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कोविड वैक्सीन: लोगों की झिझक नई चुनौती

कई राज्यों में लक्ष्य से केवल 30-50 फीसदी ही लगी वैक्सीन, लेकिन वैक्सीन का ज्यादा भंडार भी बन सकता है समस्या
डॉ. हर्षवर्धन

भारत इस समय कोविड-19 की दो लड़ाई लड़ रहा है। पहली लड़ाई के परिणाम अच्छे दिख रहे हैं और हर रोज संक्रमण के मामले घट रहे हैं। सक्रिय मामलों की संख्या घटकर केवल 1.57 लाख रह गई है। यही नहीं, भारत में रिकवरी रेट (संक्रमण से ठीक होने वाले) 97 फीसदी पहुंच गई है, जो कि दुनिया में सबसे अच्छे रिकवरी रेट (2 फरवरी तक) वाले देशों की श्रेणी में है। लेकिन दूसरी लड़ाई यानी वैक्सीन लगाने की गति में थोड़ी अड़चनें आ रही हैं। लोग अभी भी वैक्सीन लगवाने में हिचक रहे हैं। यह हिचक और भी परेशान करने वाली है, क्योंकि पहले चरण में जिन एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगनी है, वे स्वास्थ्यकर्मी हैं। अगर स्वास्थ्यकर्मी ही हिचकेंगे तो आम आदमी को वैक्सीन लगने की बारी आने पर तो राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। अभी तक (2 फरवरी) केवल 41 लाख लोगों को ही वैक्सीन लग पाई है। इसी का असर है कि ज्यादातर राज्य 15 दिन में अपने लक्ष्य के 50 फीसदी के स्तर पर ही पहुंच पाए हैं। ऐसे में अगर अगस्त तक 30s करोड़ लोगों का टीकाकरण करना है, तो सरकार को खास पहल करनी पड़ेगी।

ऐसी ही एक पहल मध्य प्रदेश में की गई है। वहां शुरुआत में वैक्सीन लगवाने के लिए लोग उम्मीद के अनुसार आगे नहीं आ रहे थे। इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और दूसरे संबंधित लोग आगे आए और उन्होने न केवल वैक्सीन लगवाई बल्कि उसे सोशल मीडिया पर वायरल भी किया, ताकि लोगों के मन से झिझक खत्म हो। उसका असर भी अच्छा हुआ है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की 2 फरवरी की रिपोर्ट के अनुसार और मध्य प्रदेश में 2,98,376 स्वास्थ्यकर्मी वैक्सीन लगवा चुके हैं, जो 4,29,981 के लक्ष्य का करीब 70 फीसदी है। यह पूरे देश में सबसे ज्यादा दर है।

असल में ऐसी ही कवायद की इस समय जरूरत है। इसके पहले बिहार के पटना में शुरुआती दौर में यह बात सामने आई थी कि वहां स्वास्थ्यकर्मी वैक्सीन लगवाने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। उनकी मांग थी कि जब हर काम में पहले मंत्री, नेता, वरिष्ठ अधिकारी आगे होते हैं, तो यहां क्यों नहीं वे पहल कर रहे हैं?

 

असल में इस डर की थोड़ी वजहें भी हैं। देश में वैक्सीन लगवाने के बाद अलग-अलग हिस्सों में 9 लोगों की जानें गई हैं। हालांकि यह पुष्टि नहीं हो पाई है कि इसमें किसी भी व्यक्ति की जान वैक्सीन की वजह से गई है। लेकिन लोगों तक ये बातें पहुंचने से जरूर शंकाएं घर कर जाती हैं। लोगों के डर को दूर करने के लिए वैक्सीन कंपनियों ने भी यह साफ किया है कि वैक्सीन लगवाने से बुखार, शरीर में दर्द जैसे साइड इफेक्ट हो सकते हैं, जो सामान्य बात है।

हालांकि कुछ खास तरह की दवाइयां कोई व्यक्ति लेता है या उसे कोई दूसरी दिक्कत है तो ऐसे व्यक्ति को वैक्सीन लगवाने से बचना चाहिए। कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बॉयोटेक ने बकायादा फैक्टशीट जारी की है। उसने कहा है कि अगर किसी व्यक्ति को एलर्जी की समस्या है, वैक्सीन लगवाने के समय बुखार है, कोई व्यक्ति खून पतला करने के लिए दवाइयां ले रहा है, कोई महिला गर्भवती है या फिर वह स्तनपान करा रही है, तो उसे वैक्सीन लेने से बचना चाहिए। साथ ही वैक्सीन लगवाने से पहले डॉक्टर को अपनी स्वास्थ्य संबंधी सारी जानकारी देनी चाहिए। कोई भी बात छुपानी नहीं चाहिए।

इस मामले में विपक्ष ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा है। राजद नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस के मुरली देवड़ा से लेकर कई विपक्षी नेताओं ने वैक्सीन को सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगवाने की मांग की थी। उनका कहना था कि इससे लोगों के मन की झिझक खत्म होगी। हालांकि अब ऐसा कहा जा रहा है कि दूसरे चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैक्सीन लगवाएंगे। असल में दूसरे चरण में सरकार की योजना 50 साल और उससे ज्यादा के उम्र के लोगों को वैक्सीन लगवाने की है। उसके तहत 2 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जाएगी।

लोगों को होने वाली झिझक पर कोविड-19 की वैक्सीन लगवाने वाले रॉयबरेली के डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव का कहना है, “इसमें डरने वाली कोई बात नहीं है। मेरा करीब 35 साल का करिअर हो चुका है। सरकारी कर्मचारी होने के नेता मैंने कई सारे टीकाकरण कार्यक्रम चलाए हैं। कोरोना वैक्सीन लगाने का काम बहुत व्यवस्थित तरीके से चलाया जा रहा है। मुझे तो इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि मुझे कब डॉक्टर ने टीका लगा दिया। रही बात साइड इफेक्ट की तो मुझे कोई दिक्कत नही आई। वैसे यह समझना चाहिए दूसरी वैक्सीन में भी बुखार आना, टीके की जगह पर दर्द होना आदि सामान्य बात है। केवल डॉक्टर से कोई बात न छुपाएं। अगर कोई बीमारी की हिस्ट्री है या उससे संबंधित कोई दवा ले रहे हैं, तो उसकी जानकारी जरूर दें।”

वैक्सीन लगवाने में लोगों की झिझक से एक समस्या और खड़ी हो सकती है, जिसको लेकर केंद्र सरकार सतर्क भी है। असल में कोविड-19 वैक्सीन की लाइफ करीब छह महीने है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि वैक्सीन एक्सपायर होने से पहले लगाई जाए। इसे देखते हुए सरकार में इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि वैक्सीन को खुले बाजार में उपलब्ध कराया जा सकता है या नहीं? सरकार ने  अकेले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से 11 करोड़ वैक्सीन खरीदने का समझौता किया है। यह वैक्सीन सरकार 200 रुपये के सब्सिडी रेट पर खरीद रही है। लेकिन 2 फरवरी तक के आंकड़ों के अनुसार 41 लाख लोगों को ही वैक्सीन लगा पाई है, जबकि रिपोर्ट के अनुसार सीरम इंस्टीट्यूट के पास अप्रैल तक 10 करोड़ वैक्सीन का स्टॉक हो जाएगा। भारत बॉयोटेक के पास अभी तक 2 करोड़ वैक्सीन का स्टॉक खड़ा हो गया है और इस साल के अंत तक कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता सात करोड़ वैक्सीन तक पहुंचा सकती है।

ऐसे में अगर इन कंपनियों की वैक्सीन उत्पादन होने के बाद छह महीने तक नहीं लग पाई तो वह बेकार हो जाएगी। यह नई चुनौती भी सरकार के लिए खड़ी हो रही है, जिसे देखते हुए खुले बाजार में वैक्सीन को पहुंचाने का काम कारगर हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार ऐसा करना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि इसके लिए सरकार को जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार करना होगा। वैक्सीन को खुले बाजार में पहुंचाने के लिए कोल्ड चेन वगैरह जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था करनी पड़ेगी। नेशनल कोल्ड चेन मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम के मुताबिक, इस वक्त देश में 28,932 कोल्ड चेन केंद्र हैं। इसी तरह आइस लाइंड रेफ्रिजरेटर की संख्या 44226 है (6 दिसंबर तक के आंकड़े)। इन्हीं में वैक्सीन रखी जा रही है। ।

इसके साथ ही सरकार को वैक्सीन की कीमतों को लेकर भी फैसला करना होगा। अभी तक केवल पहले चरण में लगाई जा रही वैक्सीन ही मुफ्त में लग रही है। दूसरे चरण की कीमत को लेकर सरकार के तरफ से कोई बयान नहीं आया है, जिसमें 27 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इस बीच पश्चिम बंगाल, दिल्ली और बिहार में सभी को मुफ्त में वैक्सीन लगाने का ऐलान राज्य सरकारें कर चुुकी है। कुल मिलाकर इस समय सबसे बड़ी चुनौती सरकार के सामने वैक्सीन के प्रति लोगों की झिझक खत्म करने की है, क्योंकि लोगों की झिझक अगर नहीं टूटती है, तो आने वाले समय में न केवल संक्रमण के खतरे को कम करने में दिक्कत आएगी, बल्कि इस बात की भी आशंका है कि करोड़ों वैक्सीन बेकार हो जाएगी। यकीनन इससे न सिर्फ कोविड का खतरा मौजूद रह सकता है, बल्कि आर्थिक नुकसान भी भारी हो सकता है। अब देखना है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस चुनौती से कैसे निपटती हैं।

साथ में भोपाल से शमशेर सिंह

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