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27 जून 2022 · JUN 27 , 2022

रग्बी फिल्म: जंगल की जीत

हाल ही रिलीज हुई फिल्म जंगल क्राइ करीब डेढ़ दशक पहले लंदन के अंतरराष्ट्रीय रग्बी टूर्नामेंट में ओडिशा के आदिवासी बच्चों की चमत्कारी जीत की कहानी है, उस बेमिसाल टीम के सूत्रधार की जुबानी
रग्बी खेलने लंदन पहुंचे आदिवासी बच्चे

वाकया 2007 का है। मुझे यूके चैरिटी टूरएड की एक पहल के तहत बच्चों की एक टीम को रग्बी खेलने के लिए लंदन ले जाने का बुलावा मिला था। उन्हें नेशन्स कप में खेलना था, जिसमें 12 अलग राष्ट्रीय टीमें शामिल थीं। भारतीय टीम से किसी को भी ज्यादा उम्मीद नहीं थी, बल्कि मुझे उसे शामिल कराने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े। सभी को लगा कि हम सनकी हैं। कलिंग सामाजिक विज्ञान संस्थान (केआइएसएस-किस) अपने स्कूल से आदिवासी बच्चों की एक टीम भेजने को राजी हो गया था। जब वे टूर्नामेंट जीतने लगे तो लगा कि ये तो वाकई बेहद खास हैं!

यही अभय देओल अभिनीत फिल्म जंगल क्राइ की कहानी है, जो ओडिशा के 12 वंचित बच्चों की सच्ची प्रेरक कथा पर आधारित है। यह फिल्म भारत में हाल ही रिलीज हुई और फिल्म देखने के लिए मैं बहुत उत्साहित हूं। इसमें ब्रिटिश अभिनेता स्टीवर्ट राइट ने मेरी भूमिका अदा की है।

2007 में लौटें। लंदन में अंतरराष्ट्रीय रग्बी टूर्नामेंट में भारतीय टीम को प्रवेश दिलाने की कोशिश में मैंने कुछ मेल किए। भारत के दोस्त संशय में थे और लंदन में कोई हमें गंभीरता से नहीं ले रहा था। लेकिन मैंने कोशिश नहीं छोड़ी!

रग्बी टीम

अभय देओल के साथ वॉल्श और किस के आदिवासी बच्चे

मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि 15 साल बाद मैं ऐसी फिल्म के लिए उत्साहित होऊंगा, जो ‘किस जंगल क्रोज’ टीम के साहसिक कारनामे की कहानी कहेगी! कैसे भुवनेश्वर के एक स्कूल के 12 बच्चों को चार महीने में रग्बी की ट्रेनिंग दी, कैसे उन्हें अपने जीवन के पहले जूते मिले, कैसे उनका पासपोर्ट बना, प्लेन में वे बीमार पड़े और आखिर में टूर्नामेंट जीत कर उन्होंने हैरान कर दिया।

उस दुस्साहस में एक अजीब-सा निश्चय और भरोसा था, जो एक नजर में महज एक सनक भर लगता था। प्रायोजकों को ढूंढ़ने वाले दोस्त, बच्चों में जज्बा जगाने वाले कोच, कुछ ज्यादा मेहनत करने वाले शिक्षक, सबकी लगन से जो टीम तैयार हुई, उसमें सबकी बड़ी भूमिका थी और हरेक ने बेहतरीन हिस्सेदारी निभाई और हममें से अधिकतर आज भी जुड़े हुए हैं।

उसके बाद उस पागलपन भरी दीवानगी पर फिल्म बनाना भरोसे की एक और बड़ी छलांग है, वाकई उसमें और बड़ी टीम, और बड़ा बजट चाहिए था। बस यही जंगल क्राइ की कहानी है। मैं उन दोनों का हिस्सा रहा।

जीत के बाद के वर्षों में कई फिल्म निर्माता इस कहानी पर फिल्म बनाने के लिए संपर्क में आए। कुछ दूसरों की तुलना में अधिक गंभीर थे। कहानी को कैसे कहा जाना चाहिए, इस बारे में सभी के अपने-अपने विचार थे। अपना हिस्सा साझा करने में मुझे हमेशा खुशी होती थी कि कैसे मैं इसमें शामिल हुआ। क्या हुआ, कैसे खिलाडि़यों ने अविश्वसनीय हासिल किया।

मुझे याद है एक बार एक अंतरराष्ट्रीय स्टूडियो के साथ बैठक के लिए मुझे मुंबई बुलाया गया था। मुझे एक बड़े बैठक कक्ष में बैठाया गया और फिल्म बनाने के इच्छुक निर्माता-निर्देशक और करीब 5 लोगों से मिलवाया गया।

फिर मेरा परिचय शब्बीर बॉक्सवाला से हुआ जो उस समय मेरे विचार से इश्क फॉरएवर के लिए जाने जाते थे। मुझे शायद यह बताना चाहिए कि मैं फिल्मों का शौकीन नहीं हूं। फिल्मों का मैं आनंद लेता हूं, लेकिन फिल्मों के प्रति दीवानगी नहीं है। उससे पहले मैंने इश्क फॉरएवर के बारे में कभी भी सुना या देखा नहीं था। शब्बीर उस तरह के व्यक्ति लगे जो चीजों को मुमकिन कर सकते थे। उनके साथ कहानी साझा करने में मुझे खुशी हुई। समय बीतता गया।

वॉल्श के साथ बच्चे

वॉल्श के साथ बच्चे

आखिर अक्टूबर 2018 आ गया। मैं दस लड़कों को लेकर कोलकाता से भुवनेश्वर जा रहा हूं, जो हमारी जंगल क्रो रग्बी टीम के लिए सिलेक्ट हुए हैं। अभी तक रग्बी की दीवानगी भरी यह फिल्म अनाम है। मुझे हल्का पसीना आ रहा है लेकिन कोई बात नहीं मौसम भी गर्म है और हल्की सी उत्तेजना भी।

पहला दिन। मेरी मुलाकात अभय देओल से होती है, जो फिल्म के मुख्य नायक रूद्रकेश की भूमिका निभा रहे हैं। रूद्रकेश किस के खेल शिक्षक हैं और बच्चों को ब्रिटेन लेकर जाते हैं। दूसरा दिन। मैं बाथरूम के पास मंडरा रहा था। चिंतित चेहरे लिए लड़के मेरी तरफ देख रहे थे। मुझे अस्पताल ले जाया गया, डेंगू मच्छर के काटने की वजह से। उन दिनों की धुंधली-सी स्मृति आज भी है। तितली चक्रवात के समय मैंने सेट पर वापसी की। मुझे वह सारा ड्रामा मिल रहा था, जिसकी मुझे जरूरत थी।

फिल्म प्रोडक्शन में शामिल होने का मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यह तय करना था कि रग्बी के दृश्य अच्छे हों। वे वास्तविक लगें। हां, ठीक है कि यह एक ड्रामा था लेकिन इसमें रग्बी के नियमों का पालन किया गया था और जिसे समझा भी जा सकता था। हमें दर्शकों के लिए खेल की कुछ समझ विकसित करने की आवश्यकता थी।

भारतीय सिनेमा की दुनिया में रग्बी के बारे में कुछ मजेदार बातें हैं और उनमें से कुछ खेल की किसी भी तरह की वास्तविक समझ पर आधारित हैं। हो सकता है राहुल बोस भारत के लिए रग्बी खेल चुके होंगे, सिद्धार्थ मलहोत्रा ने दिल्ली हरिकेंस के लिए खेला होगा। लेकिन दोनों में से कोई भी साय (2004 में एसएस राजामौली के निर्देशन में रग्बी पर आई तेलुगु फिल्म) का हिस्सा नहीं रहा, जिसके हिंसक रग्बी एक्शन सीन रग्बी की दुनिया में वायरल हैं और महान माने जाते हैं। लेकिन हमारी इस तरह की कोई योजना नहीं थी।

शूटिंग के दौरान

खेल निर्देशक के विशेषज्ञ रॉब मिलर पहले दिन से सेट पर थे और चक दे इंडिया, भाग मिल्खा भाग और मैरी कॉम से अनुभव लेकर आए थे। मेरा किरदार निभाने वाले अभिनेता स्टीवर्ट राइट थे और मैदान की अदला-बदली करने से पहले 18 साल की उम्र में उन्होंने इंग्लैंड के लिए रग्बी खेला था। रग्बी खिलाड़ियों का अभिनय करने वाले युवाओं में एक को छोड़कर सभी वास्तविक रग्बी खिलाड़ी थे। पहली चुनौती यह थी कि वे बॉल को धीरे से छोड़े और बहुत धीमा खेलें, जैसे कि वे खेल में नए हों और सीख रहे हों। पहले रग्बी मैच के सीन में कुछ लड़कों को हमें एक तरफ ले जाकर कई बार समझाना पड़ा कि यह वास्तविक खेल नहीं है। वे खेल में इतना रम जाते थे कि बॉल पास करने लगते थे, दौड़ते थे और कैमरे से दूर चले जाते थे!

जल्द ही श्रमिकों और उपकरणों को पैक किया जाने लगा और सभी को भुवनेश्वर से 5000 मील दूर स्वानसी भेज दिया गया। हालांकि 2007 का रग्बी टूर्नामेंट लंदन में खेला गया लेकिन फिल्म के लिए साउथ वेल्स रग्बी हार्टलैंड स्वानसी और लाननेली ने फिल्म के प्रोडक्शन के लिए गर्मजोशी से स्वागत किया। लेकिन यह नवंबर था और ठंड थी!

एमिली शाह ने फिजियो और मेंटर रोशनी के रूप में टीम का स्वागत किया। दल के सभी लोग लिहाफ में लिपटे हुए कॉफी के घूंट भर रहे थे। खिलाडि़यों के लिए यह कठिन समय था। उन सभी के लिए भारत से बाहर इतनी ठंड और वेल्स की सर्दियों की बारिश में आने का पहला मौका था।

सर्दियों के छोटे दिनों ने नई चुनौतियां पेश कीं। रग्बी के पिक्चराइजेशन ने नया मोड़ लिया क्योंकि इसे स्थानीय विशेषज्ञता से मेल खाने की जरूरत थी। जैसे ही निर्देशक सागर बेल्लारी कट चिल्लाते थे, वे उन कोट में समा जाते थे। जैसे-जैसे हम वेल्स में शूटिंग खत्म करने की समय सीमा तक पहुंच रहे थे, अधिक से अधिक फिल्मांकन कम और कम घंटों में समेटना पड़ रहा था। लेकिन हमने काम पूरा किया और फिल्म हमारी गिरफ्त में थी।

पोस्ट प्रोडक्शन में थोड़ा समय लगा। दरअसल इस काम में बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ती है। लेकिन मार्च 2020 तक हम साउथ वेल्स के लैनेल्ली में एक छोटे प्रीव्यू के लिए तैयार थे। लेकिन जो भी इसे पढ़ रहा है उसे जानना चाहिए कि ऐसा नहीं था कि जंगल क्राइ रिलीज होने को तैयार नहीं थी बल्कि यह कोविड के कारण भी फंसी रही।

अभय देओल

स्क्रीनिंग के बाद आखिरी फ्लाइट से मैं भारत से वापस आ गया। अब 2022 में अचानक सपना साकार हुआ दिखता है कि फिल्म भारत में लॉयंसगेट प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही है। कुछेक शानदार गाने आ चुके हैं।

2007 से भारत में खेलों की प्रगति अभूतपूर्व रही है। किस के डॉ. सामंता ने खेल के महत्व, सकारात्मक बदलाव और इसके असर को तुरंत भांप लिया है। भुवनेश्वर एक शांत शहर से खेल महानगर में तब्दील हो गया है। जो विश्वस्तर के कार्यक्रमों की मेजबानी कर रहा है और ओडिशा को वैश्विक पहचान दिला रहा है। मुझे लगता है, किस जंगल क्रो ने इसके आरंभ में छोटी सी भूमिका निभाई है। आखिर छोटे बलूत के फल से ही शक्तिशाली ओक उगते हैं!

वॉल्श

(लेखक पूर्व ब्रिटिश राजनयिक हैं, जिन्होंने कोलकाता में वंचित बच्चों को रग्बी के जरिए सशक्त बनाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। एक दशक से उनका अभियान ‘खेलो रग्बी’ झुग्गी-बस्तियों के बच्चों में बेहतर जिंदगी की उम्मीद जगा रहा है)

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