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सन्नाटे में शिकारे की सैर

विदेशी प्रतिनिधियों के प्रति घाटी के लोगों ने तो बेरुखी ही बरती फिर भी हकीकत नहीं छुप पाई
पर्यटन का लुत्फः श्रीनगर की डल झील में विदेशी प्रतिनिधि

कश्मीर घाटी में बुधवार 12 फरवरी को 25 विदेशी प्रतिनिधि घाटी पहुंचे तो शांति मगर बेरुखी छाई हुई थी। वैसे भी, 11 फरवरी को 1984 में तिहाड़ में फांसी पर चढ़ा दिए गए जेकेएलएफ के संस्थापक मोहम्मद मकबूल भट की बरसी पर कड़ी सुरक्षा के बीच पूर्ण हड़ताल थी, लेकिन विदेशी प्रतिनिधियों को यात्रा में कोई खलल नहीं पड़ा। इस दौरान जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, अफगानिस्तान, चेक गणराज्य, पोलैंड और अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने श्रीनगर के ग्रैंड पैलेस होटल में तीन अलग-अलग प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात की। यह होटल हरि निवास के ठीक बगल में है जिसे उप-जेल में बदल दिया गया है और जहां आजकल पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कैद हैं। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के साथ उमर पर सीआरपीसी की धारा 107 के तहत छह महीने की लंबी हिरासत के खत्म होने के बाद उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा कानून के तहत कैद कर लिया गया है।

जम्मू-कश्मीर की दो दिन की यात्रा के दौरान, अफगानिस्तान के प्रतिनिधि ताहिर कादिरी पर सबकी नजरें रहीं, क्योंकि वे इकलौते प्रतिनिधि थे जो अन्य प्रतिनिधियों के शिकारे की सवारी, खुली दुकानों और कश्मीरियों के आतिथ्य के बारे में ट्वीट कर रहे थे।

उनके एक के बाद एक कई ट्वीट ने हलचल मचाई और इंटरनेट तक पहुंच रखने वाले घाटी से बाहर के एक कश्मीरी ने उनसे पूछ ही लिया, “कश्मीर में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध है, बस यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि आप फिलहाल कौन से वीपीएन का उपयोग कर रहे हैं?”

सरकार ने लगभग छह महीने के बाद कश्मीर में 2जी इंटरनेट सेवा बहाल की है। इसके बाद कश्मीरियों ने फेसबुक और ट्विटर सहित सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइटों का उपयोग करने के लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) का सहारा लिया है। वीपीएन यूजर्स को साझा या सार्वजनिक नेटवर्क पर डेटा भेजने और लेने की सुविधा देता है। सरकारी नेटवर्क से सिर्फ 301 ही ऐसी वेबसाइट हैं जो कश्मीर में खुल सकती हैं। लेकिन वीपीएन ऐसे प्रतिबंधों से परे है। वीपीएन की मदद से किसी भी सार्वजनिक वाई-फाई का उपयोग किए बिना घाटी में प्रतिबंधित वेबसाइट और सोशल मीडिया तक पहुंच बनाई जा सकती है।

कश्मीरियों के इंटरनेट के बारे में सवाल भी अफगान प्रतिनिधि की ट्वीट की बाढ़ को रोक नहीं पाए। अफगान प्रतिनिधि ने ट्वीट किया, “कश्मीरी मीडिया के साथ हमारी बातचीत में, मीडिया के लोगों ने गंभीरता से सरकार से इंटरनेट ब्रॉडबैंड बहाल करने का आग्रह किया, क्योंकि प्रतिबंध की वजह से खबरें प्रसारित करने का उनका काम प्रभावित हो रहा है।” उन्होंने अपने एक और ट्वीट में लिखा, “हम अफगानी दावा करते हैं कि हम मेहमाननवाज हैं लेकिन कश्मीरी भी बिलकुल ऐसे हैं। मैंने यहां युवाओं के एक समूह से बात की। उनमें से एक उम्मीदों से भरी यह लड़की बास्केटबॉल में गोल्ड मेडलिस्ट है। इस खूबसूरत घाटी और लोगों को शुभकामनाओं के साथ बधाई।” अपने एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा, “यहां आए एक प्रतिभागी के अनुसार, जम्मू-कश्मीर भारत के 80 फीसदी सेब का उत्पादन करता है। यहां निवेश की संभावनाएं हैं। एक कश्मीरी व्यापारी ने प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि उनके देश के व्यापारियों के साथ साझेदारी करें।”

ट्वीट पर अफगानी प्रतिनिधि का उत्साह ज्यादा टिक नहीं पाया। कुछ दूसरे राजदूतों ने उनके ट्वीट पर पानी डालने से परहेज नहीं किया। मैक्सिको के राजदूत ने कहा, “कश्मीर सुंदर जगह है। हम यहां पर्यटक की हैसियत से आए हैं।” बाहर से आए कुछ विदेशी प्रतिनिधि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद क्षेत्र में पैदा हुई दूसरी स्थितियों के बारे में जानना चाहते थे। कनाडा के राजदूत से जब कश्मीर में निवेश की योजनाओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने भारत में कई जगहों पर निवेश किया है। लेकिन मैं कनाडा के किसी भी व्यक्ति को कश्मीर में निवेश करने की सलाह नहीं दूंगा, क्योंकि यहां स्थिति अनुकूल नहीं है।” भारत में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत भी इतने ही स्पष्टवादी थे। एक कश्मीरी प्रतिनिधिमंडल को उन्होंने बताया कि उनके देश की कोई भी कंपनी मौजूदा स्थिति में कश्मीर में निवेश करने से हिचकिचाएगी। युगांडा के राजदूत ने कहा कि उनका देश कश्मीर में निवेश करना पसंद करेगा लेकिन इसके लिए “सुरक्षित वातावरण की जरूरत है।” चेकोस्लोवाकिया और अन्य देशों के राजदूतों ने कहा कि विदेशी निवेशकों को आमंत्रित करने से पहले भारत को अपने ही देश के व्यापारियों को घाटी में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। चुनिंदा चयनित मीडिया प्रतिनिधिमंडल को तब भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, जब जर्मन राजदूत ने कहा कि दुनिया भर में पत्रकार अक्सर सरकार की नीतियों के आलोचक होते हैं, लेकिन वे यहां किसी को आलोचनात्मक नहीं पाते हैं। इस पर, पत्रकारों ने राजदूतों को बताया कि इंटरनेट प्रतिबंध के कारण उन्हें बेहद परेशानी हुई है। उन्होंने प्रतिनिधियों को यह भी बताया कि पत्रकारों को थानों में बुलाकर हिरासत में लिया जा रहा है और उनके फोन चेक किए जा रहे हैं।

सवाल और जवाबः राजदूतों और विदेशी प्रतिनिधियों के साथ अजीत डोभाल

राजनीतिक प्रतिनिधिमंडलों से नई दिल्ली में ऑस्ट्रिया के राजदूत ने पूछा, “अनुच्छेद 370 का कश्मीर पर कैसा असर पड़ा है?” पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता शोएब लोन ने इसके जवाब में बताया, “अनुच्छेद 370 हमें बहुत प्रिय था और इसे अचानक निरस्त कर दिया गया। केंद्र सरकार को हमारी जमीनों और नौकरियों की सुरक्षा के लिए एक नया कानून लाना चाहिए।” एक राजदूत ने पूछा, “क्या कश्मीर में किसी भी पत्रकार के खिलाफ उनके स्रोतों का खुलासा न करने के लिए कोई कार्रवाई की गई है।” उन्होंने मीडिया के प्रतिनिधिमंडल को बताया कि ऐसी खबरें हैं कि कुछ पत्रकारों को पुलिस ने हाल ही में तलब किया था।

जम्मू जाने से पहले सेना के अधिकारियों ने 13 फरवरी को सुबह सेना के 15 कोर में राजदूतों को जानकारी दी। 15 कोर के लेफ्टिनेंट जनरल के.जे.एस. ढिल्लन के नेतृत्व में सेना के अधिकारियों के साथ राजदूतों ने नाश्ता भी किया। एक घंटे की लंबी बैठक के दौरान सेना ने राजदूतों को बताया कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद से उग्रवाद में कमी आई है। सेना ने व्यावसायिक प्रशिक्षण में युवाओं को शामिल करने के प्रयासों के बारे में भी बताया।

12 फरवरी को श्रीनगर के ग्रैंड पैलेस होटल में विदेशी दूतों से मिलने वाले ‘व्यापारी’ प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहीं युवा व्यवसायी ताबिश हबीब का मिलने से पहले कहना था, “मैं एक ही शर्त पर विदेशी प्रतिनिधियों से मिलने जाऊंगी जब मुझे अपने विचार रखने की अनुमति दी जाएगी।” बाद में उन्होंने बताया, “बातचीत बहुत अच्छी रही। वे लोग जम्मू और कश्मीर के हालात जानना चाहते थे। उन्होंने इंटरनेट के बारे में सवाल पूछे। उन्होंने अनुच्छेद 370 के बारे में सवाल पूछे। उन्होंने पूछा कि लोगों की सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं। राजदूत वास्तव में कश्मीर के वास्तविक हालात जानना चाहते थे। उन्होंने कुछ प्रश्न पूछे, जिसमें वे यह समझना चाहते थे कि वर्तमान में कश्मीर में जो कुछ किया जा रहा है, उसके बारे में लोगों की क्या भावनाएं हैं। वे जानना चाहते थे कि इंटरनेट प्रतिबंध ने घाटी में व्यापार को कैसे अवरुद्ध किया है।” 

ताबिश ने आउटलुक को बताया, “25 लोगों के हमारे व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल में आधे कारोबारी लोगों के रूप में शामिल थे। प्रतिनिधियों ने पूछा कि सरकार से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं? हमारे डेलिगेशन में मौजूद नेताओं ने पाकिस्तान को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। मुझे लगता है यह रोजमर्रा का काम है। लेकिन मैं पूछती हूं कि जब सरकार पिछले सात दशकों से राज्य में चले आ रहे अनुच्छेद 370 को रद्द करने में सक्षम है, तो उसे क्षेत्र में विकास कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए पाकिस्तान के बहाने की जरूरत क्यों है। यदि वे वास्तव में कश्मीर का विकास करना चाहते हैं, तो उन्हें चार क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार को आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए पर्यटन, बागवानी, सेवा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। मैं कहती हूं कि सरकार को चाहिए कि वह अच्छी शिक्षा को लोगों की पहुंच में लाए। मैंने दिल्ली में आप का उदाहरण दिया और कहा कि सरकार भी ऐसे अच्छे सरकारी स्कूल चलाए। मैंने कहा कि कश्मीर में स्वास्थ्य सेवाएं बहुत खराब हैं। मैंने प्रतिनिधियों से कहा, यदि सरकार ने विकास के नाम पर अनुच्छेद 370 निरस्त किया है, तो उसे विकास पर ही ध्यान देना चाहिए।”

मैंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जगह होनी चाहिए। एक ऐसी जगह जहां हम किसी भी तरह के प्रतिशोध के डर के बिना कुछ भी कह सकें। हमारे डेलिगेशन में से ही किसी ने कहा कि यह आर्थिक विकास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए हो रहा है। शांति पहली शर्त है लेकिन हमारे पड़ोसी के कारण ऐसा नहीं हो रहा है। मैंने कहा, जब सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द करने से पहले पड़ोसी से नहीं पूछा, तो मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस क्षेत्र में शांति लाने के लिए पड़ोसी को बीच में डालने की जरूरत है। मेरा उनसे केवल यही सवाल था कि आगे का रोडमैप क्या है? प्रतिनिधिमंडल में से ही किसी ने कहा कि सरकार को पिछली गंदगी हटाने की अनुमति दी जानी चाहिए। मैंने कहा कि जब आप मेरे माता-पिता को अच्छी स्वास्थ्य सेवा और बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिला सकते, तो आप हमसे शांति से रहने की उम्मीद कैसे कर करते हैं। “आप क्या चाहते हैं कि बिजनेस घाटे में चल रहा हो, बैंक ब्याज के बारे में पूछ रहे हों तब भी मैं शांति से रहूं?”

उन्होंने बताया कि प्रतिनिधियों ने कहा है कि अगली बार जब वे कश्मीर का दौरा करेंगे, तो वे कश्मीर की ट्रेड बॉडीज से मिलेंगे ताकि आर्थिक नुकसान की सटीक तस्वीर मिल सके।

हाल ही में जारी अपनी आर्थिक हानि आकलन रिपोर्ट में कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने कहा कि कश्मीर की अर्थव्यवस्था को 17,878.18 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा व्यवधान से लाखों लोगों को नौकरियों का नुकसान हुआ है। संस्थागत वित्तीय उधारकर्ताओं ने अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की क्षमता खो दी है और पर्याप्त संख्या में खातों के दिवालिया होने की संभावना है। कई व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद हो गए हैं या मालिक बंद करने का विचार कर रहे हैं। इंटरनेट पर सीधे निर्भर सूचना प्रौद्योगिकी और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्र बर्बाद हो गए हैं। बागवानी क्षेत्र में सेब की खरीद के सरकारी हस्तक्षेप के कारण, खरीद में गिरावट आई और इसके कारण कीमतों में उथल-पुथल हुई और इसकी खरीद में खलबली मची। जबकि इसकी खरीद के लिए 8,000 करोड़ रुपये रखे गए थे, इसके बावजूद कोई भी प्रमुख व्यापारिक संस्था विदेशी प्रतिनिधियों से नहीं मिली।

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 उन्होंने इंटरनेट, अनुच्छेद 370 के बारे में सवाल पूछे। पूछा कि सरकार से क्या उम्मीदें हैं

ताबिश हबीब, युवा कारोबारी

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