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एकमुश्त पूरी कर्जमाफी जरूरी

कांग्रेस ने संपूर्ण कर्जमाफी का वादा किया। ऐसे में अब दो लाख रुपये की सीमा तय करने का क्या मतलब है? जिन राज्यों में कर्जमाफी हुई है, वह भी आधी-अधूरी ही है
अकिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वी.एम. सिंह

 

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वी.एम. सिंह गहरा चुके कृषि संकट का समाधान एक बार में सभी कर्ज माफ करने में ही देखते हैं, ताकि नए सिरे से शुरुआत हो सके। वे कहते हैं कि मोदी सरकार को इसकी गंभीरता समझनी चाहिए और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें जमीनी स्तर पर लागू करने की व्यवस्‍था बनानी चाहिए। उनसे एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव ने कृषि संकट और उसके उपाय पर बातचीत की। मुख्य अंशः

किसान आंदोलन देश में नए नहीं हैं, लेकिन '90 के दशक के बाद ऐसा क्या हुआ कि कर्जमाफी उसकी प्रमुख मांग बन गई?

एक समय ऐसा था कि उस घर में लोग अपनी बेटी की शादी नहीं करते थे, जिस पर कर्ज होता था। यह बहुत बुरी बात मानी जाती थी। उस समय किसान अपनी फसल की कीमत खुद तय करता था, ऐसे में उसके सामने लागत निकालने का संकट नहीं होता था। लेकिन जब से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आया, कहानी पलट गई। किसान को लागत तो छोड़िए, एमएसपी भी नहीं मिल रहा है। असल में एमएसपी धोखा है। किसान की जगह उपभोक्ता को ज्यादा कीमत न चुकाना पड़े, इसलिए ऐसा किया गया।  स्थिति ज्यादा बिगड़ने लगी तो सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड किसान के हाथ में थमा दिया। इससे किसान को कर्ज लेने की आदत पड़ गई। इसका परिणाम यह हुआ कि किसान अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करने लगा। हालत इतनी बदतर हो गई कि आज वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो गया।

क्या कृषि संकट से उबरने का कर्जमाफी ही अकेला रास्ता है?

हम कर्जमाफी को वनटाइम सेटलमेंट के रूप में देख रहे हैं। पिछले वर्षों में किसान के साथ कीमतों को लेकर जो ज्यादती हुई है, उसको दूर करने के लिए कर्जमाफी आज की जरूरत है। किसान पर करीब 13-14 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका है। वनटाइम सेटलमेंट करने से युवा खेती की ओर फिर से आगे आएंगे। कर्जमाफी होने के बाद हम बस इतना चाहते हैं कि सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश सही मायने में लागू करे।

केंद्र सरकार का कहना है कि लागत का डेढ़ गुना कीमत देने का वादा पूरा कर दिया है?

यह पूरी तरह से जुमला है। अभी भी देश के किसानों को धान 1300 रुपये प्रति क्विंटल और गेहूं 1600 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचना पड़ रहा है। जबकि लागत 2300-2400 रुपये के करीब है। देश में केवल 4-5 फीसदी खरीद ही एमएसपी पर हो रही है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि उसे सही से लागू किया जाए। साथ ही सभी फसलों, दूध, सब्जियों पर भी लागू किया जाए।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने किसानों के कर्ज और फसलों के दाम पर दो बिल तैयार किए हैं, जिनको 21 दलों का समर्थन है। ऐसे में अड़चन कहां है?

यही तो विरोधाभास है। जब सरकार चाहती है कि किसानों का हित हो और देश के 21 दल हमारे बिल का समर्थन कर रहे हैं, तो फिर अड़चन कहां है? इतने समर्थन के बाद सरकार लोकसभा के साथ-साथ आसानी से राज्यसभा में भी बिल पारित करा सकती है। दोनों बिल में ऐसे प्रावधान हैं, जिसे लागू करने के बाद किसानों की समस्याएं बहुत हद तक सुलझ जाएंगी।

हाल ही में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी है। वहां उन्होंने कर्जमाफी की शुरुआत भी कर दी है, क्या आप उससे संतुष्ट हैं?

बिलकुल भी संतुष्ट नहीं हैं। कांग्रेस ने संपूर्ण कर्जमाफी की बात की थी। ऐसे में अब दो लाख रुपये की सीमा तय करने का क्या मतलब है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि अगर भाजपा के जुमले नहीं चलेंगे तो कांग्रेस के जुमले भी नहीं चलेंगे। हम सरकारों पर भरोसा नहीं करते हैं। जिन राज्यों में कर्जमाफी हुई है, वह भी आधी-अधूरी है। इसीलिए  किसान अभी भी आंदोलन कर रहे हैं। अगर किसान के लिए कुछ करना है तो कानून बनाकर ले आइए, ताकि वह जुमला नहीं रह जाए।

इस तरह की संभावना है कि केंद्र सरकार डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर जैसी कोई योजना ला सकती है?

देखिए, जब हमें लागत की डेढ़ गुना कीमत मिलने लगेगी और इस बात की गारंटी होगी कि कालाबाजारी नहीं हो पाएगी, तो हमें डीबीटी की जरूरत नहीं पड़ेगी। अभी सरकार तेलंगाना के मॉडल को लागू करने की सोच रही है। पर आपको यह समझना होगा कि यह तो बोनस है। कर्जमाफी के बाद ऐसा होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि कर्जमाफी हुई नहीं और केवल डीबीटी के रूप में कुछ पैसा देने लगे। इसीलिए हम कह रहे हैं, हमें कुछ नहीं चाहिए एक बार में कर्जमाफी और उसके बाद स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें जमीनी स्तर पर लागू कर दी जाएं तो घाटे का सिलसिला टूटेगा।

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