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उपचुनाव: जोर से लगा धीरे का झटका

मध्य प्रदेश और उत्तर पूर्व में भाजपा तो हिमाचल और राजस्थान में कांग्रेस मजबूत, बंगाल में सिर्फ ‘दीदीगीरी’
मंडी लोकसभा सीट से विजयी कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह

दीपावली से पहले 14 राज्यों में विधानसभा की 30 और लोकसभा की तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे राजनीतिक दलों को मिश्रित खुशी देने वाले थे। लेकिन हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में मिली हार ने भाजपा को इतना डरा दिया कि अगले ही दिन केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम घटा दिए। उससे पहले पार्टी के तमाम नेता अंतरराष्ट्रीय कीमतों का हवाला देते हुए महंगाई को जायज ठहरा रहे थे। जानकार इसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर लिया गया फैसला मानते हैं। उपचुनावों में भाजपा ने उत्तर-पूर्व में दबदबा बढ़ाया तो मध्य प्रदेश में भी उसका प्रदर्शन बेहतर रहा। लेकिन हिमाचल प्रदेश की एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उसे कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने राजस्थान में भी उसे शिकस्त दी तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने किसी अन्य को पैर रखने तक की जगह नहीं दी। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने एक-दूसरे से चार-चार सीटें छीनीं। हालांकि हिमाचल की मंडी लोकसभा सीट भाजपा से लेकर कांग्रेस ने अपना पलड़ा भारी कर लिया। तीस विधानसभा सीटों में से छह पर भाजपा थी, जो चुनाव बाद सात हो गईं। कांग्रेस की सीटों की संख्या 10 से घटकर आठ रह गई। शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र से बाहर कदम रखा और दादरा नागर हवेली लोकसभा सीट जीत ली।

पश्चिम बंगाल में खड़दह, शांतिपुर, दिनहाटा और गोसाबा में चुनाव हुए और चारों सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की है। मई में हुए विधानसभा चुनावों में तृणमूल को 45 फीसदी और भाजपा को 38 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन उपचुनाव में भाजपा का वोट घटकर 10 (गोसाबा) से 23 फीसदी रह गया तो तृणमूल का 87 फीसदी तक जा पहुंचा। दो सीटों पर तो भाजपा की जमानत जब्त हो गई। पहले दिनहाटा और शांतिपुर सीटें भाजपा के पास थीं। विधानसभा चुनाव में सांसद और केंद्रीय मंत्री निशीथ प्रामाणिक ने दिनहाटा सीट सिर्फ 57 वोटों से जीती थी। यहां उपचुनाव में तृणमूल उम्मीदवार उदयन गुहा 1.64 लाख वोटों से जीते। गोसाबा में भी तृणमूल को 1.43 लाख के अंतर से जीत मिली। भाजपा के लिए ये नतीजे इसलिए झटका देने वाले हैं क्योंकि दिनहाटा उत्तर बंगाल (कूचबिहार जिला) में है जहां पार्टी मजबूत मानी जाती है। खास बात यह है कि इन चुनावों में ममता बनर्जी ने प्रचार नहीं किया था। इन नतीजों का असर त्रिपुरा और मेघालय में भी दिख सकता है जहां तृणमूल पैर जमाने के प्रयास में है।

बिहार में कुशेश्वरस्थान और तारापुर की सीटें भाजपा की सहयोगी और नीतीश कुमार के जदयू ने जीतीं। पहले भी ये सीटें उसी के पास थीं। यहां पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद साथ थे। इस बार कांग्रेस कुशेश्वरस्थान को अपनी पारंपरिक सीट बता कर अपना उम्मीदवार खड़ा करना चाहती थी, जिस पर राजद राजी नहीं हुई। दोनों पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए। कुशेश्वरस्थान में कांग्रेस को मुश्किल से चार फीसदी (5,600) वोट मिले। तारापुर में तो उसे दो फीसदी यानी 3,590 वोट ही मिले। नतीजों से लगता है कि कांग्रेस को कोई सीट न देने का राजद का निर्णय सही था। राजद प्रमुख लालू यादव खराब स्वास्थ्य के बावजूद तीन साल बाद प्रचार करने बिहार लौटे थे, लेकिन वे पार्टी को जीत न दिला सके।

वरिष्ठ स्तंभकार राधिका रामशेषण कहती हैं, “कांग्रेस को उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में हकीकत को समझना चाहिए। वहां उसका जनाधार पहले जैसा नहीं रहा। खुद को लो प्रोफाइल में रखकर उसे मजबूत क्षेत्रीय दलों को फैसला लेने देना चाहिए।”

असम में भाजपा पांच में से तीन सीटों पर लड़ी, दो सीटें सहयोगी दल यूपीपीएल के लिए छोड़ी थी। भाजपा ने तीन दशक से कांग्रेस के कब्जे वाली मरियानी और थोउरा सीटें छीन लीं। मरियानी में भाजपा के 62 फीसदी के मुकाबले कांग्रेस को 17.3 फीसदी और थोउरा में 62 फीसदी की तुलना में सिर्फ 6.6 फीसदी वोट मिले। भवानीपुर में भी भाजपा को जीत मिली जो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सहयोगी रही एआइयूडीएफ के पास थी। एआइयूडीएफ को यहां 5.6 फीसदी तो कांग्रेस को 34 फीसदी वोट मिले। यूपीपीएल ने भी तमुलपुर और गोसाईगांव सीटें विपक्षी दलों से छीनी हैं। असम उपचुनाव में कांग्रेस ने किसी के साथ गठबंधन नहीं किया था।

उत्तर पूर्व में कांग्रेस को मेघालय में भी दो सीटें गंवानी पड़ीं। ये सीटें एनपीपी के हाथ लगीं। वहां तीसरी सीट पर यूडीपी को जीत मिली है। तीनों स्थानों पर कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी रही। मिजोरम की एक सीट पर मिजो नेशनल फ्रंट और नगालैंड की एक सीट पर एनडीपीपी के उम्मीदवार विजयी हुए।

खंडवा से जीते भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल

खंडवा से जीते भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने भाजपा से रायगांव सीट करीब तीन दशक बाद छीनी तो भाजपा ने पृथ्वीपुर और 90 फीसदी आदिवासी वोट वाली जोबट सीटें कांग्रेस से छीन लीं। इन दोनों सीटों पर भाजपा ने कांग्रेस से आए उम्मीदवारों को उतारा था। खंडवा लोकसभा सीट पर भाजपा ने अपना कब्जा बरकरार रखा। उपचुनावों के जरिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी स्थिति और मजबूत की है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी हिमाचल प्रदेश से आई जहां उसने तीनों विधानसभा सीटों फतेहपुर, अर्की तथा जुब्बल कोटखाई और मंडी लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया। फतेहपुर और अर्की सीटें पहले कांग्रेस के पास हीं थीं, जबकि जुब्बल कोटखाई सीट उसने भाजपा से हथियाई है। जुब्बल में भाजपा को सिर्फ 4.6 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर चली गई।

मंडी लोकसभा सीट पर पांच बार मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह जीतीं। हालांकि भाजपा प्रत्याशी के 48 फीसदी के मुकाबले उन्हें 49 फीसदी वोट मिले। भाजपा ने 2019 के आम चुनाव में यह सीट चार लाख वोटों के अंतर से जीती थी। प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के लिए यह बड़ी खुशखबरी है।

कांग्रेस को राजस्थान की वल्लभनगर और धरियावाड़ विधानसभा सीटों पर भी जीत मिली है। वल्लभनगर सीट तो पहले भी कांग्रेस के पास ही थी, लेकिन धरियावाड़ उसने भाजपा से छीनी है। धरियावाड़ में भाजपा तीसरे तो वल्लभनगर में चौथे स्थान पर रही।

हरियाणा में ऐलनाबाद सीट पर चुनाव हुआ था, जहां इनेलो के अभय सिंह चौटाला ने भाजपा के गोपाल कांडा को पराजित किया। महाराष्ट्र की देगलूर सीट पर कांग्रेस ने अपना नियंत्रण बनाए रखा। उसके प्रत्याशी को महा विकास आघाडी गठबंधन का समर्थन हासिल था। मजेदार बात यह रही कि दादरा नागर हवेली लोकसभा सीट पर कांग्रेस, शिवसेना और भाजपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था, जिसमें शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र से बाहर कदम रखते हुए दोनों पार्टियों को पराजित किया।

कर्नाटक में सिंदगी सीट भाजपा ने जेडीएस से हथिया ली तो हंगल सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली। हंगल मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के गृह जिले हावेरी में आता है। यहां मुख्यमंत्री के अलावा आधा दर्जन मंत्री भी चुनाव प्रचार कर रहे थे। तेलंगाना में भाजपा के एटाला राजेंदर ने टीआरएस प्रत्याशी को हराकर लगातार सातवीं बार हुजूराबाद सीट जीत ली। राजेंद्र टीआरएस छोड़कर भाजपा में गए थे। आंध्र प्रदेश में बडवेल सीट पर वाईएसआर कांग्रेस (76 फीसदी) ने भाजपा (15 फीसदी) पर आसान जीत दर्ज की।

रामशेषण के अनुसार इन नतीजों का कोई व्यापक अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। वे कहती हैं, “लोकसभा चुनाव से ठीक पहले या बाद में जो विधानसभा चुनाव हुए, उनकी तुलना में आम चुनावों में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया है।” पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को 38.5 फीसदी वोट मिले थे लेकिन 2019 के आम चुनाव में उसे यहां 56 फीसदी वोट मिले। उसी तरह हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनावों में उसे क्रमशः 36 और 33 फीसदी वोट मिले थे जबकि लोकसभा चुनाव में दोनों राज्यों में उसमें 50 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी यही हुआ।

लेकिन इन नतीजों का प्रदेश स्तर पर असर तो होगा ही। पश्चिम बंगाल में भाजपा से तृणमूल जाने वाले नेताओं की कतार और लंबी हो सकती है। मई में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अभी तक चार भाजपा विधायक तृणमूल में जा चुके हैं। बिहार में आने वाले दिनों में कांग्रेस-राजद गठबंधन पर असर दिख सकता है। राजस्थान में गहलोत की मजबूती का असर आने वाले दिनों में मंत्रिपरिषद, पार्टी और बोर्ड-निगमों की नियुक्तियों में दिखेगा। राजस्थान में भाजपा की प्रदेश इकाई में बदलाव हो सकते हैं। हिमाचल में भाजपा की सरकार होने के बावजूद उसे चारों जगहों पर हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को बदलने की मांग तेज हो सकती है। हिमाचल की हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का भी प्रदेश है।

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