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चर्चा में रहे जो
हरभजन सिंह

“किसान से ही हिंदुस्तान है।” हरभजन सिंह, क्रिकेटर

 

हैदराबाद में केसरिया पताका

हैदराबाद में भाजपा की जीत

हाल ही में संपन्न हुए हैदराबाद नगर निगम चुनाव प्रचार में भाजपा के दिग्गज नेताओं की मौजूदगी ने राजनैतिक विश्लेषकों का ध्यान खींचा। चुनाव में भले ही सत्तारूढ़ टीआरएस 56 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन भाजपा का प्रदर्शन चौंकाने वाला था। पिछले चुनाव में चार सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार 48 सीटें जीतने में कामयाबी मिली। असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम तीसरे स्थान पर पहुंच गई। टीआरएस और एआइएमआइएम को 150 में से क्रमशः 56 और 44 सीटें ही मिलीं। चार साल पहले हुए चुनाव में मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की पार्टी को 99 सीटों पर सफलता मिली थी। टीआरएस को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। कांग्रेस को मात्र दो सीटों से संतोष करना पड़ा। इन चुनावों में भाजपा की रणनीति दक्षिण भारत में भावी योजना को रेखांकित करती है। अपनी स्थापना के चार दशक बीतने के बाद भी पार्टी कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण के किसी अन्य राज्य में अपनी पैठ बनाने में सफल नहीं हो पाई है। हैदराबाद नगर निगम के चुनाव भले ही स्थानीय स्तर के रहे हों, इसमें भाजपा की सफलता के दूरगामी परिणाम होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

यह वैज्ञानिक ‘किड ऑफ द इयर’ है!        

गीतांजलि राव

 

भारतीय मूल की 15 वर्षीय किशोर वैज्ञानिक गीतांजलि राव को प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने ‘किड ऑफ द ईयर’ खिताब से नवाजा है। टाइम ने कवर पर उनकी तस्वीर छापी है। टाइम के इतिहास में पहली बार इस तरह के नामांकन मांगे गए थे। करीब 5,000 आवेदकों में गीतांजलि को यह सम्मान मिला। उन्हें यह अवॉर्ड दूषित पेयजल और साइबर बुलिंग के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के बेहतर इस्तेमाल के लिए दिया गया है। पत्रिका ने लिखा,   “कोलेरेडो के स्टेम स्कूल हाईलैंड्स रेंच स्कूल की छात्रा गीतांजलि ने युवा वैज्ञानिकों के सामने मिसाल कायम की है।” सिर्फ 12 साल की उम्र में उन्होंने पानी में सीसे की मात्रा पता लगाने वाली पोर्टेबल डिवाइस विकसित की थी, जिसका नाम ‘टेथिस’ था। डिवाइस को पानी में कुछ सेकंड डालने से पानी में सीसे की मात्रा का पता चलता था। 10 साल की उम्र में उन्‍होंने अपने माता-पिता से कहा था कि वह कार्बन नैनो ट्यूब सेंसर टेक्‍नोलॉजी पर रिसर्च करना चाहती हैं। नशीले पदार्थ की लत छुड़ाने के लिए वह एपिऑन नाम की एक डिवाइस भी बना चुकी हैं।

एवरेस्ट से भी ऊंचा

माउंट एवरेस्ट

माउंट एवरेस्ट अब और ऊंचा हो गया है। नेपाल और चीन ने संयुक्त रूप से इसे दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी बताते हुए इसकी ऊंचाई 8,848.86 मीटर बताई है, जो पुरानी मान्य ऊंचाई से 86 सेंटीमीटर ज्यादा है। माउंट एवरेस्ट को नेपाल में सागरमाथा और तिब्बत में चोमोलोंगमा कहते हैं लेकिन इसकी चोटी नेपाल की सीमा में स्थित है। नेपाल और चीन की सर्वे टीम ने अलग-अलग एवरेस्ट की ऊंचाई नापी है। अभी तक चीन एवरेस्ट की ऊंचाई दुनिया भर में मान्य ऊंचाई से चार मीटर कम कर आंकता रहा है। पहले इसकी मान्य उंचाई का निर्धारण अंग्रजी राज के दौरान भारतीय सर्वे विभाग की ओर से किया गया था। 2015 में आए भूकंप के बाद नेपाल ने इसे मापने का फैसला किया था क्योंकि कहा गया था कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर भूकंप का असर पड़ा है। 2017 में इस काम की शुरुआत नेपाल की ओर से की गई थी। बाद में चीन ने भी इसकी नपाई शुरू की और दोनों देशों ने अपने डेटा साझा किए।

शिक्षक का वैश्विक सम्मान

रणजीत सिंह डिसले

महाराष्ट्र में सोलापुर जिले के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक रणजीत सिंह डिसले को ग्लोबल टीचर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अभिनेता स्टीफन फ्राई ने लंदन में एक ऑनलाइन समारोह में उनके नाम की घोषणा की। पहली बार किसी भारतीय शिक्षक को यह अवॉर्ड मिला है। लंदन के वार्की फाउंडेशन और यूनेस्को द्वारा दिए जाने वाले इस पुरस्कार में 7 करोड़ रुपये सम्मान राशि मिलेगी। उन्होंने फैसला किया है कि आधी सम्मान राशि वे अपने साथी शिक्षकों के साथ बांटेंगे। दुनिया भर के 140 देशों के 12 हजार से अधिक शिक्षकों में से डिसले को चुना गया। डिसले ने प्रतिकूल परिस्थिति में स्कूल के बच्चों के लिए स्थानीय भाषा में किताबों का इंतजाम किया और उन्हें क्यूआर कोड भी उपलब्ध कराए। उन्होंने स्कूल में छात्रों की उपस्थिति बढ़ाने का भी सफल प्रयास किया। यही नहीं, उनकी कोशिश से इलाके में छोटी उम्र में बच्चों की शादियों की संख्या में भी कमी आई है। डिसले चाहते हैं कि देश के बाकी शिक्षक भी इस सम्मान से प्रेरणा लें और शिक्षा जगत में अच्छा काम करें। वे कहते हैं, “मुझे गांव में, बच्चों में और उनके अभिभावकों में भी बदलाव नजर आया।” 

बिहार में लव-कुश की वापसी?

नीतीश-कुशवाहा

पिछले सप्ताह, वर्षों बाद बिहार के पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ देखे जाने पर बिहार में अटकलों का बाजार गर्म होना स्वाभाविक था। सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी कि कुशवाहा अपने दल, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जद-यू में विलय करने जा रहे हैं। यह भी कयास लगाया जाने लगा कि विलय के बाद नीतीश उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने जा रहे हैं। कुशवाहा ने विलय की संभावनाओं को तो तुरंत खारिज कर दिया लेकिन यह भी कहा कि राजनीति में कल कुछ भी हो सकता है। नीतीश कुर्मी जाति से आते हैं और कुशवाहा कोइरी से। दोनों ने एक बार लालू यादव के शासनकाल में जातियों का ‘लव-कुश’ समीकरण बनाकर ओबीसी राजनीति में यादवों के वर्चस्व को चुनौती दी थी। नीतीश ने कुशवाहा को 2004 में जद–यू विधायक दल का नेता भी बनवाया था लेकिन बाद में दोनों की राहें जुदा हो गईं। कुशवाहा ने 2014 का लोकसभा चुनाव एनडीए के साथ लड़ा और केंद्रीय मंत्री भी बने लेकिन 2017 में नीतीश की एनडीए में वापसी के बाद वे महागठबंधन के साथ हो लिए। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली असफलता के बाद नीतीश के साथ कुशवाहा की मुलाकात पर सियासी अटकल अकारण नहीं है। हालिया चुनाव के बाद नीतीश भले ही मुख्यमंत्री बन गए हों लेकिन एनडीए में उनका सियासी कद भाजपा की तुलना में छोटा हो गया है। कुशवाहा की वापसी के बाद वे फिर से लव-कुश समीकरण को मजबूत कर बिहार में अपनी खोई जमीन पाने की उम्मीद कर सकते हैं।

बीच बहस में

जेहान दारूवाला

बहरीन साखिर ग्रां प्री में फॉर्मूला टू रेस जीतने वाले पहले भारतीय। रेस में जापान के युकी सुनोडा दूसरे स्थान पर रहे और जेहान से 3.5 सेकंड पीछे रहने वाले टिकटुम तीसरे स्थान पर आए। जीत के बाद जेहान दारूवाला ने ट्वीट कर कहा, “भारत में मुझे अपने लोगों को साबित करना था।”  

शीला मंडल

बिहार में जद-यू की नवनिर्वाचित परिवहन मंत्री तब विवादों में घिर गईं जब उन्होंने कहा कि “राजपूतों के वीर कुंवर सिंह का स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हाथ कटा तो वाहवाही हो गई लेकिन 1943 में फांसी पर चढ़े सीतामढ़ी के शहीद रामफल मंडल को इतिहास में अपेक्षित सम्मान नहीं मिला।” विवाद बढ़ता देख उन्होंने खेद प्रकट कर कहा, “उनके मन में कुंवर सिंह के प्रति असीम सम्मान है।”

रणेन्द्र

आदिवासी जीवन को समर्पित लेखन के लिए 2020 का श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्को साहित्य सम्मान। पुरस्कार में 11 लाख रुपये नकद और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। अपनी रचनाओं में वे वैश्वीकरण और विकास के दौर में आदिवासी समुदायों के भीतर हो रहे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की बारीकी से पड़ताल करते हैं।

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