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30 नवंबर 2020 · NOV 30 , 2020

खबर चक्र

चर्चा में रहे जो
अमिताभ बच्चन

आप अपने शरीर को जितना आराम दोगे उतना ज्यादा वह मांगेगा, और जितना काम लोगे, उतना ज्यादा वह करेगा- अमिताभ बच्चन

 

झारखंड में भी सीबीआइ की नो एंट्री

झारखंड

विपक्षी शासन वाले राज्‍यों की तरह झारखंड ने भी सीबीआइ की प्रदेश में डायरेक्‍ट इंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। राज्य में हेमंत सोरेन सरकार ने सीबीआइ को मामलों की तहकीकात करने के लिए मिली सहमति वापस ले ली है। अब सीबीआइ को झारखंड में किसी मामले की जांच करने के लिए पहले राज्‍य सरकार से अनुमति लेनी होगी या फिर हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का आदेश लाना होगा। 1996 में झारखंड जब बिहार का हिस्‍सा था, तब यह सहमति दी गई थी। राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़, केरल, महाराष्‍ट्र, पश्चिम बंगाल पहले ही सीबीआइ की सीधी इंट्री पर रोक लगा चुके हैं। रोक के बाद मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि उन्होंने अपने अधिकार का प्रयोग किया है। झामुमो की सहयोगी कांग्रेस ने प्रतिबंध का स्‍वागत करते हुए कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। राज्‍य सरकारों को अस्थिर करने, विरोधी दलों के नेताओं और संघ विरोधी विचारधारा के अधिकारियों को फंसाने के लिए एजेंसियों का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। विपक्षी पार्टियों की शिकायत रही है कि केंद्र सरकार सीबीआइ और दूसरी केंद्रीय एजेंसियों का विरोधी नेताओं, विपक्षी पार्टी वाले राज्‍यों में हथियार के रूप में इस्‍तेमाल करती है। हालांकि भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि दाल में कहीं काला है। बाद में भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि बार-बार भ्रष्‍टाचार की जांच कराने की बात कहने वाली सरकार सीबीआइ को प्रतिबंधित करती है, इससे जाहिर होता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। सरकार की घबराहट बताती है कि बचने और बचाने की कवायद चल रही है।

जेल में ही दीपावली और छठ

लालू प्रसाद

छह नवंबर को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बड़े खुश थे मगर निराशा हाथ लगी। पशुपालन घोटाला मामले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद रिम्‍स (राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्‍थान) रांची, के निदेशक वाले केली बंगला में ही बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के कैदी के रूप में रह रहे हैं। उस दिन सुबह वह थोड़ा जल्‍दी जाग गए, धूप स्‍नान किया, सेवादारों से मालिश कराई। उनके चेहरे पर ताजगी छलक रही थी। दस बजे तक नाश्‍ता करके तैयार हुए क्योंकि छह तारीख को रांची हाइकोर्ट में उनकी जमानत पर सुनवाई होने वाली थी। पशुपालन घोटाले के चार मामलों में से तीन मामलों में आधी सजा काट लेने के कारण उन्हें जमानत मिल चुकी है। चौथे मामले की भी आधी सजा वह काट चुके थे। ऐसे में उम्‍मीद थी कि उन्हें जमानत मिल जाएगी और वे बाहर आकर बिहार के चुनाव नतीजों का आनंद लेंगे। सालों बाद दीपावली और छठ उत्सव परिवार के सदस्‍यों के साथ मनाएंगे। राबड़ी देवी छठ करती हैं और उनके घर व्‍यापक आयोजन होता रहा है। साथ ही पुत्र तेजस्‍वी का जन्‍मदिन भी मनाएंगे। मगर ऐसा न हो सका। लेकिन अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख बढ़ाकर 27 नवंबर कर दी है। लालू यादव की किडनी 25 फीसद ही काम करती है। शुगर के वह 20-25 साल पुराने मरीज हैं। बीपी के साथ दिल के भी मरीज हैं। ऐसे में यदि वह जमानत पर बाहर भी आते हैं, तो उन्हें बहुत सावधानी बरतनी होगी। कोरोना का संक्रमण अभी टला नहीं है। इन हालातों में लगता नहीं कि वे सक्रिय राजनीति पर ध्यान दे पाएंगे।

विवादों की दौड़

मिलिंद सोमण

विवादों से अभिनेता-मॉडल मिलिंद सोमण का नाता नया नहीं है। पचपन साल के सोमण के खिलाफ गोवा पुलिस ने वहां के समुद्र तट पर निर्वस्त्र होकर दौड़ने के कारण अश्लीलता का मामला दर्ज किया है। उन्होंने अपने जन्मदिन पर हाल ही में सोशल मीडिया पर निर्वस्त्र होकर दौड़ने की तस्वीर पोस्ट की थी। फोटो पर सोमण ने कैप्शन लिखा, “55 का हो गया हूं और अब भी दौड़ रहा हूं। सोमण पर यह मुकदमा सुरक्षा मंच कि शिकायत पर किया गया है। तीन दशक पहले भी सोमण के खिलाफ कुछ इसी तरह की शिकायत दर्ज की गई थी। उस वक्त मॉडल मधु सप्रे के साथ उनकी एक तस्वीर पर शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें सप्रे और सोमण बिना कपड़ों के एक अजगर के साथ दिखाया गया था। यह एक जूते का विज्ञापन का था, जिसे अश्लीलता के आरोप के चलते वापस लेना पड़ा था। अश्लीलता फैलाने के इस तरह के आरोप भारत के लिए नए नहीं हैं। पूनम पांडेय पर भी अश्लीलता के आरोप में गोवा में ही एक मामला दर्ज हो चुका है। उन पर वहां चपोली डैम पर एक अश्लील वीडियो शूट करने का आरोप है। गोवा फॉरवर्ड पार्टी की महिला इकाई की शिकायत पर पांडे को गिरफ्तार भी किया गया था। पूनम तब चर्चा में आई थीं, जब 2011 में क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान उन्होंने यह कहकर सनसनी फैला दी थी की अगर भारत यह टूर्नामेंट जीतता है तो वे सारे कपड़े उतर देंगी।

बीच बहस मेंदुष्यंत दवे

दुष्यंत दवे

वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष। रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका पर अगले ही दिन सुनवाई के लिए लिस्ट किए जाने पर दवे ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को कड़ी चिट्ठी लिखी है कि तत्काल सुनवाई के कई मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहते हैं तो इसमें इतनी जल्दबाजी क्यों?

 

 “हम किसी पत्रकार पर पुलिसिया कार्रवाई की अनदेखी नहीं कर सकते”

सीमा मुस्तफा

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा ने पत्रकारों की गिरफ्तारी के मसले पर आउटलुक से एक बातचीत में कहा, मीडिया ने लोगों का भरोसा और समर्थन खो दिया है।

प्रेस की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है?

कई पत्रकारों को धमकाया गया, गिरफ्तारियां हुईं,  काम के दौरान उन पर हमले हुए। इससे पत्रकारों में डर की भावना पैदा होती है और मीडिया के स्वतंत्र और निष्पक्ष कामकाज में बाधा आती है। इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

गिल्ड ने अर्णब की गिरफ्तारी पर तुरंत प्रतिक्रिया दी?

हमें मुद्दों को निष्पक्षता से देखना चाहिए। गिल्ड ने उनकी गिरफ्तरी की प्रक्रिया पर साफ रुख अपनाया, हमने उनकी रिहाई की मांग नहीं की, न मामले पर सवाल उठाया। बतौर पत्रकार, हम पुलिसिया कार्रवाई की अनदेखी नहीं कर सकते। अगर कोई इस आधार पर इसकी अनदेखी करता है कि गोस्वामी गैर-पत्रकारीय कामकाज कर रहे हैं, तो हम अन्य पत्रकारों का समर्थन कैसे करते हैं जो गलत तरीके से हिरासत में लिए गए? यह ध्रुवीकरण की समस्या है...अगर मैं किसी पत्रकार को नापसंद करती हूं तो मैं गिल्ड से चाहूंगी कि वह बेहद भावुक और अतिरेक से भरा जवाब लिखे। फिर उन पत्रकारों का क्या होगा, जिसे आप पसंद करते हैं, लेकिन दूसरे नहीं? हम व्यक्तिगत पसंद-नापसंद से अलग एक स्वतंत्र प्रणाली चाहते हैं। ज्यादातर पत्रकारों को राजद्रोह के आरोप में और उनके सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया...जैसे वे अपराधी हों। हम किसी भी पत्रकार पर पुलिस कार्रवाई नहीं चाहते, हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते।

मीडिया को अक्सर आलोचना के लिए सत्ताधारियों की नाराजगी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में कैसे मीडिया निष्पक्ष रूप से काम करे?

यह संघर्ष हमेशा से रहा है। अभी जो हो रहा है, उसमें गुणात्मक अंतर है। मीडिया एथिक्स पूरी तरह गायब हैं। हमने लोगों से मिलने वाला सम्मान खो रहे हैं। हमें हाशिये के लोगों और वंचितों के लिए काम करना था। लेकिन हम उनसे दूर होकर ताकतवरों के करीब चले गए हैं। जिस तरह की पत्रकारिता हम टीवी पर देख रहे हैं...हमने लोगों का समर्थन खो दिया है। इसलिए, राजनैतिक वर्ग के लिए निर्दोष पत्रकारों पर लगातार हमला करना आसान हो गया है। गिरफ्तारी और धमकी के साथ प्रेस का मुंह बंद किया जा रहा है।

मीडिया लोगों का विश्वास फिर कैसे जीत सकता है?

पत्रकारों को स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए काम करना होगा। हमें कॉरपोरेट को बताना होगा कि वे हमारे मालिक नहीं हैं। राजनैतिक दबाव के सामने भी हमें खड़े रहना होगा। स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को वापस लाना होगा और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एकजुट होना होगा।

कदमों के निशा

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