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संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आईं पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आईं प्रतिक्रियाएं

रोजगार के अवसर

आउटलुक के 11 जनवरी अंक में, “हिंदी पट्टी की फिल्म नगरी” काफी जानकारीपूर्ण लगा। बॉलीवुड का मुंबई से वही रिश्ता है, जो राजनीति का दिल्ली के साथ है। बॉलीवुड का फिल्म नगरी मुंबई से एक सदी से भी ज्यादा पुराना रिश्ता है। ऐसा गहरा रिश्ता अचानक नहीं टूट सकता। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इसके लिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नोएडा में नई फिल्म नगरी बनाने का सोच रहे हैं, तो इसमे फिल्म निर्माताओं और सिनेमा देखने वाले दोनों का फायदा है। इससे उत्तर प्रदेश के हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। फिल्मों की शूटिंग में नई फिल्म सिटी का फायदा मिलेगा। बेहतर है इस पर राजनीति न हो। 

बाल गोविंद | नोएडा

 

अपराध की स्थिति

11 जनवरी के अंक में आवरण कथा, “योगी की मायानगरी” में राखी शांडिल्य ने बहुत अच्छे ढंग से नोएडा में बन रही नई फिल्म सिटी के बारे में बताया है। उन्होंने राजनीति, रोजगार और सरकार के रवैए पर सटीक बातें कहीं। लेकिन उनके स्तंभ में सबसे जरूरी बात की ओर इशारा किया गया है, जिस पर अभी तक बात नहीं हो रही है। उन्होंने उत्तर प्रदेश में बढ़ रहे अपराधों की ओर ध्यान दिलाया है। यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर राज्य सरकार का ध्यान सबसे पहले जाना चाहिए। किसी भी नए उद्योग के लिए सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण बिंदू है। उत्तर प्रदेश में अपराध कम हो जाएं, तो नई फिल्म सिटी की सफलता की गारंटी पक्की हो जाएगी।

सुधा तिवारी | कानपुर, उप्र

 

अच्छी पहल

फिल्म से जुड़ा कारोबार ऐसा उद्योग नहीं है कि कल फैक्ट्री बनाई और आज उत्पादन शुरू। आवरण कथा (11 जनवरी) में नई फिल्म सिटी को लेकर कई पहलूओं पर चर्चा की गई है। यह अच्छी बात है, कि उत्तर प्रदेश जैसा राज्य फिल्म उद्योग के बारे में सोच रहा है। लेकिन जैसा कि आवरण कथा में ही शंका जाहिर की गई है कि यह कितना कारगर होगा, यह वक्त ही बताएगा। इस पर अभी बयानबाजी या राजनीतिक कटाक्ष न महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को शोभा देती है न उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को। न कोई राज्य नया उद्योग दे रहा है, न किसी राज्य से उसका उद्योग छीना जा रहा है। इस बात को सभी को समझना चाहिए। यह एक पहल है, जिसका स्वागत करना चाहिए। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश को कदम मिला कर इस पर काम करना चाहिए। यह फिल्म उद्योग के लिए वाकई दोनों सरकारों की तरफ से अच्छा तोहफा होगा।

मनीष माथुर | मुंबई, महाराष्ट्र

 

मानवता की तस्वीर

आउटलुक का नवीनतम अंक पढ़ा। संतुलित आलेखों से परिपूर्ण है यह अंक। गिरिधर झा का आलेख, “जाबांजों का साल” (11 जनवरी) में उन्होंने बताने की कोशिश की है कि जहां कोरोना ने इस साल तबाही मचाई और जीवन अस्त-व्यस्त किया वहीं इसके कई सकारात्मक पहलू भी सामने आए हैं। दुनिया के सामने मानवता की तस्वीर भी उभर कर सामने आई और ये साबित हुआ कि परिवार को समय देना भी आवश्यक है। इस दौरान यह देखने को मिला कि इंसान के अंदर मानवता और दया भावना जीवित है। सफाईकर्मी, किसान, दूध-फल, सब्जियां बेचने वालों की बहुत अहमियत है, जिन्हें प्रायः हम हेय दृष्टि से देखते हैं। अपनी जान पर खेल कर इंसान की जिंदगी बचाने वाले डॉक्टर्स और मीडियाकर्मी भी जांबाज हैं।

जफर अहमद | मधेपुरा, बिहार

 

हर कड़ी महत्वपूर्ण

“जांबाजों का साल“ (11जनवरी) ने जीवन के दूसरे पहलू को बहुत खूबसूरती से दिखाया। कोविड-19 ने हर क्षेत्र को तबाह किया लेकिन इससे लड़ने में मनुष्यता का जो रूप सामने आया, वो वाकई काबिले तारीफ है। बहुत से लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट आया, कई लोग प्रतिकूल परिस्थिति में पैदल घर गए, कई लोगों की जिंदगियां लील गई यह महामारी। लेकिन इस विषम परिस्थितियों में  हमारे बीच से ही कुछ ऐसे लोग निकले जो फरिश्ते बन गए। इस महामारी ने वाकई इंसान को इंसान के करीब पहुंचाया। जरूरी है कि हम इस सबक को कभी न भूलें और आने वाली पीढ़ियों तक इस महामारी की संकट कथा पहुंचे ताकि कोई न संसाधन का दुरपयोग करे न कोई किसी को छोटा समझे।

साधना अग्रवाल | कोलकाता, पश्चिम बंगाल

 

सिर्फ दिखावा

“लंबी लड़ाई की तैयारी” 11 जनवरी के अंक में किसान आंदोलन पर रिपोर्ट पढ़ी। इसका कोई हल निकलेगा ऐसा लगता नहीं है। शायद सरकार ऐसा करना चाहती भी नहीं है। सन 2019 में लोकसभा चुनाव के प्रचार प्रसार के दौरान मथुरा संसदीय क्षेत्र की उम्मीदवार हेमा मालिनी वोट पाने के लिए न केवल किसानों के बीच गईं, बल्कि गेहूं की कटाई के दौरान खेत में गेहूं काटते, किसानों के ट्रैक्टर चलाते हुए फोटो भी खिंचवाए। उस वक्त चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया पर ये तस्वीरें छाई रही थीं। हेमा मालिनी जैसे कई उम्मीदवार वोट की जुगाड़ में ऐसा दिखावा करते हैं। अब जबकि किसान आंदोलन कर रहे हैं, परेशान हैं, आंदोलन के चलते कई किसानों की मृत्यु तक हो चुकी है, ये लोग सिरे से गायब हैं। अब ये लोग किसानों के पक्ष में खड़े होने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं! फिर इतना दिखावा क्यों? सच को अगर सच नहीं कहा जाएगा, तो झूठ का बोलबाला होगा। हेमा मालिनी जैसे कई सांसद, विधायक जो तथाकथित रूप से किसान हितेषी बनते हैं, कम से कम इन मेहनतकश पसीना बहाने वाले, हर मौसम और विषम परिस्थितियों का सामना करने वालों के पक्ष में आने का कम से कम साहस तो जुटाएं!

हेमा हरि उपाध्याय | उज्जैन, मप्र

 

समग्रता लिए अंक

आउटलुक के 28 दिसंबर का अंक विश्लेषण से भरा हुआ था। खासकर सरकार द्वारा कोरोना महामारी के वैक्सीन की तैयारियों का समग्र प्रस्तुतीकरण किया गया है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला का साक्षात्कार बहुत तथ्यपूर्ण लगा। तमिलनाडु की राजनीति में रजनीकांत के प्रवेश और किसान आंदोलन पर अच्छी रिपोर्ट थी। भाजपा की हैदराबाद में विजय और बिहार राजनीति में टेप कांड पर अच्छी रिपोर्ट थी। छत्तीसगढ़ और झारखंड के राजनीतिक पहलुओं पर भी आउटलुक में अच्छी रिपोर्ट है। हर बार की तरह आवरण कथा में किसानों की समस्या को आउटलुक ने फिर से गंभीर तरीके से प्रस्तुत किया है। स्मृति में मंगलेश डबराल का जाना और मदन कश्यप का उनको याद करना दिल को छूता है। खेल में, “कप्तानी का विकल्प” अच्छा लगा। मनोरंजन में भूमि पेडनेकर का इंटव्यू अच्छा लगा।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

 

वाकई हिंदी वाले

आउटलुक के 11 जनवरी अंक में अमिताभ घोष का अच्छा इंटरव्यू पढ़ा। इस तरह दूसरी भाषाओं के लेखकों के साक्षात्कार पढ़ कर नई जानकारियां तो मिलती ही हैं, यह भी पता चलता है कि हिंदी से इतर लेखक किस तरह से सोचते हैं। निसंदेह अमिताभ घोष अंग्रेजी के अच्छे लेखक हैं और अब उनकी किताबों का हिंदी अनुवाद आना बहुत सुखद है।

कंचन परमार | नई दिल्ली

 

कैसे निकलेगा हल

28 दिसंबर के अंक में आवरण कथा के अंतर्गत अजित कुमार झा की रिपोर्ट मजबूत किसान मोर्चेबंदी पढ़ी। इसको पढ़कर लगा कि कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है। किसानों ने जिस तरह का अड़ियल रवैया अपनाया है उससे बात बनने के बजाय बिगड़ती ही दिखाई दे रही है। दोनों ही पक्ष सरकार और किसान अपनी-अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। ऐसे में कोई रास्ता निकलता नजर नहीं आ रहा है। यह देश के लिए चिंतनीय स्थिति है। आउटलुक भले ही राजनीतिक, सामाजिक पत्रिका हो लेकिन इसमें हिंदी साहित्य को भी स्थान मिलना चाहिए। साहित्य समाज को दिशा देता है, इसकी उपस्थिति अनिवार्य है। 

सुनील कुमार चौहान| बदायूं, उप्र

 

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इतिहास का आईना

 

प्रिय राष्ट्रपति निक्सन,

मैंने सुना आपको निमोनिया हो गया था। निमोनिया के कारण मैं बस हाल ही में अस्पताले से लौटा हूं और उम्मीद करता हूं कि आपको यह मेरी वजह से नहीं हुआ होगा। अब आप अच्छे बच्चे बनो और मेरी तरह सब्जियां खाना शुरू करो!!  अगर आप समय पर अपनी दवा और इंजेक्शन लेते रहोगे, तो मेरी तरह सिर्फ 8 दिन में इस बीमारी से ठीक हो जाओगे।

खूब प्यार

जॉन. डब्लू. जेम्स तृतीय

8 साल

खानपान सलाहः  वॉटरगेट कांड के बाद राष्ट्रपति निक्सन को 8 साल के एक बच्चे का यह पत्र मिला था

 

पुरस्कृत पत्र

 

स्थानीयता को बढ़ावा

आउटलुक इस दौर की सबसे विश्वसनीय पत्रिका है। आवरण कथा, (हिंदी पट्टी की फिल्म नगरी, 11 जनवरी) ने इसे एक बार फिर साबित किया है। किसी राज्य में नया फिल्म उद्योग आना सिर्फ रोजगार का ही संकट हल नहीं करता बल्कि यह किसी भी राज्य को अलग पहचान भी देता है। महाराष्ट्र में जमे हुए किसी उद्योग को अपने राज्य में लाने की सोच ही काफी महत्वपूर्ण है। नजरिया स्तंभ में राखी शांडिल्य ने बहुत सही कहा है कि नया उद्योग आने से फिल्मों में स्थानीयता को बढ़ावा मिलेगा। यही सबसे महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश जैसे समृद्ध राज्य को इसका बहुत फायदा होगा। स्थानीय संस्कृति के लिए यह जरूरी है। इसके बाद किसी राज्य के प्रमुखों को किसी भी तरह की बहस में पड़ने की जरूरत ही नहीं होगी।

नेहा कनौजिया |दुर्ग, छत्तीसगढ़

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