उसकी लोकेशन मधुपुर में मिली। झारखंड पुलिस के अनुसार ऑनलाइन फ्रॉड मामले में 2018 से 2020 तक 1,242 शिकायतें मिलीं। इनमें देवघर की 333 और जामताड़ा की 218 शिकायतें थीं। 2020 में जामताड़ा में साइबर अपराध के 73 और देवघर में 98 मामले दर्ज किए गए। बीते माह देवघर में 39 मामले दर्ज हुए और 271 साइबर अपराधी गिरफ्तार हुए। उनके पास से 570 मोबाइल, 805 सिम कार्ड, 244 एटीएम कार्ड, 183 पासबुक, पांच स्वाइप मशीनें और 22.63 लाख रुपये जब्त किए गए।

झारखंड से बाहर राजस्‍थान का भरतपुर, अलवर और मेवात नए केंद्र बनकर उभरे हैं। हाल में ज्यादातर ऑनलाइन फ्रॉड यहीं से किए गए। यह इलाका राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमा पर स्थित होने के कारण अपराधियों को भागने में आसानी होती है। जब भी एक प्रदेश की पुलिस उनके पीछे पड़ती है, वे भागकर दूसरे प्रदेश में छिप जाते हैं। और पुलिस हाथ मलती रह जाती है। इसी तरह पूर्वोत्तर के राज्य भी साइबर फ्राड के नए केंद्र बनकर उभरे हैं। आखिर वहां एक से दूसरे राज्य में भागना आसान है।

धोखाधड़ी के नए तरीके

बैंक अधिकारी बनकर सिम ब्लॉक होने या केवाइसी अपडेट करने के नाम पर ओटीपी मंगाकर चपत लगाने का तरीका पुराना हो गया है। एक हद तक लोग जागरूक हो गए हैं, इसलिए साइबर अपराधी अब नए तरीके अपना रहे हैं। एक तरीका वीडियो कॉलिंग का है। वीडियो कॉल करने वाली लड़की कपड़े उतारती है और आपको भी ऐसा करने के लिए कहती है। आपने किया तो उसे रिकॉर्ड कर या स्क्रीन शॉट लेकर ब्लैकमेलिंग शुरू हो जाती है। कोरोना के दौर में पढ़ाई के लिए बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन आए तो साइबर ठगों का ये नया निशाना बन गए। वे गेमिंग ऐप के जरिए फ्रॉड कर रहे हैं।

 साइबर मामलों के एक्सपर्ट, रांची के साइबर सेल में डीएसपी सुमित कुमार के अनुसार वीडियो कॉल के माध्यम से बड़ी संख्यां में ठगी हो रही है, मगर बदनामी के डर से लोग सामने नहीं आते। सर्च इंजन कस्टमाइजेशन के जरिए भी फ्रॉड हो रहे हैं। किसी बैंक, एजेंसी, कंपनी या कस्टमर केयर की जानकारी या शिकायत के लिए आप गूगल में फोन नंबर सर्च करते हैं। अपराधी गूगल सर्च में अपना नंबर कस्टमाइज कर देते हैं। उनका नंबर ही आपको पहले दिखता है। आप फोन मिलाते हैं और भरोसे में जानकारी दे देते हैं, फिर आपका खाता खाली हो जाता है।

जामताड़ा का दृश्य

जामताड़ा वेब सीरिज ने ऑनलाइन ठगी के तरीके बताए

सोशल मीडिया के जरिए भी इन दिनों काफी धोखाधड़ी हो रही है। ऐसे अनेक मामलों की छानबीन करने वाले जयपुर पुलिस की साइबर क्राइम ब्रांच के कंसल्टेंट मुकेश चौधरी के अनुसार, फेसबुक ऐसे अपराधों का नया जरिया बन गया है। आम लोगों से लेकर बड़े अफसर तक, सब इसके शिकार हो रहे हैं। ज्यादा टार्गेट उन अफसरों को किया जाता है, जिनका लोगों से अधिक साबका पड़ता है। इनमें कांस्टेबल से लेकर डीआइजी स्तर तक के अफसर शामिल हैं।

मुकेश के अनुसार, धोखाधड़ी करने वाले किसी के फेसबुक एकाउंट से डिस्प्ले फोटो को कॉपी करके नकली प्रोफाइल क्रिएट करते हैं। उस अफसर की फ्रेंड लिस्ट में शामिल लोगों को नए सिरे से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं। लोगों को लगता है कि अधिकारी ही फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहे हैं, इसलिए वे उसे स्वीकार कर लेते हैं। उसके बाद बीमारी या कुछ जरूरी काम का बहाना बनाकर ऑनलाइन पैसे भेजने का आग्रह किया जाता है। जब तक उस अफसर को पता चलता है, अपराधी अनेक लोगों को शिकार बना चुके होते हैं।

फेसबुक एकाउंट में अगर आपने प्राइवेसी सेटिंग नहीं की है तो आपके एकाउंट में पड़ी तस्वीरों और अन्य जानकारियों को कोई भी देख सकता है। अपराधी इसका फायदा उठाते हैं। किसी के एकाउंट में रिश्तेदार की फोटो है, तो अपराधी उस फोटो को मॉर्फ करके किसी नग्न शरीर पर उस फोटो का चेहरा लगा देते हैं। उसके बाद वह फोटो वायरल करने की धमकी देकर पैसे ऐंठते हैं।

पुलिसवालों को साइबर क्राइम के तौर-तरीकों की पूरी जानकारी न होने का भी अपराधी फायदा उठाते हैं। पुलिस और सरकारी अधिकारियों को साइबर अपराधियों से निपटने की ट्रेनिंग देने वाले स्वतंत्र विशेषज्ञ अभिषेक धाभाई ने इसका एक बढ़िया उदाहरण दिया। पुलिस ने एक मामले में अपराधी को गिरफ्तार कर उसका कंप्यूटर भी जब्त कर लिया। अगले दिन अपराधी ने पुलिस से कहा कि कंप्यूटर खोलिए उसमें और सबूत मिल जाएंगे। पुलिस ने कंप्यूटर खोला और सबूत मिल भी गए। लेकिन कोर्ट में वह अपराधी अपनी बात से पलट गया। उसने कहा कि मेरी गिरफ्तारी के बाद कंप्यूटर खोला गया है और उसमें छेड़छाड़ की गई है। फॉरेंसिक जांच में गिरफ्तारी के बाद कंप्यूटर खोले जाने की बात सही निकली और इस आधार पर अपराधी बरी हो गया।

धाभाई के अनुसार भारत में हैकिंग कम, साइबर फ्रॉड के मामले ज्यादा होते हैं। इनमें फोन या मैसेज करके लोगों के एकाउंट की जानकारी मांगी जाती है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में ऐसे कॉल सेंटर पकड़े गए हैं, जहां से अपराध किए जा रहे थे। धाभाई कहते हैं, “नोटबंदी के बाद देश में वॉलेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ी। लॉकडाउन में इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई। लेकिन अनेक लोगों को वॉलेट से होने वाले फ्रॉड की जानकारी नहीं होती है। वे आसानी से धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं।”

रूस-चीन से बढ़ता आतंक

धाभाई के अनुसार, वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो पहले ऑनलाइन फ्रॉड अफ्रीकी देशों से ज्यादा होते थे। अब भी 70 फीसदी फ्रॉड वहीं से होते हैं। लेकिन ये फ्रॉड ऐसे हैं जिनके लिए ज्यादा तकनीक की जरूरत नहीं पड़ती। हाल के दिनों में तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत वाले साइबर अपराध रूस और चीन से ज्यादा होने लगे हैं। धाभाई बताते हैं, “ये अपराधी इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि सरकारें तक इनका इस्तेमाल करती हैं। यह एक तरह का माफिया बनता जा रहा है। अगर इन अपराधियों के खिलाफ कोई केस दर्ज हो भी जाए तो सरकार का संरक्षण मिलने के कारण उन्हें कुछ नहीं होता।” धाभाई को लगता है कि आने वाले दिनों में साइबर माफिया का आतंक और बढ़ने वाला है।

रूस से रैनसमवेयर अटैक बहुत हो रहे हैं। इसमें हैकर किसी कंपनी या सरकारी विभाग का पूरा सिस्टम लॉक कर देते हैं, फिर उसे खोलने के बदले पैसे मांगते हैं। ऐसे हमले रूस के अलावा रोमानिया, उज्बेकिस्तान और इजरायल से भी हो रहे हैं। चीन भी हैकर्स का नया केंद्र बनकर उभरा है। चाइनीज हैकर डेटा की बड़े पैमाने पर हैकिंग कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें बाकायदा कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है कि अमुक कंपनी का डेटा चाहिए। इन्फोसिस और ग्लोबल ब्रांड कंसल्टेंसी फर्म इंटरब्रांड की रिपोर्ट के मुताबिक डेटा चोरी से दुनिया के 100 सबसे बड़े ब्रांड की वैल्यू को 223 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।

पिछले साल भारत में हुए साइबर हमलों में 40 फीसदी रैनसमवेयर के थे। साइबर अपराधियों ने सरकारी स्वास्थ्य सूचना तंत्र और वैक्सीन सप्लाई चेन को भी निशाना बनाया। कोविड-19 वैक्सीन के मामले में सबसे ज्यादा हैकिंग चीन और रूस से ही हुई है। इंडस्ट्री को टार्गेट करके हैकिंग सबसे ज्यादा चीन से होती है। करीब साल भर पहले इन कंपनियों के सिस्टम पर महीने में तीन-चार हमले होते थे। अब इतने हमले तो रोजाना हो रहे हैं।

गोल्डमैन साक्स की साइबर इंटेलिजेंस फर्म साइफार्मा के अनुसार फरवरी में ‘स्टोन पांडा’ नाम के चाइनीज हैकर ग्रुप ने भारत बॉयोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सिस्टम में घुसने की कोशिश की थी। दोनों कंपनियां कोविड-19 की वैक्सीन बना रही हैं। पिछले साल अक्टूबर और नवंबर में भारतीय दवा कंपनियों डॉ. रेड्डीज लैब और ल्यूपिन पर भी साइबर हमले हुए थे। साइबर सिक्योरिटी फर्म रिकॉर्डेड फ्यूचर के मुताबिक ‘रेडी गो’ नाम के चाइनीज ग्रुप ने भारत की बिजली कंपनियों और बंदरगाहों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया है।

इन हमलों को देखते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने फार्मा और बिजली समेत कई प्रमुख सेक्टर की कंपनियों से कहा है कि वे साइबर हमलों की जानकारी हर हफ्ते कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी-इन) को दें। सीईआरटी-इन आइटी मंत्रालय की नोडल बॉडी है। साइबर हमले कितनी बड़ी संख्या में हो रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दर्ज होने वाले हरेक मामले की तुलना में कम से कम 10 हमले ऐसे होते हैं, जिन्हें पहले ही रोक लिया जाता है।

कंसल्टेंसी फर्म पीडब्ल्यूसी की 2020 की ‘ग्लोबल इकोनॉमिक क्राइम एंड फ्रॉड सर्वे’ के अनुसार, कंपनियों के साथ सबसे ज्यादा होने वाले तीन तरह के फ्रॉड में साइबर क्राइम दूसरे नंबर पर है। सर्वे में शामिल 34 फीसदी कंपनियों ने कहा कि वे इसका शिकार हुई हैं। फाइनेंशियल सर्विसेज, हेल्थकेयर, मैन्युफैक्चरिंग, टेक्नोलॉजी और मीडिया कंपनियों के साथ सरकारी विभागों को भी साइबर हमले झेलने पड़े। कंप्यूटर सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर कंपनी मैकफी के अनुसार जो कंपनियां क्लाउड आधारित ईमेल सेवाओं का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें ज्यादा टार्गेट किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार क्लाउड का इस्तेमाल करने वालों को कॉन्फिडेंशियल कंप्यूटिंग तकनीक अपनानी चाहिए, जिसमें डेटा प्रोसेसिंग के वक्त उसकी एनक्रिप्टिंग कर दी जाती है।

हर धोखाधड़ी का मकसद पैसा कमाना होता है। इसलिए फाइनेंशियल सेक्टर की कंपनियां सबसे ज्यादा शिकार होती हैं। अमेरिकी सॉफ्टवेयर कंपनी वीएमवेयर ने पिछले साल एक रिपोर्ट में बताया कि फरवरी से अप्रैल 2020 के दौरान दुनिया भर में फाइनेंशियल सेक्टर पर साइबर अटैक 238 फीसदी बढ़ गया। आइबीएम की एक्स-फोर्स थ्रेट इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में हेल्थकेयर, मैन्युफैक्चरिंग और एनर्जी कंपनियों पर एक साल पहले की तुलना में दोगुने हमले हुए। एक-चौथाई हमले तो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हुए। यहां भी जापान के बाद सबसे ज्यादा साइबर हमले भारत पर किए गए।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार 2019 में देश में साइबर अपराध के 44,546 मामले दर्ज हुए, और 2018 के 27,248 मामलों की तुलना में इसमें 63 फीसदी बढ़ोतरी हुई। 2019 में सबसे ज्यादा 12,020 (27%) मामले कर्नाटक में और 11,416 (25.6%) मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए। झारखंड सीआइडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कुल साइबर फ्रॉड में ओटीपी पूछकर फ्रॉड करना 38 प्रतिशत, ओएलएक्स के जरिए 20 प्रतिशत, फेसबुक से 12 प्रतिशत, स्क्रीन शेयरिंग के जरिए 10 प्रतिशत और वेबसाइट से 15 प्रतिशत है। अब स्क्रीन शेयरिंग का रेशियो बढ़ रहा है।

साइबर अपराधियों के लगातार बदलते तरीके के कारण उन्हें पूरी तरह रोक पाना मुश्किल है। धाभाई के अनुसार, सरकार या पुलिस इनकी तरह तेजी से काम नहीं करती है। वे कहते हैं, “कानून बनाना भी मुश्किल है। आपने एक तरीका रोकने के लिए कानून बनाया तो वे दूसरा तरीका निकाल लेंगे। जब तक आप समझें या कोई कदम उठाएं, तब तक वे अपराध करके निकल चुके होते हैं। अनेक देशों की सरकारें इस पर अंकुश लगाने के लिए काम कर रही हैं, लेकिन वे अब भी बहुत पीछे हैं।” यही कारण है कि साइबर अपराध के मामले दर्ज तो होते हैं, लेकिन साबित नहीं हो पाने के कारण सजा का अनुपात बहुत कम है।

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल का कहना है कि अपराध के नए-नए तरीकों को देखते हुए साइबर सुरक्षा से निपटने के लिए अलग कानून की जरूरत है। 2008 के आइटी एक्ट में संशोधन कर साइबर अपराध को गैर-जमानती अपराध बनाना चाहिए। साइबर अपराध के लिए अलग न्यायालय बनाना जरूरी है। अभी एक फीसदी से भी कम मामलों में सजा हो पाती है। पुलिस को भी प्रशिक्षण देने की जरूरत है। अभी तो पुलिस एफआइआर दर्ज करने से भी बचती है।

वैसे, इन साइबर अपराधियों का हौसला बढ़ाने वाले भी कम नहीं हैं। इसी साल जनवरी में झारखंड के सारठ से भाजपा विधायक और रघुवर सरकार में कृषि मंत्री रहे रणधीर सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे साइबर अपराधियों के पक्ष में बोलते दिखे। वीडियो में वे कह रहे हैं, “हमारे यहां का आदमी बिहार-यूपी के आदमी को मूर्ख बना लेता है तो उसे परेशान क्यों करते हैं। हमारी जनता बिना पढ़े-लिखे इतनी होशियार है, तो दूसरे राज्यों के आदमी को होशियार बनाइए।”

साइबर अपराधियों का हनी ट्रैप

हनी ट्रैप

आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के एक शख्स के ह्वाट्सऐप पर मैसेज आया। मैसेज भेजने वाले की डीपी में एक खूबसूरत महिला की तस्वीर लगी थी। उसने खुद को किसी डेटिंग साइट की प्रतिनिधि बताया। तथाकथित महिला ने उस शख्स को 2,050 रुपये में एक महीने की मेंबरशिप का ऑफर दिया। कहा कि उसके पास कुछ महिलाओं के प्रोफाइल भेजे जाएंगे। वह जिसे पसंद करेगा, उसके साथ डेटिंग कर सकता है। वह शख्स राजी हो गया, तो उसे एक मोबाइल नंबर भेजा गया। उस नंबर पर ‘अपर्णा जेना’ के नाम से गूगल पे, फोन पे या पेटीएम के जरिए 1,100 रुपये ट्रांसफर करने को कहा गया। शख्स ने पैसे भेज दिए। तब उससे नाम, उम्र, पेशा आदि जानकारियां मांगी गईं। उसने वह भी भेज दिया, तो कॉन्फ्रेंस कॉल में किसी तथाकथित हाइ-प्रोफाइल महिला से उसकी बात कराई गई। कहा गया कि वह चाहे तो शारीरिक संबंध भी बना सकता है। उसके बाद फिर कई बार रुपये मांगे गए, जो उसने भेज दिए। पांच बार में 63,550 रुपये भेजने के बाद दूसरी तरफ से मैसेज या कॉल आना बंद हो गया, तब उस शख्स को एहसास हुआ कि वह ठगी का शिकार हुआ है।

ऐसे ही एक मामले में रांची के अरगोड़ा के 42 साल के एक व्यक्ति की नग्न तस्वीर उसके परिवार के लोगों को भेजने के नाम पर पहले छोटी रकम मांगी गई। फिर यूट्यूब पर अपलोड करने और पुलिस को शिकायत के नाम पर वसूली हुई। डेढ़ लाख रुपये गंवाने के बाद वह व्यक्ति साइबर पुलिस की शरण में पहुंचा।

डिजिटल ने बढ़ाया जोखिम

डिजिटल जोखिम

एसबीआइ, पीएनबी, आइसीआइसीआइ, एक्सिस और एचडीएफसी नाम पढ़ते ही सबसे सुरक्षित और बड़े बैंक का भरोसा जगता है। लेकिन इनके ग्राहक भी साइबर अपराधियों के निशाने पर हैं। तत्कालीन वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने 23 मार्च 2021 को संसद में बताया था, “2018-19 के मुकाबले 2019-20 में एटीएम, डेबिट, क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग के फ्रॉड में 60 फीसदी (244 करोड़ रुपये की चपत ग्राहक को लगी) बढ़ोतरी हुई।” देश के 12 लाख से ज्यादा लोगों को यह भी नहीं पता कि उनकी जरूरी जानकारियां डार्कनेट पर पहुंच गई हैं। यानी साइबर अपराधी उनका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। हकीकत तो यही है कि सरकार, आरबीआइ, बैंकों या सुरक्षा एजेंसियों के पास साइबर सुरक्षा का कोई फूल-प्रूफ सिस्टम नहीं है।

अपराधी रोज नए तरीके ईजाद कर रहे हैं। पंजाब ऐंड सिंध बैंक के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर जी.एस. बिंद्रा कहते हैं, “अब वे सिर्फ फोन करके डिटेल नहीं मागते। वे आपके रिश्तेदार, सोशल मीडिया एकाउंट, मोबाइल ऐप, एसएमएस का इस्तेमाल कर आसानी से लोगों को शिकार बना रहे हैं।” अलीगढ़ के अनिल अग्रवाल को फोन पर कहा गया, “हम आपके बैंक से बोल रहे हैं। आपकी केवाईसी दोबारा अपडेट करनी है। अपने आधार, पैन कार्ड आदि की डिटेल दे दीजिए।” उन्होंने जैसे ही ये जानकारियां दीं, उनके खाते से 14 हजार रुपये निकल गए।

ये अपराधी सीधे बैंकों को भी चूना लगा रहे हैं। राजस्थान के कोटा के एसपी विकास पाठक के अनुसार, “अपराधी एटीएम जाकर एकाउंट से पैसे निकालने का बटन दबाते थे। जैसे ही मशीन पैसा निकालने लगती, वे स्विच ऑफ कर देते थे। इसके बाद एटीएम के ट्रे में फंसे नोट निकाल लेते थे।” एटीएम का स्विच ऑफ होने से बैंक को लगता था कि पैसा निकला नहीं और गलत तरीके से खाताधारक के एकाउंट से पैसा कट गया। ऐसे में बैंक खाताधारक के अकाउंट में पैसा वापस जमा कर देता था। अपराधियों ने इस तरीके से 259 ट्रांजैक्शन करके 25 लाख रुपये की चपत बैंकों को लगाई।

धोखाधड़ी के शिकार

साइबर स्पेस फाउंडेशन और ऑटोबोट इंफोसेक की संयुक्त रिपोर्ट में एक और तरीका बताया गया है। बैंकों के नाम पर ग्राहकों को संदेश भेजा जाता है कि वे इनकम टैक्स रिफंड ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें एक फॉर्म ऑनलाइन भरना होगा, जिसे वे एक थर्ड पार्टी के जरिए डाउनलोड कर सकते हैं। उसे डाउनलोड करते ही ग्राहक के सामने आयकर विभाग की वेबसाइट जैसा पेज खुल जाता है। यूजर उसे सही मानते हुए पैन, आधार, क्रेडिट-डेबिट कार्ड की सारी डिटेल दे देता है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसी गतिविधियां अमेरिका और फ्रांस से की जा रही हैं।

साइबर अपराधी दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर आपको चूना लगा सकते हैं। गाजियाबाद के नीरज पांडे के फोन में मैसेज आया कि उन्होंने 1000 डॉलर की खरीदारी की है। आनन-फानन उन्होंने कॉल सेंटर पर फोन किया तो पता चला कि खरीदारी अमेरिका से हुई है। अपना पैसा लेने के लिए उन्हें बैंक को यह साबित करना पड़ा कि खरीदारी के समय वे भारत में थे। निजी क्षेत्र के एक बैंक में काम करने वाले वरिष्ठ बैंकर के अनुसार अपराधी मोबाइल ऐप इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों को बड़े पैमाने पर टार्गेट कर रहे हैं। खास तौर से पेमेंट ऐप पर जोखिम बढ़ा है।

बीमा कंपनियों के नाम पर भी धोखाधड़ी की जा रही है। ऐसा ही एक वाकया गुरुग्राम की स्मिता त्रिपाठी के साथ हुआ। उनके पास फोन आया कि आपकी 2011 की एक बीमा पॉलिसी है, जिसे आपने रिन्यू नहीं कराया है। आप पेमेंट कर दें तो पॉलिसी की एश्योर्ड मनी मिल जाएगी। स्मिता समझ गईं कि उनके साथ फ्रॉड हो रहा है, क्योंकि उनकी ऐसी कोई पॉलिसी थी ही नहीं। फिर भी उन्होंने पूछा कि पैसे लेने के लिए क्या करना पड़ेगा। अपराधी ने उनसे बैंक खाते की डिटेल मांगी और बोला कि इसके बाद एक कोड आएगा, फिर पैसा ट्रांसफर हो जाएगा। लेकिन स्मिता ने ऐसा किया नहीं और बच गईं।

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं, यह साइबर अपराध का स्वर्णिम दौर है। पिछले साल साइबर हमले से दुनिया को छह लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ, जो 2021 में आठ लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचने की आशंका है। सबसे बड़ी बात यह है कि साइबर अपराध की इतनी बड़ी सूनामी तैयार हो गई, लेकिन उससे निपटने के लिए अभी तक कोई कारगर तंत्र नहीं बन सका।

एक एथिकल हैकर के अनुसार, इस समय सुरक्षा एजेंसियों और अपराधियों के बीच रेस चल रही है। दोनों एक-दूसरे को पछाड़ने में लगे हैं। लेकिन इस लड़ाई में आम लोगों की मेहनत की कमाई लुट रही है। इससे बचने का उपाय पूछने पर दुग्गल कहते हैं, “एक ही तरीका है, खुद बच कर रहिए। यह मत सोचिए कि कोई आपको बचा लेगा, क्योंकि सुरक्षा तंत्र बहुत कमजोर और नाकाफी है।” दुग्गल के अनुसार डिजिटल इंडिया अभियान में अगर सुरक्षा तंत्र की मजबूती पर ज्यादा ध्यान दिया गया होता, तो हम बेहतर स्थिति में होते। बार-बार यह कहने से कुछ नहीं होगा कि हम सुरक्षित हैं। ऐसे दावों से तो अपराधियों का हौसला बढ़ेगा।

फ्रॉड में फेसबुक का इस्तेमाल

फेसबुक का इस्तेमाल

नकली प्रोफाइल क्रिएट करकेः अपराधी किसी अधिकारी के फेसबुक एकाउंट से डिस्प्ले फोटोकॉपी करके नकली प्रोफाइल क्रिएट करते हैं और फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं। उसके बाद बीमारी या जरूरी काम का बहाना बनाकर ऑनलाइन पैसे भेजने को कहते हैं

रिश्तेदारों की फोटो मॉर्फ करकेः किसी के एकाउंट में मां, बहन, पत्नी या किसी रिश्तेदार की फोटो है, तो अपराधी उस फोटो को मॉर्फ करके किसी नग्न शरीर पर उसका चेहरा लगा देते हैं। उसके बाद फोटो वायरल करने की धमकी देकर पैसे ऐंठते हैं

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