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वोटरों और वरिष्ठों का आया ख्याल

आर्थिक आधार पर आरक्षण के प्रस्ताव के जरिए सवर्णों और पार्टी दिग्गजों को महती जिम्मेदारी देकर की नाराजगी दूर, आम चुनाव जीतने का तैयार किया फॉर्मूला
जीत का नया फार्मूलाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनावों में जीत के नए फॉमूले शायद तय कर लिए हैं। मकसद तो बेशक है हर हाल में चुनाव जीतना। बढ़ती चुनौतियों और बीतते समय के मद्देनजर फैसले भी फटाफट किए जा रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। कोशिश शायद यह है कि अनुसूचित जाति और जनजाति कानून में संशोधन के बाद पार्टी के प्रति ऊंची जातियों की नाराजगी दूर की जाय, जो पार्टी का बड़ा वोट बैंक है। जिस तरह से सरकार ने सामान्य वर्ग के आरक्षण बिल को पारित कराया है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में किसानों से लेकर युवाओं तक को लुभाने के लिए भी कई अहम ऐलान कर सकती है। वोटरों को लुभाने के अलावा मोदी-शाह जोड़ी ने पार्टी के दिग्गज नेताओं और गठबंधन सहयोगियों तक को साधने का फॉर्मूला तैयार किया है।

इसकी वजहें भी कोई अनजानी नहीं हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, विपक्ष ऐसी धारणा बनाने में कामयाब हो रहा है कि नोटबंदी, जीएसटी, कृषि संकट और रोजगार में गिरावट से मतदाता मोदी सरकार से नाराज है, इसकी काट तलाशना जरूरी है। इस मामले में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया कि हाल के विधानसभा चुनावों की हार हमारे लिए सबक है। “खास तौर से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाना हमें काफी सतर्क कर गया है। तीनों राज्यों में सत्ता-विरोधी लहर थी, जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा। हालांकि मध्य प्रदेश और राजस्थान में हम काफी बेहतर स्थिति में हैं। अब हमारा पूरा जोर कार्यकर्ताओं में जोश भरकर लोकसभा चुनावों के लिए कमर कसने पर है।”

इसी के मद्देनजर 26 राज्यों में चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति और समितियों का भी गठन कर दिया गया है। सबसे अहम जिम्मेदारी प्रधानमंत्री के करीबी, सरकार के संकटमोचन वित्त मंत्री अरुण जेटली को दी गई है। उन्हें चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। खास बात यह है कि 2014 के आम चुनाव में यह जिम्मेदारी खुद नरेंद्र मोदी उठा रहे थे। इसी तरह वरिष्ठता के आधार पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह को घोषणा-पत्र समिति की कमान दी गई है, जिसकी जिम्मेदारी 2014 में वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की थी। इस बार अभी तक जोशी को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता कलराज मिश्र को हरियाणा का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। मिश्र को इसके पहले 75 वर्ष की उम्र पार करने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। ऐसे ही नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज, जे.पी.नड्डा, कैलाश विजयवर्गीय, कैप्टन अभिमन्यु, निर्मला सीतारमन, रविशंकर प्रसाद, रेल मंत्री पीयूष गोयल, मुख्तार अब्बास नकवी जैसे पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं को शामिल किया गया है। यानी चुनावों में सबको साथ लेकर चलने पर पूरी तरह से फोकस है।

एक अन्य वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने सभी सांसदों से मीटिंग शुरू कर दी है। इन बैठकों में न केवल सांसदों के पिछले पांच साल में किए गए कामकाज का लेखा-जोखा मांगा जा रहा है, बल्कि उन्हें भरोसा दिलाया जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में हुई हार से निराश होने की जरूरत नहीं है। उन्हें हिदायत दी गई है कि वे केंद्र सरकार के कामों को लोगों तक पहुंचाएं, ताकि ज्यादा से ज्यादा मतदाता पार्टी के साथ जुड़ें। उनका कहना है, जो भी मुद्दा हमारे लिए फायदेमंद होगा, उस पर हमारा जोर रहेगा। राम मंदिर का मुद्दा भी ऐसा ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साफ कर दिया है कि पार्टी अपने घोषणा-पत्र पर कायम है।

भाजपा की इस समय सबसे ज्यादा चिंता उत्तर प्रदेश को लेकर है। वहां सपा और बसपा के गठबंधन की खबरों से चिंति‌त पार्टी 2014 जैसा जिताऊ फॉर्मूला तलाश रही है। उत्तर प्रदेश के एक सांसद से मिली जानकारी के अनुसार इस चुनौती से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश के सांसदों को चार समूहों में बांटा गया है। उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मीटिंग भी शुरू कर दी गई है। शीर्ष नेतृत्व का सीधा-सा मानना है कि केंद्र सरकार ने खास तौर से गरीब-पिछड़े और वंचित लोगों के लिए जो योजनाओं शुरू की हैं, उसके जरिए 2019 के चुनावों में पार्टी की नैया पार हो सकती है। खास तौर से प्रधानमंत्री आवास योजना, सौभाग्य योजना और उज्‍ज्वला योजना पर केंद्रीय नेतृत्व को सबसे ज्यादा भरोसा है। पार्टी सांसदों से साफ तौर से कहा गया है कि वे इन योजनाओं का अपने क्षेत्रों में प्रचार करें और लोगों को बताएं कि कैसे मोदी सरकार 22 करोड़ गरीब और वंचित लोगों के हितों के लिए ध्यान रख रही है।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, किसानों की नाराजगी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। उनके अनुसार, केंद्र सरकार ने लागत में डेढ़ गुना बढ़ोतरी करने के अलावा फसल बीमा, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, सिंचाई योजना, ई-नैम जैसी कई अहम योजनाएं किसानों के लिए पिछले पांच साल में शुरू की है। कई राज्यों में कर्जमाफी भी की गई हैं। उसके बावजूद ऐसी धारणा बन रही है कि किसानों के हितों की अनदेखी की गई है। ऐसे में हमारी कोशिश है कि इस धारणा को तोड़ा जाए। साथ ही कुछ ऐसी योजनाएं भी शुरू की जाए जो किसानों के लिए और फायदेमंद हो सकें। इसके तहत ही डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर जैसे विकल्पों को तलाशा जा रहा है, जिसमें किसानों को खेत की मिल्कियत के आधार पर एकमुश्त रकम उसके खाते में पहुंचाई जाय। इसके अलावा ऐसी स्कीम भी लाई जा सकती है जिसमें ऐसे किसानों को राहत पहुंचाई जा सकेगी, जिन्होंने अपना कर्ज समय पर चुका दिया है क्योंकि कर्जमाफी में ऐसे किसानों को लाभ नहीं मिलता है। इसके तहत समय पर कर्ज चुकाने वाले किसानों के ब्याज माफ किए जा सकते हैं।

गठबंधन पर भी पार्टी का रुख हाल के दिनों में लचीला हुआ है। इसी के मद्देजनर शीर्ष नेतृत्व से संकेत हैं कि महाराष्ट्र में सबसे पुराने साथी शिवसेना को साथ में लेकर चला जाए, ताकि राज्य में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन को टक्कर दी जा सके। हाल ही में पार्टी ने बिहार में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ समझौता किया है। उससे साफ है कि भाजपा का अपने सहयोगियों के प्रति रुख में बदलाव आया है। बिहार में भाजपा ने 2014 में अकेले 22 सीटें जीतने के बाद भी 17-17-6 के फॉर्मूले पर मोहर लगाई है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने विरोध के सुर उठाए हैं, उसे भी अब संभालने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।

सूत्रों के अनुसार, इस संबंध में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर के साथ मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के साथ मीटिंग भी हुई है।

सहयोगियों के साथ नरमी बरतने की एक बड़ी वजह यह भी है कि पिछले कुछ समय से कई साथी दल भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं। असम गण परिषद ने राज्य में नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर भाजपा से नाता तोड़ लिया है। जबकि इसके पहले तेलुगूदेशम पार्टी, पीडीपी और बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी भी भाजपा का दामन छोड़ चुकी है।

एक केंद्रीय मंत्री के अनुसार, हमारा सीधा-सा फॉर्मूला है कि हर हाल में जीतना है। यानी पार्टी येन-केन-प्रकारेण जिताऊ फॉर्मूले पर फोकस कर रही है। ये फॉर्मूले कितने कारगर होंगे, यह तो मई में आम चुनाव के नतीजे ही बताएंगे।

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