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बदल रहा राष्ट्र बदल रही राष्ट्र सेविका समिति

संघ की शाखा का तमगा लिए चुपचाप अपने काम में लगी यह संस्था, अब अपने अलग वजूद को पहुंचा रही आम जनता तक
राष्ट्र सेविका समिति के प्रेरणा शिविर में संघ प्रमुख मोहन भागवत

फूलों से सजे स्वागत द्वार पर परंपरागत महाराष्ट्रियन वेशभूषा में महिलाएं व्यवस्था संभालने में व्यस्त थीं। आयोजन स्थल पर बाहर से देख कर कोई जान नहीं सकता था कि अंदर हॉल में लगभग ढाई हजार महिलाएं मौजूद हैं। न कहीं गहमागहमी, न शोर। अपने राज्यों की परंपरागत परिधान में सजी सदस्याएं, बेहद अनुशासित ढंग से कतारबद्ध बैठी थीं। संभव है वहां आने वाले अन्य लोग स्कूली कतार के बाद पहली बार इतने अनुशासित ढंग से बैठेहों। प्रेरणा शिविर को खास तौर से संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत आए थे। भागवत ने अपने संबोधन में विज्ञान से लेकर पर्यावरण तक, भारत की एकता से लेकर पारिवारिक संस्कारों तक, देश की संस्कृति से लेकर मूल्यों तक कई विषयों पर अपने विचार रखे। पूर्वोत्तर और लद्दाख से आई सदस्याओं के बीच बहुत उत्साह था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार पथ पर चलने वाली इस संस्था की स्थापना भी विजयादशमी के दिन सन 1936 में हुई थी। वर्धा में महिलाओं में जागृति लाने और समाज के बाकी हिस्सों से उन्हें जोडऩे के लिए स्व. लक्ष्मीबाई केलकर ने इसकी स्थापना की थी। स्नेह से सभी उन्हें मौसी जी पुकारते थे। आम धारणा है कि राष्ट्र सेविका समिति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महिला शाखा है। क्‍या इसे सीधे तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महिला शाखा कहा जा सकता है, प्रश्न के जवाब में समिति की प्रमुख कार्यवाहिका सीता गायत्री अन्नदानम कहती हैं, 'राष्ट्र सेविका समिति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सीधे तौर पर महिला शाखा नहीं है। ये दोनों स्वतंत्र और स्वायत्त, परस्पर पूरक संगठन हैं, जो महिला और पुरुषों के बीच राष्ट्रीय भावना से सिंचित व्यक्तिनिर्माण का काम शाखा के माध्यम से समान्तर करते हैं। जन प्रबोधन (लोक चेतना) और जागरण के काम में अन्य संगठनों का साथ लेते भी हैं और देते भी हैं।’ अन्य संगठनों यानी ऐसे संगठन जो देशभक्ति के लिए काम करते हैं। 

राष्ट्र सेविका समिति का दायरा बहुत बड़ा है। ऌपूरे भारत में 3000 हजार शाखाएं हैं। इस समिति की जरूरत इसलिए पड़ी क्‍योंकि महिलाओं के पास सीमित समय था। वे घर की जिम्‍मेदारी संभालने के साथ देश के लिए योगदान देती हैं। यही वजह है कि समिति ने एक ऐसे अलग विभाग के बारे में सोचा जो समाज के लिए योगदान दे सके। क्‍योंकि समिति से जुड़ी सदस्याएं मानती हैं कि शिक्षित समाज ही सुदृढ़ देश की नींव है। यदि स्त्रियां जागृत होंगी तो वह परिवार को संस्कार देंगी और संस्कारी परिवार के सदस्य अच्छा देश बनाएंगे। संघ की तरह समिति की भी शाखाएं होती हैं जो प्रतिदिन और साप्ताहिक आयोजित होती हैं। यहां आने वाली सेविकाओं का शारीरिक शिक्षा और बौद्धिक विकास के जरिए आत्मविश्वास बढ़ाने के कार्य किए जाते हैं। समिति का मानना है कि महिलाओं का शिक्षित होने के साथ-साथ आत्मविश्वासी होना जरूरी है। राष्ट्र सेविका समिति में भी प्रमुख संचालिका और प्रमुख कार्यवाहिका होती हैं। प्रमुख संचालिका इस वक्‍त शांता अक्‍का हैं और प्रमुख कार्यवाहिका के रूप में सीता गायत्री अन्नदानम हैं।

समिति भारत भर से अनेक अनाथ लड़कियों की जिम्‍मेदारी उठाती है और इसके लिए पूरे भारत में समिति के 22 छात्रावास हैं, जहां लड़कियों की शिक्षा से लेकर शादी तक की जिम्‍मेदारी उठाई जाती है। यहां उन्हें पढ़ाकर अपने पैरों पर खड़ा होने में भी मदद की जाती है। सीता गायत्री अन्नदानम ने आउटलुक से बातचीत में समिति के काम के बारे में विस्तृत बात की है। उनका कहना है कि राष्ट्र सेविका समिति में जो स्वेच्छा से आना चाहे उसका स्वागत है। समिति कभी किसी पर दबाव नहीं बनाती कि उनकी संस्था से जुड़ें। जिनमें सेवा भावना है वे महिलाएं खुद आती हैं।

 

महिलाओं को समान अवसर मिले

राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख कार्यवाहिका सीता गायत्री अन्नदानम ने समिति और उससे जुड़ी बातों को आउटलुक से साझा किया:

 

1936 से संगठन में किस तरह का बदलाव देखती हैं?

मूल तत्व कायम रखते हुए बाहरी स्वरूप में समय के साथ परिवर्तन होना किसी भी संगठन में स्वाभाविक है। समाज में महिला के स्थान, सक्रियता, भूमिका और योगदान में काफी परिवर्तन आया है। समिति की 80 साल की लंबी यात्रा में भी ऐसे बदलाव हुए हैं। समिति की प्रार्थना, शारीरिक कार्यक्रम, बौद्धिक के विषय में परिवर्तन, सेवा, संपर्क, प्रचार आदि विभागों का जुडऩा, वंचित और अविकसित क्षेत्रों में छात्राओं की पढ़ाई के लिए छात्रावास आदि कई नए आयाम जुड़े हैं। प्रतिभावान महिलाओं के लिए, 'मेधाविनी मंडल’ की रचना भी हुई है।

इतने सालों में महिलाओं के मुद्दे बदले हैं। समिति किस तरह महिलाओं के बदलते मुद्दों पर काम करता है?

आर्थिक, सामाजिक, रक्षा, आईटी, मीडिया, राजनीति सभी क्षेत्रों में महिलाओं के कामों का क्षितिज बढ़ा है। पर मुद्दे नहीं बदले। अन्याय-अत्याचार की पद्धति बदली है। स्त्री आत्मनिर्भर, सतर्क और सावधान रहे, उसकी स्वयं रक्षा क्षमता बढ़े, उसका मन-मस्तिष्क मजबूत बने यही हमारा प्रयास रहता है। इसे आधार बनाकर समय के अनुसार कार्यक्रम और उपक्रमों में जरूरी बदलाव होता है।

समिति की शाखाएं संघ की शाखाओं से किस तरह अलग हैं?

दोनों शाखाओं में खेल, शारीरिक-बौद्धिक कार्यक्रम आदि समान ही हैं। संघ और समिति की प्रार्थना अलग-अलग है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए शाखा में रोज इकट्ठा होना या आना कठिन होता है। इसलिए समिति की शाखाएं रोज की अपेक्षा साप्ताहिक ज्यादा हैं। घर के कामकाज से समय निकालकर आना होता है इसलिए समिति की शाखाओं का समय भी अलग यानी सुबह देर से या अक्‍सर दोपहर या शाम होता है।

तीन तलाक के मुद्दे पर समिति का क्‍या स्टैंड है, घरेलू हिंसा जैसे मुद्दे पर समिति काम करती है?

तलाक वैसे तो महिला सम्‍मान विरोधी है। एक नागरिक के नाते समाज की हर महिला को समान अवसर और न्यायिक सम्‍मान मिलना ही चाहिए। राष्ट्र सेविका समिति की जुलाई, 2016 में संपन्न अखिल भारतीय कार्यकारिणी और प्रतिनिधि बैठक में इसी विषय पर प्रस्ताव पारित किया गया। कहीं भी किसी भी परिस्थिति में किसी भी कारण से हिंसा न हो यही हमारा प्रयास रहता है। आंदोलन या

हो-हल्ले से नहीं बल्कि संस्कार के माध्यम से मन परिवर्तन और लोगों में चेतना लाकर ही हिंसक प्रवृत्ति बदल सकती है। कुछ परंपराओं में काल और परिस्थिति सापेक्ष परिवर्तन करना चाहिए यह समिति की मान्यता है। जरूरत पडऩे पर विरोध प्रदर्शन भी किया जाता है लेकिन यह समिति का स्थायी तरीका और कार्यपद्धति नहीं है।

संघ की यूनीफॉर्म बदली है, समिति की सदस्याएं भी स्मार्ट यूनीफॉर्म में दिखेंगी?

समाज में समयानुसार होने वाला परिवर्तन नैसर्गिक प्रवृत्ति है। यूनीफॉर्म में उसके अनुसार परिवर्तन होता रहा है। आगे भी जरूरी होने पर परिवर्तन हो सकता है। अभी ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।

छात्राएं, कॉरपोरेट से जुड़ी महिलाएं भी इससे जुड़ी हैं, हैं तो उनका क्‍या योगदान है?

इंटरनेट के द्वारा दुनिया भर की जानकारी उपलब्‍ध होने के कारण पढ़ी-लिखी युवतियों में और कॉरपोरेट जगत की महिलाओं में अपनी सांस्कृतिक पहचान और उसके प्रति गौरव भाव की भूख जाग रही है। इसलिए वे ज्यादा संख्‍या में समिति के संपर्क में आ रही हैं। सेविका-भाव से सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में वे अपना योगदान भी देती हैं। लड़कियों को इस काम में जोडऩे के लिए अक्‍टूबर 2015 से मार्च 2016 तक छह महीने के समय में जगह-जगह एक दिवसीय युवती सम्‍मेलन का आयोजन भी किया गया था।

पूरे देश में 200 युवा तरुणी सम्‍मेलन

संपन्न हुए जिसमें 65,000 युवतियों की सहभागिता रही।

संगठन में पूरे भारत भर में पूर्णकालिक सदस्याओं की संख्‍या कितनी होगी?

हिंदू समाज में पढ़ाई पूरी करने के बाद शादी की उम्र की लड़कियों के लिए पूरा समय समाज को देकर काम करना आसान नहीं है। फिर भी आज समिति की,0 से ज्यादा पूर्णकालिक प्रचारिकाएं हैं। कुछ प्रचारिकाएं सीमित सालों तक समिति में रह कर बाद में गृहिणी बन कर सेविका के नाते आजीवन सक्रिय रहती हैं।

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