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बिहार: पीएम मैटेरियल के इशारे

जद-यू के पेगासस, जाति जनगणना पर रुख की अगली कड़ी है नीतीश संबंधी बयान
पटना में राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश

अपने सहयोगी भाजपा से लगातार विरोध की खबरों के बीच जदयू ने एक बार फिर एक पुराना मुद्दा उछाल दिया है। नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने के कदम के विरोध में एनडीए से बाहर निकलने के आठ साल बाद, बिहार की सत्ताधारी पार्टी ने फिर नीतीश कुमार को ‘पीएम मैटेरिअल’ के रूप में पेश कर एक नए राजनीतिक बहस की शुरुआत कर दी है। 29 अगस्त को पटना में अपनी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जदयू ने पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह के प्रस्ताव पर सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया। हालांकि, पार्टी इस बात पर जोर दे रही है कि नीतीश सभी क्षमता होने के बावजूद पीएम पद के दावेदार नहीं हैं। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव के.सी. त्यागी ने बैठक के बाद स्पष्ट किया कि इस संकल्प का उद्देश्य इस भ्रम को दूर करना है जो विभिन्न खबरों के माध्यम से आती रहती है। उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, हालांकि उनमें सभी गुण हैं।”

स्वयं नीतीश ने खुद को ‘पीएम मैटेरियल’ होने के बारे में हो रही बातों को सिरे से खारिज कर दिया है। मुख्यमंत्री कहते हैं, “ये सब फालतू बातें हैं। न मेरी ऐसी कोई इच्छा है, न कोई अपेक्षा।” लेकिन उनकी पार्टी के नेता यह कहते नहीं थक रहे हैं कि नीतीश देश का नेतृत्व करने में सक्षम हैं। ललन सिंह कहते हैं, “हम प्रधानमंत्री पद के लिए दावा कैसे कर सकते हैं? हमारी पार्टी छोटी है। लेकिन हां, जहां तक गुणों की बात है, नीतीश इस पद पर काबिज होने में सक्षम हैं। उसके पास विजन है। बिहार में पिछले 15 वर्षों में उनकी कई योजनाएं जैसे, लड़कियों के लिए साइकिल, हर घर तक बिजली और पानी योजनाओं को बाद में केंद्र और फिर अन्य कई राज्यों ने शुरू किया।”

हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा जैसे मुखर नेता जोर देकर कहते हैं कि जदयू पीएम की कुर्सी पर दावा नहीं कर रहा है लेकिन “अगर ऐसी स्थिति भविष्य में पैदा होती है तो संख्याबल की कोई समस्या नहीं होगी।”

यह कुशवाहा ही थे जिन्होंने हाल ही में एक पुराने मुद्दे को दोबारा तूल देकर बिहार के मुख्यमंत्री को ‘पीएम मैटेरियल’ कहा था, जिसे नीतीश द्वारा महागठबंधन छोड़ने और 2017 में एनडीए में लौटने और मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करने के बाद अप्रासंगिक समझा गया था।

हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस समय नीतीश को ‘पीएम मैटेरियल’ के रूप में पेश करने की जदयू की यह सुविचारित रणनीति है। राजनीतिक टिप्पणीकार और अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी आउटलुक से कहते हैं कि जदयू के नेता इसे खुले तौर पर कहने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा है, लेकिन इसका परोक्ष संदेश यह है कि ऐसी स्थिति आती है तो नीतीश उन्हें फिर से छोड़ सकते हैं। वे कहते हैं, “राजनीति वह नहीं है जो कही जाती है, राजनीति वह है कि कही गई बात का मतलब क्या है।”

चौधरी का कहना है कि जदयू नेताओं के ‘पीएम मैटेरियल’ जैसे बयान मुख्यमंत्री की सहमति के बिना नहीं हो सकता। वे कहते हैं, “नीतीश भाजपा को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पास विकल्प समाप्त नहीं हुए हैं। वहीं विपक्ष के लिए भी यह संदेश है कि उन्हें दूसरी तरफ सम्मानजनक पद दिया जाए तो वे एनडीए छोड़ सकते हैं। ऐसे नेता के लिए पीएम पद से ज्यादा सम्मानजनक क्या हो सकता है, जो 15 साल तक बिहार के मुख्यमंत्री रहने के अलावा कई बार केंद्रीय मंत्री रहा हो?”

चौधरी के अनुसार, उन्हें इससे कम से कम यह फायदा हो सकता है कि वे सत्तारूढ़ गठबंधन में जूनियर पार्टनर होने के बावजूद बिहार एनडीए में अपना दबदबा बनाए रख सकते हैं।

जदयू को लेकर अब तक भाजपा ने नपी-तुली प्रतिक्रिया दी है। बिहार में पार्टी के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं, “सभी राजनीतिक दल अपने नेताओं को लेकर महत्वाकांक्षा का इजहार करते रहते हैं। इसमें कोई नई बात नहीं है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में हमारा गठबंधन बिहार को अग्रणी राज्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। राजद के विपरीत, हम दूसरे दल के मामलों में ताक-झांक नहीं करते हैं।”

बहरहाल, नीतीश की हाल की जाति जनगणना और पेगासस प्रकरण की जांच की मांग और उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नीति के मसौदे के विरोध ने सियासी हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है कि बिहार में सत्ताधारी गठबंधन सहयोगियों के बीच फिलहाल सब कुछ ठीक नहीं है।

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