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गांठें जुड़ीं, पारा चढ़ा

अखिलेश और मायावती की मुलाकात के बाद तेजी से घूमा सियासी चक्र
साथ-साथः सपा मुखिया अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती

सपा-बसपा गठबंधन के गणित की खबरें खुलते ही आम चुनाव के मद्देनजर केंद्र की सियासत के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। यह भी गजब का संयोग था कि जिस दिन बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा मुखिया अखिलेश यादव की दिल्ली में मुलाकात हुई, उसी दिन खनन के पुराने मामले में प्रदेश की चर्चित आइएएस अफसर बी. चंद्रकला के आवास सहित 14 ठिकानों पर छापे पड़े और इस सिलसिले में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पूछताछ के संकेत दे दिए गए। इससे अखिलेश और मायावती ने भाजपा से मुकाबले के अपने इरादे और मजबूती से जाहिर किए।

पिछले साल साझा पहल से गोरखपुर, फूलपुर, कैराना संसदीय और नूरपुर विधानसभा उपचुनावों में जीत से बसपा-सपा उत्साह से लबरेज हैं। हाल में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार ने विपक्ष में मानो ऊर्जा भर दी है। विपक्ष को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन के जरिए भाजपा का रथ रोका जा सकता है। प्रदेश में सपा का रालोद, निषाद पार्टी, पीस पार्टी से गठबंधन तय है। इसके अलावा अगर कुछ अन्य छोटे दल साथ आते हैं तो उन्हें भी सीटें दी जाएंगी। फिलहाल सपा-बसपा में खुद के लिए 37-37 और रालोद को तीन सीटें देने पर सहमति बनने की बात सामने आ रही है। शेष बची सीटें साथ आने वाली अन्य छोटी पार्टियों को मिल सकती हैं।

2014 में प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर भाजपा को जीत मिली थी। दो सीटों पर उसकी सहयोगी अपना दल को, पांच पर सपा को तो दो सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। बीते लोकसभा चुनाव में बसपा खाता खोलने में भी कामयाब नहीं हो पाई थी। हालांकि उसे 19.6 फीसदी वोट मिले थे। उस समय सपा को 22.2 और कांग्रेस को साढ़े सात फीसदी वोट मिले थे। भाजपा को 42.3 और उसकी सहयोगी अपना दल को एक फीसदी वोट मिले थे।

यही कारण है कि अखिलेश यादव और मायावती की हालिया मुलाकात के बाद कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इस मुलाकात के साथ-साथ ही सीबीआइ की छापेमारी और भाजपा नेताओं की बयानबाजी को पार्टी की परेशानी का सबब माना जा रहा है। इसके बाद अखिलेश यादव ने कहा, “जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भाजपा विपक्ष के नेताओं को बदनाम करने के अभियान में जुट गई है। भाजपा हमारे गठबंधन की खबरों से बुरी तरह परेशान है। भाजपा के पास सीबीआइ है तो हमारे पास गठबंधन है।” लोकसभा चुनाव को लेकर सपा-बसपा ने जो फार्मूला तैयार किया है, उसके बारे में सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने आउटलुक को बताया, “गठबंधन पर सैद्धांतिक तौर पर सहमति बन गई है। औपचारिक ऐलान उचित समय आने पर पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव करेंगे।”

पिछले लोकसभा चुनाव में महान दल से कांग्रेस ने गठबंधन कर सभी 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी दो सीटों पर जीती थी और आठ सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व शक्ति ऐप के जरिए जमीनी स्तर से फीड बैक भी ले रहा है। कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी का कहना है, “2019 इसलिए महत्वपूर्ण है कि लड़ाई दो विचारधाराओं के बीच है। गठबंधन की बातें पार्टियों के बीच होंगी। जनता चाहती है गठबंधन हो। इस पर कोई भी निर्णय राष्ट्रीय नेतृत्व ही लेगा।” 

भाजपा के सहयोगी दलों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल सेक्युलर के मुखिया मुद्दों को लेकर भले ही भाजपा की घेरेबंदी कर रहे हैं, लेकिन ऐसी कम ही संभावना है कि वे भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ें। अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने गठबंधन को लेकर पत्ते खुले होने की बात कही है, हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गौशालाओं के निर्माण के फैसले का उन्होंने स्वागत किया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने कहा, “भाजपा का गठबंधन प्रदेश की जनता से है। भाजपा की लोकप्रियता से डरे हुए लोग और अपनी सरकारों में जनधन की लूट करने वाले लोग आज गठबंधन कर सुशासन और विकास के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे हैं।” बहरहाल, आम चुनावों की मोर्चेबंदी अब साफ होती जा रही है। अब देखना है कि किस मोर्चे की ओर जनता का झुकाव होता है।

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