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तेजी से ही तेजड़िए ध्वस्त

तेज पिचों की धाकड़ टीम को उसी की जमीन पर पछाड़ कर भारतीय तेज गेंदबाजों ने दिखाया कि अब कोई नहीं मुकाबले में
बुमराहः छोटे रन-अप का खतरनाक गेंदबाज

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसी की सरजमीं पर टेस्ट और वनडे सीरीज की जीत किसी किंवदंती से कम नहीं। यह भारतीय तेज गेंदबाजों की जीत है, जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के होश फाख्ता कर दिए। यह चेतेश्वर पुजारा और ऋषभ पंत के अदम्य दुस्साहस की भी जीत है। टेस्ट और वनडे दोनों में 2-1 की यह जीत इसलिए खास है, क्योंकि 1947-48 में ‘अपराजेय’ ब्रैडमैन के खिलाफ खेली गई पहली सीरीज के 71 साल बाद 12वें प्रयास में कंगारुओं की धरती पर यह जीत मिली है। भारत के इस विजयी रथ के तीन सारथी जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी और ईशांत शर्मा हैं। तीनों की योजना और उसके कार्यान्वयन ने विरोधियों को विदेशी धरती पर चारों खाने चित होने पर विवश कर दिया। कप्तान विराट कोहली को बस मोटे तौर पर निर्देश देने की जरूरत रही होगी।

क्रिकेट के नीरस आंकड़े खेल की वास्तविकता, ताजगी के बिलकुल उलट है, लेकिन हमें उसी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। यह विश्वास करना मुश्किल है कि टेस्ट सीरीज में ऑस्ट्रेलिया के जो 70 विकेट गिरे, उनमें 50 तेज गेंदबाजों के खाते में गए। यानी 71.43 फीसदी विकेट तेज गेंदबाजों ने लिए, जबकि चार स्पिनरों ने मिलकर 20 विकेट चटकाए। चौथे तेज गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार को एक भी टेस्ट में खेलने का मौका नहीं मिला। अगर आप चाहें, तो इसे सीरीज का शिखर बिंदु मान सकते हैं। अगर वे इस जीत के लिए शाबाशी के हकदार हैं, तो इसलिए कि भारत को 2017-18 में हार का सामना करना पड़ा था। वह भी खासकर इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में। भारत जहां इंग्लैंड में 1-4 से बुरी तरह हारा था। वहां सबसे अनुभवी ईशांत शर्मा की अगुआई में पांच तेज गेंदबाजों (हार्दिक पांड्या सहित) ने इंग्लैंड के शीर्ष बल्लेबाजों को क्रीज पर टिकने नहीं दिया था। ऐसा किसी दूसरे भारतीय तेज गेंदबाज ने नहीं किया था। उन्होंने 82 में से 61 (74.39 फीसदी) विकेट लिए। यह अलग मुद्दा है कि बल्लेबाजों ने टीम को बेहद निराश किया। इस बार रफ्तार के हमारे सुल्तानों ने दक्षिण अफ्रीकियों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई। तीन टेस्ट मैचों की सीरीज के दौरान पांचों तेज गेंदबाजों ने 57 में से 50 (87.71 प्रतिशत) विकेट लिए।

यहां तक कि बल्लेबाजों के अनुकूल घरेलू पिचों पर भी चार तेज गेंदबाजों ने 2017-18 में श्रीलंका के खिलाफ तीन टेस्ट मैचों की सीरीज के दौरान स्पिनरों को आश्चर्यजनक रूप से पीछे छोड़ दिया। उन्होंने 52 में से 30 विकेट (57.70 प्रतिशत) यानी अश्विन और रवींद्र जडेजा की जोड़ी ने जितने विकेट झटके उससे आठ अधिक विकेट लिए। कुल मिलाकर भारतीय तेज गेंदबाजों ने विदेशी सरजमीं पर 11 टेस्ट मैचों में 158 विकेट हासिल किए। इस शानदार तथ्य पर गौर करें तो तेज गेंदबाजों की जोड़ियों द्वारा लिए गए विकेट की यह संख्या निर्विवाद रूप से दूसरी सबसे बड़ी है। 1980 में वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों ने विदेशों में खेले गए 12 टेस्ट मैचों में 189 विकेट लिए थे।  बरसों की अनसुनी फरियाद के बाद खुदा की नेमत के रूप में इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में तेज गेंदबाजों की बॉल घूमी, स्विंग और कट हुई, गेंद ने उछाल भी लिया और विपक्ष पर अचूक निशाना साधने में सफल रहे। लेकिन बल्लेबाजों ने भारत को निराश किया। उनके लचर प्रदर्शन के कारण भारतीय टीम इंग्लैंड से 1-4 और दक्षिण अफ्रीका से 1-2 से हार गई। जबकि घरेलू मैदान पर तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में श्रीलंका को किसी तरह 1-0 से हराने में सफल रही। शानदार व्यक्तिगत प्रदर्शन के बावजूद दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड से मिली हार ने उन्हें हतोत्साहित किया होगा, लेकिन बुमराह, शमी, ईशांत ने असहाय ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के खिलाफ सराहनीय मनोवैज्ञानिक लचीलापन दिखाया।

1980 के दशक में कपिलदेव के साथ गेंदबाजी करने वाले भारत के पूर्व तेज गेंदबाज मदन लाल ने आउटलुक को बताया, “अगर कोई टीम मैच जीतना चाहती है, तो उसके तेज गेंदबाजों को बेहतरीन होना ही चाहिए। मैंने पहली बार देखा कि ऑस्ट्रेलियाई टीम भारतीय तेज गेंदबाजों से डरी हुई थी। उन्हें पता ही नहीं था कि बाउंसर कैसे छोड़ना है और अक्सर वह उनके हेलमेट पर लगती थी।” बाएं हाथ के पूर्व तेज गेंदबाज आशीष नेहरा कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीय टीम की तकदीर पूरी तरह बदल गई। नेहरा कहते हैं, “इंग्लैंड में हार के बाद ऐसा होना ही था। बुमराह और शमी दोनों लंबे स्पेल में गेंदबाजी करते हैं। ऑस्ट्रेलिया में खास बात यह रही कि पूरी सीरीज के दौरान गेंदबाज फिट रहे।” यहां तक कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और पूर्व कप्तान इमरान खान भारतीय टीम के प्रदर्शन से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने भारतीय टीम को बधाई भी दी। पाकिस्तान के एक और पूर्व कप्तान आमिर सोहेल ने भी भारतीय तेज गेंदबाजों की तारीफ की। सोहेल ने आउटलुक से कहा, “भारतीय गेंदबाजों में आक्रमकता, लाइन और लेंथ का अनुशासन है और वे बल्लेबाजों के लिए मुश्किल स्थितियां पैदा कर रहे हैं। वे न सिर्फ एक ओवर यानी छह गेंदों की योजना बनाते हैं, बल्कि पूरे स्पेल को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम देते हैं और इसी ने अंतर पैदा किया।” सबसे कम उम्र के बुमराह इन घातक गेंदबाजों के समूह के अगुआ रहे हैं। गुजरात के इस 25 वर्षीय गेंदबाज ने अपनी गति, विविधता, उछाल और सबसे अधिक अपने खतरनाक यॉर्कर से बल्लेबाजों का जीवन दयनीय बना दिया है। उनकी अपरंपरागत गेंदबाजी  के एक्शन ने बल्लेबाजों की परेशानियों को बढ़ाया ही है। वह शायद एकमात्र अंतरराष्ट्रीय गेंदबाज हैं, जो गेंदबाजी करते समय अपनी किसी भी कोहनी को नहीं मोड़ते हैं। वह हवा में और सबसे अहम ऑफ द पिच बेहद तेज गति (145 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक) हासिल करते हैं। वह भी छोटे रन-अप के साथ। यही बात उन्हें खास बनाती है। ऐसी खासियत 1920 के दशक के इंग्लैंड के महान खिलाड़ी मौरिस टेट में थी। छोटे रन-अप की वजह से लगातार धीमी गति से गेंद की उम्मीद करने वाले बल्लेबाज घबरा जाते हैं। 2018 में उनकी गति 153 किलोमीटर प्रति घंटा थी।

"इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में बुमराह, शमी और ईशांत शानदार थे, लेकिन भारत हार गया। इस हार ने उन्हें हतोत्साहित बिलकुल नहीं किया"

शमी का रन-अप बहुत सहज है। उन्होंने मैदान के अंदर और बाहर की परेशानियों से खुद को निकाल लिया है। वह अपनी गति, स्विंग और गेंद की हरकत से बल्लेबाजों को चौंकाते हैं। 28 वर्षीय शमी ने पिछले साल सबसे तेज 149 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गेंद फेंकी थी। भारत के पूर्व तेज गेंदबाज चेतन शर्मा कहते हैं, “वह लय के साथ गेंदबाजी करते हैं, गेंद को रिवर्स स्विंग कराते हैं और अक्सर उनकी गेंद सीम पर गिरती है। वह कद में छोटे हैं, लेकिन यह बहुत मायने नहीं रखता।”  31 साल के उमेश यादव इस समूह के सबसे तेज गेंदबाज हैं, लेकिन अब वह किसी भी वजह से प्लेइंग इलेवन के स्वाभाविक पसंद नहीं हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में पिचें मुश्किल और उछालभरी हैं। इससे बुमराह और उनके सहयोगियों को मदद मिली। इंग्लैंड में बारिश जैसे हालात ने भुवनेश्वर कुमार जैसे तेज गेंदबाजों की मदद की, जो काफी हद तक पिच के अंदर और बाहर गेंद को स्विंग कराने पर निर्भर रहते हैं। लेकिन घायल होने के कारण वह वहां खेल नहीं सके थे और ऑस्ट्रेलिया में भी अंतिम एकादश में जगह नहीं बना सके, क्योंकि बुमराह, शमी और ईशांत की तिकड़ी ने बवंडर जैसी खलबली पैदा कर दी।

"भारतीय तेज गेंदबाजों ने विदेशी धरती पर खेले गए 11 टेस्ट में 158 विकेट  चटखाए। वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों ने 1980 में 189 विकेट लिए थे"

1980-81 में कपिल देव के साथ मेलबर्न में प्रसिद्ध टेस्ट जीत में अहम भूमिका निभाने वाले भारत के बाएं हाथ के पूर्व तेज गेंदबाज करसन घावरी का कहना है कि अब भारत के पास उम्मीद से अधिक तेज गेंदबाज हैं। उन्होंने आउटलुक से बताया, “भारतीय क्रिकेट इतिहास में ऐसा पहली बार है कि हमारे पास कई तेज गेंदबाज हैं। आज, हमारे पास छह या सात गुणवत्ता वाले तेज गेंदबाज हैं। 50 और 60 के दशक में हमारे पास गुणवत्ता वाले स्पिनर्स थे।” कोहली अपने साथियों को खुद को जाहिर करने की आजादी देते हैं और खुद निडर होकर खेलते हैं। उन्हें भी इस तेज गेंदबाजी की सफलता का श्रेय जाता है। पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज और पूर्व राष्ट्रीय चयनकर्ता भूपिंदर सिंह सीनियर उन्हें प्रोत्साहित करने और अच्छी तरह संभालने के लिए कप्तान की तारीफ करते हैं। वह कहते हैं, “कोहली आगे आकर टीम का नेतृत्व करते हैं। वह खुद अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं और अच्छी तरह क्षेत्ररक्षण करते हैं, तो गेंदबाज सहित बाकी भी जानते हैं कि अगर वे अपना 200 फीसदी देंगे, तभी कोहली खुश होंगे।”

एक राय यह है कि भारत ने जिस ऑस्ट्रेलियाई टीम का सामना किया, वह स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर की गैर-मौजूदगी वाली सबसे कमजोर टीम में से एक थी। संभवतः अभी तक की सबसे कमजोर टीम थी। तेंडुलकर और मदन लाल इस बात पर एकमत हैं। तेंडुलकर का कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई टीम ठीक-ठाक थी और अपने दो दिग्गज बल्लेबाजों के बिना उन्हें खालीपन महसूस हुआ। तेंडुलकर कहते हैं, “मुझे भारत की जीत की उम्मीद थी, क्योंकि मुझे नहीं लगा कि यह ऑस्ट्रेलियाई टीम मजबूत थी।” मदनलाल इसकी एक और वजह की ओर ध्यान दिलाते हैं। वह है पांच दिवसीय टेस्ट क्रिकेट पर टी-20 का विकट साया। वह बताते हैं, “ऑस्ट्रेलियाई टीम स्मिथ और वॉर्नर के इर्द-गिर्द ही खेलती है। लेकिन हमने उन्हें नहीं खेलने के लिए नहीं कहा। इसलिए उनकी गैर-मौजूदगी भारत की जीत का श्रेय नहीं छीन सकती। साथ ही, मुझे लगता है कि ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश टी-20 लीग ने भी उन्हें बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि कोई भी बल्लेबाज विकेट पर टिकता नहीं दिखा।”

बहरहाल, बरसों से पूरी दुनिया में टेस्ट जीतने वाली टीम का सपना आखिरकार पूरा हुआ। तेज गेंदबाजों की बदौलत भारत कहीं और किसी के भी खिलाफ जीत सकता है। अभी आगे बड़ी परीक्षा है। इंग्लैंड में मई-जुलाई में 50 ओवरों का विश्वकप होने वाला है। बुमराह विपक्षी बल्लेबाजों को छिन्न-भिन्न करने वाले तेज गेंदबाजों के दल की अगुआई करेंगे, तो भुवनेश्वर कुमार अनुकूल परिस्थितियों में तेज गेंदबाजों के गुट में साथ होंगे। जब हम तेज ठंड में अपने आराम के बारे में सोच रहे हैं, तब भी वे गेंदबाजी को धार दे रहे होंगे।

दो पंजाब और तेज गेंदबाज

यह एक रहस्य है, जिसका कभी भी संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया कि आखिर ऐसा क्या है कि भारत के पंजाब ने कभी अच्छे तेज गेंदबाज नहीं दिए, जबकि पाकिस्तान का पंजाब तेज गेंदबाजों की नर्सरी है। 52 वर्षीय पाकिस्तान के पूर्व कप्तान आमिर सोहेल ने आउटलुक को बताया, “हमारे पंजाब में क्रिकेट बहुत लोकप्रिय है, लेकिन मुझे लगता है भारत के पंजाब में क्षेत्रीय खेलों की तरफ ज्यादा रुझान है।” सचिन तेंडुलकर को लगता है कि पाकिस्तान के पंजाब में युवाओं के पास शुरू से तेज गेंदबाजों के नायक रहे हैं, भारत में ऐसा बल्लेबाजी के संदर्भ में देखने को मिलता है। पंजाब के मौजूदा कोच राजदीप कलसी का मानना है कि पर्याप्त मांसाहार की वजह से पाकिस्तान में तेज गेंदबाज बनते हैं, क्योंकि वे बचपन से ही अधिक प्रोटीन खाते हैं। वह कहते हैं, “हमारे पंजाब में हम ज्यादातर शाकाहारी खाना ही खाते हैं।” पंजाब के पूर्व कप्तान भूपिंदर सिंह सीनियर इसके लिए क्रिकेट के “शहरों तक सीमित” होने का आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं, “हमने गांवों में कभी प्रतिभा को नहीं तलाशा। मैंने पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन (पीसीए) में यह मुद्दा उठाया, लेकिन उनकी रुचि सिर्फ पैसा कमाने में है।” पंजाब से ताल्लुक रखने वाले पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज हरविंदर सिंह कहते हैं कि वह हरभजन सिंह, युवराज सिंह और पीसीए के साथ आइपीएल के बाद बड़े पैमाने पर तेज गेंदबाजों की खोज की मुहिम चलाएंगे।

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