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डेढ़ साल बाद भी राहत का इंतजार

शर्तों में बार-बार बदलाव, 29 लाख किसानों को अब तक नहीं मिला कर्जमाफी का फायदा
किसानों के प्रदर्शन के बावजूद नहीं सुधर रहे हालात

नासिक जिले के मालेगांव तालुका में वडनेर खारकुड़ी गांव के भरत सिंह गिरसे (63 वर्ष) ने 2.5 हेक्टेयर जमीन में प्याज की खेती कर रखी है। लेकिन, महाराष्ट्र में प्याज की कीमतें थोक बाजार में ढाई रुपये प्रति किलो तक गिरने के कारण किसान की कमर टूट चुकी है। इससे पहले मूंग और बाजरा की खेती से भी गिरसे लागत नहीं निकाल पाए थे। इन परेशानियों के बीच आठ साल पहले लिया गया 50,000 रुपये का उनका किसान ऋण एक लाख रुपये तक पहुंच चुका है।

देवेंद्र फड़नवीस सरकार की जून 2017 में शुरू की गई कर्जमाफी योजना का लाभ उन्हें अब तक नहीं मिला है। उन्होंने बताया, “मैंने एक साल पहले कर्जमाफी का फॉर्म भरा था, लेकिन अब भी डिफॉल्टर की सूची में हूं। कर्जमाफी सिर्फ राजनीतिक स्टंट है। वरना मेरा मामला क्यों अटका रहता?” इसी गांव के एक और किसान बाबू धवलू पवार (70 वर्ष) ने दस साल पहले बीज और खाद के लिए 5,000 रुपये कर्ज लिया था जो अब बढ़कर 15 हजार रुपये हो चुका है। गिरसे और पवार जैसे महाराष्ट्र में 29 लाख से ज्यादा किसान कर्जमाफी का लाभ पाने का इंतजार कर रहे हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 12 दिसंबर 2018 तक केवल 40.90 लाख किसानों को योजना के तहत फायदा मिला था। कर्जमाफी का ऐलान करते वक्त फड़नवीस सरकार ने अप्रैल 2012 से मार्च 2016 के बीच कर्ज लेने वाले 89 लाख किसानों को इससे फायदा मिलने की बात की थी। इससे सरकारी खजाने पर 34,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान लगाया गया था। सरकार ने डेढ़ लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने की बात की थी। जिन किसानों पर डेढ़ लाख रुपये से अधिक का कर्ज था, वे भी बैंक को शेष राशि का भुगतान करने के बाद इसका लाभ ले सकते थे। नियमित तौर पर कर्ज चुकाने वाले किसानों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा भी की गई थी, जिसके तहत उन्हें 25 हजार रुपये या चुकाए गए कर्ज का 25 फीसदी, जो भी अधिक हो, बोनस के तौर पर मिलना था।

लेकिन, डेढ़ लाख रुपये से अधिक के कर्जदार अधिकांश किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पाया है। फसल लगातार खराब होने के कारण वे बैंक को अतिरिक्त राशि चुकाने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन, राज्य के सहकारिता मंत्री सुभाष देशमुख ने आउटलुक को बताया, “डेढ़ लाख तक की छूट का लाभ उठाने के लिए किसानों बकाया कर्ज का भुगतान करना ही होगा।” इधर, बैंकों ने कर्ज देना कम कर दिया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 2018 के खरीफ सत्र में बैंकों ने अपने लक्ष्य 53,000 करोड़ रुपये की तुलना में 23,000 करोड़ रुपये का कर्ज ही दिया। खेती-किसानी के संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित टास्क फोर्स के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने बताया, “न तो नौकरशाह और न मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस इस योजना को लेकर गंभीर दिखाई दे रहे हैं।”

योजना की घोषणा के कुछ दिनों के भीतर ही संशोधन करके नई शर्तें जोड़ी गईं। मसलन, पंचायत सदस्य और सरकारी कर्मचारी को लाभार्थी के दायरे से बाहर करना तथा बैंक खाते से आधार नंबर का जोड़ना वगैरह। इन शर्तों की वजह से लाभ के हकदार किसानों की संख्या 89 लाख से घटकर 69 लाख हो गई, जबकि योजना का कटऑफ साल 2012 से बढ़ा कर 2001 कर दिया गया था। इनमें से भी दिसंबर के दूसरे हफ्ते तक केवल 60 प्रतिशत (40.90 लाख) को ही फायदा मिला है। 29 लाख से ज्यादा किसान अब भी बाट जोह रहे हैं।

सरकार ने राष्ट्रीयकृत और जिला केंद्रीय सहकारी (डीसीसी) बैंकों से डिफॉल्टरों की सूची मांगी थी। किसानों से ऑनलाइन फॉर्म भरने को कहा गया था। किसानों और बैंकों से डेटा इकट्ठा करने के बाद दोनों सूची के मिलान के लिए एक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सरकार ने लाभार्थियों की मास्टर लिस्ट तैयार की। लेकिन बैंकों पर त्रुटिपूर्ण सूची देने का आरोप है। कुछ मामलों में आधार संख्या सिंगल डिजिट, यहां तक की जीरो भी थी। जब चीजें हाथ से निकल गईं तो सरकार को नियमों में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा। 

माकपा के नेता और अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक धवले ने बताया, “कर्जमाफी की घोषणा के वक्त से ही भाजपा सरकार की मंशा ठीक नहीं थी। नियमों में बार-बार बदलाव किया गया, जिससे ज्यादातर किसान इस योजना से बाहर हो गए।” सरकार ने कुछ सरकारी बैंकों पर फर्जी नाम से बड़ी संख्या में बिल बनाने का भी आरोप लगाया था। इस संबंध में कांग्रेस नेता सचिन सावंत का कहना है, “सरकार ने गड़बड़ियों को लेकर कभी प्राथमिकी दर्ज नहीं की और न ही भारतीय रिजर्व बैंक से इस संबंध में कोई शिकायत की। जाहिर है कि सरकार का दावा गलत था।”

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