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फर्जीवाड़ा भी हुआ सरल, सहज

जीएसटी का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म टैक्स चोरी के लिए साबित हो रहा वरदान, फर्म रजिस्ट्रेशन के लिए पते की मौके पर जाकर पड़ताल का नहीं है प्रावधान
उलझनों का जीएसटी

एक जुलाई 2017 से लागू गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी में घोटालों और गड़बड़ियों का खेल जारी है। इससे ‘एक राष्ट्र, एक कर’ नारे और ‘मिनिमम इंटरैक्शन, मिनिमम करप्शन’ के दावे पर सवाल खड़े होने लगे हैं। जीएसटी लागू होने के दो महीने बाद ही सितंबर 2017 से हरियाणा के गुड़गांव और पंजाब के लुधियाना से करोड़ों रुपये की टैक्स चोरी के मामले सामने आने लगे थे, जो लगातार बढ़ते चले गए। जीएसटी का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म टैक्स चोरी के लिए बनने वाली फर्जी फर्मों के लिए वरदान साबित हुआ। इसके लिए उन्होंने रेहड़ी-फड़ी लगाने वालों, सब्जी विक्रेताओं और महिलाओं को अपना हथियार बनाया, जिनका जीएसटी से कोई लेनादेना नहीं है। घरों में झाड़ू-पोछा करने वाली महिला के नाम पर भी फर्जी फर्म खड़ी की गई। फ्रॉड करने वाली ज्यादातर फर्म महिलाओं के नाम पर रजिस्टर हैं।

सितंबर 2017 में ही गुड़गांव में एक व्यक्ति ने सैलून के पते पर रजिस्टर्ड फर्जी कंपनी के फर्जी बिलों के जरिए 50 करोड़ रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) का चूना लगा दिया।

आइटीसी का फर्जीवाड़ा सामने आया तो कंपनी, कारोबार और उसके पते-ठिकाने के भी फर्जी होने का पता चला। हरियाणा के कराधान विभाग और सेंट्रल जीएसटी विभाग की संयुक्त कार्रवाई में पकड़े गए आरोपी अब तक 1472 करोड़ रुपये के फर्जी ट्रांजेक्शन कर चुके हैं। अप्रैल से दिसंबर 2018 के दौरान हरियाणा के 10 जिलों में जीएसटी में 44 कंपनियों के फर्जीवाड़े सामने आए हैं। इनमें 1,472.48 करोड़ रुपये के फर्जी बिलों के जरिए 174.50 करोड़ रुपये के टैक्स की चोरी की गई। हरियाणा के आबकारी एवं कराधान विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल ने आउटलुक को बताया कि वैट के समय प्रदेश में करीब ढाई लाख फर्म रजिस्टर थीं, जबकि जीएसटी लागू होने के बाद 1.90 लाख नई फर्म रजिस्टर होने से अब जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड फर्म की संख्या 4.40 लाख हो गई है। नई रजिस्टर होने वाली फर्मों में फर्जीवाड़े की काफी गुंजाइश है, क्योंकि जीएसटी के सेंट्रल ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के लिए फर्म और कंपनियों के पते का मौके पर जाकर पड़ताल का कोई प्रावधान नहीं है। जबकि वैट रजिस्ट्रेशन के समय फर्म के पते और कारोबार की मौके पर जाकर पड़ताल की जाती थी। ढाई लाख फर्मों के पते और कारोबार की विभाग द्वारा मौके पर पहले ही जांच हो चुकी थी। अधिकारियों को नई रजिस्टर फर्मों की जांच के निर्देश दिए गए हैं। जांच शुरू हुई तो फर्जी बिल बनाकर टैक्स चोरी कर रहीं 44 फर्मों का खुलासा हुआ है। विभाग ने 13.7 करोड़  रुपये के इनपुट टैक्स क्रेडिट को ब्लॉक किया है। बाकी जिलों में भी ऐसे मामलों की जांच के लिए सरकार ने स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम का गठन किया है। हरियाणा के हिसार, फतेहाबाद और सिरसा में कपास और पानीपत में यॉर्न एवं हैंडलूम एक्सपोर्ट कारोबार के नाम पर फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट के मामले सामने आए हैं। यहां भी फर्जी कागजों के जरिए बिलिंग का मामला सामने आया। इन फर्मों में 21 से 22 साल के युवा करोड़ों रुपये के ट्रांजेक्शन पंजाब के लुधियाना में कर गए।

महेंद्रगढ़ में फर्जी फर्म बना 32.59 करोड़ रुपये टैक्स चोरी करने का मामला सामने आया। रेवाड़ी जिले के रालियावास निवासी चरण सिंह ने निमोठ निवासी पूनम को पांच हजार रुपये महीने देने का लालच देकर आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य जरूरी कागजात ले लिए। 27 अप्रैल 2018 को पूनम इंडस्ट्रीज के नाम से फर्म रजिस्टर्ड कराकर जीएसटी नंबर ले लिया। चार-पांच महीने खरीद शून्य दिखाई। अक्टूबर और नवंबर में फर्जी तरीके से सीमेंट, सॉरटिड बैग, पेपर कॉटन वगैरह की खरीद-बिक्री दिखा 32. 59 करोड़ रुपये का टैक्स चोरी कर लिया। जांच में पाया गया कि चरण सिंह के साथ ही सिरसा निवासी अनुपम सिंगला भी मास्टरमाइंड है।

रोहतक के महम में फर्म के नाम पर फर्जी बिलों के जरिए 40.76 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी की गई। प्रिया इंडस्ट्रीज नाम की फर्म उत्तर प्रदेश के आगरा की महिला सुमन देवी के नाम पर रजिस्टर है। सुमन गुड़गांव के घरों में झाड़ू-पोछे का काम करती है। जांच में सुमन ने विभाग को बताया कि उसने अपने कागजात कभी किसी को नहीं दिए। पुलिस ने उत्पाद शुल्क और सह राज्य कर अधिकारी आर.के. गुप्ता की शिकायत पर सुमन देवी के अलावा रेवाड़ी के अकबरपुर निवासी प्रवीण और नवीन, रालियावास निवासी चरण सिंह व सिरसा के अनुपम सिंगला पर केस दर्ज किया गया है।

यमुनानगर-जगाधरी में भी जीएसटी फर्जीवाड़ा 300 करोड़ से भी ज्यादा का हो सकता है। आबकारी एवं कराधान विभाग ने एक फर्म पर अब केस दर्ज कराया है। जालसाजों ने फर्जी फर्म बनाकर बिल काटा और करोड़ों रुपये के टैक्स की चोरी कर ली। अधिकारियों के मुताबिक, पोर्टल की जांच के दौरान सामने आया कि कृष्णा टिंबर नाम की फर्म से अचानक मोटे लेन-देन के ई-वे बिल जारी होने लगे। इसकी जांच की गई तो पता लगा कि यह फर्म फर्जी है। करीब साढ़े सात करोड़ रुपये के बिल इस फर्म के नाम से कटे। कृष्णा टिंबर के नाम से 19 जून 2018 में फर्म जीएसटी में रजिस्टर्ड हुई थी। फर्म लखनऊ निवासी राहुल कुमार के नाम पर है। फर्म ने प्लाइवुड का कच्चा माल विनीयर सप्लाई करने का ई-वे बिल पोर्टल पर दिखाया। फर्म ने अपना कार्यालय जगाधरी नई अनाज मंडी की दुकान नंबर 69 पर दिखाया।

दुकान सेक्टर 17 के नरेंद्र चंद्र तिवारी के नाम से दिखाई गई। 19 सितंबर 2018 को श्रीराम प्लाई इंडिया फर्म रजिस्टर्ड करवाई गई। एक साथ फर्म का ई-वे बिल का लेन-देन जीएसटी पोर्टल पर बढ़ गया, जिससे यह पकड़ में आई। जब जांच की गई, तो पता लगा कि साढ़े सात करोड़ का माल बेचने के बिल जारी किए गए हैं। यह माल 28 फर्मों को बेचा दिखाया गया। जांच में मामला सामने आने पर एफआइआर दर्ज कराई गई। कृष्णा टिंबर के नाम से बनाई फर्म के मामले में 28 फर्मों को माल बेचने के ई-वे बिल जारी होने की बात सामने आई है। इनमें आठ फर्म यमुनानगर से, बाकी हिसार, कुरुक्षेत्र, उत्तरप्रदेश, पंजाब और हिमाचल प्रदेश की हैं। हरियाणा के आबकारी एवं कराधान विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल ने बताया कि जीएसटी में फर्जी फर्मों पर नकेल कसने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स के गठन की सिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी गई है। जिन फर्मों ने फर्जीवाड़ा किया है, उनसे इनपुट टैक्स क्रेडिट ब्याज समेत वसूला जाएगा।

खामियों से निकला फर्जीवाड़े का रास्ता

रजिस्ट्रेशन: जीएसटी का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होता है। इनके दस्तावेजों के सत्यापन के लिए सिर्फ तीन दिन का समय होता है। तीन दिन में जांच नहीं हुई तो स्वत: फर्म की जीएसटी रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया शुरू हो जाती है। एक सप्ताह के भीतर जीएसटी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी भी हो जाता है। विभाग के अधिकारी मानते हैं कि कम से कम 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए, ताकि कागजों को चेक किया जा सके।

सत्यापन: पहले टैक्सेशन वार्ड इंस्पेक्टर या ईटीओ अपने क्षेत्र में फर्मों का मौके पर जाकर सत्यापन करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। वार्ड अफसर को जीएसटी में फर्म के वेरीफिकेशन का अधिकार होना चाहिए, जिससे अधिकारी उन फर्मों के पते, कारोबार, आर्थिक हालात, इनकम टैक्स रिटर्न, आय के स्रोत, ऋण, बैंक खाते की जांच कर सकें। ग्राउंड लेवल पर अधिकारियों के पास जीएसटी से जुड़ी गाइडलाइन की जानकारी का अभाव है। अधिकारी नई फर्मों के अकांउट्स की जांच नहीं कर सकते।

मॉनिटरिंग की कमी: नई फर्मों ने करोड़ों का माल खरीदा-बेचा, लेकिन विभाग ने मॉनिटरिंग नहीं की।

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