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पटखनी के दांव

निकाय अध्यक्ष चुनाव से पहले कमलनाथ ने दिखाई अपनी ताकत
कोशिश कामयाबः राज्यपाल लालजी टंडन के साथ मुख्यमंत्री कमलनाथ

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक बार फिर भाजपा को मात दे दी है। कमलनाथ ने भाजपा के विरोध के बाद भी नगर निगम महापौर और नगर पालिका अध्यक्षों के चुनाव पार्षदों के जरिए कराने के अध्यादेश को राज्यपाल की मुहर लगवाकर अपनी ताकत दिखा दी। महापौर और अध्यक्षों के चुनाव सीधे जनता से कराए जाने की स्थिति में भाजपा अपने को मजबूत पा रही थी और कांग्रेस को झटका लगने की संभावना थी। यही वजह थी कि भाजपा महापौर और अध्यक्षों के अप्रत्यक्ष चुनाव का विरोध कर रही थी। ऐसे में कमलनाथ ने प्रक्रिया ही बदल दी। 1998 में प्रदेश की दिग्विजय सरकार ने नगर निगम पालिक विधि संशोधन अध्यादेश लाकर अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को बदल कर प्रत्यक्ष प्रणाली लागू की थी। इसके बाद से सीधे जनता के वोट से महापौर और अध्यक्ष चुने जाने लगे। भाजपा के राज में पूरे 15 साल यही प्रणाली चलती रही।

भाजपा ने स्थानीय निकायों की चुनाव प्रक्रिया में बदलाव के खिलाफ राज्यपाल लालजी टंडन से गुहार लगाई। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल से नगर निगम पालिक विधि संशोधन अध्यादेश 2019 को मंजूरी न देने का आग्रह किया। भाजपा को आशंका है कि सरकार प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने लोगों को महापौर और अध्यक्ष बनवाएगी।

कई बार निकायों में महापौर और अध्यक्ष दूसरे दल के होते हैं और पार्षदों का बहुमत किसी और दल के पास रहता है। राज्यपाल ने अध्यादेश को होल्ड भी किया, लेकिन कमलनाथ से चर्चा के बाद राज्यपाल ने इसे अपनी मंजूरी दे दी। इस मुद्दे पर भाजपा की पराजय का बड़ा कारण रहा नेताओं में एकजुटता की कमी। लगा कि शिवराज सिंह चौहान इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ गए और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की राह अलग रही। अध्यादेश को होल्ड करने पर मध्य प्रदेश की राजनीति भी गरमाई। कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने ट्वीट कर राज्यपाल को राजधर्म के पालन की नसीहत दे डाली। इससे माहौल बिगड़ता दिखा, पर मुख्यमंत्री कमलनाथ राजभवन जाकर राज्यपाल को समझाने में कामयाब रहे। कमलनाथ को सफाई देनी पड़ी और कहना पड़ा कि जिन लोगों ने राजभवन की गरिमा के खिलाफ सार्वजनिक बयान देकर राज्यपाल पर दबाव बनाने का प्रयास किया है, वह उनके निजी विचार हैं। सरकार का उनसे कोई लेनादेना नहीं है। लोकतंत्र में स्वस्थ मर्यादाओं का पालन जरूरी है। विवेक तन्खा के ट्वीट के बाद राज्यपाल सरकार से खफा बताए जा रहे थे।

जुलाई में मध्य प्रदेश विधानसभा में क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट बिल 2019 के लिए वोटिंग के वक्त भाजपा के दो विधायकों का साथ लेकर कमलनाथ ने भाजपा को झटका दे दिया था। कमलनाथ ने भोपाल नगर निगम को दो हिस्सों में बांटकर भी भाजपा को उखाड़ने की रणनीति चल दी है। भोपाल अब भोपाल और कोलार नगर निगम में बंट जाएगा। कहा जा रहा है कि इन नगर निगमों के परिसीमन में कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा और आरिफ अकील का क्षेत्र यथावत बना हुआ है, लेकिन रामेश्वर शर्मा, विश्वास सारंग और कृष्णा गौर के क्षेत्र प्रभावित हो गए हैं। इसका साफ असर भाजपा के वोट बैंक पर पड़ने की संभावना है। वैसे नौ महीने तक कमलनाथ की सरकार को काफी कमजोर माना जा रहा था और भाजपा के कुछ लोगों ने तो लोकसभा चुनाव तक कमलनाथ सरकार की लाइफ तय भी कर दी थी, लेकिन समय बीतने के साथ कमलनाथ भाजपा पर हावी दिख रहे हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस के भीतर भी कमलनाथ के खिलाफ एक गुट माहौल बनाने में लगा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर खींचतान मची हुई है।

इस बीच, कमलनाथ इन्वेस्टर मीट के बहाने बड़े उद्योगपतियों को स्वयं न्योता देकर अपनी छवि चमकाने में लग गए हैं। 18 अक्टूबर को इंदौर में आयोजित होने वाले ‘मैग्नीफिसेंट एमपी’ के बहाने कमलनाथ उद्योगपतियों में अपनी पकड़ दिखाने के साथ प्रदेश में 30 हजार रोजगार पैदा करने की बात कर जनता का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। इसके और भी फायदे देखे जा रहे हैं। मसलन, शिवराज के समय के ‘इन्वेस्टर मीट’ और ‘मैग्नीफिसेंट एमपी’ का अंतर लोगों को दिखाया जाएगा। वहीं, रोजगार की बात कर 21 अक्टूबर को होने वाले झाबुआ उपचुनाव में भी लाभ लेने की कोशिश की जाएगी। झाबुआ इंदौर संभाग में ही आता है। कमलनाथ सरकार के लिए झाबुआ उपचुनाव काफी मायने रखता है। फिलहाल, यह बात तो साफ होती जा रही है कि कमलनाथ अपनी रणनीति से भाजपा को पटखनी देते जा रहे हैं और उनका तख्ता पलटने का सपना देख रही भाजपा की इज्जत दांव पर लग गई है। झाबुआ उपचुनाव और नगर निकायों के परिणाम अब प्रदेश की राजनैतिक दिशा तय करेंगे।

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