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उलझन का मकड़जाल

नीतियों की वैज्ञानिक नजरिए से समीक्षा का यही मौका है, इसे राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए उलझाए नहीं
देश के कई हिस्सों में भांग का इस्तेमाल आम है

भारत में अवैध ड्रग और नशीले पदार्थों के इस्तेमाल पर 2018 में एक सर्वेक्षण किया गया था। उसके अनुसार देश में 18-75 वर्ष की उम्र के 2.90 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो नशे के लिए भांग और उससे जुड़े दूसरे ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं। इसी तरह 10-17 साल उम्र के 20 लाख लोग हैं, जो भांग और उससे जुड़े ड्रग्स ले रहे हैं। इसके पहले 2001 में इस तरह का सर्वेक्षण किया गया था, उस वक्त देश में भांग और उससे जुड़े दूसरे ड्रग्स लेने वालों की संख्या करीब 87 लाख थी। सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय ने 2018 में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर ड्रग की मांग कम करने के लिए एक राष्ट्रीय एक्शन प्लान 2018-2023 भी तैयार किया है।

सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती मामले में जिस तरह से हो-हल्ला मचा हुआ है, उसे देखते हुए भांग एक बार से चर्चा में आ गई है। इस चर्चा में भांग का अवैध रूप से उत्पादन, उसके वितरण को लेकर सवाल उठ रहे हैं। असल में इन सभी मुद्दों का नियमन नार्कोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) कानून के तहत होता है, जो इस समय चर्चा का केंद्र बना हुआ है। 

पिछले तीन दशक से एनडीपीएस कानून-1985 के तहत भांग प्रतिबंधित है। भांग को भी दूसरे ड्रग्स की तरह नशीला और शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला पदार्थ माना गया है। हालांकि पिछले एक दशक से कई देश भांग के रिसर्च को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके जरिए वे भांग को दवा के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना तलाश रहे हैं। भारत में एनडीपीएस कानून के तहत भांग को चरस, हशीश के तेल, गांजा की कटगरी में रखा गया है। कानून के अनुसार भांग की खेती करना और उसके जरिए दवा बनाना दोनों ही प्रतिबंधित है। हालांकि केवल पत्तियों को पीस कर बनाई गई भांग को कानूनी मान्यता भी है, जिसका इस्तेमाल होली, शिवरात्रि और दूसरे कई त्योहारों में किया जाता है। इसी वजह से देश के कई हिस्सों में भांग की लाइसेंस प्राप्त दुकानें भी मिल जाएंगी।

कानून की इस कमजोरी की वजह से देश में अवैध रूप से भांग की खेती की जाती है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हेम्प का इस्तेमाल सब्जियों के रूप में भी किया जाता है, जो शादियों वगैरह के अवसर पर बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं। साथ ही भांग के पौधे का इस्तेमाल कपड़े बनाने और चर्म पत्र बनाने में भी किया जाता है। इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 2010-2017 के बीच भारत दुनिया के उन देशों में था, जहां पर सबसे ज्यादा भांग की खेती और उत्पादन होता है। भारतीय एजेंसियों ने 2018 में 1980 हेक्टेअर में भांग के हो रहे अवैध उत्पादन को नष्ट किया। जाहिर है, 35 साल पुराना एनडीपीएस कानून अकेले भांग के अवैध उत्पादन और बिक्री को रोकने में असफल रहा है।

थिंक टैंक विधि सेंटर फॉर पॉलिसी ने महाराष्ट्र के संबंध में एनडीपीएस कानून के असर पर एक रिपोर्ट जारी की है। उसके अनुसार कानून की वजह से लोगों का शोषण कहीं ज्यादा बढ़ा है। रिपोर्ट के लेखक नेहा सिंघल और नावेद अहमद का कहना है, “न्यायालय के पास शक्तियां है कि वह नशे में लिप्त या उससे परेशान लोगों को सुधार केंद्र भेज दे, लेकिन वह बिना सोचे-समझे हर व्यक्ति को दोषी मानते हुए या तो जेल भेज देता है या उन पर जुर्माना लगा देता है।” इसके अलावा रिपोर्ट एक और अहम बात का खुलासा करती है, उसके अनुसार महाराष्ट्र में जो भी ड्रग्स जब्त की गई है, उसमें ऐसे ड्रग्स की संख्या ज्यादा है, जो काफी महंगी होती हैं और उन्हें दुनिया भर में भारत में तस्करी के जरिए पहुंचाया जाता है। इन ड्रग्स का सेवन ज्यादातर प्रबुद्ध वर्ग के ग्राहक करते हैं। इसलिए पुलिस का रवैया ऐसे लोगों पर सख्ती करने का नहीं होता है, वह एक तरह से उनके सामने आंख मूंद लेती है। महाराष्ट्र में अवैध ड्रग्स के नाम पर होने वाली करीब 87 फीसदी गिरफ्तारी भांग के इस्तेमाल के लिए होती है, जबकि सबसे ज्यादा जब्ती बिना भांग वाली ड्रग्स की होती है।

राजनीति और सामाजिक रूप से काफी संवेदनशील ड्रग के मुद्दे पर नेताओं को बहुत कम ही बोलते सुना गया है। अगर सुना भी गया है तो वह यही बोलते हैं कि वह ड्रग के इस्तेमाल की निंदा करते हैं। हालांकि पिछले छह साल से सभी प्रमुख दलों के नेताओं ने भांग के इस्तेमाल को वैध करने की बात कही है। 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में गठित मंत्री-समूह में मरीजुआना के मेडिकल इस्तेमाल को कानूनी बनाने की सिफारिश की थी। मंत्री-समूह उस वक्त देश में ड्रग के इस्तेमाल में कमी कैसे लाई जाय, इसके लिए नीति बनाने पर बैठक कर रहा था। पिछली लोकसभा में बीजू जनता दल के सांसद तथागत सत्पथी और आम आदमी पार्टी के सांसद धर्मवीर गांधी ने भी भांग को कानूनी मान्यता देने की मांग की थी। कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर का भी मानना है कि मेडिकल इस्तेमाल के लिए भांग को वैध कर देना चाहिए। उनके अनुसार दूसरे देशों की तरह हमें एक सरकारी कार्यक्रम की शुरुआत करनी चाहिए कि इससे बनने वाली दवा का इलाज के लिए इस्तेमाल हो सके। हालांकि भांग के प्रतिबंध की वकालत करने वालों का कहना है कि भले ही यह दूसरी ड्रग्स की तुलना में कम नुकसानदेह है, लेकिन ऐसा देखा गया है कि धीरे-धीरे भांग का सेवन करने वाले दूसरे ड्रग्स का भी इस्तेमाल शुरू कर देते हैं। हालांकि इस “गेटवे ड्रग्स सिद्धांत” को दुनिया के डॉक्टरों ने स्वीकार नहीं किया है।

नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर और मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ अतुल अंबेकर ने आउटलुक को बताया कि दुनिया भर की रिसर्च को देखा जाया तो जो लोग कोकीन, हेरोइन का इस्तेमाल करते हैं, हो सकता है कि उन्होंने भांग से ड्रग्स लेने की शुरुआत की हो। लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जो भांग लेने के बावजूद दूसरे ड्रग्स का इस्तेमाल नहीं करते हैं। ऐसे में गेटवे ड्रग्स सिद्धांत का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अंबेकर का कहना है कि अलग-अलग ड्रग्स के आधार पर नीति बनानी चाहिए। यानी हेरोइन, कोकीन जैसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले ड्रग्स के लिए सख्त कानून होना चाहिए, क्योंकि जो लोग इन ड्रग्स के नशे में पड़ जाते हैं, उनके लिए वापस सामान्य जीवन में लौटना काफी मुश्किल भरा होता है।

एनसीबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि भांग को लेकर एनडीपीएस कानून के तहत बनी नीतियां पूरी तरह असफल हो चुकी हैं। हमारे नीति-निर्धारकों को यह समझना होगा कि भांग केवल ड्रग नहीं है बल्कि यह सदियों से हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा है। उस पर प्रतिबंध से अवैध रूप से भांग की एक अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई है।   

अगर इसके उत्पादन को वैध किया जाता है तो निश्चित तौर पर यह राजस्व का एक बड़ा जरिया बन सकता है। मसलन, अमेरिका के कैलिफोर्निया, कोलरैडो और वाशिंगटन राज्यों में मरीजुआना के इस्तेमाल को वैध किया हुआ है। इसके जरिए वह राज्य पिछले तीन साल में करीब एक अरब डॉलर की कमाई कर चुके हैं। कनाडा जी-7 समूह का पहला देश हैं जिसने मरीजुआना के रिक्रिएशन की स्वीकृति दी है। विधि सेंटर के अध्ययन के अनुसार दिल्ली और मुंबई ऐसा करके 725 और 641 करोड़ रुपये की कमाई कर सकते हैं।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत और रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी से ड्रग्स इस समय सुर्खियों में है। अंबेकर कहते हैं, “ऐसे में यह मौका है कि हम वैज्ञानिक तरीके से नीतियों की समीक्षा करें, और उनका विरोध भी विवेक के आधार पर किया जाए। हालांकि यह एक कठिन काम है। ”

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