Advertisement

जितनी जानो भाषा, उतनी बढ़े आशा

हेलो, हालो, होला...बहुभाषी पेशेवरों के लिए बेहतर नौकरियां और वेतन पाने की संभावनाएं अधिक
भाषा का विकल्पः कई संस्थान विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम मुहैया करा रहे हैं

तरुण आनंद ने मुंबई के पास कर्जत में यूनिवर्सल बिजनेस स्कूल (यूएसबी) खोलने के काफी पहले न्यूज एजेंसी थॉम्पसन रॉयटर्स के दक्षिण एशिया ब्यूरो के प्रबंध निदेशक के रूप में एक अहम सबक सीख चुके थे। उस समय हांगकांग में रहते हुए आनंद को अक्सर मंदारिन भाषी चीनी सरकार के अधिकारियों से बातचीत करनी पड़ती थी। आनंद आउटलुक को बताते हैं, “मेरा काफी वास्ता चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना से पड़ता था। वहां बातचीत भी मंदारिन से शुरू होती थी, इसलिए मैंने मंदारिन सीखी। इससे चीनी अधिकारियों से मेरे संबंध बेहतर हो गए। यह गेमचेंजर साबित हुआ और हमें कई कॉन्ट्रैक्ट मिल गए।”

थॉम्पसन रॉयटर्स के साथ 25 साल तक काम करने के दौरान आनंद को समझ में आया कि बहुभाषी होने के बड़े फायदे हैं। यह ऐसा सबक है, जिसे अब वे बी-स्कूल में छात्रों से साझा करते हैं और उन्हें कोई एक और भाषा सीखने के लिए प्रेरित करते हैं। वहां कम-से-कम एक विदेशी भाषा सीखना अनिवार्य है।

अब सिर्फ एमबीए की डिग्री होना ही पर्याप्त नहीं है। जैसे-जैसे दुनिया सिकुड़ती जा रही है और कारोबार नए क्षेत्रों तथा देशों में बढ़ रहे हैं, तो बिजनेस स्कूलों को एहसास होने लगा है कि बहुभाषी होना आपके लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। बहुभाषी होने से आपके तरकश में सफलता का एक और तीर जुड़ जाता है। इससे किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में आपकी हैसियत में काफी बढ़ जाती है। कामयाब बिजनेस मैनेजरों का कहना है कि कभी वह वक्त भी था कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सौदे हासिल करने के लिए अंग्रेजी भाषा कारगर हुआ करती थी।

आजकल एमबीए स्नातक अगर स्थानीय भाषा जानता है तो उसे न केवल व्यापारिक लेनदेन, बल्कि ग्राहक और कस्टमर से बेहतर तालमेल बनाने में भी मदद मिलती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि देश भर के कई बिजनेस स्कूलों ने विदेशी भाषा सीखने का न केवल विकल्प चुना है, बल्कि कुछ ने तो इसे अनिवार्य बना दिया है।

यूएसबी के आनंद कहते हैं, “हमारे पाठ्यक्रम में प्रबंधन छात्रों के लिए विदेशी भाषा रखने की अनिवार्यता की वजह यह है कि इससे उन्हें विदेश में बेहतर तरीके से घुलने-मिलने में मदद मिलती है। इसके अलावा, यह उनकी नेटवर्किंग कुशलता को बढ़ाने में मदद करता है। आने वाले दशकों में भारत दुनिया के बाकी हिस्सों में पेशेवर श्रमशक्ति मुहैया कराने जा रहा है।” छात्रों का सभी भाषाओं में धाराप्रवाह होना जरूरी नहीं है। यहां तक कि थोड़ी-बहुत जानाकरी भी यह बतलाती है कि वे दूसरी भाषा और उसकी संस्कृति समझने की कोशिश कर रहे हैं। इससे ग्राहक खुश होते हैं और यह उनके साथ मजबूत संबंध बनाने में मदद करता है।

अमेरिकी कंपनी सैलरी डॉटकॉम नियोक्ता और कर्मचारियों दोनों के लिए पैकेज डाटा इकट्ठा करती है और उसकी तुलना करती है। इसके मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति एक से अधिक भाषाएं बोलता है तो वह निर्धारित दर से पांच से 20 फीसदी अधिक तक की कमाई कर सकता है। एक प्रभावशाली अर्थशास्‍त्री इंटेलिजेंस यूनिट की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है, “अपने घरेलू बाजार के लिए भर्ती के समय लगभग सभी कंपनियां कहती हैं कि भावी उम्मीदवारों को विदेशी भाषा में धाराप्रवाह होना जरूरी है। वहीं, 13 फीसदी का कहना है कि बहुभाषी होना चयन का एक महत्वपूर्ण मापदंड है।” (2012 में यूरोप, एशिया प्रशांत, उत्तरी अमेरिका और लैटिन अमेरिका में 572 अधिकारियों पर सर्वे के आधार पर)।

व्यापारिक परिदृश्य अपेक्षाकृत काफी तेज गति से बदल रहा है और यह उन लोगों को ज्यादा अवसर मुहैया कराता है, जो एक से अधिक भाषा जानते हैं। गुड़गांव के एमडीआइ के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शैलेंद्र के. राय कहते हैं, “जब कारोबार दुनिया भर में फैल रहा है, तो बिजनेस के छात्र इस सीमाहीन दुनिया में सिर्फ एक भाषा तक सीमित नहीं रह सकते हैं।” हालांकि, सिर्फ विदेशी भाषा सीखना ही बिजनेस में सफलता की गारंटी नहीं है। इसके बजाय यह लोगों को दूसरी संस्कृतियों और परंपराओं में अधिक स्वीकार्य बनाने का जरिया है, जो उन्हें विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों और देशों में अवसर हासिल करने में मदद करती है।

डॉ. राय कहते हैं, “इसे अन्य संस्कृतियों से जोड़ने का एक तरीका माना जाना चाहिए। विदेशी भाषा को जानने से बिजनेस के छात्रों का दायरा बढ़ता है और दूसरी संस्कृतियों और लोगों की जीवनशैली को समझने का मौका मिलता है। इसके अलावा, विदेशी भाषा बोलने से एक बार में एक से अधिक काम करने की क्षमता में सुधार आता है और यह उन्हें बेहतर तर्कसंगत निर्णय लेने में मदद करती हैं।”

भारतीय कंपनियां और देश में स्थित दूसरी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों का विदेशी भाषा की दक्षता के आधार पर मूल्यांकन करना शुरू कर दिया है। बहुभाषी कर्मचारी अक्सर अधिक पैसा कमाते हैं, क्योंकि कंपनी में उनकी भूमिका बड़ी होती है। वे विदेशी ग्राहकों से मिलने और महत्वपूर्ण परियोजनाओं को संभालने के लिए बेहतर माने जाते हैं। इससे रणनीतिक वैश्विक परियोजनाओं का हिस्सा बनने के लिए उनकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ऐसे व्यक्ति संगठन को ग्राहकों के साथ मजबूत संबंध बनाने और संगठन की विश्वसनीयता बढ़ाने में भी मददगार हो सकते हैं। वे ग्राहक और कंपनी के बीच भरोसे का प्रतीक बन जाते हैं। कई मामलों में, इससे कारोबार के कई गुना बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है।

राय कहते हैं, “हर साल बहुभाषी उम्मीदवारों की मांग 20 फीसदी से अधिक बढ़ रही है। देश में बहुभाषी बिजनेस प्रबंधकों की बहुत मांग है।” कई भाषाएं सीखने से नेटवर्किंग के साथ-साथ विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के साथ काम करने में सहूलियत होती है। उदाहरण के लिए, आनंद के यूएसबी स्कूल में छात्रों के लिए फ्रांसीसी, स्पेनिश, जर्मन, मंदारिन और यहां तक कि रूसी भाषा पढ़ने का विकल्प है। जर्मनी अपनी सीमाएं खोल रहा है और चीन जोरशोर से भर्तियां कर रहा है। वह कहते हैं, “यूएसबी के छात्र इंटरनेशनल बिजनेस प्रोग्राम के तहत यूरोपीय देशों में चार महीने बिताते हैं। आइएनएसईईसी और स्विस स्कूल ऑफ मैनजमेंट प्रोग्राम के तहत पेरिस में एक साल तक रहना अनिवार्य है। वे छह महीने तक पढ़ाई करते हैं और बाकी समय पेरिस में पेड-इंटर्नशिप करते हैं। उन्हें कोलंबिया, ब्राजील और अर्जेंटीना में भी इंटर्नशिप के मौके मिलते हैं। इसलिए इन बाजारों में काम करने के लिए स्पेनिश महत्वपूर्ण बन जाती है।”

बहुभाषी होने से हर कॅरिअर में मदद मिलती है। वैश्वीकरण के दौर में नौकरियों के मामले में सरहदें टूट रही हैं और कहीं से भी काम हो सकता है। ऐसे में एक से अधिक भाषा जानना कॅरिअर की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद करता है। भारतीय कंपनियां जान चुकी हैं कि उनका संभावित बाजार केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दूसरे देशों में भी है। इसलिए विदेशी भाषा में कुशल होना काफी मायने रखता है। विश्व व्यापार में तेजी के माहौल में विदेशी भाषा जानना कामयाबी के दरवाजे खोल सकता है।

एमडीआइ गुड़गांव फ्रांसीसी, जर्मन और स्पेनिश की पढ़ाई का विकल्प देता है। फ्रांसीसी, जर्मन, चीनी, जापानी कंपनियां भारत में काम कर रही हैं और उन्हें विदेशी भाषा की दक्षता वाले बहुत से लोगों की जरूरत है। प्रबंधकीय दक्षता के साथ बहुभाषी होना अब नई जरूरत बन गई है।

डॉ. राय कहते हैं, “अब नई कंपनियां भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से लचीले बिजनेस प्रबंधकों की खोज कर रही हैं, जो तेजी से नए माहौल में ढल जाएं और दो देशों के बीच सांस्कृतिक पुल के तौर पर काम कर सकें। ऐसे प्रबंधक ही भविष्य के बिजनेस लीडर बनेंगे।”

आइआइएम-कोलकाता में पाठ्यक्रम के तौर पर सांस्कृतिक प्रबंधन और संचार जैसे विषय शामिल हैं। यहां पाठ्यक्रम के अलावा विदेशी भाषा की पढ़ाई भी होती है, जो छात्रों को वैश्विक उद्योगों के माकूल बनाता है। आइआइएम-कोलकाता में विदेशी भाषा पाठ्यक्रम में अंग्रेजी के अलावा मंदारिन, जापानी, जर्मन, स्पेनिश और फ्रांसीसी पढ़ाई जाती है। आइआइएम-कोलकाता के डीन डॉ. प्रशांत मिश्रा कहते हैं, “बड़ी संख्या में हमारे छात्र इंटरनेशनल एक्सचेंज प्रोग्राम, डुअल डिग्री प्रोग्राम, इंटरनेशनल इंटर्नशिप और विदेशों में नौकरी में रुचि रखते हैं। कई मामलों में बहुराष्ट्रीय कंपनियां विदेशों में इंटर्नशिप और रोजगार के लिए विदेशी भाषा में दक्षता को अहम मानती हैं।”

वैश्वीकरण एक वास्तविकता है और बिजनेस लीडर प्रौद्योगिकी के जरिए दूरस्थ इलाकों से कारोबार चला रहे हैं। विदेशी निवेशकों और साझीदारों के लिए उनकी भाषा बोलने वाला व्यक्ति अधिक भरोसेमंद होता है। विभिन्न संस्कृतियों को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रबंधकीय संबंधों के लिए बेहद जरूरी है। कम्युनिकेशन स्ट्रेटजी कंसल्टेंट अशरफ इंजीनियर कहते हैं, “संबंध बनाने के लिए (खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर) आपको प्रभावी संप्रेषण की आवश्यकता होती है। बहुभाषी होने से कई मौके मिलते हैं, क्योंकि ऐसे लोग आसानी से संबंध स्थापित कर सकते हैं।”

बिजनेस बढ़ने और दूसरे देशों तक आसानी से पहुंच से किसी के सिर्फ एक भाषा तक ही सीमित होने से बड़ा नुकसान हो सकता है। विदेशी भाषाओं की बढ़ती लोकप्रियता के अलावा, दूसरी भाषा सीखने से लोग चली आ रही एक तरह की भीड़ से बाहर निकलते हैं। लोग उन्हें विभिन्न परंपराओं और संस्कृतियों का जानकार मानते हैं, जो उनके लिए अवसरों के असंख्य दरवाजे खोलते हैं।

नियति निगम फिलहाल एमडीआइ गुड़गांव की एमबीए की छात्रा हैं। वह कहती हैं, “एमबीए से पहले जब मैं इंजीनियरिंग कर रही थी, तो रोबोटिक ड्राइंग के अधिकांश हिस्से जर्मन भाषा में थे। मैंने जर्मन सीखी थी, इसलिए यह मेरे लिए फायदेमंद रहा। अब अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन में कोई डील बातचीत पर निर्भर करती है। आप उस विशेष विदेशी भाषा को जानते हैं, तो आप बेहतर बातचीत कर सकते हैं।”

एसआरसी इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद की मुख्य एचआर अधिकारी श्रद्धा कार ने एमबीए के दौरान मंदारिन चीनी का विकल्प चुना। उन्हें लगा कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी। कर कहती हैं, “मैं मंदारिन जानती थी, इसलिए मुझे आसानी से चुन लिया गया, क्योंकि वहां चीनी भाषा बोलने वाले की दरकार थी। यह मेरे लिए फायदेमंद रहा।” एंटरप्रेन्योर डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (ईडीआइआइ) के निदेशक सुनील शुक्ला का कहना है कि नई भाषाएं बाधाएं घटाती हैं। यह बड़ी संख्या में उन पेशेवरों और लोगों के लिए अवसरों के द्वार खोलती हैं, जो एक-समान भाषा बोलते हैं।

शोध के मुताबिक, एक भाषी की तुलना में बहुभाषी लोगों की विचार प्रक्रिया अधिक तार्किक और तर्कसंगत होती है।

विदेशी भाषा लोगों को अप्रासंगिक और अनावश्यक जानकारी से बचने में मदद करती है। यह केवल महत्वपूर्ण सूचनाओं पर ध्यान केंद्रित करने में उनकी सहायता करती है। बहुभाषी लोग दस्तावेजों में भ्रामक जानकारी को अच्छी तरह भांप लेते हैं और इससे उन्हें किसी प्रकार के व्यावसायिक संकट से बचने में मदद मिलती है। कोई एमबीए पेशेवर विदेश जाता है और वहां की स्थानीय भाषा जानता है, तो उसके लिए यह जानना आसान हो जाता है कि वहां के लोग क्या सोचते हैं।

भारत में सीखने वाली पांच शीर्ष विदेशी भाषाएं

फ्रांसीसीः यह भारत में सबसे लोकप्रिय विदेशी भाषा है, जो कई स्कूलों के पाठ्यक्रम का भी हिस्सा है। दुनिया भर में यह अंग्रेजी के बाद दूसरी सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली भाषा है और 30 से अधिक देशों में बोली जाती है। यह कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए बहुत उपयोगी है।

जर्मन: भारत में दूसरी सबसे पसंदीदा भाषा। जर्मनी आर्थिक महाशक्ति है, इसलिए युवाओं के लिए बहुत सारे और व्यावसायिक मौके हैं। यह पूरे भारत में 500 स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई जाती है।

स्पेनिश: स्पेनिश दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में एक है और भारत में तीसरी लोकप्रिय विदेशी भाषा है। ट्रैवल ऐंड टूरिज्म, इवेंट मैनेजमेंट और मीडिया में काम करने वालों को यह भाषा सीखने की सलाह दी जाती है। साथ ही, भारत और हिस्पैनिक देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी बढ़ रहे हैं।

जापानी: भारत-जापान के बढ़ते संबंधों के कारण जापानी भाषा की मांग अधिक है और जापानी कंपनियां भी भारत में अपना विस्तार कर रही हैं। हालांकि, यह भी सबसे अधिक मांग वाली भाषाओं में से एक है।

मंदारिन चीनी: वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने के लिए चीनी भाषा जानना काफी फायदेमंद हो सकता है। चीन एक बड़ा बाजार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र बन गया है और कंपनियां चीनी बोलने वाले पेशेवरों की तलाश में हैं। 

Advertisement
Advertisement
Advertisement