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नए समीकरणों की सरकार

दूसरी मोदी सरकार में कई नए चेहरे आए तो कई पुराने विदा हुए लेकिन जाति और क्षेत्रीय समीकरणों में भाजपा की भावी योजनाओं का ख्याल, सहयोगियों को महज सांकेतिक प्रतिनिधित्व
नए हुक्मरानः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (सबसे बाएं) के साथ मंत्रीपरिषद के तमाम सदस्यों पर देश के लोगों की नई उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती

राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में अब तक के सबसे बड़े और भव्य शपथ समारोह में 30 मई को नरेंद्र मोदी ने लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही एक ही पार्टी की लगातार बहुमत वाली सरकार के मुखिया के रूप में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बराबरी कर ली है। देश में 1971 के बाद किसी भी दल की एक ही नेता के नेतृत्व में दूसरी बार बहुमत वाली सरकार नहीं बनी है। बिम्सटेक देशों के राष्ट्र प्रमुखों और तमाम हाइ-प्रोफाइल अतिथियों के साथ ही भाजपा के देश भर से आए कार्यकर्ताओं समेत 6,000 लोगों ने समारोह में शिरकत की। नरेंद्र मोदी जैसे हर मौके को बड़ा और  भव्य बनाने की कोशिश करते हैं, यह समारोह उसी की मिसाल है।

प्रधानमंत्री के साथ 57 अन्य मंत्रियों ने शपथ ली, जिनमें 24 कैबिनेट, नौ स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री और 24 राज्यमंत्री शामिल हैं। इस तरह से उनके समेत 58 मंत्री हैं, जो उनके पिछले मंत्रिमंडल से छोटा है। पिछले मंत्रिमंडल में अंतिम दिनों में 70 मंत्री थे, जिनमें 25 कैबिनेट, 11 स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री और 34 राज्यमंत्री थे। खास बात यह है कि जिस तरह से उनके खासमखास पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव में करीब एक-तिहाई सांसदों के टिकट काटे थे, उसी तर्ज पर प्रधानंमत्री ने नए मंत्रिमंडल में करीब आधे मंत्रियों को बदल दिया है। पिछले मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे 8 कैबिनेट मंत्री और 24 राज्यमंत्री नई सरकार में नहीं हैं। पिछली सरकार के बड़े मंत्रियों में अरुण जेटली ने तो एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर नए मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य कारणों से शामिल न हो पाने की बात की थी। सुषमा स्वराज और उमा भारती ने लोकसभा चुनाव ही नहीं लड़ा लेकिन जेपी नड्डा को शामिल न करने के बारे में माना जा रहा है कि वे अमित शाह की जगह पार्टी अध्यक्ष बन सकते हैं। वहीं, मेनका गांधी, सुरेश प्रभु, राधामोहन सिंह, बीरेंद्र सिंह, जयंत सिन्हा, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, महेश शर्मा जैसे लोगों को मंत्रिमंडल में शुमार न करने के दूसरे मायने हैं।

नए मंत्रिमंडल में अधिकांश मंत्री भाजपा के ही हैं। जहां तक सहयोगियों की बात है तो एनडीए में एक बड़े घटक जदयू से कोई मंत्री नहीं है। असल में भले भाजपा ने सहयोगियों के साथ मजबूती से चुनाव लड़ा और उसकी बदौलत एनडीए के लोकसभा में 353 सदस्य हैं, जिनमें 303 भाजपा के हैं, वैसा समीकरण मंत्रिमंडल गठन में नहीं दिखा। भाजपा के एक सहयोगी दल के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया कि प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल में एनडीए सहयोगियों काे केवल सांकेतिक प्रतिनिधित्व देना चाहते थे। लिहाजा, हर सहयोगी दल से केवल एक सदस्य को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। ऐसे में इकलौते सदस्य रामदास आठवले वाली आरपीआइ से लेकर 16 लोकसभा सदस्यों वाले जदयू तक भला एक कतार में कैसे खड़े हो सकते थे। जदयू के एक बड़े नेता कहते हैं, “हमारे एक सदस्य के मंत्री बनने का कोई अर्थ नहीं था। अगले साल बिहार में विधानसभा के चुनाव हैं। ऐसे में हमारा  समीकरण बिगड़ सकता था। हालांकि, हम एनडीए का हिस्सा हैं लेकिन भाजपा का सांकेतिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव हमें स्वीकार नहीं था।” अपना दल की अनुप्रिया पटेल को भी सरकार में जगह नहीं मिली।

नए संकटमोचनः अमित शाह की सरकार में एंट्री दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हो सकती है

मोदी ने मंत्रिमंडल के गठन में जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों को भी साधने की कोशिश की। भले ही कैबिनेट मंत्रियों में ओबीसी और आदिवासियों का प्रतिनिधित्व कम है और उच्च जातियों की ही प्रधानता है लेकिन राज्यमंत्रियों के दायरे में यह संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। जहां तक राज्यों की बात है तो 11 राज्यों से केवल एक-एक ही मंत्री हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में जहां भाजपा अपनी ताकत लगातार बढ़ा रही है, वहां से दो मंत्री हैं। हालांकि दोनों राज्यमंत्री हैं।

ताकतवर मंत्रियों के मामले में कोई बड़ा बदलाव तो नहीं है, लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की सरकार में एंट्री को दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। उन्हें प्रधानमंत्री और राजनाथ सिंह के बाद तीसरे नंबर पर शपथ दिलाई गई है। इससे साफ है कि उनका जिम्मा काफी अहम रहने वाला है। आउटलुक के प्रिंट में जाने के समय तक मंत्रिमंडल के विभागों का बंटवारा तो नहीं हुआ था लेकिन कयास लगाये जा रहे थे कि अमित शाह को वित्त मंत्री बनाया जा सकता है। एक अहम और चौंकाने वाली एंट्री पूर्व विदेश सचिव सुब्रह्मण्यम जयशंकर की है। पिछली सरकार में बतौर विदेश सचिव जयशंकर ने कई अहम मसलों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो उसके पहले चीन और अमेरिका में भारत के राजदूत भी रह चुके थे। शपथ-ग्रहण के एक दिन पहले उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाना प्रधानमंत्री मोदी का अहम कदम माना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी पहले कार्यकाल में कूटनीतिक स्तर पर खुद बहुत सक्रिय रहे हैं। ऐसे में नई सरकार में जयशंकर की भूमिका अहम हो सकती है।

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने दूसरे कार्यकाल के एजेंडे को आगे बढ़ाना है। भले ही चुनाव का पूरा एजेंडा राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व के नाम पर केंद्रित रहा और प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी ने चुनाव को अमेरिकी राष्ट्रपति सरीखा बना दिया, जिसके केंद्र में सिर्फ नरेंद्र मोदी ही थे। उसका राजनैतिक फायदा भी भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला। ऐतिहासिक बहुमत के साथ उनकी सरकार की वापसी हो गई है। लेकिन अब चुनाव नहीं, सरकार का प्रदर्शन उनकी परीक्षा का पैमाना होगा। इस चुनाव में वोट देने वाले करीब 60 करोड़ लोगों में से बड़ी संख्या ने उनकी पार्टी और सहयोगी दलों को इसलिए चुना है कि वे उनकी आकांक्षाएं पूरी करेंगे।

स्मृति ईरानी

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एजेंडा पहली सरकार से बड़ा है। एक ओर जहां पहले कार्यकाल में उन्होंने जो काम शुरू किए हैं, उनको पूरा करने के लिए उन्होंने वोट मांगे हैं और नए कार्यकाल के लिए कई बड़े वादे किए हैं। हालांकि इस समय परिस्थितियां उनके लिए बहुत अनुकूल नहीं हैं। यही वजह है कि वे अपने सबसे विश्वस्त और नतीजे देने वाले सहयोगी अमित शाह को सरकार में ले आए हैं। वैसे भी पिछले पांच साल मोदी और शाह की जोड़ी लगातार चुनाव जीतने के अभियान में लगी रही और राज्यों के चुनाव जीतने का सिलसिला केंद्र में सरकार की वापसी के लिए लोकसभा चुनावों में भारी जीत तक चला। ऐसे में अमित शाह अहम हो जाते हैं। तमाम राजनैतिक फैसले और समीकरण संकेत दे रहे हैं कि वे सरकार में उत्तराधिकारी की योजना पर भी काम कर रहे हैं। अमित शाह को सरकार में लाना इसलिए जरूरी था, ताकि उनके पास भी केंद्र सरकार में अहम भूमिका निभाने का अनुभव हासिल हो सके, जो भविष्य में उनके राजनैतिक कॅरिअर को मजबूती देगा।

इस समय नरेंद्र मोदी की सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती मंदी की ओर जा रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है। इसलिए हो सकता है कि अमित शाह को वित्त मंत्रालय का जिम्मा दिया जाए। अगले करीब माह भर में नई सरकार को चालू वित्त वर्ष (2019-20) के लिए पूर्ण बजट तैयार करना है। जुलाई के पहले सप्ताह में सरकार को नया बजट पेश करना है। सरकार अपने वादों और लक्ष्यों को किस तरह पूरा करना चाहती है उसका खाका इसी बजट में होगा। हालांकि उसे अंतरिम बजट में मध्यवर्ग के लिए आयकर में पांच लाख रुपए तक की रियायत को भी ध्यान में रखना पड़ सकता है।

समारोह में शामिल सोनिया और राहुल गांधी

अगले पांच साल सरकार आर्थिक मोर्चे पर किस तरह की नीतियां लागू करना चाहती है उसका संकेत भी यह बजट देगा। इसलिए सबसे पहली चुनौती आर्थिक मोर्चे की है। विकास दर से लेकर मैन्युफैक्चरिंग, विदेश व्यापार, बैंकों और एनबीएफसी में एनपीए का संकट, कमजोर निवेश और रियल एस्टेट जैसे तमाम ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सरकार को प्राथमिकताएं साफ करनी होंगी। उद्योग जगत और बहुराष्ट्रीय कंपनियां सरकार पर बड़े सुधारों के लिए दबाव डालती रही हैं और नई सरकार के पास जिस तरह का बहुमत और मजबूत नेतृत्व है उसके लिए बड़े और कड़वे फैसले लेना काफी हद तक संभव है। इनमें श्रम सुधार, निजी निवेश को बढ़ावा देना, भूमि अधिग्रहण को आसान करना और विदेशी निवेश के लिए नए दरवाजे खोलने जैसे एजेंडे शामिल हो सकते हैं।

दूसरा बड़ा संकट देश में बेरोजगारी के रिकॉर्ड स्तर को लेकर है। भले ही चुनावों में सरकार और खुद प्रधानमंत्री इस मोर्चे पर स्थिति को नियंत्रण में होने का दावा करते रहे हैं। अब सरकार बनने के बाद उनकी प्राथमिकता में रोजगार सृजन के लिए पुख्ता रणनीति मोदी सरकार को तुरंत लानी होगी।

कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की हालत किसी से छिपी नहीं है और सरकार को किसानों की माली हालत सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर सुधार लागू करने पड़ सकते हैं। हालांकि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया है लेकिन फिलहाल तो यह संभव नहीं लगता है। ऐसे में सरकार पर किसानों के लिए अहम कदम उठाने का काफी दबाव रहेगा। अर्थव्यवस्था, कृषि और रोजगार के मुद्दे पर इस अंक में आउटलुक ने इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों की राय पाठकों के लिए रखी है।

आर्थिक मोर्चे के अलावा सरकार पर राम मंदिर, धारा 370, 35ए और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर फैसले लेने का काफी दबाव होगा। ऐसे में प्रधानमंत्री का 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' का वादा काफी अहम हो जाता है।

विदेश मामलों में भी चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध कड़वाहट भरे  हैं और वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान को शपथ ग्रहण में न बुलाने की वजह खराब संबंध ही हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इसमें सुधार के लिए भी शुरुआत करनी पड़ सकती है। अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर जारी खींचतान भी इस मोर्चे पर सरकार की चिंताएं बढ़ा सकती है। कूटनीति के मोर्चे पर  इस बार उनकी क्या रणनीति रहेगी, यह भी देखना होगा।

(इनपुट, प्रशांत श्रीवास्तव, चंदन कुमार)

 

दिग्गजों की जमात

राजनाथ सिंह (67 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः लखनऊ, उत्तर प्रदेश

राजनीतिक अहमियतः दो बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। 2014 चुनावों के पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। पिछली सरकार में गृह मंत्री थे।

 

अमित शाह (54 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः गांधीनगर, गुजरात

राजनीतिक अहमियतः पार्टी अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को एक-के-बाद एक राज्यों में जीत दिलाई। चुनावी जीत के रणनीतिकार माने जाते हैं। मोदी के सबसे करीब माने जाते हैं और इस सरकार के नए संकटमोचन साबित हो सकते हैं।

 

नितिन गडकरी (62 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः नागपुर, महाराष्ट्र

राजनीतिक अहमियतः नितिन गडकरी भाजपा के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बेहद करीबी माना जाता है और पिछली सरकार में इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बढ़ाया है।

 

स्मृति ईरानी (43 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः अमेठी, उत्तर प्रदेश

राजनीतिक अहमियतः कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनके ही गढ़ अमेठी में हराया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘गुड बुक’ में हैं। पिछली सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और कपड़ा मंत्रालय संभाल चुकी हैं।

 

रविशंकर प्रसाद (64 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः पटना साहिब

राजनीतिक अहमियतः भाजपा के बागी नेता और फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा को चुनावों में हराया। पिता बिहार में जनसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। प्रसाद मोदी सरकार की नीतियों का हर मंच पर मुखरता से बचाव करते रहे हैं।

 

प्रकाश जावड़ेकर (68 वर्ष)

राज्यसभा सांसद

राजनीतिक अहमियतः लो-प्रोफाइल रहने वाले जावड़ेकर ने पिछली सरकार में उस वक्त मानव संसाधन विकास मंत्रालय का जिम्मा संभाला, जब वह काफी विवादों में था और विवादों से दूर रहे।

 

निर्मला सीतारमण (59 वर्ष)

राज्यसभा सांसद

राजनीतिक अहमियतः पिछली सरकार में वाणिज्य और रक्षा मंत्री बनीं और राफेल मुद्दे पर संसद में और बाहर सरकार का पक्ष मजबूती से रखा। दक्षिण भारत के राज्यों में पार्टी की पैठ के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं।

 

 विदा हुए दिग्गज

सुषमा स्वराज (66 वर्ष)

राजनीतिक कदः पहली नरेंद्र मोदी सरकार में विदेश मंत्री और भाजपा की वरिष्ठतम नेताओं में से एक, इस बार स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ा । अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री और दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं।

 

मेनका गांधी (62 वर्ष)

राजनीतिक कदः भाजपा में गांधी परिवार की प्रतिनिधि, पहली मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी राज्यमंत्री रह चुकी हैं। इस बार उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से चुनाव जीतीं। उनके पुत्र वरूण गांधी इस बार उनकी परंपरागत सीट पीलीभीत से चुनाव जीत कर आए हैं।

 

उमा भारती (60 वर्ष)

राजनीतिक कदः राम जन्मभूमि आंदोलन से निकलीं भाजपा की फायर ब्रांड नेता रही हैं। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार को हराकर मुख्यमंत्री बनीं। नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री थीं। इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ीं।

 

राधा मोहन सिंह (69 वर्ष)

राजनीतिक कदः पहली मोदी सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण जैसे अहम मंत्रालय का जिम्मा संभाल चुके हैंे। बिहार के पूर्वी चंपारण से लगातार छठी बार चुनाव जीता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुडबुक में रहे हैं।

 

सुरेश प्रभु (66 वर्ष)

राजनीतिक कदः मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में रेलवे, नागरिक उड्डयन और वाणिज्य मंत्रालय का पदभार संभाल चुके हैं। इसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शिवसेना के कोटे से मंत्री थे। उस दौरान ऊर्जा, पर्यावरण, भारी उद्योग मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालयों का काम संभाल चुके थे।

 

चौधरी बीरेंद्र सिंह (73 वर्ष)

राजनीतिक कदः हरियाणा के कद्दावर जाट नेता। 2014 में भाजपा में शामिल होने से पहले कांग्रेस के प्रमुख नेता हुआ करते थे। नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में ग्रामीण विकास और स्टील मंत्रालय का पद संभाल चुके हैं। इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।

 

जुएल ओराम (58 वर्ष)

राजनीतिक कदः पहली मोदी सरकार में आदिवासी मामलों के मंत्री थे। उड़ीसा से सुंदरगढ़ से इस बार चुनाव जीता है। वह छह बार से लगातार सांसद हैं। इसके अलावा पार्टी के प्रमुख आदिवासी नेता हैं। उड़ीसा में पार्टी के विस्तार में उनकी अहम भूमिका रही है।

 

 नए चेहरों की आमद

जी. किशन रेड्डीः (55 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः सिकंदराबाद (तेलंगाना)

राजनीतिक अहमियत- रेड़्डी तेलंगाना में भाजपा के अध्यक्ष हैं। उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करके तेलंगाना में भाजपा को मजबूती प्रदान करने का प्रयास किया गया है। वे तीन बार विधायक रह चुके हैं।

 

रामेश्वर तेलीः (48 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः डिब्रूगढ़ (असम)

राजनीतिक अहमियत- जनजातीय समुदाय के रामेश्वर तेली ने डिब्रूगढ़ की प्रतिष्ठित सीट जीती है। वे असम में भाजपा के एकमात्र उम्मीदवार थे, जिन्हें दोबारा टिकट दिया गया।

 

देवश्री चौधरीः (48 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः रायगंज (पश्चिम बंगाल)

राजनीतिक अहमियतः रायगंज से जीत दर्ज करके उन्होंने सभी को चौंका दिया। यह सीट तृणमूल कांग्रेस की मजबूत गढ़ मानी जाती थी। देवश्री भाजपा की राज्य इकाई में महासचिव हैं। उन्होंने 2014 में भी चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गई थीं।

 

अनुराग ठाकुरः (44 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश)

राजनीतिक अहमियतः हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र हैं। कांग्रेस के नेता रामलाल ठाकुर को करीब पौने चार लाख वोटों से हराकर वे चौथी बार चुनकर संसद पहुंचे हैं। वे बीसीसीआइ के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनकी प्रसिद्धि फंड मैनेजर की भी है।

 

नित्यानंद राय (53 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः उजियारपुर, बिहार

राजनीतिक अहमियतः बिहार भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय अमित शाह के बेहद करीबी माने जाते हैं। उन्हें बिहार में यादव नेता की तरह प्रोजेक्ट किया जाता है।

 

रेणुका सिंह सरुता (55 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः सरगुजा, छत्तीसगढ़

राजनीतिक अहमियतः आदिवासी सांसद सरुता ने लोकसभा चुनाव में सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में राजनीति का रंग बदल दिया। यह वही इलाका है, जहां दिसबंर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को विधानसभा की 14 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।

 

अरविंद सावंतः (68 वर्ष)

निर्वाचन क्षेत्रः दक्षिण मुंबई (महाराष्ट्र)

राजनीतिक अहमियतः कांग्रेस के मिलिंद देवड़ा को हराकर सांसद चुने गए सावंत शिवसेना के कोटे से मंत्री बने हैं। राज्य विधानसभा में डिप्टी स्पीकर रहने के बाद वे पहली बार 2014 में दक्षिण मुंबई से ही पहली बार संसद पहुंचे थे।

 

 चौंकाने वाला नामः एस.जयशंकर

 इस बार मोदी कैबिनेट में पूर्व विदेश सचिव एस.जयशंकर का नाम सबसे चौंकाने वाला माना जा सकता है। भारतीय विदेश सेवा के 1977 बैच के अधिकारी जयशंकर अमेरिका, चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं। वे 2007 में भारत-अमेरिका के बीच एटमी करार में अहम भूमिका निभा चुके हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को सफल बनाने में उनका अहम योगदान रहा है। इसी के बाद उन्हें 2015 में अमेरिका से बुलाकर विदेश सचिव बनाया गया था। चीन के साथ 2017 में 73 दिन तक चले दोकलाम विवाद को शांत करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। इसके पहले उन्होंने 2015 में नेपाल में आए भीषण भूकंप में भी राहत कार्यों में भारत की तरफ से उल्लेखनीय कार्य किया था। उन्हें 2019 में पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। संभव है, उन्हें विदेश मंत्रालय का पदभार मिला। 

यहां देखें पूरी लिस्ट, किसे क्या मिला

 

 मंत्रियों का नाम

 

मंत्रालय
 नरेंद्र मोदी (प्रधानमंत्री)  प्रधानमंत्री के पद के साथ कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष मंत्रालय। इसके अलाव वो सभी मंत्रालय जो किसी भी मंत्री को न दिए गए हों।
 राजनाथ सिंह (कैबिनेट मंत्री)  रक्षा मंत्रालय
अमित शाह (कैबिनेट मंत्री)  गृह मंत्रालय
नितिन गडकरी (कैबिनेट मंत्री)  सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय
सदानंद गौड़ा (कैबिनेट मंत्री)  रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय
निर्मला सीतारमण (कैबिनेट मंत्री)  वित्त एवं कॉरपोरेट मामले का मंत्रालय
राम विलास पासवान (कैबिनेट मंत्री)  उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
 नरेंद्र सिंह तोमर (कैबिनेट मंत्री)  कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय
रविशंकर प्रसाद (कैबिनेट मंत्री)  कानून एवं न्याय, संचार और इलेक्ट्रानिक एवं सूचना मंत्रालय
 हरसिमरत कौर बादल (कैबिनेट मंत्री)  खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय
एस. जयशंकर (कैबिनेट मंत्री)  विदेश मंत्रालय
रमेश पोखरियाल निशंक (कैबिनेट मंत्री)  मानव संसाधन विकास मंत्रालय
थावर चंद गहलोत (कैबिनेट मंत्री)  सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय
अर्जुन मुंडा (कैबिनेट मंत्री)  आदिवासी मामलों का मंत्रालय
स्मृति ईरानी (कैबिनेट मंत्री)  महिला एवं बाल विकास और कपड़ा मंत्रालय
हर्षवर्धन (कैबिनेट मंत्री)  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, विज्ञान और प्रोद्योगिकी, भूविज्ञान मंत्रालय
प्रकाश जावड़ेकर (कैबिनेट मंत्री)  पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय
पीयूष गोयल (कैबिनेट मंत्री)  रेलवे और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय
धर्मेंद्र प्रधान (कैबिनेट मंत्री)  पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस और इस्पात मंत्रालय
मुख्तार अब्बास नकवी (कैबिनेट मंत्री)  अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय
प्रह्लाद जोशी (कैबिनेट मंत्री)  संसदीय मामले, कोयला और खान मंत्रालय
महेंद्र नाथ पांडेय (कैबिनेट मंत्री)  कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय
अरविंद सावंत (कैबिनेट मंत्री)  भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय
गिरिराज सिंह (कैबिनेट मंत्री)  पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय
गजेंद्र सिंह शेखावत (कैबिनेट मंत्री)  जल शक्ति मंत्रालय
संतोष गंगवार (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  श्रम एवं रोजगार मंत्रालय
राव इंद्रजीत सिंह (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन और नियोजन मंत्रालय
श्रीपद नाईक (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  आयुष मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार), रक्षा मंत्रालय (राज्य मंत्री)
जितेंद्र सिंह (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  पूर्वोत्तर विकास (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, कार्मिक, जनशिकायत और पेंशन, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष मंत्रालय (राज्य मंत्री)
किरण रिजिजू (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  युवा मामले एवं खेल (स्वतंत्र प्रभार), अल्पसंख्यक मामले (राज्य मंत्री)
प्रह्लाद सिंह पटेल (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  संस्कृति और पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार)
आरके सिंह (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  बिजली, नवीन एवं नवीकरणीय उर्जा (स्वतंत्र प्रभार), कौशल विकास एवं उद्यमिता (राज्य मंत्री)
हरदीप सिंह पुरी (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  शहरी विकास और नागरिक उड्डयन मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (राज्य मंत्री)
मनसुख मंडाविया (राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)  जहाजरानी (स्वतंत्र प्रभार), रसायन एवं उर्वरक (राज्य मंत्री)
फग्गन सिंह कुलस्ते (राज्य मंत्री)  इस्पात राज्य मंत्री
अश्विनी चौबे (राज्य मंत्री)  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री
जनरल (रिटायर) वीके सिंह (राज्य मंत्री)  सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री
कृष्ण पाल गुज्जर (राज्य मंत्री)  सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण राज्य मंत्री
दानवे रावसाहेब दादाराव (राज्य मंत्री)  उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री
जी. किशन रेड्डी (राज्य मंत्री)  गृह राज्य मंत्री
पुरुषोत्तम रुपाला (राज्य मंत्री)  कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री
रामदास अठावले (राज्य मंत्री)  सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण राज्य मंत्री
साध्वी निरंजन ज्योति (राज्य मंत्री)  ग्रामीण विकास राज्य मंत्री
बाबुल सुप्रियो (राज्य मंत्री)  पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री
संजीव कुमार बलियान (राज्य मंत्री)  पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन राज्य मंत्री
धोत्रे संजय शमराव (राज्य मंत्री)  मानव संसाधन विकास, संचार और इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री
अनुराग सिंह ठाकुर (राज्य मंत्री)  वित्त और कॉरपोरेट मामले राज्य मंत्री
सुरेश अंगादि (राज्य मंत्री)  रेल राज्य मंत्री
नित्यानंद राय (राज्य मंत्री)  गृह राज्य मंत्री
वी मुरलीधरन (राज्य मंत्री)  विदेश, संसदीय कार्य राज्य मंत्री
रेणुका सिंह (राज्य मंत्री)  आदिवासी मामलों की राज्य मंत्री
सोम प्रकाश (राज्य मंत्री)  वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री
रामेश्वर तेली (राज्य मंत्री)  खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री
प्रताप चंद्र सारंगी (राज्य मंत्री)  सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम और पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन राज्य मंत्री
कैलाश चौधरी (राज्य मंत्री)  कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री
देबाश्री चौधरी (राज्य मंत्री)  महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री
अर्जुन राम मेघवाल (राज्य मंत्री)  संसदीय कार्य, भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री
रतन लाल कटारिया (राज्य मंत्री)  जलशक्ति और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण राज्य मंत्री
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