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प्रशांत प्रकरण के निहितार्थ

वरिष्ठ अधिवक्ता को दोषी ठहराने और नाममात्र की सजा सुनाने से उभरे कई नए सवाल
अधिवक्ता राजीव धवन से एक रुपया लेते प्रशांत भूषण

देश की सर्वोच्च अदालत ने कोर्ट की अवमानना के मामले में 31 अगस्त को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को सजा सुनाई, तो सोशल मीडिया पर न्यायपालिका का उपहास उड़ाने वाले अनेक मीम चलने लगे और टिप्पणियां लिखी जाने लगीं। सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो महीने पहले स्वतः संज्ञान लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता भूषण के खिलाफ अवमानना का मामला शुरू किया, तो कानूनी जगत के साथ-साथ अनेक बुद्धिजीवी भूषण की सहानुभूति और समर्थन में उतर आए। तीन जजों की बेंच ने जब उन्हें सजा सुनाई तो यह एक तरह से सामूहिक जश्न में तब्दील हो गया। जस्टिस अरुण मिश्रा, बी.आर. गवई और कृष्ण मुरारी की बेंच ने अपने फैसले में कहा, “अगर हमने इस तरह के व्यवहार का संज्ञान नहीं लिया तो इससे देश भर के वकीलों और न्याय की उम्मीद लगाए लोगों में गलत संदेश जाएगा। फिर भी दरियादिली दिखाते हुए हम कठोर सजा देने के बजाय अवमानना करने वाले (भूषण) पर सिर्फ एक रुपये का जुर्माना लगाते हैं।” भूषण ने जुलाई में प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबडे और तीन अन्य पूर्व प्रधान न्यायाधीशों के खिलाफ ट्वीट किया था। बेंच ने इस मामले में भूषण को दोषी माना था।

ट्वीट का स्वतः संज्ञान लेकर कोर्ट ने भूषण के खिलाफ गंभीर टिप्पणियां कीं। बेंच ने कहा कि भूषण ने ट्वीट करने के साथ-साथ अपने इस कार्य के लिए माफी न मांगने वाले जो दो बयान दिए, वे उस न्याय-व्यवस्था की प्रतिष्ठा को कम करने का प्रयास हैं, जिसका वे स्वयं हिस्सा हैं। “अगर वकीलों को संस्थान के खिलाफ विद्वेषपूर्ण, अपमानजनक और मिथ्या आरोप लगाने की अनुमति दी गई तो वकील के पेशे का महत्व और उसकी मर्यादा नहीं रह जाएगी। वकीलों से उम्मीद की जाती है कि वे बिना किसी डर के स्वतंत्रतापूर्वक काम करें, लेकिन इसके साथ ही संस्थान के प्रति उनका व्यवहार भी सम्मानजनक होना चाहिए।”

इन कठोर शब्दों में भूषण की आलोचना करने के बावजूद कोर्ट ने उनके प्रति ‘दरियादिली’ दिखाने का फैसला किया। रोचक बात यह थी कि भूषण ने बेंच के सामने पहले ही कहा था, “मैं दया की याचना नहीं करता, मैं दरियादिली की अपील भी नहीं करता हूं। मेरे विचार में एक नागरिक का जो सर्वोच्च कर्तव्य है और जिसे कोर्ट अपराध मानता है, उसके लिए कानूनी रूप से जो भी सजा दी जाएगी, उसे खुशी-खुशी स्वीकार करने के लिए मैं तैयार हूं।”

एक रुपये का जुर्माना लगाने की ‘दरियादिली’ दिखाने के साथ बेंच ने यह भी कहा कि अगर भूषण 15 सितंबर तक सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में यह रकम जमा नहीं कराते हैं, तो उन्हें तीन महीने कैद की सजा होगी और वे सर्वोच्च न्यायालय में तीन साल तक वकालत भी नहीं कर सकेंगे। बेंच ने यह भी कहा कि “अवमानना करने वाले (भूषण) को जेल भेजने या उनकी वकालत पर रोक लगाने से हम डरते नहीं हैं। उनके व्यवहार में जिद्दीपन और अहं झलकता है, जिसकी न्याय-व्यवस्था में कोई जगह नहीं है।”

वरिष्ठ अधिवक्ता को अवमानना का दोषी ठहराने और सजा सुनाए जाने की घटना ने भूषण के साथियों और समर्थकों को जश्न मनाने का एक असाधारण मौका दे दिया। अपने 37 साल के करिअर में भूषण पारदर्शिता, मानवाधिकार, न्यायिक जवाबदेही जैसे मामले उठाने के लिए जाने जाते रहे हैं। वैसे तो न्यायिक कामकाज नीरस होता है, लेकिन भूषण के खिलाफ पूरी कार्यवाही इसके बिल्कुल विपरीत थी। उनके खिलाफ जिस तरीके से और जिस समय मामला दर्ज किया गया, उस पर अनेक कानूनी विशेषज्ञों ने सवाल उठाए। उनके खिलाफ 2009 के अवमानना के एक अन्य मामले को दोबारा खोलने का भी फैसला किया गया, जिसकी सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच करेगी।

सुनवाई के दौरान भूषण के वकील के तर्कों ने भी एक बड़ी बहस को जन्म दिया। भूषण ने दो बयान दिए, जिनमें उन्होंने अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांगने से पूरी तरह इनकार कर दिया था। इसके बाद कोर्ट एक तरह से उन्हें माफी मांगने के लिए बार-बार मनुहार करता रहा, ताकि मामले को खत्म किया जा सके। लेकिन दोषी ठहराए जाने के बाद भी भूषण माफी न मांगने पर अड़े रहे, जिससे कोर्ट पसोपेश की स्थिति में आ गया जिसे उसने खुद पैदा किया था। अवमानना कानून के तहत छह महीने की कैद या दो हजार रुपये तक जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है, लेकिन बेंच यह सजा देने से बचना चाहती थी। हालांकि उसने भूषण को दोषी ठहरा दिया था, इसलिए वह उन्हें बिना सजा दिए छोड़ भी नहीं सकती थी।

भूषण के वकील राजीव धवन ने चतुराई भरी दलील दी कि अगर उन्हें जेल भेजा गया तो वे एक तरह से ‘शहीद’ का दर्जा हासिल कर लेंगे। स्पष्ट था कि ऐसी हालत में कोर्ट की और अधिक आलोचना होती। हाल के वर्षों में वरवर राव, सुधा भारद्वाज और अन्य मामलों में, जिनके खिलाफ स्पष्ट रूप से मामले गढ़े गए थे, आरोपियों को जेल भेजे जाने पर कोर्ट की पहले ही काफी आलोचना हो रही थी। कोर्ट ने भूषण मामले में अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल की मदद भी मांगी, लेकिन उन्होंने बेंच से भूषण को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ देने का आग्रह किया।

प्रशांत भूषण मामले से नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार की रक्षा करने के न्यायपालिका के कर्तव्य, अवमानना कानून पर उसके अमल करने, आलोचना सहने की कोर्ट की क्षमता के साथ-साथ जजों के सांस्‍थानिक और  व्यक्तिगत व्यवहार पर दोबारा बहस भी शुरू हो गई। ऐसे समय जब असहमति के प्रति असहिष्णुता सामान्य बात होती जा रही है, कोर्ट और भूषण संभवतः दोनों इस बात को समझ रहे थे कि आम लोगों के मुद्दे उठाने वाले एक प्रतिष्ठित वकील को सजा देने पर आम लोगों में क्या प्रतिक्रिया होगी।

भूषण को एक रुपया जुर्माने की सजा सुनाते हुए कोर्ट ने इन चिंताओं को दूर करने की कोशिश की। बेंच ने कहा, “लोगों को नेकनीयती के साथ आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें उन लोगों पर गलत इरादे से आरोप लगाने से बचना चाहिए, जो न्याय-व्यवस्था में शामिल हैं। नेकनीयती से की जाने वाली आलोचना, दुर्भावनापूर्ण आलोचना या न्यायिक संस्थान की प्रतिष्ठा गिराने के प्रयास के बिल्कुल विपरीत है।”

आम तौर भूषण बेबाक बोलने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन अपने खिलाफ सुनाई गई सजा पर उन्होंने सावधानीपूर्वक टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “मुझे दोषी ठहराने और सजा सुनाए जाने के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने का अधिकार है।” उन्होंने कहा कि मैं ससम्मान जुर्माना दूंगा और इसके अतिरिक्त कानूनी तरीके से जो भी सजा दी जाती, उसे भी मैं स्वीकार करता। बेंच की तरफ से फैसला सुनाए जाने के कुछ ही समय बाद मीडिया से बातचीत में भूषण ने कहा, “मैं सुप्रीम कोर्ट का बेहद सम्मान करता हूं। यह उम्मीद की आखिरी किरण है, खासकर कमजोर और शोषित वर्ग के लिए जो शक्तिशाली कार्यपालिका से सुरक्षा के लिए इसका दरवाजा खटखटाते हैं।”

हालांकि भूषण अपनी इस बात पर कायम रहे कि ट्वीट के पीछे उनका इरादा पूरी न्यायपालिका का असम्मान करना नहीं, बल्कि अपना रोष व्यक्त करना था। उन्होंने कहा, “जब सुप्रीम कोर्ट की विजय होती है, तो हर भारतीय की विजय होती है। हर भारतीय एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका की कामना करता है। स्पष्ट है कि अगर कोर्ट कमजोर हुए तो इससे गणतंत्र कमजोर होगा और हर नागरिक को उसका नुकसान उठाना पड़ेगा।”

बहरहाल, कई हफ्ते तक कोर्ट का आदेश न मानने के अपने निर्णय पर अटल रहने के बाद प्रशांत भूषण की तरफ से इस समझौतापूर्ण संदेश से उनकी लड़ाई खत्म नहीं होगी। वे खुद को दोषी ठहराए जाने के फैसले को जल्दी ही चुनौती देंगे। इसके अलावा उनके खिलाफ अवमानना का ग्यारह साल पुराना मामला भी है। तहलका पत्रिका को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कई पूर्व प्रधान न्यायाधीशों को भ्रष्ट बताया था। तो, यह अर्द्धविराम है!

हर भारतीय एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका की कामना करता है। कोर्ट कमजोर हुए तो गणतंत्र कमजोर होगा और हर नागरिक को उसका नुकसान उठाना पड़ेगा

प्रशांत भूषण, वरिष्ठ अधिवक्ता

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