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सौहार्द मंत्रालय से सौहार्द सहायक तक

नरम-गरम
नरम-गरम

स्मार्ट यूनिवर्सिटी ने सामाजिक सौहार्द विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त छात्र को आइएएस में सीधी भर्ती दी गई है और उन्हें शीघ्र ही सृजित होने वाले सौहार्द मंत्रालय का सचिव भी नियुक्त कर दिया गया है। निबंध इस प्रकार हैः

सौहार्द जैसा कि सब देख रहे हैं, समाज में कम होता जा रहा है। सौहार्द कम क्यों हो रहा है, इसलिए कि सरकार का पर्याप्त ध्यान इस ओर नहीं है। आजादी के सत्तर साल से ज्यादा हो लिए, तमाम तरह के मंत्रालय बन लिए, मत्स्य पालन से लेकर कुक्कुट पालन तक के लिए मंत्रालय बना दिए गए, पर सौहार्द मंत्रालय की स्थापना नहीं की गई। इस वजह से सौहार्द की तरफ सम्यक ध्यान नहीं दिया जा सका। सौहार्द का मसला उपेक्षित रह गया। इसलिए समाज में सौहार्द की कमी होती जा रही है। सौहार्द आम तौर पर तब ही दिखता है जब समाज में लोग शराब के नशे में एक-दूसरे के गले में हाथ डालकर कहते हैं, “तू मेरा भाई है।” समाज का हाल यह हो लिया है कि अगर कोई किसी के गले में हाथ डालकर यह कह रहा हो कि “तू मेरा भाई है” तो सब समझते हैं कि ये नशे में है। “तू मेरा भाई है” ऐसी बात नशेबाजी के अलावा चुनावी दिनों में भी बोली जाती है।

आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि दोनों ही स्थितियों में बोली गई बातों को किसी को सीरियसली नहीं लेना चाहिए। पर इस बात को सीरियसली लिया जाना चाहिए कि सौहार्द स्थापना की दिशा में किसी भी सरकार ने संस्थागत प्रयास नहीं किए हैं। यानी एक सौहार्द मंत्रालय होना चाहिए, उसमें करीब तीस राज्य मंत्री होने चाहिए। फिर केंद्रीय सौहार्द निदेशालय होना चाहिए। फिर राज्य स्तर पर सौहार्द निदेशालय होना चाहिए। फिर जिला सौहार्द अधिकारी हो, फिर जिला सौहार्द उपनिदेशक भी हो। फिर सौहार्द उपनिदेशक के साथ सौहार्द सहायकों के पदों का सृजन करना चाहिए। इस तरह हम देखेंगे कि कई स्तर पर रोजगार सृजित होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था जिस मंदी से जूझ रही है, उसके शमन में कुछ मदद मिलेगी।

यह बड़ा सवाल है, जिस पर हरेक को विचार करना चाहिए। हमें पता है कि कुछ विघ्नसंतोषी पूछेंगे, “क्या सौहार्द मंत्रालय की स्थापना भर से समाज में, देश में सौहार्द की स्थापना हो सकेगी!”

यह सवाल एकदम अप्रासंगिक है। देश में महिला विकास मंत्रालय है, क्या महिलाओं का विकास हो गया। देश में बाल विकास मंत्रालय है, क्या देश में बच्चों का विकास हो गया। देश में तो रोजगार मंत्रालय भी है, तो क्या यह माना जाए कि रोजगार का मसला हल हो लिया है। देश में कृषि मंत्रालय है तो क्या खेती का उचित विकास हो गया। देश में तो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय भी है, तो क्या हम मान लें कि देश में सबको स्वास्थ्य मिल गया है। देश में तो पर्यावरण मंत्रालय भी है, तो क्या हम मान लें कि दिल्ली और देश का पर्यावरण एकदम साफ और शुद्ध हो गया है। समझने की बात यह है कि जिस तरह से बच्चों और महिलाओं का विकास हो लिया है, वैसे ही सौहार्द भी स्थापित हो जाएगा, सौहार्द मंत्रालय की स्थापना के बाद। क्या हो पाता है या क्या नहीं हो पाता यह सवाल गौण है। महत्वपूर्ण सवाल है कि सरकार क्या करने और क्या नहीं करने में दिलचस्पी दिखा रही है। सरकार को अपनी दिलचस्पी का प्रदर्शन करना चाहिए, बाकी परिणाम वगैरह आए तो आए, न आए तो न आए। इस चक्कर में अगर सरकारें पड़ेंगी तो अधिकांश मंत्रालय बंद हो जाएंगे। सरकार को मंत्रालय बनाकर दिखा देना चाहिए कि वह समस्या के निपटारे की इच्छुक है। यह अलग बात है कि कई सरकारें निपट लेती हैं, पर समस्या नहीं निपटती। इसलिए सरकार को इसकी ज्यादा चिंता करनी भी नहीं चाहिए। नए मंत्रालय का नाम ‘सौहार्द संवर्धन मंत्रालय’ कैसा रहेगा? इस पर समस्त सरकार को फौरन विचार करना चाहिए। सौहार्द स्थापना की दिशा में यह सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा। 

 

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सांस्कृतिक निकटता

बरसों से भारत और ईरान के सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। फिलवक्त, भले ही ईरान कुछ कठिन दौर से जूझ रहा हो लेकिन ‘भारतीय-ईरानी लेखक सम्मिलन’ पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। पिछले दिनों नई दिल्ली के साहित्य अकादेमी के सभागार में इस्लामिक गणराज्य ईरान के सांस्कृतिक परामर्शदाता मोहम्मद अली रब्बानी जब आए तो माहौल में आत्मीयता की गरमाहट महसूस की जा सकती थी। वे उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। यह कार्यक्रम साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और इस्लामिक गणराज्य ईरान के दूतावास ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था।

अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने भारत और ईरान के सुदीर्घ सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित करते हुए कहा, “समान आचार-विचार और संस्कृति के बिना संबंध नहीं बन सकते। अगर बन भी जाएं तो उनमें स्थायित्व नहीं रहता।” इस मौके पर हिंदी रचनाकार और फारसी साहित्य की मर्मज्ञ नासिरा शर्मा ने भारत के कई प्राचीन ग्रंथों का फारसी में अनुवाद उपलब्ध होने और उसके कारण उन दुर्लभ ग्रंथों को पढ़ पाने के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह दोनों देशों की भाषाओं के संबंध का पुख्ता प्रमाण है। मोहम्मद अली रब्बानी ने भारत और ईरान के संबंध में संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों, अदीबों और विद्वानों के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने दोनों देशों के साहित्य को एक-दूसरे के और पास लाने की जरूरत को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा अनुवाद के काम पर जोर दिया। कुछ ईरानी और भारतीय कवियों ने इस मौके पर कविता पाठ भी किया।

आउटलुक डेस्क

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