Advertisement

किताबों से दोस्ती का मंच

यह आयोजन लोगों को उनकी धरोहर से भी रूबरू कराता है
साहित्य की यात्राः 20वें पुस्तक मेले में मंच पर बैठे अतिथिगण

आधुनिकता की दौड़ में आज आदमी अपने पुरखों की समृद्ध थाती से महरूम होता जा रहा है। हमारे बच्चे नानी के किस्से-कहानियों से दूर होते जा रहे हैं, लोकोक्तियां, कहावतें और पारंपरिक लोकगीत आधुनिकता की भेंट चढ़ रहे हैं। सब अंग्रेजीदां हो जाना चाहते हैं, शहरी हो जाना चाहते हैं। अब भोजपुरी बोलते बच्चों को लाज लगती है और भोजपुरी गीत अश्लील गीतों का पर्याय बन गए हैं। ऐसे में, जरूरत लोगों को उनकी धरोहर से रूबरू कराने की है। इस आवश्यकता को पूरा कर रहा है आजमगढ़ का पुस्तक मेला।

यहां शिब्ली कॉलेज परिसर में ‘किताबें बुला रही हैं, चलो आजमगढ़’ नारे के साथ 27 जनवरी से 20वें पुस्तक मेले का आयोजन किया गया। ‘शुरुआत समिति’ का यह आयोजन पूर्वांचल की सांस्कृतिक और साहित्यिक बिरादरी का बौद्धिक मंच बन गया है। वर्ष 2000 से 2002 तक आजमगढ़ के जिलाधिकारी रहे मुकेश कुमार मेश्राम ने आजमगढ़ महोत्सव एवं पुस्तक मेले की शुरुआत की थी। वर्तमान जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रताप सिंह ने इसे नया स्वरूप देते हुए आजमगढ़ की साहित्यिक विरासत को सुदृढ़ करने का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस मौके पर उन्होंने कहा कि पुस्तकें बेहतर मनुष्य की निर्माता हैं। इनमें संतों की वाणी है, धर्म का आख्यान है। ये हमें समय और समाज के इतिहास से साक्षात्कार कराती हैं।

मुख्य वक्ता के रूप में उद्‍घाटन भाषण करते हुए बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि 20 वर्षों की निरंतरता इस बात का प्रमाण है कि आजमगढ़ पुस्तक मेला समूचे पूर्वांचल का बड़ा आयोजन है। भारत के सभी प्रतिष्ठित प्रकाशकों की उपस्थिति यह विश्वास दिलाती है कि अगर किसी अभियान को सतत जारी रखा जाए तो बड़े संस्थान भी उसके सहयात्री बनते हैं। उन्होंने कहा, “पूर्वांचल से हमारा गहरा रिश्ता है। हमने चार वर्ष पूर्वांचल के सभी जिलों में महत्वपूर्ण साहित्यकारों के गांवों में साहित्य यात्रा का संयोजन किया था। आज इस आयोजन में हिस्सा लेकर मुझे सुखानुभूति महसूस होती है।”

मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह ने कहा कि समाज की अभिव्यक्ति का माध्यम प्रत्येक दौर में किताबें ही रही हैं। गांधी के स्मृति दिवस पर जिस परिसर में बात हो रही है, उसका महात्मा गांधी से रिश्ता है। इस परिसर में न सिर्फ महात्मा गांधी आए थे, बल्कि उनकी लिखी हुई पांडुलिपियों को भी संजो कर रखा गया है। उन्होंने कहा कि गांधी समाज की कुरीतियों को खत्म करना आजादी से भी बड़ा और जरूरी मानते थे। शिब्ली अकादमी के निदेशक डॉ. इश्तियाक अहमद जिल्ली ने कहा कि बिना किसी सरकारी अनुदान के ऐसा सफर बताता है कि लोग अगर आपस में विश्वास कर सामाजिक जागरण का साहित्य उत्सव आयोजित करें, तो दूसरे भी उसका हिस्सा बनते हैं। 20 वर्षों से पुस्तक मेले की यात्रा के साक्षी और समन्वयक राजीव रंजन ने कहा कि सात दिनों के इस उत्सव में हजारों लोगों की भागीदारी होती है। आजमगढ़ के लोग पूरे साल इस आयोजन का इंतजार करते हैं। नई पीढ़ी के लिए यह अभियान किताबों से दोस्ती का मंच बन गया है।

अकादमी के संयोजक और गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि आजमगढ़ 1857 से लेकर अब तक लोक के स्वर को स्थापित करने वाला शहर है। यही यहां की संस्कृति और रचनाधर्मिता का मूल कारण है। इस अवसर पर छात्रों से संवाद करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सुरेन्द्र विक्रम ने कहा कि कविता मनुष्य के भीतर रचनात्मक तत्वों का निर्माण करती है। बाल मन के सपनों का रंग जब साहित्यिक संसार पाता है तो जिंदगी इंद्रधनुष की तरह सतरंगी हो जाती है। रचनाकार शीला पाण्डेय ने कहा कि कविता हमें अपने समय से संवाद कराती है। कविता समय की कसौटी का प्रमाण है।

सीएसएसआरआइ केंद्र के निदेशक और कृषि वैज्ञानिक डॉ. वी.के. मिश्रा ने खेती की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि विज्ञान आधारित कृषि तभी फलेगी जब किसान की चुनौतियों को समझते हुए उत्पादन किया जाएगा। किसान संपन्न होगा तो देश संपन्न होगा। इसलिए किसान के संकट का समाधान हमारा दायित्व है। हमें विविधता वाले फसल-चक्र को अपनाना चाहिए, ताकि भूमि की उर्वरता बनी रहे।

आजमगढ़ की पहचान साहित्य, संगीत और कला तीनों विधाओं में राष्ट्रीय फलक पर होती है। यह साझी संस्कृति को सहेजे एक ऐसा जनपद है, जो आज तक नफरत की आग से खुद को बचाए रखने में सफल रहा है। यहां संगीत का हरिहरपुर घराना है, तो निजामाबाद की ब्लैकपाटरी की अनुपम कृतियों की चर्चा अंतरराष्ट्रीय गलियारों तक होती है। तीन ओर से तमसा नदी से घिरा मूलतः भोजपुरीभाषी यह जनपद इन दिनों एक सांस्कृतिक आंदोलन की जन्मभूमि सा दिख रहा है।

------------------------------

20 वर्षों से हो रहा यह मेला इस बात का प्रमाण है कि यह समूचे पूर्वांचल का बड़ा आयोजन है, पूरे साल इसका इंतजार रहता है

Advertisement
Advertisement
Advertisement