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स्मृति: कथक भी जिनका शिष्य बना

पंडित बिरजू महाराज नृत्य जगत के सूर्य थे
बिरजू महाराज

पंडित बिरजू महाराज नृत्य जगत के सूर्य थे। सोमवार 17 जनवरी की भोर में उनका निधन सूर्य के अस्त होने जैसा है। किसी भी कलाकार के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि यह होती है कि वह अपनी कला का लीजेंड बन जाए। कथक नृत्य के क्षेत्र में बिरजू महाराज का स्‍थान ऐसा ही था। नृत्य की दुनिया में वे अपने आप में एक संस्‍था थे, जिसमें कथक का सब कुछ भरा था। महाराज जी तीव्र बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा की शख्सियत थे। नृत्य और संगीत में उनकी दृष्टि बहुत व्यापक थी। जब वे नृत्य में आए तो सबसे बड़ा काम उन्होंने ताल और लय को तराशने में किया। लय के बादशाह या उस्ताद कहे जाने वाले बिरजू महाराज ने सृजनात्मक स्तर पर विविध लयात्मक गतियों का संचार किया। वे कथक के लिए बड़ी देन थे। नृत्य और उससे जुड़े साहित्य का क्या महत्व है, इसे महाराज ने बड़ी गहराई से समझा था। वे खुद एक अच्छे रचनाकार और कवि थे।

नृत्य में उनके प्रवेश के पहले पुरुष प्रधान कथक एकल (सोलो) नृत्य पर टिका था और उसमें एक से बढ़कर कई दिग्गज नर्तक हुए। लेकिन कथक शैली में पौराणिक और आधुनिक विषयों को लेकर नृत्य सरंचनाओं-बैले, नृत्य नाटिकाओं-को पारंपरिक कथक के दायरे में निर्मित करने में जो सृजनशील और सार्थक प्रयोग महाराज जी ने किए, उससे नृत्य के क्षेत्र में नया आयाम कायम हुआ। यह योगदान उन्हें शिखर पर पहुंचा देता है।

पंडित बिरजू महाराज नृत्य के शिखर पुरुष तो थे ही, अपनी सादगी और बड़प्पन के कारण कई शिखर कलाकारों से ऊपर थे। उन जैसे अनूठे और विरले नृत्यकार ने कथक को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। वे दूरदर्शिता और थिरकते पांव से उपजते बोलों में जो रंग भर देते थे, वह देखकर दर्शक वशीभूत हो जाते थे।

कथक शैली में लखनऊ घराने के स्तंभ बिरजू महाराज घर में कथक के माहौल में पले बढ़े। उनके पिता पंडित अच्छन महाराज, चाचा पंडित लच्छू महाराज और पंडित शंभू महाराज अपने समय के प्रख्यात कथक नृत्यकार थे। पिता अच्छन महाराज की कम आयु में मृत्यु हो गई। उस समय बिरजू महाराज छोटी उम्र के अबोध बालक थे लेकिन नृत्य उनकी रगों में समाया हुआ था। सात साल की उम्र में ही उसकी मनोहारी झलक उनकी नृत्य प्रस्तुति में दिखने लगी थी। चौमुखी प्रतिभा के धनी महाराज को नृत्य के अलावा गायन और वादन में खासी महारत हासिल थी। पखावज, तबला, नाल से लेकर अनेक वाद्यों को बजाने में उनका हुनर देखने लायक था।

लखनऊ शैली में नजाकत भरी अदाओं में भाव-व्यंजनाओं में तिलस्म रंग भरने में खासकर शंभू महाराज ने नजरों से विविध भावों को अभिव्यक्त करने का जो अंदाज दिया, वह अपने में बेजोड़ था। लेकिन बिरजू महाराज ने नृत्य और अभिनय-भाव में खासकर विविध प्रकार की तिहाइयां, गतभाव में घूंघट की मोर, गज की चाल आदि की गतों में जो नजाकत भरा रंग घोला, उसमें उनकी गहरी सृजनशील और उपजभरी सूझ दिखती थी। रचनात्मक स्तर पर उनके द्वारा बोल, छंदों और बंदिशों की रचना और उनकी प्रस्तुति में कथक न सिर्फ नई लीक पर स्‍थापित हुआ, बल्कि एक अलग राह पर उसका विस्तार हुआ। बौद्धिक स्तर पर नृत्य में उनके इन सार्थक प्रयोगों ने उन्हें नृत्य की ऐसी ऊंचाई पर पहुंचा दिया, जहां पहुंचना आसान नहीं होता।

छोटी-छोटी महफिलों से लेकर बड़े नृत्य समारोहों में एक-सी छाप छोड़ने वाले बिरजू महाराज 83 साल की उम्र तक नृत्य की दुनिया में ध्रुवतारे की तरह चमकते रहे। उनके चाहने वाले देश-विदेश में खूब थे। वे जहां भी जाते, उनके नृत्य को देखने वालों का सैलाब उमड़ पड़ता था। दरअसल, उनका नृत्य स्वांतः सुखाय हुआ करता था और वही नृत्य-प्रदर्शन करते थे, जिसमें उन्हें आनंद मिलता था। कम कलाकार इस सरलता और सच्चाई को जीने वाले होते हैं। यह सरलता और सच्चाई उनके स्वभाव में ऐसी रची-बसी थी कि उन्होंने अपनी सफलता के शिखर के बाद भी खोया नहीं, यही उनका बड़प्पन था।

बिरजू महाराज बहुत सादगी में रहकर जिए। वे ऊपरी चमक-दमक से दूर रहते थे। गुरु के रूप में वे बहुत उदार थे। वे पहली निगाह में ही पहचान लेते थे कि किस शिष्य में नृत्य सीखने की कितनी क्षमता और लगन है। जिसमें सीखने की चाह थी, उसने महाराज जी से भरपूर पाया। उनके सभी शिष्यों को यही एहसास होता था कि वे सिर्फ मेरे ही गुरु हैं!

उन्होंने फिल्म कोरियोग्राफी में भी अनोखा काम किया। सत्यजित राय की शतरंज के खिलाड़ी के अलावा देवदास और बाजीराव मस्तानी में उनके काम को खूब सराहा गया। बाजीराव मस्तानी के लिए उन्हें फिल्म फेयर का अवार्ड भी मिला। उन्होंने देवदास में 'काहे छेड़े मोहे' और बाजी राव मस्तानी में 'मोहे रंग दो लाल' गीत भी गाया।

नृत्य सिखाने, और नृत्य सरंचना आदि में व्यस्त रहते हुए भी उन्होंने अपना नृत्य-प्रदर्शन जारी रखा। ढलती उम्र में भी जब वे नृत्य में उतरते थे तो उनके कलात्मक और सृजनशील आयामों को देखकर दर्शक विस्मित से हो जाते थे। गौरतलब है कि इस विरले प्रतिभावान कलाकार को 24 साल की आयुु में ही संगीत नाटक अकादमी का अवार्ड मिल गया। उन्हें प्राप्त पद्म-वि‌भू‌षण से लेकर ढेर सारे सम्मानों और उपाधियों की एक लंबी सूची है।

बिरजू महाराज के निधन से नृत्य कला के एक युग का अंत हो गया। ‌िथरकती लय का स्पंदन और माधुर्य, जो उनके नृत्य में टपकता था, उसका आस्वादन तो सीडी-वि‌ि‌डयो से लिया जा सकता है, लेकिन जब तक जनमानस में वे जीवित हैं, पंडित बिरजू महाराज का जादुई नृत्य रसिकों को रोमांचित करता रहेगा। उनका नृत्य हमेशा अमर रहेगा और जो कीर्तिमान उन्होंने स्‍थापित किए उसे उनके बेटे जय किशन महाराज, दीपक महाराज और शिष्य सभांल कर रखेंगे, यही कामना और लालसा है।

(लेखक संगीत, नृत्य और कला के प्रसिद्ध समीक्षक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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