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आवरण कथा/राजनीति : ब्रांड मोदी को कितना नुकसान?

महामारी से निपटने में सरकार की विफलता से शहरों में भारी नाराजगी लेकिन राजनैतिक नुकसान कितना, इसका अंदाजा अभी नहीं
बहुमत का दमः पश्चिम बंगाल की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 अप्रैल को जब पश्चिम बंगाल के आसनसोल में अपनी चुनावी रैली में भारी भीड़ देखी, तो वे उसकी सराहना किए बिना नहीं रह सके। उन्होंने कहा, "मैंने पहली बार ऐसी सभा देखी है। मैं जिधर भी देखता हूं, लोग ही लोग नजर आते हैं। आपने चमत्कार किया है।" उस दिन देश में तब तक के सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले पकड़ में आए थे। उस दिन 2,61,394 लोगों में कोरोना के संक्रमण का पता चला और 1000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। वह लगातार चौथा दिन था जब देश में कोविड-19 के मामलों में दो लाख से अधिक की बढ़ोतरी हुई थी। प्रधानमंत्री को जवाब देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, "यह पहली बार है जब इतने ज्यादा संक्रमण के मामले सामने आए हैं और लोगों की मौतें हुई हैं। "

विडंबना यह है कि उसी सुबह, प्रधानमंत्री ने शीर्ष हिंदू संत और धर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से भी बात की थी और उनसे अपील की थी कि महामारी को देखते हुए कुंभ मेले को प्रतीकात्मक कर दिया जाए। कुंभ में उस वक्त लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंच चुकी थी। जिस दिन प्रधानमंत्री ने अपील की थी, वह कुंभ का 17 वां दिन था और तब तक वहां कई डॉक्टर, पुलिसकर्मी और प्रशासनिक कर्मचारी कोरोना संक्रमित हो चुके थे।

इस बीच, ऑक्सीजन की कमी और अस्पतालों में बेड की किल्लत से मरीज सड़कों पर मरने को मजबूर हैं। आलम यह है कि उन्हें इलाज के लिए जीवन रक्षक दवाएं नहीं मिल रही हैं। श्मशान घाट में भी जगह नहीं बची है। दिल दहला देने वाली तस्वीरें पूरे देश से आ रही हैं। देश की राजधानी तक इससे अछूती नहीं है। लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया पर साफ तौर पर दिख रहा है। वे बार-बार यही सवाल पूछ रहे हैं कि जब दूसरी लहर की चेतावनी पहले से मिल चुकी थी, तो फिर सरकार ने तैयारियां क्यों नहीं की?

 

देश की अदालतों ने सरकार को 'भीख मांगने और चोरी करने' तक की हिदायत दे डाली तो चुनाव आयोग के अधिकारियों पर 'हत्या के मुकदमे' की बात भी कही

 

राज्य ऑक्सीजन की आपूर्ति और रेमडेसिविर और फैबीफ्लू जैसी दवाओं की मांग कर रहे हैं। ऑक्सीजन की किल्लत से परेशान अस्पताल अदालतों का रुख कर रहे हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को चिकित्सा सुविधाओं और ऑक्सीजन की व्यवस्था करने के लिए "भीख मांगने, उधार लेने या चोरी करने तक" की बात कह दी। अदालत ने कहा, "हम हैरान और निराश हैं। सरकार वास्तविकता से क्यों नहीं वाकिफ हो रही है?" मद्रास उच्च न्यायालय ने 26 अप्रैल को कड़े शब्दों में कहा कि चुनाव आयोग कोविड-19 को फैलाने के लिए अकेले जिम्मेदार है और इस "गैर-जिम्मेदाराना" व्यवहार के लिए उसके अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि आयोग ने चुनावी रैलियों में कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन होने दिया और इस संबंध में उसने राजनीतिक दलों के खिलाफ कोई भी सख्त कदम नहीं उठाया।

भले ही सभी दल चुनावी रैलियों कर रहे थे, लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर को देखते हुए भी प्रधानमंत्री की चुनावों में सक्रिय भागीदारी ने कई सारे सवाल खड़े कर दिए है। सरकार के सूत्रों का दावा है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति पर चर्चा के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे प्रधानमंत्री मोदी से बात तक नहीं कर पाए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 17 अप्रैल को प्रधानमंत्री बंगाल की चुनावी रैली में व्यस्त थे।

इस भयावह दौर में भी ऐसा लग रहा है कि भाजपा का एक मात्र लक्ष्य चुनावो में जीत हासिल करना रह गया है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी कहते हैं कि सरकार ने मूल समस्या से अपनी नजरें हटा ली हैं। “पिछले 15 दिन काफी भयावह थे, यह समझ से परे है कि एक तरफ लोग बीमार हैं, अस्पतालों में इलाज नहीं मिलने से लोग मर रहे हैं और भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पश्चिम बंगाल में अपने उन्मादी समर्थकों को चुनावी रैलियां कर संबोधित कर रहे हैं। सरकार की यह लापरवाही अपराध से कम नहीं है।”

हालांकि तिवारी यह भी कहते हैं, “मुझे इस बात का भरोसा कम है कि सरकार को इस गैरजिम्मेदाराना और लापरवाही भरे व्यवहार का नुकसान उठाना पड़ेगा। पिछले दो साल में अर्थव्यवस्था को 32 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। उत्तर प्रदेश में सैकड़ों बच्चे इंसेफ्लाइटिस से मर जाते हैं, लेनिक वह चुनावी मुद्दा नहीं बनता है। ऐसे में कोई नहीं जानता कि चुनावी मुद्दें क्या होते हैं? चुनाव छोड़िए, क्या इस सरकार को सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार है? अगर वायरस की वजह से स्थिति ऐसी ही भयावह बनी रहती है तो शायद बदलाव हो जाए।”

 

संघ के एक पदाधिकारी के अनुसार इस समय भाजपा को राष्ट्रवाद और राजनीतिक लाभ के लिए देशभक्ति की भावना को उकसाने की जरूरत है

 

भाजपा के भीतर भी बेचैनी बढ़ रही है। कई वरिष्ठ नेताओं को लगता है कि बंगाल की चुनावी लड़ाई में पार्टी ने उन चीजों से ध्यान हटा दिया जो मायने रखती हैं। पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में जब से कोविड-19 के मामले घटने शुरू हुए, शायद ही कभी पार्टी की बैठकों में उस पर चर्चा हुई हो। सारा ध्यान चार राज्यों, खास तौर से पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों पर था।

यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी जमीन पर गुस्से को भांप लिया है। सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने हाल ही में एक बयान जारी कर कहा, “महामारी ने देश के लिए एक विकट चुनौती खड़ी कर दी है। विनाशकारी और भारत विरोधी ताकतें देश में नकारात्मकता और अविश्वास का माहौल बनाने के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों का फायदा उठा सकती हैं।" सूत्रों ने आउटलुक को बताया कि आरएसएस नेतृत्व ने पार्टी को अवगत कराया है कि जमीन पर परिस्थितियां बदल रही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी ने दावा किया है कि 2019 में पुलवामा हमले से ज्यादा, इस समय भाजपा को राष्ट्रवाद और राजनीतिक लाभ के लिए देशभक्ति की भावना को उकसाने की जरूरत है।

ऑर्गनाइजर के पूर्व संपादक शेषाद्रिचारी ने कहा कि कोविड-19 के प्रबंधन को लेकर भले ही लोगों में थोड़ा गुस्सा हो, लेकिन इसे सरकार के खिलाफ बड़ी लहर के रूप में नहीं देखा जा सकता है। सरकार मजबूत पैरों पर खड़ी है। अगर राज्य इस स्थिति में राजनीति की कोशिश करते हैं तो वह उल्टा उन्हीं को नुकसान पहुंचाएगा। महामारी पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा लोगों का ज्यादा गुस्सा राज्य सरकारों पर होगा। दोष प्रधानमंत्री को नहीं देना चाहिए।

हालांकि, उन्होंने भी स्वीकार किया कि “प्रधानमंत्री की विशाल रैलियां टाली जा सकती थीं। लेकिन वे यह भी कहते हैं पश्चिम बंगाल में पार्टी के लिए करो या मरो की स्थिति है, उनके पास राज्य में सरकार बनाने का एक वास्तविक मौका है।”

शेषाद्रिचारी के अनुसार, “सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर मोदी और सरकार के खिलाफ जो हमले दिख रहे हैं, वे काफी अव्यवस्थित हैं। यह विरोध ऐसा नहीं है जिसे भाजपा का आइटी सेल नियंत्रित न कर सके। जब कोविड-19 की दूसरी लहर थम जाएगी, तो लोग उसे भूल जाएंगे और मोदी की लोकप्रियता बनी रहेगी।”

राजनीतिक विश्लेषक सज्जन कुमार सिंह इस बात से सहमत हैं कि कोविड-19 के बावजूद राजनैतिक या चुनावी तौर पर मोदी को नुकसान होता नहीं दिख रहा है। वे कहते हैं कि जमीन पर जो कुछ भी दिख रहा है, वह खत्म हो जाएगा। पश्चिम बंगाल की यात्रा के अनुभवों के बारे में वे कहते हैं, "मुझे एक भी मतदाता नहीं दिखा जिसने कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद मोदी के लिए मतदान के बारे में अपना मन बदल दिया हो।" राज्य के चुनावों पर एक व्यापक रिपोर्ट पहले ही सामने आ चुकी हैं, जिसमें कहा गया है कि भाजपा 160 सीटों पर जीत हासिल करेगी।

वे कहते हैं, “मोदी ब्रांड और उनका करिश्मा जरूर कम हुआ है लेकिन उसमें बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आई है। ज्यादातर लोगों की प्रतिक्रिया पहले से तय होती है। ऐसे माहौल में मोदी को बहुत ज्यादा राजनीतिक नुकसान नहीं होने वाला है।” वे कहते हैं, “राजनीतिक सोच बहुत ज्यादा तार्किक नहीं होती है। वह लोगों की पसंद, नापसंद, पक्षपात, पूर्वाग्रहों और धारणाओं पर निर्भर करती है। ऐसे में अगर आप उन्हें पसंद या नापसंद करते हैं तो उसके समर्थन के लिए भी सब कुछ करेंगे।”

उनका मानना है, "जिस तरह से केंद्र सरकार कोरोना संकट को संभालने में उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी और बंगाल चुनाव जीतने के लिए उसने बेताबी दिखाई है, उससे हो सकता है कि लोगों के मन में गुस्सा हो। लेकिन जो लोग उन्हें अपना नेता मानते हैं, उनका रवैया आक्रामक होता है। यह सच है कि मोदी के खिलाफ शहरों में, खास तौर से युवाओं में काफी नाराजगी है, लेकिन अब भी भी बहुमत उनके साथ है।” वे एक और बात बताते हैं। “हर संकट के बाद लोगों ने मोदी को और मजबूत होते देखा है। चाहे वह नोटबंदी, आर्थिक मंदी, सीएए विरोध या प्रवासी मजदूरों का संकट हो, हर संकट के बाद वे एक मजबूत और निर्भीक नेता के रूप में उभरे है। बहुमत ने उनके विचार को गले लगाया है। सवाल है कि इस समय मोदी के अलावा और कौन है? मौजूद संकट और गुस्से को विपक्षी दल राजनीतिक अवसर में बदल सकते हैं। लेकिन मोदी के करिश्मे को खत्म न कर पाना विपक्ष का संकट है।”

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