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पंजाब किसान आंदोलन: संघर्ष के नए गीत और गायक

कृषि कानूनों के खिलाफ दो महीने से चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन में लोक गायकों और नए-नए गीतों से संघर्ष की नई फिजा
पटियाला में पंजाब बचाओ रैली में प्रेम सिंह चंदुमाजरा और अन्य नेता

तू धरती की मांग संवारे सोए खेत जगाए

सारे जग का पेट भरे तू अन्नदाता कहलाए

फिर क्यों भूख तुझे खाती है और तू भूख को खाए

लुट गया माल तेरा लुट गया माल ओए

पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए

वर्ष 1965 में मनोज कुमार अभिनीत फिल्म शहीद के लिए प्रेम धवन के लिखे और मोहम्मद रफी के गाए इस गीत ने हरित क्रांति के दौर में देश का खाद्यान्न संकट दूर करने वाले किसानों को अपने हकों के प्रति सचेत किया था। 1974 में मोहम्मद अजीज ने इसी गीत को दारा सिंह की अमर शहीद भगत सिंह फिल्म में गाया। इस गीत को तीसरी बार 2002 में गायक सुखविंदर सिंह ने भगत सिंह के जीवन पर फिल्माई अजय देवगन की फिल्म में गाया था। किसानों के खिलाफ अंग्रेजों के काले कानूनों के विरोध में शहीदे आजम भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने आंदोलन छेड़ा तो 3 मार्च 1907 को लायलपुर (पाकिस्तान) की एक बड़ी रैली में झांग स्याल अखबार के संपादक बांके दयाल ने पगड़ी संभाल जट्टा गीत सुनाया था। उसके बाद आंदोलन का नाम ही ‘पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन’ पड़ गया।

113 साल बाद पंजाब के लोकगायकों की जुबान पर आया यह गीत इन दिनों फिर से प्रदेश की फिजाओं में गूंज रहा है। किसान आंदोलन को अपने ट्विटर अकाउंट और गीतों से गुरदास मान, हरभजन मान, दलजीत दोसांझ, गिप्पी ग्रेवाल, सरगुन मेहता, जैजी बी और सिद्धू मूसेवाला ने बल दिया है। गुरदास मान के बोल हैं, किसान है, ते हिंदुस्तान है। इस मौके पर गिप्पी ग्रेवाल के गीत असीं नई मरणा सरकारे, हो तेरे जुल्म मारणे ने से किसानों में जोश भर गया है। पंजाबी लोक गायकों के जुड़ने से बड़ी संख्या में युवा भी किसानों के आंदोलन से जुड़ने को प्रेरित हुए हैं।

केंद्र के कृषि कानूनों से प्रदेश के किसानों में लुटने का डर समा गया है। उन्हें अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे कारोबारियों के हाथों लुटने का डर सता रहा है। खेत-खलिहान और घर-बार छोड़ किसान दो महीने से रेल पटरियों, टोल प्लाजा और पेट्रोल पंपों पर डटे हुए हैं। 26 और 27 नवंबर को दिल्ली कूच के आह्वान के बीच पंजाब के 29 किसान संगठनों ने केंद्र को कृषि कानून वापस लेने के लिए 10 दिसंबर तक का अल्टीमेटम दिया है।

भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल का कहना है, “काले कृषि कानूनों को लेकर केंद्र की मंशा साफ नहीं है। वह कृषि क्षेत्र को भी कॉरपोरेट के हाथों सौंप कर अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटना चाहती है।” राजेवाल का कहना है कि केंद्र के कृषि कानून गेहूं और धान की फसलों पर एमएसपी खत्म करने की दिशा में एक छिपा हुआ एजेंडा है। इससे होने वाला नुकसान किसान और किसानी को तबाह कर देगा।   

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पंजाब, हरियाणा और देश के कई अन्य राज्यों के किसानों में अपने खिलाफ माहौल बनता देख भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार ने कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार को सबक सिखाने के लिए दो महीने तक रेल सेवाएं ठप रखीं और जीएसटी का 9,500 करोड़ रुपये का बकाया जारी नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा 1,000 करोड़ रुपये का ग्रामीण विकास फंड (आरडीएफ) रोके जाने से भी राज्य की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। कोयले की आपूर्ति रुकने से थर्मल प्लांटों की चिमनियां ठंडी पड़ गईं, औद्योगिक इकाइयों को कच्चे माल की आपूर्ति और तैयार माल का उठान थमा रहा। परेशानी से किसान भी अछूते नहीं रहे। उन्हें गेहूं की बुआई के दिनों में यूरिया और डीएपी की किल्लत का सामना करना पड़ा। विरोध प्रदर्शन पर डटे करीब एक दर्जन किसानों की अब तक मौत हो चुकी है। उनके परिजनों को अभी तक राज्य सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला है।

इधर, एनडीए से किनारा करने वाले शिरोमणि अकाली दल (शिअद) पर भी केंद्र सरकार की दबाव की राजनीति शुरू हो गई है। शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के बहनोई और पूर्व मंत्री विक्रम सिंह मजीठिया की जेड प्लस सिक्योरिटी केंद्र सरकार ने हटा दी है। आतंकियों के निशाने पर रहे मजीठिया की सुरक्षा हटाए जाने से अकाली दल के नेताओं में मोदी सरकार के प्रति नाराजगी है।

पहले कोरोना की मार और उसके बाद किसान आंदोलन के चलते दो महीने तक रेल सेवा ठप रही। कैप्टन अमरिंदर का आकलन है कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसकी दुहाई देकर उन्होंने 10 दिसंबर तक रेल पटरियों से किसानों को हटने के लिए राजी कर लिया है। केंद्र के कृषि कानूनों की काट के लिए कैप्टन सरकार ने विधानसभा में चार विधेयक पारित किए हैं। जाहिर है, इसके जरिए वे 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनी सियासी जमीन सींचना चाहते हैं, लेकिन राज्य के कृषि कानूनों को भी किसान संगठनों ने सिरे से खारिज कर दिया। फिर भी कांग्रेस को लगता है कि किसान उसके साथ खड़े हैं। इसलिए पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ राज्य में समय से पहले विधानसभा चुनाव की वकालत कर रहे हैं। कांग्रेस को लगता है कि उनकी टक्कर में कोई भी नहीं है। आउटलुक से जाखड़ ने कहा, “पंजाब में आज चुनाव होते हैं तो प्रदेश की जनता बता देगी कि केंद्र सरकार के प्रति उसमें कितना गुस्सा है।”

शिअद से गठबंधन टूटने के बाद राज्य की सियासत में अलग-थलग पड़ी भाजपा अकेले राज्य की सभी 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है। पार्टी के नवनियुक्त महासचिव तरुण चुघ कहते हैं कि शिअद से अलग होने का उनकी पार्टी को लाभ मिलेगा। आउटलुक से बातचीत में चुघ ने कहा कि किसानों को गुमराह करने वाले तमाम दल कृषि कानूनों पर सियासत कर रहे हैं, जबकि ये कानून किसानों के हित में हैं।

शिअद को लगता है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर के इस्तीफ और एनडीए से नाता तोड़ राज्य के किसानों के साथ खड़े होने का लाभ केवल उसे ही मिलेगा। इसलिए अमरिंदर सरकार के बिलों का विरोध करने वाले शिअद ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार आने पर एक राज्य, एक मंडी और एक भाव का नारा दिया है। शिअद प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा के मुताबिक कांग्रेस का बिल एक सियासी ड्रामा है, इससे किसानों की समस्या हल होने वाली नहीं है। 2022 तक प्रदेश के किसानों की आय दोगुनी करने के लिए उनकी पार्टी ने अभी से अपने एजेंडे में इसे प्रमुखता से रखा है। इसके लिए कृषि विशेषज्ञों की भी मदद ली जा रही है।

विधानसभा में विपक्ष की भूमिका निभाने वाली आम आदमी पार्टी के नेताओं का दावा है कि उनकी पार्टी को किसानों का समर्थन 2022 के विधानसभा चुनाव तक रहेगा। इसलिए पार्टी चुनाव तक किसानों के मुद्दे को बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रही है। विधानसभा में विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा के मुताबिक कैप्टन सरकार की  किसान कर्ज माफी स्कीम पूरी तरह से विफल रही है। आज भी पंजाब में कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। किसानों को कर्ज मुक्त करना आम आदमी पार्टी का प्रमुख एजेंडा है।

केंद्र और कैप्टन की इस सियासी रस्साकशी के बीच पंजाबी लोक गायक किसानों को सचेत करते नजर आ रहे हैं। अपने गीतों के जरिए वे यह संदेश दे रहे हैं कि किसानों के लिए अपने हकों की रक्षा करना जरूरी है। अगर वे नेताओं के बहकावे में आ गए तो हर बार की तरह इस बार भी ठगे से नजर आएंगे, पर उन्हें ठगने वाले कहीं नजर नहीं आएंगे। लेकिन सियासी बाजियां बदस्तूर जारी हैं। अब देखना यह है कि किसानों के आगे केंद्र झुकता है या नहीं।

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