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मारादोना विदा हुनर अजर-अमर

स्मृति/डिएगो मारादोना 1960-2020
डिएगो मारादोना

यकीनन खेल जगत के इतिहास में जेसी ओवन्स और ध्यानचंद से लेकर मार्क स्पिट्ज, पेले और डोनाल्ड ब्रैडमैन जैसे दिग्गजों की कमी नहीं, जिन्हें सर्वकालीन महान खिलाड़ियों की फेहरिस्त में हमेशा शुमार किया जाएगा, लेकिन ऐसे बिरले ही हैं जो अपने जीवन काल में ही अपनी असाधारण प्रतिभा के कारण एक किंवदंती बन जाते हैं। अर्जेंटीना के डिएगो मारादोना, जिनका 60 वर्ष की आयु में 25 नवंबर को निधन हो गया, अपनी असामयिक मृत्यु के वर्षों पूर्व ही एक ‘लिविंग लीजेंड’ बन चुके थे, न सिर्फ फुटबाल की दुनिया में, बल्कि उससे बाहर भी। 1998 में राम गोपाल वर्मा की बहुचर्चित फिल्म सत्या में मुंबई के गैंगस्टर भीकू म्हात्रे के किरदार में वाहवाही लूटने वाले मनोज बाजपेयी के अभिनय से प्रभावित होकर फिल्मकार महेश भट्ट ने पूछा, “यू हैव डन अ मारादोना, हाउ विल यू गो बियॉन्ड दैट? (आपने इस फिल्म में मारादोना जैसा काम किया है, उससे आगे कैसे जाएंगे?)” बॉलीवुड निर्देशक ने बाजपेयी के अभिनय की तुलना मारादोना के 1986 में मेक्सिको में खेले गए वर्ल्ड कप फुटबाल चैंपियनशिप से की, जिसमें उन्होंने अपनी कप्तानी में अर्जेंटीना को विजय दिलवाई। मारादोना अपने करियर में दोबारा खिलाड़ी, कप्तान या कोच के रूप में वैसा प्रदर्शन कर नहीं पाए, लेकिन उस टूर्नामेंट में उनके प्रदर्शन के बाद ही उन्हें सर्वकालीन खिलाड़ियों की श्रेणी में रखा जाने लगा। उस दौरान भी सिर्फ एक मैच में चार मिनट के फासले पर उनके दागे हुए दो गोल ने उन्हें फुटबॉल खिलाड़ियों में सर्वश्रेष्ठ बना दिया। वह अर्जेंटीना और इंग्लैंड के बीच एज्टेका में खेला गया क्वार्टर-फाइनल का मैच था, जिसने मारादोना की तकदीर बदली।

विश्व कप से इतर, इस मैच के बीच दोनों देशों का एक तल्ख इतिहास था। 1982 में अटलांटिक महासागर के फॉकलैंड द्वीप समूहों पर ब्रिटिश आधिपत्य के सवाल पर दोनों देशों के बीच युद्ध के घाव अभी भरे न थे। लेकिन, मारादोना सहित सभी खिलाड़ियों के जेहन में सिर्फ एक लक्ष्य था, सेमी-फाइनल में पहुंचना। इंग्लैंड ने उस समय तक चैंपियनशिप में बेहतरीन प्रदर्शन किया था। स्ट्राइकर गैरी लिनेकर और गोलकीपर पीटर शिल्टन जैसे खिलाड़ी टॉप फॉर्म में थे। उनके हौसले बुलंद थे। अर्जेंटीना के लिए उन्हें शिकस्त देना आसन न था, लेकिन उनके पास उनका सबसे बड़ा हथियार, तुरुप का इक्का, मारादोना था, जिसने मैदान पर अपने कौशल से दुनिया भर के फुटबाल प्रेमियों का मन मोह लिया था। मैच के 51वें मिनट में एक नाटकीय घटना हुई, जब मारादोना के हेडर करने के प्रयास के दौरान गेंद उनके बाएं हाथ को छूकर पीटर शिल्टन को छकाती हुई गोलपोस्ट में चली गई। इंग्लैंड के खिलाड़ियों ने ‘हैंडबॉल’ की अपील की लेकिन रेफरी ने अर्जेंटीना के नाम वह गोल कर दिया।

लेकिन, उसके महज चार मिनट बाद जो हुआ, वह और भी नाटकीय था। मारादोना ने इंग्लैंड के सभी खिलाड़ियों को चकमा देकर अपने बलबूते दूसरा गोल दाग कर अर्जेंटीना के सेमी-फाइनल में प्रवेश का रास्ता प्रशस्त किया। जब मारादोना को पहले गोल के कारण विवादों का सामना करना पड़ा और उन पर धोखेबाजी का आरोप लगा, तो उन्होंने इसके पीछे ‘हैंड ऑफ गॉड’ (ईश्वरीय हाथ) होने की बात कही, लेकिन दूसरे गोल में सिर्फ और सिर्फ उनका हाथ था। यह ऐसा विलक्षण प्रदर्शन था, जिसने उनके विरोधियों को भी उनका मुरीद बना दिया। वह मैच खेल रहे इंग्लैंड के गैरी लिनेकर ने भी उसे अब तक का सबसे अच्छा गोल करार दिया। वर्ष 2002 में फीफा.कॉम के एक पोल में भी इसे ‘सदी का गोल’ चुना गया।     

उनका वह प्रदर्शन हैरान करने वाला नहीं था। फुटबॉल में उनकी असाधारण प्रतिभा के लक्षण बचपन से ही उजागर होने लगे थे। 30 अक्टूबर 1960 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स प्रांत में जन्मे मारादोना 19 वर्ष की आयु तक 100 गोल दाग चुके थे और 25 वर्ष की आयु में अपने देश की टीम के कप्तान बन गए थे। 

मैदान में उनकी चीते जैसी फुर्ती विरोधी खिलाड़ियों को हतप्रभ कर देती थी। उनका गेंद पर नियंत्रण, पूर्वानुमान और ड्रिब्लिंग लाजवाब थी। मैदान पर उनकी उपस्थिति ही उनके साथी खिलाड़ियों में जोश भरने और प्रतिद्वंद्वियों के हौसले पस्त करने के लिए काफी थी, चाहे वह देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मैच खेल रहे हों या कोई क्लब स्तर का प्रदर्शनी मैच। उन्होंने अपनी बदौलत इटली की नेपोली जैसी औसत दर्जे की टीम को शीर्ष पर पहुंचाया। 1986 विश्व कप के समय उनकी प्रतिभा शिखर पर थी। डेढ़ दशक में उन्होंने 91 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 34 गोल किए।

1986 के बाद वे 1990 के विश्व कप में अर्जेंटीना को फिर फाइनल में ले जाने में सफल हुए, लेकिन खिताब नहीं दिलवा पाए। 1994 के विश्व कप में भी उन्होंने  एक शानदार गोल किया, लेकिन उसी दौरान ड्रग सेवन के आरोप के कारण उनका करिअर समाप्त हो गया। 

विडंबना है कि जिस मारादोना को ब्राजील के पेले के साथ 20वीं सदी का सर्वोत्तम खिलाड़ी चुना गया, मैदान के बाहर उनका जीवन विवादों से घिरा रहा। उन पर नशा सेवन, ड्रग्स और आर्म्स माफिया के साथ संबंध और पत्रकारों पर फायरिंग करने के आरोप लगे। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे सेहत के प्रति लापरवाह रहे, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा। इससे उनके प्रशंसकों की संख्या में कमी नहीं आई। उनका मैदान पर दिखाया गया जादू उन्हें फुटबाल की दुनिया में अजर-अमर बनाए रखेगा।

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