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अलविदा एक युग, अनेक राज

प्रणब मुखर्जी एकमात्र राजनीतिक थे जो वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री तीनों पदों पर रहे।
प्रणब मुखर्जी 11 दिसंबर 1935 - 31 अगस्त 2020

मोटे तौर पर कहें तो देश के राजनीतिक नेता हमेशा घनिष्ठता से बचते हैं। यह बात दिवंगत प्रणब मुखर्जी पर भी लागू होती है। मैं उन्हें करीब चालीस वर्षों से जानता था, लेकिन उनके घनिष्ठ होने का दावा नहीं करता। करीब छह महीने पहले मैं उनसे 10, राजाजी मार्ग पर मिला। हमारे दरम्यान हुई बातचीत में उन्होंने एक ऐसी बात कही जिसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कहा, “नटवर सिंह जी (मैं उनसे छह साल बड़ा हूं), राष्ट्रपति बन कर मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की। मुझे आडंबर और ठाट-बाट पसंद नहीं। मैंने हमेशा अपना काम पूरी मेहनत से किया, लेकिन राष्ट्रपति भवन में मैंने कभी अपने आप को सहज महसूस नहीं किया। वहां का सख्त प्रोटोकॉल मेरे मिजाज से मेल नहीं खाता है। मैं जन नेता न सही, लेकिन जीवन के ज्यादातर दिनों में सार्वजनिक छवि वाला व्यक्ति रहा हूं।” इस पर मैंने कहा, “आप तो तीन सबसे उत्कृष्ट राष्ट्रपतियों में एक हैं।” उन्होंने पूछा, “बाकी दो कौन हैं?” मैंने कहा, “बाबू राजेंद्र प्रसाद और डॉक्टर राधाकृष्णन।”

प्रणब मुखर्जी एकमात्र राजनीतिक थे जो वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री तीनों पदों पर रहे। वे बेहद कुशल, सक्षम और सशक्त मंत्री थे। वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ सांसद भी थे। हालांकि उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आता था, लेकिन उन्होंने मूर्खों को झेलना भी सीख लिया था, क्योंकि उनकी तादाद हमेशा अधिक होती है। राजनीति में रणनीति बनाने और चालें चलने में उनकी काबिलियत अनंत थी।

कैबिनेट की बैठकों में वे सबसे अधिक प्रभावशाली होते थे। भिन्न-भिन्न विचारों के बीच सामंजस्य बनाने की उनकी क्षमता भी जबरदस्त थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (यूपीए-1) की अध्यक्षता में होने वाली सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की सबसे महत्वपूर्ण बैठकों में प्रणब मुखर्जी के अलावा शिवराज पाटिल, पी. चिदंबरम और मैं होते थे। हम तीनों भी ऐसे नहीं थे कि जिन्हें आसानी से समझाया जा सके, लेकिन प्रणब मुखर्जी कुछ ऊंची लीग के थे।

वे बड़ी निपुणता से, बिना कोई दिखावा किए सत्ता का आनंद लेते थे। उनका रास्ता काटना मूर्खता थी। वे किसी भी बैठक में बिना तैयारी के नहीं आते थे। उनकी याददाश्त के तो क्या कहने। वे शायद ही कभी बिना किताब के नजर आते थे। इन दुर्लभ राजनीतिक योग्यताओं के बावजूद 1985 में मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की शताब्दी बैठक उनके लिए काफी पीड़ादायक रही। राजीव गांधी के अनुभवहीन और युवा सलाहकार बार-बार उन्हें समझा रहे थे कि इंदिरा जी की हत्या के बाद सबसे वरिष्ठ मंत्री होने के नाते प्रणब जी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। यह बात सच थी या नहीं, नहीं मालूम। उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया। उसके बाद उन्होंने और गलतियां भी कीं। उन्होंने अपनी पार्टी बना ली, जो चली नहीं। 1989 आते-आते राजीव गांधी को इस बात का एहसास हुआ कि प्रणब जी पार्टी के लिए कितने बड़े ऐसेट हैं और उन्होंने उन्हें वापस बुला लिया। उसके बाद प्रणब मुखर्जी ने कभी मुड़कर नहीं देखा। 1993 में वे पी.वी. नरसिंह राव की कैबिनेट में मंत्री बने।

2004 में मेरिट और वरिष्ठता के आधार पर प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया चाहिए था, कांग्रेस अध्यक्ष ने मनमोहन सिंह को नियुक्त किया। उस समय कोई भी कह सकता था कि प्रणब जी इस्तीफा देंगे। मनमोहन सिंह ने कई वर्षों तक प्रणब जी के अधीन काम किया था। लेकिन जिस बेहतरीन तरीके से दोनों ने एडजस्ट किया, उसके लिए दोनों प्रशंसा के पात्र हैं। मिजाज के लिहाज से देखें तो मनमोहन बिना अहं वाले व्यक्ति हैं, प्रणब का व्यक्तित्व भी बिना आडंबर वाला है। उनका व्यवहार हमेशा परिपक्व रहता था। 2004 से 2014 के दौरान उन्होंने कभी टकराव नहीं होने दिया। उन्होंने कभी प्रधानमंत्री के ऊपर जाने की कोशिश नहीं की। दोनों नेता सत्यनिष्ठा और शिष्टाचार को लेकर प्रतिबद्ध थे। मनमोहन सिंह अपने पूर्व बॉस का हमेशा सम्मान करते थे, बल्कि उनके भक्त थे।

तीन खंडों में प्रकाशित प्रणब मुखर्जी की जीवनी निराशाजनक है। वे सहज लेखक नहीं थे। मैंने उनका ध्यान आर्थर कोएसलर की ओर आकर्षित किया था जिन्होंने अपनी जीवनी में लिखा है, “खामोशी और आत्मसंयम समाज में तो आपको सभ्य और स्वीकार्य बनाते हैं, लेकिन जीवनी पर इनका प्रभाव बेहद नकारात्मक होता है।”

मैंने उनसे साफ कहा कि जीवनी में उन्होंने कोई खुलासा नहीं किया और उनके करिअर और जीवन में जो उतार-चढ़ाव आए, उन्हें छुपा लिया। मैंने कहा, “राजनीति के बड़े-बड़े घटनाक्रमों के बीच आप दशकों तक रहे। आप जितना अनुभव किसी और का नहीं, इसलिए उसे सार्वजनिक करना आपका कर्तव्य है। आपने नीतियां बनाईं और यह आश्वस्त किया कि उन्हें ठीक तरीके से लागू किया जाए। कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठकों में आपके हस्तक्षेप हम सबको परेशान कर देते थे। और कितने लोग हैं जिनके बारे में ये सब बातें कही जा सकती हैं?”

शांत और गैर-करिश्माई पूर्व राष्ट्रपति ने जवाब दिया, “अनेक ऐसी बातें हैं जिन्हें मैं सार्वजनिक नहीं कर सकता। वे बातें मेरे साथ ही हमेशा के लिए दफन हो जाएंगी।”

(लेखक पूर्व विदेश मंत्री हैं)

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