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जो जीते मुंबई वही किंग

जैसे-जैसे आम चुनाव चरम पर पहुंच रहा है, जमीनी और भावनात्मक मुद्दों में भी गरमी बढ़ती जा रही है, दिलचस्प मुकाबले के आसार
मुंबई में प्रधानमंत्री मोदी और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे एक मंच पर

देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में राजनैतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। 29 अप्रैल को होने वाले संसदीय चुनावों को लेकर प्रचार अभियान चरम पर है और पार्टियां विरोधी खेमे की रणनीतियों की काट ढूंढ़ने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। मुंबई और कोंकण क्षेत्र पारंपरिक रूप से पूरी तरह से भगवा या फिर दूसरे पक्ष में चला जाता है, क्योंकि यहां की सभी 12 सीटों पर वोटिंग का एक-समान रुझान दिखता है। यदि पिछले दो चुनावों को देखें, तो संभावना यह है कि व्यावसायिक राजधानी जीतने वाला गठबंधन राज्य में सबसे अधिक सीटें जीत सकता है।

मुंबई और कोंकण के समीकरण

नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने कांग्रेस और राकांपा को बुरी तरह मात देकर 2014 में महाराष्ट्र की एक चौथाई यानी मुंबई और तटीय क्षेत्र की सभी 12 सीटें जीतीं। इनमें से पांच-उत्तर मध्य मुंबई, उत्तरी मुंबई, उत्तर पूर्व मुंबई, पालघर और भिवंडी भाजपा के खाते में गई, जबकि शिवसेना ने सात-दक्षिण मुंबई, दक्षिण-मध्य मुंबई, उत्तर पश्चिम मुंबई, ठाणे, कल्याण, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग और रायगढ़ पर कब्जा किया। इस बार भाजपा चार और शिवसेना आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस और राकांपा इस क्षेत्र में क्रमश: आठ और तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। राज्य में कुल 48 संसदीय क्षेत्र हैं और भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने पिछली बार 41 सीटें जीती थीं। कांग्रेस-राकांपा गठबंधन को छह सीटें और स्वाभिमानी शेतकारी संघटना को सिर्फ एक सीट मिली।

29 अप्रैल से आगे का सवाल यह है कि क्या यह शहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक और कार्यकाल देने को तैयार है या बदलाव की तलाश में है। पूरे तटीय क्षेत्र को, तेजी से शहरीकरण की वजह से कई जटिल मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें बुनियादी ढांचों का बोझ, प्रॉपर्टी की बढ़ती कीमतें, वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण शामिल हैं। नोटबंदी ने भी क्षेत्र में मध्यम और लघु उद्योगों को प्रभावित किया है। त्वचा रोग विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. तुषार जगताप की शिकायत है, “लेकिन चुनावी बहस हिंदुत्व और देशभक्ति जैसे गैर-मुद्दों पर केंद्रित है।”

मुंबई में अल्पसंख्यक (मुस्लिम, बौद्ध, जैन) आबादी 25-39 फीसदी है और ये शहर की अधिकांश सीटों के नतीजों को प्रभावित करेगी। भाषाई अल्पसंख्यक जैसे हिंदी भाषी उत्तर भारतीय, गुजराती और मराठी भी कांग्रेस, भाजपा और शिवसेना के लिए महत्वपूर्ण हैं। 2014 में मोदी के सबसे बड़े समर्थक के रूप में उभरे शहरी मध्यम वर्ग पर भाजपा को बहुत अधिक भरोसा है। दूसरी ओर, शहरी आबादी का 40 फीसदी झुग्गी बस्तियों में रहता है। इनका वोट पारंपरिक रूप से शिवसेना और कांग्रेस के बीच बंटता रहा है। हालांकि, भाजपा ने यहां भी अपने लिए जगह बनाई है। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, समाजवादी पार्टी और बहुजन विकास अाघाड़ी (बीवीए) जैसे छोटे संगठन कभी-कभी एक या दो सीट जीतने के साथ बड़े दलों के पक्ष में मतों का विभाजन या ध्रुवीकरण कर वोटों को प्रभावित करते हैं।

दोध्रुवीय मुकाबला

कांग्रेस और राकांपा ने पिछला लोकसभा चुनाव साथ लड़ा था, लेकिन अक्टूबर 2014 में विधानसभा चुनावों से पहले अपने रास्ते अलग कर लिए। दोनों ने लोकसभा चुनाव के लिए फिर से हाथ मिलाया है और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में स्वाभिमानी शेतकरी संघटना को शामिल किया है। भाजपा और शिवसेना ने भी पिछला आम चुनाव साथ-साथ लड़ा और विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन तोड़ लिया। हालांकि, चुनावों के बाद दोनों केंद्र और महाराष्ट्र सरकार में एक-साथ रहे। साढ़े चार साल तक भाजपा की लगातार आलोचना करने के बाद शिवसेना ने यू-टर्न लिया और अंततः भाजपा के साथ मिलकर 2019 का आम चुनाव लड़ने का फैसला किया।

इस बीच, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने 2014 के चुनावों में अकेले चुनाव लड़ा था और उसे मुंबई के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में वोट मिले थे। इस बार उसने चुनाव नहीं लड़ने और यूपीए को समर्थन देने का फैसला किया है।  हालांकि, प्रकाश आंबेडकर की बहुजन वंचित अाघाड़ी और असदुद्दीन ओवैसी के एआइएमआइएम के बीच तीसरे गठबंधन के उभरने से मुंबई (दक्षिण मध्य) की एक सहित महाराष्ट्र की कुछ सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले हो सकते हैं।

भगवा लहर या सत्ता विरोधी रुझान?

कट्टर हिंदुत्ववादी नेता अमित शाह और उद्धव ठाकरे अपनी-अपनी पार्टियों के अध्यक्ष हैं और भाजपा-शिवसेना को भरोसा है कि ध्रुवीकरण और देशभक्ति जैसे मुद्दे से 2014 की सफलता को दोहराने में मदद मिलेगी। मुंबई भाजपा के उपाध्यक्ष कृष्ण हेगड़े कहते हैं, “केवल मुंबई ही नहीं, बल्कि हम पूरे महाराष्ट्र में जीतेंगे। पाकिस्तान के खिलाफ मोदी सरकार के आक्रामक रुख को दिखाने वाली बालाकोट की कार्रवाई ने लोगों को चौंका दिया है।”

कांग्रेस का मानना है कि 20 फीसदी गरीबों को प्रतिमाह छह हजार रुपये की गारंटी देने वाली “बुनियादी न्यूनतम आय” और 500-वर्गफुट के घर के वादे गेमचेंजर हो सकते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत का दावा है, “2014 लोकसभा या 2017 के स्थानीय निकाय के चुनावी नतीजे पर मत जाइए। हम फिर से वापस आएंगे, क्योंकि अर्थव्यवस्था, रोजगार और कृषि संबंधी मुद्दों पर मोदी सरकार की विफलता ने लोगों को निराश किया है।” हाल में संजय निरुपम की जगह मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष बने मिलिंद देवड़ा आरोप लगाते हैं,“नगर निगम में घटिया शासन चलाने वाली और विभाजनकारी राजनीति करने वाली शिवसेना ने मुंबई को नुकसान पहुंचाया है।”

अंदरूनी सूत्रों का कहना है, “कांग्रेस अंदरूनी झगड़े, दलबदल और राष्ट्रीय कद के वैसे नेताओं की कमी से जूझ रही है, जो भाजपा-शिवसेना का मुकाबला कर सके।” पार्टी के वोट बैंक के एक वर्ग -उत्तर भारतीय- ने 2014 में हिंदू राष्ट्रवादी दल की तरफ रुख कर लिया था। विपक्ष के दावों पर पलटवार करते हुए भाजपा के प्रेम शुक्ला कहते हैं, “अगर कोई सत्ता-विरोधी रुझान होता, तो हम स्थानीय निकाय चुनाव नहीं जीतते।” विश्लेषक सुरेंद्र जोंधले का तर्क है कि दोनों गठबंधन मुश्किल परिस्थितियों में हैं। वह पाकिस्तान के खिलाफ 1999 के करगिल युद्ध की मिसाल का हवाला देते हैं, जो 2004 में हिंदू राष्ट्रवादियों को सत्ता में लाने में विफल रहा। वह कहते हैं, “राष्ट्रीय सुरक्षा भाजपा-सेना का चुनावी एजेंडा है, लेकिन इससे बहुत मदद नहीं मिलेगी। दूसरी ओर, कांग्रेस ने भाजपा को हराने की चाहत रखने वाले क्षेत्रीय दलों के साथ एक व्यापक गठबंधन नहीं किया।”

अनुमान और आकलन

मोदी लहर की गैर-मौजूदगी और दलितों-मुस्लिमों में नाराजगी के साथ सत्ता विरोधी रुझान की वजह से सभी 12 सीटों पर मुकाबला पेचीदा होने वाला है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बार नतीजे दोनों गठबंधनों के लिए मिलेजुले हो सकते हैं।

मुंबई में संप्रग पर बड़ा दांव लगाने वाले राजनीतिक विश्लेषक चंदन शिरवाले कहते हैं, “एनडीए के मुंबई में छह में से पांच सीटें हारने की उम्मीद है, जिससे कांग्रेस के मिलिंद देवड़ा, संजय निरूपम, प्रिया दत्त और उर्मिला मातोंडकर और राकांपा के संजय दीना पाटिल का संसद के लिए रास्ता तैयार होगा। शिवसेना (राहुल शेवाले) के केवल दक्षिण-मध्य सीट को बरकरार रखने की संभावना है।”

 

जंग के सिपाही

मुंबई दक्षिण

कांग्रेस के मिलिंद देवड़ा ने 2009 में सीट जीती थी, लेकिन मोदी-लहर के बीच 2014 में शिवसेना के अरविंद सावंत से 1.28 लाख वोटों से हार गए। देवड़ा फिर से सावंत के खिलाफ खड़े हैं।

मुंबई दक्षिण-मध्य

शिवसेना के 45 वर्षीय मौजूदा सांसद राहुल शेवाले एक बार फिर कांग्रेस के दिग्गज नेता एकनाथ गायकवाड़ के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। मनसे ने पिछली बार 73,000 वोट पाकर सेंध लगाई थी। अब वह कांग्रेस-राकांपा को समर्थन दे रही है। आंबेडकर और एआइएमआइएम के संयुक्त उम्मीदवार गायकवाड़ का खेल बिगाड़ सकते हैं।

मुंबई उत्तर-मध्य

52 वर्षीय कांग्रेस की प्रिया दत्त ने 2009 में सीट जीती, लेकिन 2014 में 38 वर्षीय भाजपा की पूनम महाजन से हार गईं। कांग्रेस के दिवंगत नेता सुनील दत्त और भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की बेटियां फिर से एक-दूसरे का सामना करेंगी। पूनम अपने चुनाव क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रही थीं, तो दत्त लगभग गायब थीं।

मुंबई उत्तर-पश्चिम

75 वर्षीय शिवसेना के गजानन कीर्तिकर फिर से इस सीट से चुनाव लड़ेंगे। 54 वर्षीय कांग्रेस के संजय निरुपम उनके खिलाफ खड़े हैं। निरुपम की उम्र उनके साथ है, लेकिन उनकी असली चुनौती अपने ही पार्टी के सदस्यों का समर्थन हासिल करना होगा।

मुंबई उत्तर

यह उन सीटों में एक है, जिसे दोबारा जीतने को लेकर भाजपा आश्वस्त है। भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी ने कांग्रेस के संजय निरुपम को 4.5 लाख वोटों के अंतर से हराकर यह सीट जीती। अब उनका सामना हाल में कांग्रेस में शामिल अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर से है। कांग्रेस को उम्मीद है कि मातोंडकर मतदाताओं को लुभा सकती हैं। वहीं, भाजपा को पारंपरिक गुजराती वोटबैंक से उम्मीद है।

मुंबई उत्तर-पूर्व

राकांपा के संजय दीना पाटिल ने 2009 में सीट जीती, लेकिन 2014 में भाजपा के किरीट सोमैया से हार गए। पाटिल फिर से चुनाव लड़ेंगे, जबकि भाजपा ने किरीट सोमैया की जगह मनोज कोटक (एक कॉरपोरेटर) को कथित तौर पर शिवसेना के इशारे पर बदल दिया है।

पालघर (एसटी)

कांग्रेस और राकांपा ने उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है। वह पूर्व सांसद बहुजन विकास आघाड़ी (बीवीए) के बलिराम जाधव का समर्थन कर रहे हैं। बीवीए के पास भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन है, जिसकी पालघर में बहुत प्रभावी उपस्थिति है। शिवसेना ने अब तक अपना उम्मीदवार तय नहीं किया है, लेकिन भाजपा के सांसद राजेंद्र गावित को चुनने की उम्मीद है, जो शिवसेना के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।

ठाणे

ठाणे को शिवसेना के गढ़ों में से एक माना जाता है। सांसद राजन विचारे एनसीपी के आनंद परांजपे के खिलाफ इस सीट को बरकरार रखना चाहते हैं, जो 2014 में कल्याण से हार गए थे।

कल्याण

कल्याण को भी शिवसेना का गढ़ माना जाता है। पार्टी ने राज्य के मंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे को फिर से नामित किया है। शिंदे के खिलाफ राकांपा पार्षद बाबा जी शिंदे हैं।

भिवंडी

भाजपा ने कपड़ों का शहर कहे जाने वाले भिवंडी से सांसद कपिल पाटिल को फिर से नामित किया है। नोटबंदी के दौरान नौकरी जाने की वजह से यहां काफी विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। इस बार यह मुकाबला काफी  मुश्किल होगा, क्योंकि पाटिल कृषक हैं, जिनकी आबादी 2.5 लाख है। जबकि अल्पसंख्यक समुदाय और यूपी-बिहार के प्रवासी कांग्रेस के सुरेश तावड़े का समर्थन कर सकते हैं।

रायगढ़

इस सीट पर मौजूदा शिवसेना सांसद और केंद्रीय मंत्री अनंत गीते को राकांपा के सुनील ततकरे से कड़ी टक्कर मिलेगी। राकांपा को पीजेंट्स ऐंड वर्कर्स पार्टी का समर्थन है, जो इस सीट पर अहम साबित होगा, क्योंकि इसकी वजह से गीते को पिछली बार महज 2,110 वोट से जीत मिली थी।

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