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सिंधिया के नए तेवर

अहमियत न मिलने से खफा सिंधिया पार्टी की सरकार के खिलाफ मुखर
खाली हाथः मुख्यमंत्री पद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दोनों में कमलनाथ की चली, सिंधिया पीछे

कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया न तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन पाए, न प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष। अब तो उनके समर्थकों को भी भाव मिलना बंद हो गया। जिला योजना समितियों के गठन में मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व  मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थकों को ही जगह मिली। इससे सिंधिया की छटपटाहट बढ़ गई है और वे सरकार पर सीधे हमले करने लगे हैं। कमलनाथ और दिग्विजय भी सिंधिया के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। यह लड़ाई सरकार और संगठन में दबदबे के साथ राज्यसभा चुनाव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद तक पहुंच गई है। 

राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के 14 महीने बाद भी पार्टी में नया प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन सका है। यह प्रभार मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास ही है। कमलनाथ अपने समर्थक और राज्य के गृह मंत्री बाला बच्चन को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपना चाहते हैं। सिंधिया पहले खुद अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन अब उन्होंने अपने समर्थक रामनिवास रावत को आगे कर दिया है। रावत चंबल संभाग के ओबीसी नेता हैं। विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा चुनाव में वे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से पराजित हो गए थे। दिग्विजय सिंह ओबीसी नेता और राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी के पक्ष में हैं। उधर, राहुल गांधी आदिवासी नेता और राज्य के वन मंत्री उमंग सिंघार को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव सिंघार झारखंड के प्रभारी भी हैं। झारखंड में पार्टी की जीत से उमंग का रुतबा बढ़ा है, लेकिन उनका रोड़ा दिग्विजय सिंह हैं।

दस साल तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को बड़ा भाई-छोटा भाई कहा जाता है। हालांकि कमलनाथ ने दिग्विजय को भोपाल जैसी कठिन सीट से लोकसभा चुनाव लड़वाकर दांव चला था, लेकिन कमजोर जमीनी पकड़ और राज्य की राजनीति का पुराना अनुभव न होने के कारण वे दिग्विजय को अलग नहीं कर पा रहे हैं। प्रदेश के कांग्रेस नेताओं में सबसे अनुभवी दिग्विजय ही हैं।

मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं में राज्यसभा सीट पर भी घमासान है। अप्रैल में यहां से राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही हैं। इनमें एक दिग्विजय की भी है। दलीय आधार पर दो सीटें कांग्रेस और एक भाजपा के खाते में जा सकती है। दिग्विजय के अलावा इस बार सिंधिया भी राज्यसभा सदस्यता की दौड़ में हैं। 2019 में सिंधिया गुना सीट से लोकसभा चुनाव हार गए थे। पूर्व नेता प्रतिपक्ष और अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल भी राज्यसभा में जाना चाहते हैं। अजय सिंह विधानसभा और लोकसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस के पास कोई और कद्दावर नेता नहीं है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस तीन प्रत्याशी खड़ाकर भाजपा में क्रॉस वोटिंग करवा सकती है।

सिंधिया की बौखलाहट उनके समर्थक मंत्रियों को महत्व न मिलने से भी है। कमलनाथ की कैबिनेट में सिंधिया समर्थक छह मंत्री हैं, लेकिन मलाईदार विभाग सिर्फ गोविंद राजपूत के पास है। सिंधिया पहले तो परोक्ष तरीके से अपनी सरकार पर हमला कर रहे थे, लेकिन 13 फरवरी को टीकमगढ़ में अतिथि शिक्षकों की सभा में कहा, “वचन-पत्र का एक-एक वाक्य पूरा न हुआ, तो खुद को सड़क पर अकेला मत समझना। आपके साथ सड़क पर सिंधिया भी उतरेगा। समय आएगा तो मैं आपकी ढाल और तलवार बनूंगा।” सिंधिया समर्थक पंकज चतुर्वेदी का कहना है, “सिंधिया जी ने सरकार के खिलाफ कोई बात नहीं कही, वे जनता के लिए संघर्ष करते रहते हैं।”

सिंधिया के बयान पर मुख्यमंत्री कमलनाथ की टिप्पणी से मामले ने तूल पकड़ लिया। 15 फरवरी को पत्रकारों ने सिंधिया के सड़क पर उतरने के बयान के बारे में पूछा तो कमलनाथ बोले, “तो उतर जाएं...।” सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने 14 फरवरी को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर सरकार पर सिंधिया के हमलों पर नाराजगी जाहिर की। प्रदेश के मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने एक समारोह में कहा, “सिंधिया कांग्रेस के बड़े नेता हैं। उन्हें सड़क पर उतरने की जरूरत नहीं है।” दिल्ली में कमलनाथ के निवास पर मध्य प्रदेश समन्वय समिति की बैठक हुई थी, लेकिन सिंधिया जल्दी निकल गए थे। हालांकि, समिति के प्रभारी दीपक बावरिया ने सफाई दी, “उन्होंने मुझे पहले ही बता दिया था।” घटनाक्रमों से यही लगता है कि कमलनाथ ने जोड़तोड़ कर सरकार चलाने लायक बहुमत तो जुगाड़ लिया, लेकिन नेताओं के बीच जबर्दस्त शीतयुद्ध चल रहा है। देखना है कि इसका नतीजा क्या होता है। कोई नया अध्यक्ष बन पाता है या फिर ऐसा ही चलता रहेगा। 

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सिंधिया ने शिक्षकों की रैली में सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की बात कही, तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी कह दिया, "...तो उतर जाएं"

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