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वोटरों की चुप्पी हावी, मुद्दे गायब

वादों और दावों के बीच उलझी त्रिकोणीय लड़ाई में मतदाताओं की चुप्पी से बढ़ी राजनीतिक तपिश, लगातार बदल रहे चुनावी समीकरण
जगदलपुर में नरेंद्र मोदी

रायपुर-नागपुर हाइवे पर बसा राजनांदगांव छत्तीसगढ़ का व्यावसायिक शहर है और यहां की बीएनसी कपड़ा मिल देशभर में प्रसिद्ध थी। इस बंद पड़ी मिल के साथ हाइवे से गुजरते ट्रकों और दूसरी गाड़ियों के शोर के अलावा यहां का चुनावी शोर पूरे प्रदेश में गूंज रहा है। राजनांदगांव विधानसभा सीट से कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी और पूर्व भाजपा सांसद करुणा शुक्ला को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के खिलाफ मैदान में उतारकर मुकाबले को हाई प्रोफाइल बना दिया है। वाजपेयी को छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माता बताकर भाजपा उनके नाम से वोट हासिल करने में लगी हुई है। भाजपा के होर्डिंग्स और विज्ञापनों के बैकग्राउंड में वाजपेयी जी की तस्वीर यह दर्शा भी रही है। इसको लेकर करुणा शुक्ला भाजपा पर वार कर रही हैं। वे कहती हैं, “वाजपेयी जी दस साल बीमार थे, तब भाजपा ने उनकी सुध क्यों नहीं ली। चुनाव में याद आ गए।”  

छत्तीसगढ़ में मतदाताओं को झकझोरने वाला कोई चुनावी मुद्दा नहीं है। लोग भाजपा शासन में भरपूर विकास की बात कहते हैं, लेकिन कुछ मुद्दों पर उनकी खीझ भी जुबान पर आ जाती है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का चेहरा, छवि और कद जनता के दिमाग में बैठा है। उनके मुकाबले कांग्रेस का चेहरा लोगों को नजर नहीं आ रहा। राजनांदगांव में राहुल गांधी का रोड शो देखने आए कुछ लोग सवाल भी करते हैं- भाजपा की सरकार आई तो डॉ. रमन सिंह का मुख्यमंत्री बनना तय है, लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने पर सीएम कौन होगा, यह पता नहीं?

भाजपा जहां विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है, वहीं कांग्रेस ने बदलाव का नारा दिया है। विकास और बदलाव की लड़ाई में कौन जीतता है, यह तो 11 दिसंबर को ही पता चलेगा, लेकिन लोग विकास और बदलाव के बीच घूमने लगे हैं। राजनांदगांव में वर्षों से रह रहे एक बुजुर्ग का दर्द है कि रमन सिंह के पिछले दो कार्यकाल तो अच्छे रहे थे, लेकिन तीसरे कार्यकाल में स्थानीय लोगों की उपेक्षा हो गई। सरकार धंधेबाजों के चक्कर में घिरी रही। इसके बावजूद राजनांदगांव में रमन सिंह को चाहने वालों की भी कमी नहीं है। यहां साइकिल पार्ट्स का कारोबार करने वाले गुरुबचन सिंह कहते हैं, “इस बार डॉक्टर साहब की लीड बढ़ेगी। कांग्रेस की प्रत्याशी तो बाहरी हैं।” रमन सिंह के कवर्धा के निवासी होने के सवाल पर वे कहते हैं, “वे यहां से दस साल से विधायक हैं। अब बाहरी कहां रहे।”

गुरुबचन सिंह की दुकान जिस रोड पर है, वहां से कुछ देर बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का रोड शो निकलने वाला था। रोड शो देखने कहें या राहुल गांधी को देखने, बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं अपने घरों से निकल आए थे। कुछ महिलाएं और बच्चे घरों की खिड़कियों पर बैठकर उनकी झलक पाने का इंतजार कर रहे थे। काफिला गुजरने के बाद कुछ लोग राहुल गांधी की तारीफ करते तो दिखे, लेकिन भीड़ वोट में तब्दील हो जाए, ऐसी बात नहीं दिखी। कांग्रेस के एक नेता ने बताया, “करुणा जी के मैदान में रहते रमन सिंह को अमूमन एक-दो दिन के अंतराल में आना पड़ रहा है, जबकि पहले के चुनावों में वे आखिरी दिनों में आते थे।” करुणा शुक्ला ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “भाजपा वाजपेयी के नाम पर वोट लेना चाहती है। मेरे मैदान में रहने से रमन सिंह के पसीने छूट रहे हैं। पिछले चुनावों में कांग्रेस के किसी कार्यकर्त्ता को बैठाने या प्रलोभन देने की बात की जाती थी। अबकी बार ऐसी कोई बात सामने नहीं आ रही है।” उनका आरोप है कि रमन सिंह का परिवार भ्रष्टाचार में डूबा है।

रमन सिंह भी इस बार के चुनाव को काफी गंभीरता से ले रहे हैं। उनके राजनांदगांव निवास पर कार्यकर्ताओं और लोगों की काफी चहल-पहल दिखती है। इस बीच एक कार्यकर्त्ता जब रमन सिंह को राहुल के रोड शो की भीड़ बताता है, तो वे उसे कहते हैं, “उसके मुकाबले हमारे रोड शो में दस गुना भीड़ होनी चाहिए।” राहुल के रोड शो के अगले ही दिन राजनांदगांव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और रमन सिंह का रोड शो होना था। 

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 18 सीटों पर 12 नवंबर को वोट डाले गए, जहां पर 70 फीसदी मतदान हुआ है। बाकी बची 72 सीटों पर 20 नवंबर को वोटिंग होनी है। पहले चरण की 18 सीटों में से अधिकांश नक्सल प्रभावित होने के साथ अनुसूचित जनजाति के प्रभाव वाली हैं। खासकर, बस्तर की 12 सीटें सरकार बनाने में निर्णायक मानी जाती हैं। बस्तर के आदिवासियों ने 2003 में भाजपा पर भरोसा किया था, लेकिन 2008 और 2013 में वह पकड़ नहीं रख पाई। बस्तर में अभी कांग्रेस के पास आठ और भाजपा के पास चार सीटें हैं। 8-4 के गणित को दोनों ही बदलना चाहते हैं।

वैसे तो छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी 32 फीसदी है, लेकिन बस्तर में 70 फीसदी के करीब आदिवासी हैं। राज्य के दूसरे हिस्से में आदिवासी जनसंख्या घटी है, फिर भी आदिवासी वोटर एकजुट नजर आते हैं। चारामा के परमेश्वर जैन का कहना है, “आदिवासी वोट तो कांग्रेस के पक्ष में जाएगा। पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग का वोट निर्णायक होगा।” आदिवासी सीटों को जीतने के लिए राज्य के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ताकत लगा रखी है। मोदी ने जगदलपुर में सभा की। राहुल ने पखांजूर और चारामा जैसे कस्बे में कार्यक्रम कर कांग्रेस के लिए वोट मांगे।

पहले चरण के मतदान में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ उनके दो मंत्री महेश गागड़ा बीजापुर सीट से और केदार कश्यप नारायणपुर से मैदान में हैं। नक्सलवाद के खिलाफ सलवा जुडूम के प्रेणता और कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता रहे स्व. महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा, कांग्रेस के आदिवासी मोर्चा से जुड़े मनोज मंडावी, कांग्रेस विधायक दल के उपनेता कवासी लखमा समेत कई नेता भी 12 नवंबर की वोटिंग के दायरे में हैं। भाजपा और कांग्रेस ने पुराने-नए चेहरे का मिलाजुला दांव खेला है। दोनों दलों ने सर्वे के बाद प्रत्याशियों का चयन किया, जिससे कि प्रत्याशी को जनता की नाराजगी न झेलनी पड़े या नुकसान कम हो। अंतागढ़ से विधायक भोजराज नाग को बाहर का रास्ता दिखाकर भाजपा ने सांसद विक्रम उसेंडी को मैदान में उतारा है।  

कांकेर के नजदीक एक दुकान में मिले ईश्वरी और भास्कर ने कांग्रेस के वर्तमान विधायक के कामकाज को नाकाफी बताया। कांग्रेस ने यहां नए चेहरे शिशुपाल शोरी को उतारा है। भाजपा ने भी यहां पुराने प्रत्याशी की जगह हीरा मरकाम को टेस्ट किया है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी कांकेर में वोटकटवा दिख रही है। कांकेर जिले के निवासी जय बहादुर सिंह का कहना है, “आदिवासी इलाकों में कांग्रेस की पकड़ को तोड़ पाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। तेंदूपत्ता बोनस बंटा, सस्ता चावल और नमक भी भाजपा सरकार ने दिया, विकास भी हुआ है, लेकिन उसका असर नहीं दिखता।” बस्तर में आदिवासी और गैर-आदिवासी में कहीं न कहीं संघर्ष की स्थिति नजर आती है। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन की जगह लोकल इश्यू हावी है। इसका असर दिख सकता है। बस्तर में एक बात और भी चर्चा में है कि वोटिंग पर्सेंटेज औसत रहा तो कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा, भारी मतदान की स्थिति में भाजपा फायदे में रहेगी। राजनांदगांव क्षेत्र में भी इस बार कांग्रेस और भाजपा ने नए चेहरे दिए हैं। इस इलाके में कांग्रेस अपनी स्थिति बरकरार रखने में लगी है, तो भाजपा जिले की छह में से कम से कम चार सीटें जीतने की जुगत में है।

पहले चरण में जोगी कांग्रेस और बसपा का गठबंधन का कुछ ज्यादा असर नजर नहीं आता। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के संस्थापक अजीत जोगी गठबंधन प्रत्याशियों की जीत के लिए क्षेत्र में जा रहे हैं। जोगी कांग्रेस के अमित जोगी ने आउटलुक से चर्चा में कहा, “जोगी कांग्रेस, बसपा और सीपीआइ में रणनीतिक समझौता है। जहां जिसका वोट बैंक है, गठबंधन के प्रत्याशी को ट्रांसफर होगा। मसलन कोंटा में जोगी कांग्रेस और बसपा का वोट सीपीआइ के कैंडिडेट को मिलेगा तो बस्तर के चित्रकोट में दोनों जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी को जिताने में मदद करेंगे।” भानुप्रतापुर सीट पर आम आदमी पार्टी के कोमल हुपेंडी मुकाबले में बताए जा रहे हैं। आप ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार प्रोजेक्ट किया है।

2013 में पहले चरण के बाद भाजपा ने रणनीति बदली थी और दूसरे चरण की अधिकांश सीटें जीती थीं। दूसरे चरण में कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद के दावेदार डॉ. चरणदास महंत, टी.एस. सिंहदेव, भूपेश बघेल और ताम्रध्वज साहू समेत दस मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल समेत कई दिग्गजों के भाग्य का फैसला होगा। अजीत जोगी, उनकी पत्नी डॉ. रेणू जोगी और बहू ऋचा जोगी की किस्मत भी तय होगी। दूसरे चरण की कई सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई दिखती है, खासकर अनुसूचित जाति बहुल वाली मैदानी क्षेत्र की 25 सीटों पर।

2013 में बसपा का प्रत्याशी एससी के लिए आरक्षित की जगह सामान्य सीट जैजेपुर से चुनाव जीता था। कहा जा रहा है, जोगी कांग्रेस और बसपा का गठबंधन एससी बहुल सीटों में कांग्रेस और भाजपा दोनों का वोट काट रहा है। भाजपा के लिए बागी भी सिरदर्द पैदा कर रहे हैं। उसके सामने मैदानी इलाकों में 2013 के अपने प्रदर्शन को बनाए रखने की चुनौती भी है। आदिवासी इलाके सरगुजा और जशपुर में भी पार्टी बगावत से जूझ रही है। इन इलाकों में  खासकर, बिलासपुर और जांजगीर-चांपा जिले में जोगी कांग्रेस और बसपा के गठबंधन से कांग्रेस को खतरा हो सकता है। वैसे, राज्य में बसपा का वोट शेयर लगातार गिर रहा है। 2003 में उसका वोट शेयर 12 फीसदी था जो 2013 में गिरकर चार फीसदी रह गया। अजीत जोगी कांग्रेस से अलग होकर पहली बार अपने बलबूते चुनाव लड़ और लड़वा रहे हैं। यह चुनाव रमन सिंह और कांग्रेस नेताओं से कहीं ज्यादा अजीत जोगी के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। अमित जोगी कहते हैं, “दोनों राष्‍ट्रीय दल राष्‍ट्रीय मुद्दे की बात करते हैं। हम छत्तीसगढ़ की जनता की बात कर रहे हैं। जमाना क्षेत्रीय दलों का है।” 

छत्तीसगढ़ का चुनावी परिदृश्य कुछ साफ नहीं है। जमीन पर ऐसा मुद्दा भी नहीं दिखता जिसके दम पर कोई दल बाजी बदल दे। किसानों, युवाओं और महिलाओं की बात सभी कर रहे हैं। भाजपा किसानों को धान का बोनस और ज्यादा समर्थन मूल्य दिलवाने की बात कह रही है, जबकि कांग्रेस किसानों को पूरे पांच साल का बोनस न देकर रमन सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगा रही है। वादों और दावों के बीच मतदाता मौन हैं। रमन सिंह के सामने कांग्रेस का चेहरा नहीं हाेने से वे दुविधा में हैं। साथ ही उनके मन में यह भी सवाल है कि अजीत जोगी पर कितना भरोसा किया जाए? इसलिए, राज्य के चुनावी समीकरण लगातार बदल रहे हैं। 

राज्य के हर हिस्से में भाजपा के होर्डिंग्स नजर आते हैं।  कांग्रेस के होर्डिंग्स इक्का-दुक्का ही नजर आते हैं और प्रचार के मामले में वह पीछे है। दूसरे दल तो प्रचार-प्रसार में कहीं नजर भी नहीं आ रहे।  भाजपा के प्रचार के केंद्र में रमन सिंह ही हैं, लेकिन कांग्रेस में राज्य का कोई एक नेता केंद्र में नहीं दिख रहा। अब देखना है कि प्रचार में पिछड़ती नजर आ रही कांग्रेस नतीजों में आगे निकल पाती है या फिर उसे किसी की बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है। राजनीतिक दलों का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि वे वोटरों को कितना रिझा पाएंगे। मतदाताओं की चुप्पी से एक बात साफ लग रही है कि इस बार वे कुछ न कुछ गुल खिलाएंगे। 

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